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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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हिन्दी कविता बच्चों के लिए

बुझने से पहले।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ बुझने से पहले। ♦

जिस तरह रात सरकते-सरकते।
सीने में जलता कोयला।
धीरे-धीरे से राख़ बनते हुए।
बुझकर ठंडी पड़ रही हूँ।
धुआंकश की नली में इस वक्त।
धुआं की बारीक बेल तक नहीं॥

तुमने गौर नहीं किया था उस दिन।
तुमने आग में जो धकेल दिये।
उस कुंदे में जान अभी बाकी थी।
कच्चे लट्ठे से उठते धुआं के बादल।
जलन से चढ़ती जा रही।
तुम्हारी आँखों की लाली॥

और तुम फ़िर से इंधन छिड़क कर,
आग लगा देते थे।
और मैं भड़क कर धक्-धक् दहकने लगती थी।
वो किस तरह की तेज़ ज्वालाएँ थीं मेरी।
वो किस तरह की जलती अंगारे आंखें थी मेरी।
वो किस तरस की लौ की जीभ थी मेरी॥

उन दिनों तुम्हारी,
अक्खड़ और दुष्टता से भरी।
घमंड के महल को जलाकर।
भस्म करने के हठ से ही।
दहड़-दहड़ दहक रही थी मैं भी॥

तुम तो चूल्हे की सीमा के अंदर ही।
मुझे जलाकर उसकी आंच पर,
अपनी दाल पकाने वाले चालाक हो।
मुझे जला-जलाकर ही,
अपनी भूख मिटाने में माहिर हो॥

सच कहूँ तो एक भूख मुझमें भी थी।
इस घोर अंधकार की रातों में।
तुम्हारी आँखों में चिराग बनकर।
जल जाने की भूख।
और एक प्यास भी मुझमें थी।
इस बर्फीली रातों की कड़ाके की ठंड में॥

तुम्हारे पत्थर दिल को।
अपनी गरम होंठों से चूमकर।
जान डाल देने की प्यास।
मगर अफ़सोस…
आग लगाने वाले हाथ ही।
रोशनी न समझने पर॥

बाज़ार खत्म हो जाने के बाद भी।
तोल मोल खत्म न होने पर,
क्षय होने लगती हूँ।
क्षमा करने लगती हूँ।
लेकिन तुम जैसे थे, वैसे ही हो आज भी।
पिघली नहीं है रत्तीभर भी।
आग लगाने वाली तुम्हारी ताकत॥

उंडेल देते हो इंधन, फ़िर भी।
मिटती नहीं है तुम्हारी वो भूख भी।
तुम्हारे अंगारों के कुंड में जलते-जलते।
खुद को ही जलाते-जलाते।
अंत में राख़ के अंदर ही अंदर बुझते-बुझते।
इस बर्फीली रातों में, ठंडी पड़ती जा रही हूँ॥

उतने में कहीं ओर से,
इस शीतल रात की आखरी प्रहर।
किसी पंछी की मीठी पुकार।
तेल घटे दिल के दीये में।
प्रेम बहाती किसी की नर्म उंगलियां॥

सोच रही हूँ।
बुझने से पहले फ़िर एक बार।
नयापन से, नये सिरे से।
लाख दीपक के तरह।
मैं क्यूं न जल उठूँ?

♦– मीरा मेघमाला –♦

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यह कविता “मीरा मेघमाला” जी की रचना है। आपके द्वारा लिखी कविता ह्रदय को छूने वाली होती है। हर उम्र के लोग आपकी कविताओं को पसंद करते है। आपकी कविताओं से हर उम्र के लोगो को फायदा मिलता है। आपकी लेखनी यु ही चलती रहे। आपके उज्जवल भविष्य और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूँ। “मीरा मेघमाला” जी KMSRAJ51.COM के ऑथर टीम पैनल में आपका तहे दिल से स्वागत है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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अकाल की भारी बरसात।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ अकाल की भारी बरसात। ♦

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अकाल से तपते बंजर खेतों में।
संज्ञहीन बैठे किसान के सामने।
कैमरा और माइक के साथ।
अचानक प्रकट हुआ।
टीवी चैनल का एक संवाददाता और
एक ही सांस में बरसाने लगा कईं सवाल॥

‘ये अकाल है, या क्या है?
इसका जिम्मेदार कौन है?
इससे आपको क्या तकलीफ़ है?
नज़दीक ही सिंचाई बांध है और
पास में ही भरी बहती नहर।
फ़िर भी पानी की कमी का आरोप।
बताइए ये कितना सही है॥’

शुन्य में गढ़ी नज़र।
जरा भी न हटाते हुए।
विषण्ण हंसी के साथ।
किसान का एकालाप।
‘पैसे वालों ने खोदा गड्ढा बड़ा है।
और पानी तो हमेशा।
नीचे की ओर ही बहता है॥’

