Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ हथेली पर उगती फसल। ϒ
बड़े बाबू को घर में भी सभी बड़े बाबू कहते हैं। उन्होंने चपरासी से लेकर बड़े बाबू बनने का सफर चालीस साल में तय किया। जब वह रिटायर हुए तो घर वाले मायूस हो गये। उनकी मायूसी का कारण कम पेंशन नहीं पर टेबिल के नीचे की वह कमाई थी। जिसे ऊपरी कमाई कहते है। वह किताब बंद हाे रही थी। सब अंदाज लगा रहे थे कि जी॰ पी॰ एफ॰ में उनका कितना हिस्सा होगा पर बड़े बाबू ने यहां पेंशन ली और वहां एक पथरीली जमीन का सौदा कर डाला।
बच्चे सब निठल्ले थे अतः उन्हें सोचने का अधिकार था। उन्होंने सोचा कि बुढऊ मोटर साइकिल तो दिला नहीं रहा है, बंज़र ज़मीन खरीद रहा है। निश्चय ही सेवानिवृति के बाद बुढऊ सठिया गया है। प्रकट में बड़ा लड़का बोला “बापू आपने पूरी नौकरी एक विंटेज साइकिल में निकल दी अब मोटर साइकिल खरीद लेते तो सबको सुविधा हो जाती।”
बड़े बाबू बोले “अगले साल फसल आने पर सबको सब कुछ दिला दूंगा।
छोटा बोला बापू तू पक्के में सतिया गया है। उस बंजर पथरीली ज़मीन में फसल कैसे उगेगी।
बड़े बाबू बोले “बेटों बुद्धिमान लोगों कि फसल ज़मीन में नहीं उगती है। दोनों बेटे चुप हो गए। बड़ा सोचने लगा बुड्ढा घाघ ताे है। पूरी नौकरी में चौबीस घंटे बदमाश रहा है। हो सकता है कि किसी गुंताड़े में हो। एक साल इंतजार करने में कोई हर्ज नहीं है। कौन ये एक साल में मरा जा रहा है।
दूसरे दिन बड़े बाबू बोले इंश्योरेंस कंपनी के ऑफिस गये। वहां सब व्यस्तता का नाटक कर रहे थे। सब फंदा डाले बटेराें का इंतज़ार कर रहे थे। बड़े बाबू ने एक एजेंट से पूछा “मुझे फसल का बिमा करवाना है। मुझे किससे मिलना चाहिए।
आपको मुझसे ही मिलना चाहिए बल्कि मुझे ही आपसे मिलना चाहीये। चलिए फसल का मुआयना कर लिया जाये। बड़े बाबू बोले बॉस मई अपनी गाड़ी लेकर आता हूँ। आप पांच मिनट रुके।”
वह एजेंट बोला – “मुझे टॉयलेट जाना होता है तो पांच मिनट रुक भी सकता था। बिमा जैसी महत्वपूर्ण क्रिया में तो एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गवां सकता। आप मेरी कार से आपकी फसल का मुआयना करा दिजिए।”
बड़े बाबू उसकी कार में बैठ कर उनके खेत में ले गए जहां पत्थर पड़े थे। एजेंट ने भौचक होकर पूछा “फसल कहां है जिसका बीमा होना है।” बड़े बाबू ने कहाँ देखिये क्षितिज तक फसल लहलहा रही है। जरा आपका हाथ तो आगे कीजिये – एजेंट समझ गया कि बड़े बाबू बगैर बीज बोये फसल लहलहाना चाहते है। उसने पैंट के बाजू से पोंछ कर हाथ आगे कर दिया। बड़े बाबू ने रूपये दस हजार उसकी हथेली पर रख दिए। एजेंट खुश होकर बोला “अरे हां, फसल तो यहां से वहां तक लहलहा रही है।” माफ करना मैंने चश्मा नही लगाया था। पर फसल में आग एक माह के पहले मत लगाना।
बड़े बाबू ने ऐसा ही किया। फिर एक माह बाद फसल नष्ट होने की बीमे की राशि पांच लाख रुपये पत्नी के हाथो में रख दी। बेटों को उनके मन के सढियाने के बजाय आदर सूचक भाव आ गये।
इसके बाद बड़े बाबू एक राष्ट्रीयकृत बैंक के प्रबंधक के पास गये। उससे खड़े-खड़े ही निवेदन किया “”सर मुझे खेत में कुआं खुदवाने, बीज और खाद के लिए ऋण चाहिए।”
