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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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हिंदी कहानियाँ।

मनहूस या लाड़ली।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ मनहूस या लाड़ली। ϒ

मनहूस या लाड़ली,… Wretched or ladli…

एक घर में एक बेटी ने जन्म लिया, जन्म होते ही माँ का स्वर्गवास हो गया। बाप ने बेटी को गले से लगा लिया, लेकिन रिश्तेदारों ने लड़की के जन्म से ही ताने मारने शुरू कर दिए कि पैदा होते ही माँ को खा गई मनहूस।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

पर बाप ने कुछ नही कहा अपनी बेटी को। उसने अपने बेटी का पालन पोषण शुरू किया। वो खेत में काम करता और बेटी को भी खेत ले जाता। काम भी करता और भागकर बेटी को भी संभालता। रिश्तेदारों ने बहुत समझाया कि दूसरा विवाह कर लो, पर बाप ने किसी की नहीं सुनी और पूरा ध्यान बेटी की ओर रखा। बेटी बड़ी हुई, स्कूल गयी फिर कॉलेज। हर क्लास में फर्स्ट आयी। बाप बहुत खुश होता। लोग बधाइयाँ देते। बेटी अपने बाप के साथ खेत में काम करवाती, फसल अच्छी होने लगी, रिश्तेदार ये सब देखकर चिढ़ गए।

Stop Living In The Past, Spend Time In Future.
“अतीत में रहना बंद करो, भविष्य में समय व्यतीत करें।”

जो उसको मनहूस कहते थे वो सब चिढ़ने लग गए। लड़की एक दिन अच्छा पढ़ -लिख कर पुलिस में एस. पी. बन गयी। एक दिन किसी मंत्री ने उसे सम्मानित करने का फैसला लिया और समागम का बंदोबस्त करने के आदेश दिए। समागम उनके ही गांव में रखा गया। मंत्री ने समागम में लोगों को समझाया कि बेटा- बेटी में फ़र्क नहीं करना चाहिए। बेटी भी वो सब कर सकती है जो बेटा कर सकता है। भाषण के बाद मंत्री ने लड़की को कुछ कहने को कहा। लड़की ने माइक पकड़ा और कहा – मैं आज जो भी हूँ अपने पिता की वजह से हूँ, जो लोगों के ताने सह कर भी मुझे यहाँ तक ले आये। मेरे पालन पोषण के लिए दिन रात एक कर दिया।

♥ उछलकर वापस आना।….. जरूर पढ़े।

मैंने माँ नहीं देखी और न ही कभी पिता से पूछा कि माँ कैसी थी, क्योंकि अगर मैं पूछती, तो उन्हें लगता कि शायद मेरे पालन-पोषण में कोई कमी रह गयी। मेरे लिए मेरे पिता से बढ़कर कुछ नहीं। पिता सामने लोगों में बैठ कर आंसू बहा रहा था। बेटी की भी बोलते-बोलते आँखे भर आयी। उसने मंत्री से पिता को स्टेज पर बुलाने की अनुमति ली। पिता स्टेज पर आया और बेटी को गले लगाकर बोला – रोती क्यों है बेटी, तू तो मेरा शेर पुत्तर है, तू ही कमजोर पड़ गया तो मेरा क्या होगा। मुझे तुझको सारी उम्र हंसते देखना है। बाप-बेटी का प्यार देखकर सबकी आँखे नम हो गयी। मंत्री ने बेटी के गले में सोने का मेडल डाला। लड़की ने मेडल उतारकर पिता के गले में डाल दिया। मंत्री ने बोला, ये क्या किया तुमने! तो लड़की बोली मेडल को उसकी सही जगह पहुँचा दिया। इसके असली हक़दार मेरे पिता जी हैं। समागम में तालियाँ बज उठी…..।

सीख – यह उन लोगों के लिए सबक है जो बेटियों को चार दीवारी में रखना पसंद करते हैं। पर ये फूल बाहर खिलेंगे अगर आप पानी लगाकर इन फूलों की संभाल करोगे।

  • हिंदी कविता “लड़की को मत समझो बेकार” जरूर पढ़े।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51

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Note:-

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought to life by. By doing this you Recognize hidden within the buraiya ensolar radiation and encourage good solar radiation to become themselves.

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAJ51

 

 

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निर्णय बुद्धिमत्ता से …।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ निर्णय बुद्धिमत्ता से …। ϒ

निर्णय बुद्धिमत्ता से…

एक व्यक्ति ने कुत्ता और बिल्ली पाल रखे थे। बिल्ली दिन और रात म्याऊ – म्याऊ करती, इस कारण वह व्यक्ति आराम नहीं कर पाता। एक दिन उसने चिढ़कर बिल्ली की पिटाई कर डाली और बोला – “क्यों सारे दिन म्याऊ – म्याऊ करती रहती है ?”

  • जानते तो बहुत है…। ….. जरूर पढ़े।

कुत्ते ने यह देखा तो डर के मारे उसने कभी न बोलने का निश्चय कर लिया। एक रात चोर उसके घर में चोरी करने घुसे। कुत्ते ने सब देखते हुए कुछ नहीं कहा। अगले दिन उस व्यक्ति ने कुत्ते को पीटते हुए कहा – “तुझे इसलिए पाला था कि चोर आये तो तू भाैंककर सूचित करे और तूने मौन साध लिया।”

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

Stop Living In The Past, Spend Time In Future.
“अतीत में रहना बंद करो, भविष्य में समय व्यतीत करें।”

सीख – वास्तव में किन्हीं स्थितियों में मौन अच्छा है तो किन्हीं में बोलना। मनुष्य को यह निर्णय अपने विवेक के अनुसार करना चाहिए।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

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छोटे अहंकार के कारण…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ छोटे अहंकार के कारण…। ϒ

छोटे अहंकार के कारण…

एक बार रेलगाड़ी में लोग यात्रा कर रहे थे। एक व्यक्ति खड़ा हुआ और खिड़की खोल दी, थोड़ी ही देर में दूसरा यात्री उठा और उसने खिड़की बंद कर दी। पहले को उसका यह बंद करना नागवार गुज़रा और उठकर खिड़की पुनः खोल दी।

  • जानते तो बहुत है…। ….. जरूर पढ़े।

एक बंद करता दूसरा खोल देता। यह बंद और खोलने का नाटक शुरू हो गया। यात्रियों का मनोरंजन हो रहा था, लेकिन अंततः सभी तंग आ गये। फिर क्या, ‘टी टी को बुलाया गया,’ टी टी ने पूछा ‘महाशय ! यह क्या कर रहे हो ? क्यों बार-बार खोल – बंद कर रहे हो ?’ पहला यात्री बोला- ‘क्यों न खोलू, मई गर्मी से परेशान हूँ, खिड़की खुली ही रहनी चाहिए।’ टी टी ने दूसरे यात्री को कहा – ‘भाई ! आपको क्या आपत्ति है, खिड़की खुली रहे तो ?’ इस पर दूसरे यात्री ने कहा- ‘मुझे ठंड लग रही है, मुझे ठंड सहन नहीं होती। टी टी बेचारा परेशान, एक को गर्मी लग रही है तो दूसरे को ठंड।

Stop Living In The Past, Spend Time In Future.
“अतीत में रहना बंद करो, भविष्य में समय व्यतीत करें।”

टी टी यह सोचकर खिड़की के पास गया कि कोई बीच का रास्ता निकल आये। उसने देखा और मुस्करा दिया। खिड़की में शीशा था ही नहीं। वहा तो मात्र फ्रेम थी। वह बोला – ‘कैसी गर्मी या कैसी ठंडी ? यहाँ तो शीशा ही गायब है, आप दोनों तो मात्र फ्रेम को ही ऊपर नीचे कर रहे हो।’ मित्रों, वस्तुतः दोनों यात्री न तो गर्मी और न ही ठंडी से परेशान थे। वे परेशान थे तो मात्र अपने अभिमान से। वे अपने अंह पाेषण में लिप्त थे, गर्मी या ठंडी का अस्तित्व ही नहीं था।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

सीख – अधिकांश कलह मात्र इसलिए होते है, कि अहंकार को चोट पहुँचती है, और आदमी को सबसे ज्यादा आनंद दूसरे के अहंकार को चोट पहुँचाने में आता है। साथ ही सबसे ज्यादा क्रोध अपने अहंकार पर चोट लगने से होता है। जो दूसरों के अहंकार को चोट पहुँचाने में सफल होता है, वह मान लेता है कि उसने बहुत ही बड़ा गढ़ जीत लिया, वह यह मानकर चलता है कि दूसरों के स्वाभिमान की रेखा को काट पीट कर ही वह सम्मानित बन सकता है। किन्तु परिणाम अज्ञानता भरे शर्म से अधिक नहीं होता। अधिकांश लड़ाइयों के पीछे कारण एक छोटा सा अहम् ही होता है। ज्ञान-ध्यान, कर्मयोग व् धर्मयोग की साधना से अहम और वहम (अहंकार और भ्रम), से ऊपर उठ कर अर्हम को प्राप्त करो।

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मन के रोग निकालें…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ मन के रोग निकालें…। ϒ

मन के रोग निकालें… Remove the disease from the mind…

एक सेठ के घर में चोर घुस गया। कमरे में कुछ खड़खड़ की आवाज हुई तो सेठानी चौक उठी। उसने अपने पति को जगाकर कहा: ‘मुझे लगता है कि अपने घर में कोई चोर घुस आया है।’ सेठ ने कहा: ‘हाँ-हाँ ज़रुर आया होगा, रात के समय और कौन आ सकता है।’ यह कहकर उसने चादर सिर तक तान ली। सेठानी ने दरवाज़े के छिद्र में से देखा – चोर ने तिजोरी खोल ली है और रुपये व जेवर आदि कपड़े में बांध रहा है। सेठानी ने पति से कहा: ‘जल्दी उठो, उसने सारी संपत्ति कपड़े में बांध ली है।’

सेठ बोला – ‘मैं जानता हूँ, वह आया है, तो कुछ लेकर ही जाएगा। सेठानी बोली: ‘हम लुट गए हैं।’ सेठ ने कहा – ‘मैं जानता हूँ, मगर अब कोई उपाय भी तो नहीं है।’ इस बार सेठानी को आवेश आ गया। बोली – ‘तुम बस जानते ही रहो। अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।’ वह दाैड़कर घर के मुख्य द्वार पर पहुंचकर ज़ोरों से चिल्लाई: ‘बचाओ ! चोर-चोर !’ चोर डरकर गठरी को वहीं फेंक कर भाग खड़ा हुआ। सेठानी ने गठरी अंदर लेकर पति से कहा: ‘मैंने चोर को भगा दिया है।’ सेठ उठकर बोला: ‘मैं जानता था, तुम कमरे से बाहर गई हो तो बचाव का कुछ न कुछ उपाय करके ही आओगी।’ सेठानी ने अपना सिर थाम कर कहा: ‘जानते थे तो फिर साथ क्यों नही दिया ?’

इसी तरह आज हम सब जानते है, लेकिन ज्ञान को आचरण में उतार नहीं पाते। ज्ञान केवल जान लेने मात्र से कुछ भी लाभ होने वाला नहीं है। उदाहरण के तौर पर, हम सर्प को भी जानते है, इसलिए उसके मुँह को तो क्या पूंछ को भी हाथ नहीं लगाते। बिच्छू के स्वभाव से परिचित होने के कारण हम उसे अपनी जेब में रखकर नहीं घूमते, क्योंकि हमें यह ज्ञान है कि ये विषैले जीव हैं। हम स्वप्न में भी इन्हें पकड़ने की भूल नहीं करते।

सीख – आज हमारे तन में जितने रोग नहीं हैं, उससे कहीं अधिक रोग हमने अपने मन में पाल रखे हैं। हमारा चिंतन सकारात्मक कम और नकारात्मक अधिक हो गया है। जीवन की यह मस्ती ही जीवन की कश्ती को डुबो देगी। अभी हमारे पास समय है। हम जागें, अंधकार से बाहर निकलें और जीवन को जागृति और सत्यता के साथ जियें।

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अभी समय नहीं…।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ अभी समय नहीं…। ϒ

अभी समय नहीं…

एक बार कबीरदास जी परमात्मा का भजन करते हुए गली से निकल रहे थे। उनके आगे कुछ स्त्रियां जा रही थी। उनमे से एक स्री की शादी कहीं तय हुई होगी तो उसके ससुराल वालों ने शगुन में एक नथुनी भेजी थी। वह लड़की अपनी सहेलियों को बार-बार नथनी के बारे में बता रही थी कि नथनी ऐसी है वैसी है…। ये ख़ास उन्होंने मेरे लिए भेजी है… बार-बार बस नथनी की ही बात…।

उनके पीछे चल रहे कबीरदास जी के कान में सारी बातें पड़ रही थी।

तेजी से कदम बढ़ाते हुए कबीरदास जी उनके पास से निकले और कहा –
‘नथनी देनी यार ने,
तो चिंतन बारम्बार, और
नाक दीनी जिस करतार ने,
उनको तो दिया बिसार… ।

सोचो यदि नाक ही न होती तो नथनी कहाँ पहनती।’

यही जीवन में हम भी करते हैं। भौतिक वस्तुओं का ज्ञान तो हमे रहता है, परंतु जिस परमात्मा ने यह दुर्लभ मनुष्य देह दी और इस देह से सम्बंधित सारी वस्तुएं, सभी रिश्ते-नाते दिए, उसी को याद करने के लिए हमारे पास समय नहीं होता। इसलिए सदा उन अनगिनत अमूल्य देन के लिए पारब्रह्मा परमात्मा के आभारी रहें जो उन्होंने हमें दी है।

मन को अचल-अडोल स्थिती मैं स्थित करने के लिए सर्वप्रथम अपने मन को फालतू विचारों से मुक्त करना होगा अर्थात: अपने मन से फालतू विचारों का कचरा हटाना होगा, तभी आप अपने मन के अंदर अच्छे विचारों को स्थित कर पाएंगे।

♥ – एक बात सदैव ही – याद रखें ….. समय का प्रबंधन वास्तव में जीवन का प्रबंधन है। यह दरअसल घटनाओं के क्रम को नियंत्रित करना है। समय का प्रबंधन का अर्थ है, इस बात पर नियंत्रण करना कि आप अगला कार्य कौन सा करेंगे, और आप हमेशा अपना कार्य चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं। महत्वपूर्ण और महत्वहीन के बीच विकल्प चुनने कि आपकी काबिलियत, जिंदगी और काम-धंधे में आपकी सफलता तय करने वाली अहम कुंजी हैं। असरदार और उत्पादक लोग खुद को इस बात के लिए अनुशासित कर लेते हैं कि वे सबसे महत्वपूर्ण कार्य से ही दिन कि शुरुआत करें।

“किसी महत्वपूर्ण कार्य को शुरू और पूरा करने के बारे में सोचने भर से ही आप प्रेरित हो जाते हैं। इससे आपको टालमटोल छोड़ने में मदद मिलती हैं।”

सच तो यह हैं कि किसी महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए भी अक्सर उतने ही समय की जरूरत होती हैं, जितनी कि महत्वहीन कार्य को करने के लिए। फर्क यह है कि महत्वपूर्ण कार्य पूरा करने के बाद आपको गर्व और संतुष्टि का जबरदस्त एहसास होता हैं। बहरहाल जब आप उतना ही समय और ऊर्जा खर्च करके कोई मूल्यहीन या महत्वहीन कार्य पूरा करते हैं, तो आपको बहुत कम संतुष्टि मिलती हैं या जरा भी नही मिलती। उत्पादक लोग(productive people) या सफल लोग – महत्वपूर्ण कार्य को ही सबसे पहले करते हैं, भले ही वह कठिन हो, चाहे वह जो भी हो। नतीजा यह होता हैं – कि वे आम आदमी से कहीं ज्यादा हासिल करते हैं और ज्यादा खुश भी रहते हैं।

“कार्य करने का ये तरीका आपको भी अपनाना चाहिए।”

महत्वपूर्ण कार्य का जर्नल(नाेटबुक या डायरी) रखें – और उसमें रात में सोते समय ही अगले दिन के कार्य का डिटेल्स लिख ले – सबसे पहले अपनी डायरी में तीन कालम बना ले, पहले वाले कालम में हेडिंग्स डाले – अत्याधिक महत्वपूर्ण कार्य, दूसरे वाले कालम में हेडिंग्स डाले – महत्वपूर्ण कार्य, और तीसरे वाले कालम में हेडिंग्स डाले – कम महत्वपूर्ण कार्य।

