Kmsraj51 की कलम से…..
♦ जल ही जीवन है। ♦
निर्मल जल बहता पड़ोस में,
अपनी कैसे प्यास बुझाएं।
ललई के नल की टोटी से,
कितना फैला दुर्गंध बताएं॥
व्याकुल मन पानी को तरसे,
बारिश देख मन मोर हरषे।
पर्वत – घाटी वा जंगल में,
तन मन व्याकुल हो तरसे॥
रात रात भर जागा फिर भी,
जाति पांति का जल गिरता।
मानव श्रृंखला बना सजती,
जल संरक्षण किनारे लगती॥
इच्छाएं सपने बुनती रहती,
जीवन है कहती रहती।
जल दान में उज्ज्वल भविष्य,
फोटो गैलरी से होते प्रसिद्ध॥
जगह जगह जलके संयंत्र,
कुछ बोले बड़ा खडयंत्र।
सरकारी जल जीवन मिशन,
लाए जनता में अमन चैन॥
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — हे मानव अब भी समय है संभल जा तू और पानी की बर्बादी को बंद कर दे। वरना बिन पानी सब सुन हो जायेगा, तेरा जीना दूभर हो जायेगा इस धरा पर। पानी 100 डिग्री सेल्सियस पर उबलने लगता है, जबकि 0 डिग्री सेल्सियस पर बर्फ के रूप में जम जाता है। धरती की सतह पर तकरीबन 326 मिलियन क्यूबिक मील की दूरी तक पानी फैला हुआ है। पृथ्वी पर मौजूद पानी का एक प्रतिशत से भी कम पीने योग्य है, बाकी समुद्र के खारे पानी और बर्फ के रूप में जमा हुआ है।
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यह कविता (जल ही जीवन है।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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