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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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हिंदी भाषा में शायरी

रिश्तों का गणित।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ रिश्तों का गणित। ♦

रिश्तों का गणित
अक्सर कहते हैं लोग मुझे,
मैं गणित का ज्ञान रखती नहीं।
करती हूं किस प्रकार गृहस्ती में काम,
कुछ तो करो इस का बखान॥

चलो – गणित की शुरुआत,
मैं कुछ इस प्रकार करती हूं !
शून्य से प्रारंभ कर,
शून्य से ही अंत करती हूं॥

माना अंकगणित से,
ज्यादा नाता रखती नहीं।
पर इतना तो जरूर है,
की रिश्तों में मैं ज्यादा,
गुणा भाग करती नहीं॥

जोड़ना हो अगर तो,
दिलों को मैं जोड़ना हूं जानती।
घटने और घटाने की बात आए तो,
मैं नफरतों को देती हूं घटा॥

समीकरण तो ज्यादा समझ में आते नहीं,
पर रिश्तों में सामंजस्यता बैठा लेती हूं।
उठता है अगर अहंकार का जोड़ वाला चिन्ह,
तो उसे मैं दो मीठे बोल बोलकर घटा ही लेती हूं॥

ज्यादा पहाड़े तो आते नहीं,
लेकिन मुट्ठी भर खुशियों को,
उम्मीद के दामन के साथ गुणा करके,
पहाड़ जितना बना देती हूँ॥

हवा चलती है जब परेशानियों की,
तो मैं भाग कर देती हूं।
थोड़ी उम्मीद में देती हूं बाँट,
थोडा सब्र रखने की करती हूं बात॥

फिर भी जोड़ गुणा भाग – घटा,
में रह जाए कोष्ठक जैसा कोई सवाल,
उसे भी अलग रखकर देती हूं।
रिश्ते में नई पहचान,
ताकि वो ना हो जाये परेशान॥

अंको की इस भीड़ में फिर भी,
अपनी पहचान शून्य ही बताती हूँ।
शून्य से शुरुआत करके – शून्य,
पर ही खत्म हो जाती हूं॥

♦ कविता पाल जी – नई दिल्ली ♦

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  • “कविता पाल जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — रिश्ता चाहे कोई भी है, उतार चढ़ाव तो रिश्तों में आता रहता है, प्रेम, समर्पण और समझदारी से हरेक रिश्तों को संभाला जा सकता हैं। रिश्तों का गणित तो बहुत सरल है बस जरूरत है समझदारी के साथ सभी से तालमेल बनाकर चलने की। चाहे बड़े हो या छोटे सबको प्रेम से मिलजुल कर रहना चाहिए। सभी का आदर व सम्मान करना चाहिए। मिलजुल कर हर एक कार्य करना चाहिए। आओ हम सब मिलकर एक सुखमय समाज का निर्माण करें।

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यह कविता (रिश्तों का गणित।) ” कविता पाल जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए, माता रानी की कृपा से।

नाम : कविता पाल
शिक्षा : पुस्तकालय विज्ञान में D.LIS, B.LIS, और M.LIS
PG Diploma in YOGA.

शौक : अध्यापन, लेखन, समाज सेवा द्वारा महिलाओं की स्थिति में जागरूकता लाना।

— अपने बारे में कुछ शब्द साहित्यिक गतिविधियां काव्य लेखन, गद्य लेखन एवं फेसबुक के विभिन्न साहित्यिक समूहों में सक्रिय सहभागिता रहती है अतः सक्रिय लेखक सम्मान एवं पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।
— मेरे द्वारा फेसबुक पर अनमोल अल्फाज नामक पेज का संचालन भी किया जाता है। जिसका एकमात्र उद्देश्य समाज में मेरी कविताओं द्वारा महिलाओं एवं अन्य क्षेत्र में जागरूकता का कार्य करना है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

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राष्ट्रभाषा हिन्दी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राष्ट्रभाषा हिन्दी। ♦

ऊसर होती जमीन को, पुनः जीवन देना चाहिये;
जाती हुई भाषा को, पुनः स्थापित करना चाहिये।

आज के परिवेश में, हिन्दी का होता अपमान;
अंग्रेजियत का हो रहा बोलबाला, हिंदी को कर दरकिनार।

मिठास भरी जिसमें, जहर का नाम दे रहे;
मधुरता जिसके शब्दों में, कड़वाहट उसमें घोल रहे।

पृष्ठिभूमि जिसने बनाई, उसकी नींव हिला रहे;
सम्पूर्ण जगत में, सभ्यता संस्कृति को रखा है।

आज तक जन – जन तक, हृदय की गहराई तक बसी;
पर निगाहों से उतारी गई, भाषा हिन्दुस्तान की।