मैनेजर खड़ा हाे गया और बाेला – “बैठिये सर मैंने सोचा कि आप खाता खुलवाने के लिए आये है। आप खेत के कागजात तो लाये है। आजकल सरकार किसानो के पांच लाख तक के ऋण माफ़ कर रही है। ऋण ग्राहक हमारे लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति है। ऐसा महात्मा गांधी ने कहां है।”
महात्मा गांधी डॉक्टरों को मरीज दुकानदारों एंव बैंको को ग्राहक महत्वपूर्ण व्यक्ति बतला गये है। महात्मा जी कह गए है कि ग्राहक हमे सेवा का अवसर प्रदान कर अनुग्रहित करता है। हम उस पर निर्भर है। तनखा पर नहीं।
बड़े बाबू ने बैंक मैनेजर के हाथो में कुआं खाैदा, बीज बाेये और खाद डाली। यह सब काम दस हजार रूपये में हो गये। बड़े बाबू दस हजार रूपयो से पांच लाख रूपये खरीद कर घर ले आ गये। अब उनकी बीबी और बेटों ने उनके चरण छूकर आशीर्वाद मांगा। माँ लक्ष्मी के काैन चरण न छूना चाहेगा। बस फर्क इतना था कि साड़ी पहनने के बजाय बड़े बाबू पैंट शर्ट पहने थे।
अब पटवारी साहब कि बरी थी, सरकार ने उन्हें इतने काम दे रखें है, कि वे जमीं के कागजात देखकर कुर्सी पर बैठे-बैठे ही पंद्रह किलोमीटर दूर जाकर मुआयना कर देते है। उन्होंने भी दस हजार रूपये लेकर उस पथरीली ज़मीन पर फसल लहलहा दी और बड़े बाबू से अतिवृष्टि या अनावृष्टि का इंतज़ार करने को कहा।
इन सबके बेईमानियाें की भरपाई सरकार हमारी जेब में उसका ताला लगाकर कर रही है। जहां पहले फिक्स्ड डिपाजिट पर नाै प्रतिशत ब्याज मिलता था। अब वह घट कर छः प्रतिशत रह गया। हम माह में तीन बार से ज्यादा पैसा निकल नहीं सकते। हमारे एकाउंट में यदि जी. पी. एफ. के दस लाख भी जमा करते है ताे दाे लाख से ज्यादा निकाल नहीं सकते है। सरकार ने किसानों को भिखारी बना दिया है। सरकार कहती है कि – वह बेईमानों का पैसा बाहर निकलवा कर रहेगी। अब देश में ईमानदारों के आलावा काैन बेईमान बचा है।
समूह योजना में पैसे बांटे जा रहे है। आज़ादी के पैंसठ साल बाद भी एक गरीबी रेखा नामक रेखा है, जिसके ऊपर के लाेग गरीब हाेते जा रहे है। पट्टों के नाम पर ज़मीन की लूटमारी हो रही है। जिनके पास महंगे मोबाइल, मोटर साइकिल है। उन्हें फर्जी कार्ड के आधार पर मुफ्त के मकान दिए जा रहे है।
आज प्रजातंत्र में तंत्र बहुत अधिक मज़बूत हो गया है। और प्रजा बहुत अधिक कमज़ोर हो गई है। नौकरों को लाखों रूपये तनख्वाह मिलती है। और प्रजा या तो भीख़ मांग रही है या भूखों मर रही है।
इतिश्री हथेली पर उगती फसल नामक अध्याय समाप्त !!
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डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव जी के लिए मेरे विचार:
आपने किसानों की सत्यता को बहुत ही बखूबी तरीके से दर्शाया है – सभी के पेटों को भरने वाले अन्नदाता की सत्यता से रूबरू करवाया है। दिल को छूनेवाली – अत्यंत सुंदर लेख।
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Krishna Mohan Singh(KMS)
Editor in Chief, Founder & CEO
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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51
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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)
“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”
In English
~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)
“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAJ51