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सुख मंगल सिंह अवध निवासी

प्रधानमंत्री मोदी की 1774 करोड़ की सौगात काशी में।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ प्रधानमंत्री मोदी की 1774 करोड़ की सौगात काशी में। ♦

आषाढ़ शुक्ल – अष्टमी तिथि, जुलाई 7, 2022 दिन बृहस्पतिवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी के सिगरा स्टेडियम में 1774 करोड़ की विकास परियोजना के लोकार्पण समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के साथ उपस्थित हुए।

प्रधानमंत्री का मुख्यमंत्री द्वारा स्वागत

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने विगत दिनों उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद पहली बार प्रधानमंत्री के काशी आगमन पर स्टेडियम मंच से मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया।

मुख्यमंत्री का वक्तव्य

उत्तर प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में काशी नई विकास यात्रा की ओर बढ़ रही हैं और काशी मां गंगा की अविरल निर्मल धारा को देख रही। अब काशी को चिकित्सा और शिक्षा के नए हब के रूप में देखा जा रहा। मुख्यमंत्री ने कहा प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में बदलती काशी को नये कलेवर के रूप में देखा गया है। काशी में शिक्षा स्वास्थ पर्यटन और खेल में काफी विकास कार्य हुए हैं।

यहां ग्राम पंचायत स्तर से बेसिक मंच पर विकासशील परियोजनाएं लाई गई है। योजनाओं का लाभ नौजवानों, महिलाओं, सभी समाज के अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों को मिला है। जाति धर्म से ऊपर उठकर समाज के लोगों को लाभांवित किया गया है। इस महत्वपूर्ण समय पर आज के लिए मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री का आभार जताया।

प्रधानमंत्री ने कहा …

काशी के सांसद के रूप में अपने भाषण की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी अंदाज में किया और कहा काशी में कहीं जाला, सात बार अउर, नौ त्यौहार होला। काहे का मतलब ई है कि जहां रोज – रोज, नया – नया त्योहार मनावल जाला। इसके बाद उन्होंने कहा आप सब लोगों ने प्रणाम बा।

जनसभा को संबोधित करते हुए अपनी भाषण के दौरान विकास की अविरल धारा में आज और कई परियोजनाओं कि श्रृंखला जुड़ी है। काशी हमेशा से प्रभावशाली प्रबाहवान रही है। काशी ने एक तस्वीर पूरे देश को दिखाई है जिसमें विरासत भी है विकास भी है।

हमारा पूरा प्रयास है कि आत्मा वही रहे मगर काया में निरंतर नवीनता लाने का प्रयास जारी है। इसीलिए काशी में एक प्रोजेक्ट का काम पूरा होता है तो चार नया शुरू हो जाता है। काशी में सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा, स्वच्छता और सुंदरीकरण कर ऐसे जुड़ी हजारों करोड़ रुपए की परियोजना शुरू हो चुकी है। काशी के लोगों ने उत्साह और उमंग के साथ मेरा समर्थन किया इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

सिगरा स्टेडियम मंच पर उपस्थित

स्टेडियम के मंच पर प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, केंद्रीय मंत्री डॉ महेंद्र नाथ पांडे, कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर, जया शंकर मिश्र दयालु, रविंदर जयसवाल अशोक धवन आदि लोग उपस्थित थे।

प्रधानमंत्री वेंडिंग जोन (पटरी व्यवसाय से जुडे) की चर्चा की

ठेला पटरी व्यवसाई संग के सचिव अभिषेख निगम और प्रकाश कुमार श्रीवास्तव गणेश जी – संयोजक रेहड़ी पटरी व्यवसाय प्रकोष्ठ काशी चेत्र भाजपा के नेतृत्व में साइकिलों, पटरी वाले प्रधानमंत्री जी की जनसभा में जय कारे कि नारे लगाते, भारत माता की जय, मोदी-मोदी, घर-घर मोदी, के नारे को लगाते हुए सभा स्थल पर पहुंचे। पटरी व्यवसाय से जुडे लोग प्रधानमंत्री जी की योजनाओं से काफी प्रसन्न दिखे।

IT कॉलेज में केंद्रीकृत रसोई अच्छय पात्र का उद्घाटन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के IT कॉलेज परिसर में अक्षय पात्र रसोई का किया उद्घाटन इसके बाद महिला से सब्जी की धुलाई से लेकर दाल और चावल पकाने वाली मशीन के संचालन के बारे में जानकारी ली। किचन से निकलने के बाद पंडाल में प्रधानमंत्री ने बच्चों के साथ संवाद किया। ननिहाल की प्रतिभा को देखकर प्रधानमंत्री कायल हो गए।