सीख – क्योंकि प्रभु स्मृति और निराभिमानी स्थिति ही उन चीजों या देन को अविनाशी और सदैव खूबसूरत बनाये रख सकती है। इसलिए मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।

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बिना कष्ट सहे सफलता नहीं मिलता।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ बिना कष्ट सहे सफलता नहीं मिलता। ϒ

बाज लगभग 70 वर्ष जीता है। परन्तु अपने जीवन के ४०-वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं…

  • पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है व शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं।
  • चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है।
  • पंख भारी हो जाते हैं, और सीने से चिपकने के कारण पूरे खुल नहीं पाते हैं, उड़ानें सीमित कर देते हैं।

भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना। तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं। उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं…..

  • या तो देह त्याग दे।
  • या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे।
  • या फिर स्वयं को पुनर्स्थापित करे।

आकाश के निर्द्वन्द्व एकाधिपति के रूप में।
जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं।
वहीं तीसरा अत्यन्त पीड़ादायी और लम्बा।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है। वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, एकान्त में अपना घोंसला बनाता है और तब प्रारम्भ करता है पूरी प्रक्रिया। सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार-मार कर तोड़ देता है। अपनी चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं पक्षीराज के लिये।

तब वह प्रतीक्षा करता है, चोंच के पुनः उग आने की। उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है और प्रतीक्षा करता है पंजों के पुनः उग आने की। नये चोंच और पंजे आने के बाद, वह अपने भारी पंखों को एक-एक कर नोंच कर निकालता है और प्रतीक्षा करता पंखों के पुनः उग आने की।

150 दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा….. और तब उसे मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान, पहले जैसी नयी। इस पुनर्स्थापना के बाद वह 30 साल और जीता है, ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ।

सीख – प्रकृति हमें सिखाने बैठी है। पंजे पकड़ के प्रतीक हैं। चोंच सक्रियता की और पंख कल्पना को स्थापित करते हैं। इच्छा परिस्थितियों पर नियन्त्रण बनाये रखने की, सक्रियता स्वयं के अस्तित्व की गरिमा बनाये रखने की, कल्पना जीवन में कुछ नयापन बनाये रखने की। इच्छा, सक्रियता और कल्पना…..तीनों के तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं। हममें भी चालीस तक आते-आते।

हमारा व्यक्तित्व ही ढीला पड़ने लगता है। अर्धजीवन में ही जीवन समाप्तप्राय सा लगने लगता है। उत्साह, आकांक्षा, ऊर्जा….. अधोगामी हो जाते हैं। हमारे पास भी कई विकल्प होते हैं…..

  • कुछ सरल और त्वरित।
  • कुछ पीड़ादायी।

हमें भी अपने जीवन के विवशता भरे, अतिलचीलेपन को त्याग कर नियन्त्रण दिखाना होगा। बाज के पंजों की तरह। हमें भी आलस्य उत्पन्न करने वाली वक्र मानसिकता को त्याग कर ऊर्जस्वित सक्रियता दिखानी होगी। “बाज की चोंच की तरह।” हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी।

  • हिंदी कहानी – प्यार का return गिफ्ट जरूर पढ़े।

“बाज के पंखों की तरह।” 150 दिन न सही, तो एक माह ही बिताया जाये, स्वयं को पुनर्स्थापित करने में। जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही।

बाज तब उड़ानें भरने को तैयार होंगे। इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiya ensolar radiation, and encourage good solar radiation to become tthemselves

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAJ51

 

 

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सात दिन ही बचे हैं…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ सात दिन ही बचे हैं…। ϒ

एक बार की बात है, संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वभाव से थोड़ा क्रोधी था, उनके समक्ष आया और बोला, ‘गुरु जी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं। 

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कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए। (Please tell the secret of your good behavior.) संत तुकाराम जी बोले – ‘मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ।’ ‘मेरा रहस्य ! वह क्या हैं गुरु जी?’ शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।

‘तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो।’ संत तुकाराम दुःखी होते हुए बोले। कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था।

शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहा से चला गया। उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पुरे होने को आये।

शिष्य ने सोचा, चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं। वह उनके समक्ष और बोला- ‘गुरु जी, मेरा समय पूरा होने वाला हैं, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये।’ ‘मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ हैं पुत्र। अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?’