हिन्दी सम्मान है, हिन्दी अभिमान है;
हिन्दी स्वाभिमान है, भारत की जान है।

भरतखण्ड की संस्कृति है, संस्कारों की जननी है;
आत्मा जग की, विश्व भाषा की माँ है।

विश्वास जगत जनार्दन की, एक डोर में सबको है बांधती;
हर भाषा को सगी बहन समझे, भरी-पूरी हों सभी बोलियां।

यही कामना हिंदी है, यही साधना हिंदी है;
सौतन विदेशी भाषा न बने, महारानी हमारी हिन्दी ही रहे।

आन हमारी है, शान हमारी है हिन्दी;
चेतना हमारी है हिन्दी, वाणी का शुभ वरदान है हिन्दी।

वर्तनी हमारी है हिंदी, व्याकरण हमारी है हिन्दी;
संस्कृति हमारी है हिंदी, आचरण हमारी है हिन्दी।

वेदना हमारी है हिंदी, गान हमारी है हिन्दी;
आत्मा हमारी है हिन्दी, भावना का साज़ है हिन्दी।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली , मध्य प्रदेश ♦

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ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — अंग्रेजो से आजादी के इतने वर्षों बाद भी हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा की मान्यता आधिकारिक रूप से क्यों दर्ज नही हुआ, हिंदी को उसका सम्मान क्यों नहीं मिला? हिन्दी राष्ट्रभाषा के महत्व, गुणों और प्रभाव को बताया है। हिन्दी हर भारतीय के दिल से निकलने वाली भाषा हैं। हिन्दी भाषा दिल को दिल से जोड़ने का कार्य करती है। एकलौती हिन्दी भाषा ही है जिसमे अपनापन है दुनिया की किसी भी अन्य भाषा अपनापन का स्थान नहीं।

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यह कविता (राष्ट्रभाषा हिन्दी।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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दुनिया हिंदी को राष्ट्रभाषा जानती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दुनिया हिंदी को राष्ट्रभाषा जानती। ♦

हिंदी भाषी राज्यों की आबादी,
46 करोड़ से अधिक बताई जाती।
जनगणना के हिसाब से भारत में,
1.2 अरब (2011) की है पूरी आबादी।

जिसमें 48.3 फीसदी मातृभाषा,
हिंदी ही माध्यम से बोली जाती।
80 करोड़ से अधिक लोग दुनिया में,
25 देशों में हिंदी बोली जाती।

विश्व में हिंदी भाषा धाक जमाई,
तीसरी ज्यादा बोली भाषा कहलाती।
हिंदी भाषा की पूरी शक्ति संपन्न सूची,
1298617995 गूगल हमें बताइए।

सन 1900 ई. में हिंदी को मिला,
कचहरियों में भी सफल स्थान।
सन 1905 ई. में बंग विच्छेद विरोध,
में स्वदेशी आंदोलन छिड़ गया।

धीरे धीरे यह आंदोलन बड़ा शक्तिशाली,
अखिल भारतीय रूप लेता गया।
स्वदेशी आंदोलन के फलस्वरुप,
हिंदी की ओर लोगों का ध्यान गया।

आगे चलकर काशी में ही 1910 में,
आखिर भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई।
हिंदी के भावी विकास में मददगार,
इस संस्था का सबसे बड़ा हाथ रहा।

विभिन्न क्षेत्र में विभिन्न भाषा फिर भी,
रूचि के लोगों ने हिंदी को अपनाया।
जिसने भी चाहा, हिंदी को उसने अपने,
ढंग से बोलना और लिखना आरंभ किया।

शब्दों की मनमानी के साथ वाक्य रचना,
और शैली भी भिन्न – भिन्न प्रयुक्त होने लगी।
इस विविधता में भाषा की आंतरिक,
शक्ति को बढ़ाने में क्षति नहीं पहुंची।

मातृभाषा के लिए अनुराग और सेवा का,
कर्तव्य बोध अवश्य लोगों में जागा।
हिंदी की पुस्तकें ज्यादा आने लगी,
हिंदी पत्रों के पढ़ने वाले ग्राहक बढ़ने लगे।

स्कूल कालेजों में हिंदी पढ़ने वाले छात्रों,
की संख्या बढ़ने और पढ़ने लगी।
सन 1891 ई. हिंदी पत्रों की संख्या,
कुल ग्राहक संख्या 8000 ही थी।

और सन 1936 में हिंदी पत्रों की संख्या,
324880 तक की लोगों में पहुंच गई।
तत्कालीन मुसलमानों ने अस्तित्व की ,
उनमें बड़ी आशंका होनी लगी।

धर्म की दुहाई देकर भाषा का,
खुल्लम खुल्ला विरोध करने लगे।
कुछ ने कहा हिंदी नाम की कोई भाषा ही नहीं,
इस विवाद के कारण हिंदी और आगे बढ़ी।

जीवंत भाषा का सबसे बड़ा लक्षण,
उसकी ग्राहीका शक्ति होती।
जीवंत भाषा का लक्षण हिंदी में,
बौद्धिक मानसिक स्तर को उठाता।

विश्व मानता हिंदी को राष्ट्रभाषा,
साहित्यकारों बतलाओ अपनी आशा।
( साभार हिं. साहित्य का वृ. इतिहास, गूगल वर्तमान )

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

नोट: इस कविता/लेख में जनसंख्या का आंकड़ा भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार है। भारत की वर्तमान जनसंख्या 136.64 crores (2019) है। बहु भाषी भारत के हिन्दी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है। हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिन्दी बोल सकते हैं।

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — अंग्रेजो से आजादी के इतने वर्षों बाद भी हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा की मान्यता आधिकारिक रूप से क्यों दर्ज नही हुआ, हिंदी को उसका सम्मान क्यों नहीं मिला? हिन्दी राष्ट्रभाषा के महत्व, गुणों और प्रभाव को बताया है। हिन्दी हर भारतीय के दिल से निकलने वाली भाषा हैं। हिन्दी भाषा दिल को दिल से जोड़ने का कार्य करती है। एकलौती हिन्दी भाषा ही है जिसमे अपनापन है दुनिया की किसी भी अन्य भाषा अपनापन का स्थान नहीं।

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sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (दुनिया हिंदी को राष्ट्रभाषा जानती।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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हिंदी हमारी शान है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिंदी हमारी शान है। ♦

आओ 14 सितंबर 1953 का वो दिन याद करें हम,
जब हिंदी दिवस मनाया था सबका उत्साह बढ़ाया था॥

आओ इस दिन को स्कूल, कालेजों, शिक्षण संस्थाओं में मनाएं हम,
नवयुवाओं में चेतना भर जश्न के साथ त्यौहारों की तरह मनाया था॥

आज भी हम नए – नए आयामों से हिन्दी दिवस मनाते हैं,
अपने और अपनों के लिए शुभ संदेश पहुंचाते हैं॥

हिन्दी है हमारी राष्ट्रभाषा लगती सुरीली बड़ी प्यारी है,
हिन्दी भाषा नहीं है भावों की अभिव्यक्ति, ये तो बड़ी निराली है॥

मातृभूमि पर मर मिटने की ये है भक्ति इससे हमारी पहचान है,
आओ हिन्दी का मान बढ़ाकर विश्व में करानी पहचान है॥

आज हमने अपनेपन को झुठला दिया, बाहरी चमक धमक पर फिदा हुए हम,
कर दिया खड़ा हाशिए पर अब सबने मुझे झुठला दिया॥

सोचती है आज विजयलक्ष्मी दूसरी को घर में ला कर बिठा दिया,
अपनी तहजीब और संस्कृति को क्यों हम लोगों ने गुमा दिया॥

सोचती है आज विजयलक्ष्मी दूसरी को घर में ला कर बिठा दिया,
अपनी तहजीब और संस्कृति को क्यों हम लोगों ने गुमा दिया॥

हिन्दी हमारी शान है, पहचान है, हम सबका स्वाभिमान है,
इसका हमें परचम लहराना है नवयुवाओं में उत्साह जगाना है॥

आओ हम सब मिलकर अपनी पहचान को वापस लाए,
हिन्दी दिवस मनाना तभी होगा सफल विश्व में फिर से हिन्दी का डंका बजाएं॥
जय हिन्द – जय भारत!

♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦

मेरे सभी प्रिय पाठकों आप सभी को — KMSRAJ51.COM — की तरफ से तहे दिल से हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।

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  • “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से — हिन्दी राष्ट्रभाषा के महत्व, गुणों और प्रभाव को बताया है। हिन्दी हर भारतीय के दिल से निकलने वाली भाषा हैं। हिन्दी भाषा दिल को दिल से जोड़ने का कार्य करती है। एकलौती हिन्दी भाषा ही है जिसमे अपनापन है दुनिया की किसी भी अन्य भाषा अपनापन का स्थान नहीं। आओ हम सब मिलकर अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी को जन जन तक पहुचाये, हर बच्चा – बच्चा हिन्दी भाषा के महत्व को समझते हुए पढ़े, पढ़ाये, लिखे और अपनी भावनाओं को प्रकट करें।

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यह कविता (हिंदी हमारी शान है।) “विजयलक्ष्मी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।

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