अक्षय पात्र का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने उस जगह किया है जहां कभी स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष ने अपने पैरों से उधर आकर उस जगह को पवित्र किया था। कहां जाता है कि स्वामी विवेकानंद जी IT कॉलेज में पधारे थे।

प्रोटोकॉल को तोड़ कर प्रधानमंत्री नौनिहालों को दुलारने लगे

कोई भी कार्यक्रम हो भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बच्चों के साथ दुलार करना नहीं भूलते। अर्दली बाजार एवं IT कॉलेज में बच्चों के साथ प्रधानमंत्री ने खूब बातें की। बच्चों से प्रधानमंत्री ने लक्ष्य के प्रति डटे रहने का संदेश दिया।

एक बच्चे ने शिव तांडव किया जिसे प्रधानमंत्री ने अपने पास बुला लिया। उसके सिर पर हाथ फेरकर शाबाशी दी। एक बच्चा नेशनल ओलिंपियाड में योग करके लौटा था, उसने अपने योग का प्रदर्शन किया, शिवम की ओर देख प्रधानमंत्री उसके मुरीद हुए। सेवापूरी का एक बालक ने लगभग सैकड़ो देशों का नाम बताया और राजधानी, प्रधानमंत्री ने कुछ देशों के नाम और राजधानी सुनी इसके बाद उन्होंने खूब ध्यान से पढ़ो और आगे बढ़ों कहा।

एक बच्चे ने संस्कृत में श्लोक सुनाया जिसे सुनकर प्रधानमंत्री चकित रह गए। उकथी कन्या विद्यालय की छात्रा ने महिषासुर मर्दिनी, और सा नानी संग स्थित में महिषासुर मर्दिनी सुनाया चंद मिनटों के लिए पंडाल में उपस्थित लोगों में सिर्फ उसकी ही आवाज गुंजन कर रही थी। साक्षी यादव ने कविता सुनाया। अतीत नामक छात्र ने आंख पर पट्टी बांधकर एशिया के अनेक देशों और उसकी राजधानी को बताया।सोहेल नाम छात्र ने प्रधानमंत्री के पंडाल में घुसने पर ढोल बजा कर उनका स्वागत किया और संस्कृत में प्रधानमंत्री को अपना परिचय दिया।

रुद्राक्ष कन्वेंशन में प्रधानमंत्री मोदी

7 जुलाई 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के रुद्राक्ष कमीशन में आने पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उन्हें अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह प्रदान की। रुद्राक्ष कंवेंशन में अखिल भारतीय शिक्षा समागम में प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी को मोक्ष की नगरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि हमारे यहां मुक्ति का एकमात्र उपाय विद्या और ज्ञान को माना गया है।

जब शिक्षा का इतना बड़ा आयोजन काशी में होगा तो देश को उसका बड़ा फायदा होगा। देश की महिलाओं, बेटियों के लिए जो क्षेत्र पहले बंद हुआ करते थे आज वह सेक्टर बेटियों की प्रतिभा के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। तीन दिवसीय समागम से जो अमूल्य निधि निकलेगी वह शिक्षा को नई दिशा देगी। हमारे यहां उपनिषद ने कहा गया है कि विद्या अमृतमं अश्नुते, अर्थात विद्या ही अमरत्व है और अमृत तक ले जाती है।

प्रधानमंत्री ने शिक्षाविद से नए भारत का विजन साझा करते हुए कहा दुनिया भर में सौर ऊर्जा पर चर्चा हो रही है। हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास चमकता हुआ सूरज है। हमें सोलर एनर्जी का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।

अखिल भारतीय शिक्षा समागम

अखिल भारतीय शिक्षा समागम के दौरान राज्यपाल उत्तर प्रदेश आनंदीबेन पटेल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, अन्नपूर्णा देवी, डॉ सुभाष सरकार, डॉ राजकुमार रंजन सिंह, वैज्ञानिक के कस्तूरी रंजन, उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, मंत्री आशीष पटेल और रजनी तिवारी आदि मौजूद रहे।

अक्षय पात्र अभी है कहां-कहां

देश का कोई भी बच्चा भूख की वजह से शिक्षा से वंचित न हो इसके लिए प्रधानमंत्री ने यह योजना चलाई है जिसके तहत अब तक कानपुर, आगरा, गाज़ियाबाद, वृन्दावन, लखनऊ, गोरखपुर और वाराणसी में एकीकृत रसोई बनाने की प्रक्रिया शुरु हो गई है।

सोलर पैनल से अक्षय पात्र चलेगा

अक्षय पात्र फाउंडेशन के संयोजक ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण उनको ध्यान में रखते हुए सोलर पैनल इन्फ्रा लाइटों से भोजन को तैयार किया जाता है।

अखिल भारतीय शिक्षा समागम काशी

काशी की धरती पर सब विद्या की राजधानी में 3 दिन के अखिल भारतीय शिक्षा समागम रुद्राक्ष कंवेंशन सेंटर शिक्षा मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बच्चों के सहयोग से आयोजित किया गया।

समागम का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिक्षकों को उनके जिम्मेदारी का भी एहसास कराया। प्रधानमंत्री ने कहा लैब टू लैंड का रोड मैप होना चाहिए। कृषि विद्यालयों के लैब में होने वाले रिसर्च का लाभ किसानों को भी मिलना चाहिए और किसानों के अनुभव को लैब में भी प्रयोग करना चाहिए।

आज दुनिया के कई देश जड़ी – बूटी से पारंपरिक इलाज में हमसे आगे हैं। जिसका परिणाम दुनिया में देखा है। हमारे पास परिणाम के साथ-साथ प्रमाण भी होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा विकास का मतलब चमक दमक नहीं, अपितु वंचित तबके का सशक्तिकरण करना है। दुनिया के समृद्ध देश परेशान हैं, वहां बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। युवा पीढ़ी ही कम हो रही है। हमारे यहां भी जल्द ऐसा समय आने वाला है इसका समाधान खोजना होगा। शिक्षा को 21वीं सदी के भविष्य से जोड़ना होगा।

अखिल भारतीय शिक्षा समागम का आयोजन उस पवित्र धरती पर हो रहा है जहां आजादी से पहले देश की इतनी महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय की स्थापना हो गई थी। शिक्षा और शोध का, विद्या और बोध का, इतना बड़ा मंथन होगा तो शेर निकलने वाला अमृत देश को नई दिशा देगा। प्रधानमंत्री जी ने कहा यह हमें क्लाइमेट चेंज पर काम चाहिए।

खेल जगत पर बोलते हुए कहा

भारत में लोग लगातार उपलब्धियां हासिल कर रहे है। खेल मैदान शाम को खिलाड़ियों से भरे होने चाहिए। विश्वविद्यालय खेल के क्षेत्र में लैक्चर बनाकर चल सकते हैं, आने वाले वर्षों में कितने गोल्ड मेडल ला सकते है, इस बारे में विचार करने की जरूरत हैं। हमारे बच्चे दुनिया भर में अखिल विश्व में खेलने जाएं।

मोदी की सौगात से सजेगा फ्लाईओवर

लहरतारा से चौका घाट फ्लाईओवर के नीचे 1.9 किलोमीटर में फैली आदिवासियों को प्रधानमंत्री ने नाईट बाजार की सौगात दी। इस बाजार के बन जाने के बाद काशी ही नहीं बल्कि दूर दराज से आने वाले पर्यटकों को काशी की कला व संस्कृति देखने के साथ ही बनारसी खानपान का स्वाद भी मिलेगा। रेलवे स्टेशन से निकलकर और वाराणसी के बस स्टेशन से बाहर आकर जनता को जरूरत की सामान्य वन प्ले सेटिंग में रात में भी मुहैया होगी।

सिगरा स्टेडियम का निर्माण

International Sports Complex के निर्माण के लिए खेलो इंडिया अब निवेश करेगी। इस Complex का निर्माण नई प्रणाली से 424 करोड की लागत से होगा। पहले चरण का निर्माण 87 करोड़ रुपए में होगा।

लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री

वायु सेना के विशेष विमान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर 1:24 पर लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंचे। प्रधानमंत्री के आगमन से पूर्व उनकी आगवानी के लिए राज्यपाल उत्तर प्रदेश आनंदीबेन पटेल और उत्तर प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी राजकीय विमान से 12:00 बजकर 35 मिनट पर एयरपोर्ट पहुंच गए। उन्हें कुछ पुष्प गुच्छ अंग वस्त्र भेटकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने स्वागत किया। इसके उपरांत तीनों लोग वाराणसी के पुलिस लाइन हेली पैड पर उत्तर हेलीकॉप्टर से रवाना हुए।

वाराणसी शहर में अनेक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद प्रधानमंत्री, प्रकाश कुमार श्रीवास्तव ‘गणेश जी’ संयोजक रेहडी पटरी व्यवसाय प्रकोष्ठ काशी क्षेत्र भाजपा से मिलकर शाम 6:00 बजे वायु सेना के विमान से दिल्ली रवाना हो गए।

बहुत-बहुत तत्वदर्शी, दूरदर्शी व्यक्तियों के घनी तप और योग क्रियाओं को पहचान दिलाने वाले दुनिया में भारत का नाम आगे बढ़ाने वाले स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, अटल बिहारी वाजपेयी, श्यामा प्रसाद, राम मनोहर लोहिया स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रेरणा लेकर भगवान राम के आदर्श को शिरोधार्य करके जगने वाले देश के माननीय प्रधानमंत्री का काशी में जो संस्कृति और विद्या की जननी वाली नगरी है। बाबा भोलेनाथ को समर्पित किया।

जय हिन्द – जय जवान – जय किसान। भारत माता की जय।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख में समझाने की कोशिश की है — देश का कोई भी बच्चा भूख की वजह से शिक्षा से वंचित न हो इसके लिए प्रधानमंत्री ने यह योजना चलाई है जिसके तहत अब तक कानपुर, आगरा, गाज़ियाबाद, वृन्दावन, लखनऊ, गोरखपुर और वाराणसी में एकीकृत रसोई बनाने की प्रक्रिया शुरु हो गई है। लहरतारा से चौका घाट फ्लाईओवर के नीचे 1.9 किलोमीटर में फैली आदिवासियों को प्रधानमंत्री ने नाईट बाजार की सौगात दी। इस बाजार के बन जाने के बाद काशी ही नहीं बल्कि दूर दराज से आने वाले पर्यटकों को काशी की कला व संस्कृति देखने के साथ ही बनारसी खानपान का स्वाद भी मिलेगा। जब शिक्षा का इतना बड़ा आयोजन काशी में होगा तो देश को उसका बड़ा फायदा होगा। देश की महिलाओं, बेटियों के लिए जो क्षेत्र पहले बंद हुआ करते थे आज वह सेक्टर बेटियों की प्रतिभा के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

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यह लेख (प्रधानमंत्री मोदी की 1774 करोड़ की सौगात काशी में।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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प्राचीन हिन्दू सभ्यता का इतिहास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ प्राचीन हिन्दू सभ्यता का इतिहास। ♦

इतिहास बीती हुई सच्ची घटनाओं का विवरण होता है जो हो चुका है वही इतिहास का विषय है। इतिहास किसी मनुष्य अथवा देश के भूतकाल का वर्णन करता है। इसका संबंध समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करने के साथ ही साहित्य – कला नीतिशास्त्र से भी होता है।

इतिहास लेखन वर्तमान और भविष्य से इतर बीते समय का लेखा – जोखा महत्वपूर्ण संपूर्ण सभ्यताओं के साथ परिपूर्ण रूप से प्रस्तुत करता है परंतु वर्तमान भविष्य में इसके पोषक तत्व से लोग प्रभावित होते हैं। इतिहास में भूतकाल की घटनाओं का उल्लेख किया जाता है।

• वास्तविकता के आधार पर निर्मित इतिहास •

भूतकाल की घटनाएं उनके वृतांत विशमृत होकर समय काल के अनुसार मर जाते हैं। इतिहास निर्माण में वृत्तांतो का लेखा-जोखा होना नितांत आवश्यक होता है। वास्तविकता के आधार पर निर्मित इतिहास पक्षपात रहित सरल और निष्कपट भाव रखकर इतिहासकार सामग्री का उपयोग करता है।

हालांकि राजनीति में संलिप्त रचनाकार इतिहास रचना करते समय शुद्र ,सजग, युक्ति, तिथि, क्रम, क्षेत्रवाद से कुंठित होकर इतिहास की रचना साहित्यकार यदि करता है तो उसके अध्ययन से मिलावट होना उसमें परिलक्षित हो सकता है।

• भारत में लेखन कला —

भारत में 800 ईसवी पूर्व से पहले ही लेखन कला थी। जबकि यह सभी को मान्य नहीं है परंतु भारत में लिपि से बहुत पहले साहित्य बन चुका था। गुरु – शिष्य पीढ़ी दर पीढ़ी श्रुति परंपराओं के द्वारा इसकी रक्षा का क्रम चलता रहा।

गुरुकुल में भारतीय शिक्षा प्रबल थी। भारतीय गुरुकुल में सुर्ख़ियों से आगे शास्त्र को बढ़ाया जाता रहा। इस परंपरा के अनुसार स्मृतियां – कंठ में संचित रहती थी। उस समय के विद्वान चलते फिरते ग्रंथालय थे (हिंदू सभ्यता 22/23 राधा मुकुंद मुखर्जी कृत)।