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

संत तुकाराम ने प्रश्न किया। ‘नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गंवा सकता था। मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी।’ शिष्य तत्परता से बोला।

सीख- संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले – ‘बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य हैं। मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ।’ शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था। वास्तव में हमारे पास भी सात दिन ही बचे हैं… रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि, आठवां दिन तो बना ही नहीं हैं। तो, आइये आज से ही परिवर्तन आरम्भ करें।

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मैं हूँ ना…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ मैं हूँ ना…। ϒ

एक व्यक्ति का दिन बहुत खराब गया। उसने रात को ईश्वर से फरियाद की। उसने कहा : ‘भगवान, आप गुस्सा न हों तो एक प्रश्न पूछूँ?’  भगवान ने कहा: ‘पूछ, जो पूछना हो पूछ।’ व्यक्ति ने कहा: ‘भगवान, आपने आज मेरा पूरा दिन एकदम ख़राब क्यों किया?’ भगवान हँसे……. पूछा: ‘पर हुआ क्या?’ व्यक्ति ने कहा: ‘सुबह अलार्म नहीं बजा, मुझे उठने में देरी हो गई…….।’ भगवान ने कहा: ‘अच्छा फिर…….।’ व्यक्ति ने कहा: ‘देर हो रही थी, उस पर स्कूटर बिगड़ गया। मुश्किल से रिक्शा मिला।’ 

भगवान ने कहा: ‘अच्छा फिर…….।’ व्यक्ति ने कहा: ‘टिफिन ले नहीं गया था, वहाँ कैंटीन भी बंद थी….. एक सैंडविच पर दिन निकाला, वो भी ख़राब थी।’

भगवान केवल हँसे……. व्यक्ति ने फरियाद आगे चलाई, ‘मुझे आवश्यक काम के लिए महत्वपूर्ण फोन आया था और फ़ोन बंद हो गया।’ भगवान ने कहा: ‘अच्छा फिर…….।’ व्यक्ति ने कहा: ‘विचार किया कि जल्दी घर जाकर सो जाऊँ, पर घर पहुँचा ताे लाईंट नहीं थी। भगवान……. सब तकलीफें मुझे ही। ऐसा क्यों किया मेरे साथ?’

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भगवान ने कहा: ‘देख, मेरी बात ध्यान से सुन…, आज तुझ पर कोई आफत आणि थी। मैंने देवदूत को भेजकर अलार्म बजे ही नहीं ऐसा किया। भगवान ने कहा: स्कूटर से accident होने का डर था इसलिए स्कूटर बिगाड़ दिया। कैंटीन में खाने से food poisoning हो जाता। फ़ोन पर बड़ी काम की बात करने वाला आदमी तुझे बड़े घोटाले में फँसा देता। इसलिए फ़ोन बंद कर दिया।  तेरे घर में आज शार्ट-सर्किट से आग लगती, तू सोया रहता और तुझे ख़बर ही नहीं पड़ती। इसलिए लाईंट बंद कर दी।

मैं हूँ ना……., मैंने सब तुझे बचाने के लिए किया।’ तो व्यक्ति ने कहा: ‘भगवान, मुझसे भूल हो गई। मुझे माफ़ कीजिए। आज के बाद – फरियाद नहीं करूँगा।’ 

भगवान ने कहा: माफी मांगने की जरूरत नहीं, परन्तु विश्वास रखना कि मैं हूँ ना….., मैं जो करूँगा, जो योजना बनाऊंगा, वो तेरे अच्छे के लिए ही।

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सीख – जीवन में जो कुछ अच्छा-ख़राब होता है, उसकी सही तस्वीर लम्बे वक्त के बाद समझ में आती है। मेरे कोई भी कार्य पर शंका न कर, श्रद्धा रख। जीवन का भार अपने ऊपर लेकर घूमने के बदले मेरे कंधाे पर रख दे।’

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