• धर्म के क्षेत्र में भारत —

भारत में धर्म के क्षेत्र में सबसे अधिक विभिन्नता है। हिंदू धर्म समन्वय आत्मक और सर्वग्राही रूप में व्याप्त है। भारत में यहां सभी विश्व – धर्म पाए जाते हैं। जिनका दर्शनशास्त्र विश्व जनित है इसके गाथा शास्त्र और पुराणों की कथाएं बहु प्रतीक्षित है। अनेक बातों से अवगत और नई स्थिति के अनुरूप प्रकाश डालने की क्षमता हिंदू धर्म में है।

यह देश लोक धर्म, जन विश्वास, रीति-रिवाज, रहन-सहन, मत-मतांतर, भाषा-बोली, जाति-समाज और संस्थाओं की दृष्टि से इसे एक पूरा संग्रहालय कहा जा सकता है (हिंदू सभ्यता 71 राधा मुकुंद मुखर्जी कृत)।

हिंदू कालीन भारत में एक बार ऐसा देखने में आता है कि समस्त देश एक ही शासन तंत्र और एक ही ऐतिहासिक धारा के अंतर्गत आ गया था यह अशोक और मौर्य साम्राज्य था। जिसने अपने शासन प्रशासन संपूर्ण देश पर भारत के अंग भूत अफगानिस्तान और बलूचिस्तान पर भी स्थापित किया और सार्वभौम सम्राट हुआ।

• काशी, कोसल और विदेह —

कोसल, काशी और विदेह के बारे में शतपथ ब्राह्मण के उपाख्यान से ज्ञात होता है कि विदेह के राजा माधव, जो सरस्वती से चलकर यहां वैदिक संस्कृत की मूल भूमि पर सदानीरा नदी पार करते हैं। जहां कौशल की पूर्वी सीमा की आधुनिक गंडक और विदेह भूमि में आर्यों का पूर्व की ओर प्रसार हुआ। ऐसा ज्ञात होता है कि इस समय वैदिक संस्कृत के मुख्य केंद्र में काशी, कोसल और विदेह रहा। जो कभी एक साथ मिल जाते थे। ( शांख्योपन स्तोत्र सूत्र 16/9/11)

इस काल में काशी के राजा अजातशत्रु और विदेह के राजा जनक दार्शनिक सम्राट थे। उनके राज्य में विचार जगत का नेतृत्व श्वेत केतु और याज्ञवल्क्य जी करते थे।

पुराणों की प्राचीनता उपनिषद काल तक जाती है जहां इतिहास पुराण को अध्ययन का मान्य विषय स्वीकृत किया गया है। यहां तक कि इसे पंचवेद में कहा गया है। रामायण और महाभारत के साथ पुराण भी जनता के लिए वेद की भांति होते हैं। प्राचीनतम उल्लेख विद्यमान पुराण ग्रंथ संबंधी ‘आपस्तंब’ धर्मसूत्र में आता है। (महाभारत 2/9/ 24/6)

• राजवंशों का उद्गम —

आदि राज मनु से राजवंशों का उद्गम हुआ। इनकी पुत्री इला थी। उत्तरी इला ने पुरुरवा ऐला को जन्म दिया। वर्तमान प्रयाग के पास झूसी को अपनी राजधानी बना कर राज्य किया।

इक्ष्वाकु के पुत्र निमी ने विदेह में खुद को प्रतिष्ठित किया। इनके पुत्र दंडक ने दक्षिण के वन क्षेत्र में और मनु के अन्य पुत्र सौदुम्न ने गया के साथ-साथ पूर्वी जनपदों में राज्य स्थापना की। इनके पुत्र अमावसु ने कान्यकुब्ज और पौत्रों ने काशी बसाई।

ययाति की अधीनता में जो इक्ष्वाकु के वंशज थे उन्होंने एल सम्राज्य की स्थापना की। ययाति के पांचों पुत्रों का नाम क्रमशः यदु, तुर्वसू, द्रहयू , अनु और पुरु है। जो ऋग्वेद के समय प्रसिद्ध हो चुके थे। इन पांचों पुत्रों ने भारत के उत्तरी मध्य भाग को आपस में बांट लिया जिसमें काशी, कान्यकुब्ज, प्राचीन ऐल राज्य में थे।

‘यदु’ को – दक्षिण-पश्चिम भाग चर्मवती (चंबल) वेत्रवती (बेतवा) और शक्ति मती (केन) नदियों से सिंचित क्षेत्र प्राप्त हुआ।

‘तुर्वसू’ ने – रीवा क्षेत्र के समीप ही दक्षिण – पूर्व में अपने आप को स्थापित किया।

‘द्रहयु’ ने यमुना के पश्चिमी चंबल के उत्तर वाले पश्चिमी भाग में अपना साम्राज्य स्थापित किया।

‘अनु’ अनु ने उत्तर में गंगा जमुना के उत्तरार्ध में अपने साम्राज्य का फैलाव किया।

‘पुरु’ पुरु को पितृ – पितामह का बीच का प्रदेश गंगा – जमुना का दक्षिण क्षेत्र जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी प्राप्त हुआ।

यदु के वंशजों ने विशेष उन्नति योग वृद्धि को प्राप्त किया। फिर है हव – यादव को दो शाखाओं में बट गए।

यादों में सत बिंदु के नेतृत्व में कदम बढ़ा कर, पौरव और द्रहयु का प्रदेश जीत लिया।

दिग्विजय राजा अयोध्या नरेश मांधाता की प्रतिक्रिया से है हव लोग, आनव, और द्रहयु लोगों में उथल पुथल हुआ। जिससे ‘आनव’ – पंजाब की ओर फैल गए। ‘द्रहयु’ लोग गांधार की ओर चले गए।

कार्तवीर्य अर्जुन कॉल परिस्थित विजई के रूप में उभर कर सामने आया। जिसने नर्मदा तट पर बसे भार्गव ब्राह्मण को मार भगाया। उन्होंने पुरुरवा के पुत्र अमावसु के कान्यकुब्ज और मांधाता के अयोध्या में छत्री के यहां शरण ली।

जमदग्नि के पुत्र परशुराम ने ब्राम्हणों के प्रति शोध में ताल जंघ के अधीन है, हव राज्य को नष्ट कर डाला। जिसे स्व-काल्पनिक कहा गया।

ताल जांघों की आगे चलकर पांच शाखाएं हो गई। उन्होंने उत्तर भारत में अपने राज्य का विस्तार किया। इसी बीच उतर पश्चिम से आए शक, यवन, कंबोज, पारद और पहलवों की मदद से कान्यकुब्ज और अयोध्या को काफी हानी पहुंचाई।

अयोध्या नगरी सगर के नेतृत्व में फिर से उठकर है हव के प्रभुत्व को मिटाकर उत्तर भारत में अपने राज्य की स्थापना की। सगर की मृत्यु के उपरांत पुराना पौरव राज भी दुष्यंत और उसके पुत्र भरत के नेतृत्व में पुनः उत्थान को प्राप्त हुआ। (हि. स.158)

अयोध्या को भगीरथ, दिलीप, रघु, अज़, और दशरथ आदि अत्यंत योग्य राजाओं के अधीन राज्य उन्नत किया। इन्हीं के समय में अजोध्या का नाम कोसल पड़ गया। उधर ‘मध’ राजा के अधीन माधवों का राज गुजरात से यमुना तक फैल गया।

• हड़प्पा संस्कृति —

हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से साक्ष्य प्राप्त होते हैं की पुरातन काल से शिवलिंग की उपासना होती रही। अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति एवं भूपति कहा गया है।

अथर्व वेद की रचना अथवा ऋषि द्वारा किया गया है जिसमें रोग निवारण, तंत्र मंत्र, जादू टोना, शाप, वशीकरण आशीर्वाद स्तुति, प्रायश्चित, औषधि अनुसंधान, विवाह, प्रेम, राज कर्म, मातृभूमि – महात्म आदि विविध विषयों पर मंत्र की रचना की है।

• शैव संप्रदाय —

लिंग पूजन का स्पष्ट विवरण मत्स्य पुराण में लिखा गया है। अगर हम वामन पुराण की बात करते हैं तो उसमें शैव संप्रदाय की संख्या 4 बताई गई है। यथा – पाशुपत, कापालिक, काला मुंख और लिंगायत।

पाशुपत संप्रदाय, ही सर्वाधिक प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लकु लीश थे। जिनको भगवान शिव के 18 अवतारों में माना जाता है।

कापालिक संप्रदाय, का प्रमुख केंद्र श्रीशैल नामक स्थान था इस संप्रदाय के इष्ट देवता भैरव जी हैं।

काला मुख संप्रदाय, कहा जाता है कि इस संप्रदाय के लोग नर कपाल में ही भोजन करते हैं यह लोग सुरा पान भी करते हैं और शरीर पर चिता भस्म को मलते हैं।

लिंगायत संप्रदाय, इस संप्रदाय के लोग दक्षिण भारत में भी रहते हैं इस संप्रदाय के लोग शिवलिंग की उपासना करते हैं।

अनादिकाल से शैव और वैष्णो धर्म सनातन संस्कृति में रहा है। वैष्णो धर्म की जानकारी उपनिषदों से मिलती है।

• प्रमुख संप्रदाय —

नारायण पूजा वैष्णो धर्म के पूजक कहे जाते हैं। इसका विकास भगवत धर्म से हुआ है। विष्णु के 10 अवतारों का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सर्वाधिक महत्व भक्ति को दिया गया है।

इसके प्रमुख संप्रदायों का अगर जिक्र करें तो वैष्णव संप्रदाय, ब्रह्म संप्रदाय, रुद्र संप्रदाय और सनक संप्रदाय का जिक्र मिलता है। जिनके आचार्य क्रमशह रामानुज, आनंद तीर्थ, वल्लभाचार्य और निंबार्क हैं।

• मगध राज्य —

मगध राज्य – मगध राज्य की प्राचीन वंश के संस्थापक ब्रिहद्रथ मौर्य को माना जाता है। ब्रिहद्रथ मौर्य ने अपनी राजधानी राजगृह अर्थात गिरी ब्रज को बनाया था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बिंबिसार मगध की गद्दी पर 544 ईसवी पूर्व आसीन हुआ। कहां जाता है कि वह बौद्ध धर्म का अनुयाई था। बिंबिसार ने लगभग 52 वर्षों तक मगध पर शासन किया। उसने ब्रह्म दत्त को हराकर ‘अंग’ राज्य को अपने में मिला लिया था। बिंबिसार की हत्या अजातशत्रु ने 493 ईसवी पूर्व में करके गद्दी पर बैठा।

अजातशत्रु जिसका उपनाम कुडिक था। उसने भी मगज पर 32 वर्षों तक राज्य किया जबकि वह जैन धर्म का अनुयाई था।

• हर्यक वंश —

हर्यक वंश के अंतिम राजा के रूप में नाग दशक का नाम आता है। नाग दशक को शिशुनाग ने 412 ईसवी पूर्व में सत्ता से अपदस्थ करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना कर दिया।

शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से हटाकर वैशाली में स्थापित किया। कालांतर में शिशुनाग का पुत्र उत्तराधिकारी काला शोक पुनः अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में ले गया। शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नंदी वर्धन को माना जाता है।

• ‘मौर्य वंश’ की स्थापना —

नंद वंश का संस्थापक महापद्मनंद था। नंद वंश का अंतिम शासक धनानंद था। जिसे चंद्रगुप्त मौर्य ने पराजित किया और मगध पर नए सिरे से ‘मौर्य वंश’ की स्थापना की।

चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म का अनुयाई था। बताया जाता है कि उसने अपना अंतिम समय कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर बिताया। इसने गुरु भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली।

उस समय पाटलिपुत्र एक विशाल प्राचीर से घिरा हुआ था जिसमें 570 बुर्ज और 64 द्वार थे। दो तीन मंजिले घर को कच्ची ईंटों और लकड़ी से बनाया गया था राजा का महल भी कार्ड से ही बना था पत्थरों की नक्काशी से अलंकृत किया गया था इसके चारों तरफ बगीचा और चिड़िया को रहने का बसेरा से गिरा हुआ था।

प्लूटार्क/जस्टिन के अनुसार चंद्रगुप्त की सेना में 50,000 आरोही सैनिक, नव हजार हाथी और 8000 रथ था । सैनिक विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी सेनापति होता था। अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढ़ पुरुष कहा जाता था। उस समय सरकारी भूमि को ‘सीता भूमि’ के नाम से जाना जाता था।

राजा ने अनेक समितियां गठित की थी जिसमें जल सेना की व्यवस्था, यातायात और रसद की व्यवस्था, पैदल सैनिकों की देखरख, गज सेना की देखरेख, आशा रोगियों की सेना की देखरेख, औरत सेना की देखरेख की जिम्मेदारी सैन्य समिति को दी गई थी।

• चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिंदुसार (बिंबिसार) —

चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के विनाश के लिए कश्मीर के राजा पर्वतक से सहायता ली थी। अशोक के राज्य में जनपदीय न्यायालय के न्यायाधीश को राजुक कहा जाता था। मौर्य का उत्तराधिकारी बिंदुसार हुआ। बिंदुसार ने अपने पिता के संप्रदाय को बदलकर आजीवक संप्रदाय का अनुयाई बना। भाई पुराण के अनुसार बिंबिसार को ‘भद्र सार’ कहा जाता है।

बिंदुसार के बारे में बहुत विद्वान तारा नाथ ने लिखा है कि – जैन ग्रंथों के अनुसार बिंबिसार को सिंह सेन कहा गया है। तारा नाथानुसार – यह सोलह राज्यों का विजेता हुआ था।

• बिंबिसार का उत्तराधिकारी अशोक —

बिंबिसार का उत्तराधिकारी अशोक हुआ। जो मगध की राज गद्दी पर 269 ईसवी पूर्व बैठा। पुराणों के अनुसार अशोक को अशोक वर्धन कहा गया है। अशोक को ‘उप गुप्त’ नामक बौद्ध भिक्षु ने बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। अशोक ने धर्म प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था। अशोक की माता का नाम ‘शुभद्रांगी’। अशोक के शासनकाल से ही शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम भारत में शुरू हुआ।

• गुप्त साम्राज्य —

तीसरी शताब्दी के अंत में गुप्त साम्राज्य का उदय प्रयाग के निकट कौशांबी में हुआ। गुप्त वंश का संस्थापक श्री गुप्त 240 से 280 ईसवी में माना जाता है। श्री गुप्त का उत्तराधिकारी घटोत्कच 280 से 320 ईसवी में माना गया।

गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम था जो 320 ईसवी में गद्दी पर बैठा और उसने व्हिच वी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया। इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। तदुपरांत उसका उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त हुआ जो 335 ईसवी में गद्दी पर बैठा।

समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था। इसका दरबारी कवि हरिषेण था जिसने इलाहाबाद प्रशस्ति लेख की रचना की। समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी चंद्रगुप्त द्वितीय हुआ। चंद्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त प्रथम वा गोविंद गुप्ता हुआ।

• नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना —

कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमार गुप्त ने की थी। और कुमारगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी स्कंद गुप्त हुआ। स्कंद गुप्त ने गिरनार पर्वत पर सुदर्शन झील का पुनरुद्धार कराया।

• हूणों का आक्रमण —

स्कंद गुप्त के शासनकाल में ही हूणों का आक्रमण शुरू हो गया अंतिम गुप्त शासक विष्णु गुप्त था। गुप्त काल में प्रसिद्ध मंदिर विष्णु मंदिर जबलपुर मध्य प्रदेश में, शिव मंदिर भूमरा नागदा मध्यप्रदेश में, पार्वती मंदिर नैना कोठार मध्य प्रदेश में, दशावतार मंदिर देवगढ़ ललितपुर उत्तर प्रदेश में, शिव मंदिर खोह नागौद मध्यप्रदेश में, भीतरगांव मंदिर – भीतरगांव, लक्ष्मण मंदिर कानपुर उत्तर प्रदेश में निर्मित कराया था।

• कवि कालिदास व आयुर्वेदाचार्य धनवंतरी —

चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कवि कालिदास को कहा जाता था। इन के दरबार में आयुर्वेदाचार्य धनवंतरी थे।

• पुष्प भूति वंश —

गुप्त वंश के पतन के बाद राजवंशों का उदय हुआ इन राजवंशों में शासकों ने सबसे विशाल साम्राज्य स्थापित किया। पुष्प भूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति ने अपनी राजधानी थानेश्वर हरियाणा प्रांत के कुरुक्षेत्र मैं स्थित थानेसर नामक स्थान पर बनाई। इस वंश के श्री प्रभाकर वर्धन ने महाराजाधिराज जैसी सम्मानजनक उपाधियां धारण की।

प्रभाकर वर्धन की पत्नी यशोमती से 2 पुत्र राजवर्धन और हर्षवर्धन हुए तथा एक कन्या जिसका नाम राजश्री है उत्पन्न हुई। राजश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि राजा ग्रह वर्मा के साथ हुआ।

मालवा के राजा देव गुप्ता ने ग्रह वर्मा की हत्या कर दी और राजश्री को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। राजवर्धन देव गुप्त को मार डाला परंतु देव गुप्त का मित्र शशांक ने धोखा देकर राजवर्धन की हत्या कर दी।

राजवर्धन की मृत्यु के बाद 16 वर्ष की अवस्था में ही हर्ष वर्धन थानेश्वर की गद्दी पर बैठा, हर्षवर्धन को शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता है। हर्ष ने शशांक को पराजित करके कन्नौज का अधिकार अपने हाथ में ले लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख में समझाने की कोशिश की है — हिन्दू समुदाय का इतिहास सबसे प्राचीन है। इस धर्म को वेदकाल से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। यहां शताब्दियों से मौखिक (तु वेदस्य मुखं) परंपरा चलती रही, जिसके द्वारा इसका इतिहास व ग्रन्थ आगे बढ़ते रहे। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये ‘सनातन धर्म’ नाम मिलता है। ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है।

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यह लेख (प्राचीन हिन्दू सभ्यता का इतिहास।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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