अकाल से दहकते धूप के गाँव में।
एक दिन एक ही घंटे भर।
एकाएक भारी बारिश।
खड़कती बिजलियां।
और तेज़ आंधी की भयावह दौड़।
धराशायी पेड़-पौधों को देखकर।
ढह कर बेहोश गिर पड़ा किसान।
और उसके सामने।
संवाददाता फ़िर से हुआ हाज़िर॥

‘बारिश की कमी को कोसते हो।
जब बारिश हुई तो फूट-फूट कर रोते हो।
गिर पड़े पेड़-पौधों पर ही यूं लेटे हो।
बताओ अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’
घबराहट से पल भर आंखें खोलते।
हालात को देखकर फ़िर से होश खोते॥

कमज़ोर आवाज़ में बड़बड़ाने लगा।
कंगाल किसान।
“क्या करें भाई।
पैसे वालों के महलों के जितने मज़बूत नहीं है।
अपने खेतों की केले के पौधों की कमर।
कैसे सह पाएँगे आंधी-तूफ़ानों का असर॥”

♦– मीरा मेघमाला –♦

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अधूरे किस्से।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ अधूरे किस्से। ♦

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जब भी स्क्रॉल करती हूँ,
देखती हूँ।
मोबाइल के नॉट पैड को।
कितने अधूरे किस्से दिख जाते है।
अनमने से, मुह सिकोड़े हुए॥

अधूरे शब्द, अधूरे किस्से, अधूरी नज्में।
कुछ पुरानी अधूरी यादों के साथ।
पहुँचते ही मेरे…
शब्द फिर से अंगड़ाई ले।
जगने की कोशिश करते हैं॥

स्क्रीन से बाहर झांकते हुए।
जैसे बुलाते हो मुझे।
जैसे आतुर हों मेरे साथ चल।
सफर को पूरा करने को।
जैसे, उकसाते हों मुझे।
उन अधूरे किस्सों को तमाम करने को॥

उलझनों में फंसी, कुछ जिद्दी।
मैं भी कहाँ सुनती हूँ उन्हें?
यूँ ही अधूरे ,अनमने से,
मुह सिकोड़े पड़े रहने देती हूँ।
क्योंकि, हर किस्सा तमाम नहीं हो सकता॥
#सिर्फ तुम्हारे लिए

♦– माधुरी “मुस्कान” शर्मा –♦

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तुम्हारी एक मुस्कुराहट।

Kmsraj51 की कलम से…..

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♦ तुम्हारी एक मुस्कुराहट। ♦

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एक बाहरी दुनिया।
एक भीतरी दुनिया।
और एक मैं बीच,
दरवाज़े के पर्दे की तरह।
झूलती हूँ इधर-उधर॥

भ्रमर उड़ा है आंगन के उस पार।
सुगंध की जड़।
केवल मधु समझ कर।
वह क्यों नहीं समझ पाता कि,
अपरिमित महक से अपनी ओर,
आकर्षित करने वाले।
जानलेवा ‘नेपेंतिस’ भी रहते हैं।
इस अज़ीब से जंगल में॥

मैं भी तो कितनी ना समझ हूँ।
फ़िर वही बेअक़ल काम कर जाती हूँ।
खाली डिब्बे को उल्टा करके हिलाना।
ताड़ते हुए फिर हिलाना।
जब छोटी थी।
ऐसी हरकत पर हंसी छलकती थी।
अब तो बेहद हताशा॥

जब भी मन बेहाल होता है।
मैं तुम्हारी तरफ़ ही देखने लगती हूँ।
तुम्हारे होठों की एक मुस्कुराहट।
तन-मन को पुनर्जीवित करती है॥

♦– मीरा मेघमाला –♦

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वक्त कहाँ रह पाया सदा सिकन्दर का।

Kmsraj51 की कलम से…..

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♦ वक्त कहाँ रह पाया सदा सिकन्दर का। ♦

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वक्त कहाँ रह पाया सदा सिकन्दर का।
शाम ढले-ढल जाता तेज प्रभाकर का॥

ये भी साल चला जाएगा कल परसों।
फिर से स्वागत होगा नए कलेंडर का॥

उघड़े तन को भी कोई कम्बल दे दो।
कानों में कह जाता मास दिसम्बर का॥

बुरे समय की आँधी जब भी चलती है।
तिनका-तिनका उड़ जाता है छप्पर का॥

जिम्मेदारी पूरी और आधी तनख़्वाह।
कहाँ रिटायर होगा मुखिया इस घर का॥

चलते-चलते वक्त ज़रा थम जाएगा।
आएगा जब नाम ज़ुबाँ पर अलवर का॥

पल बदले, मौसम बदला, तिथियाँ बदलीं।
रंग बदल जाएगा तन की चादर का॥

♦– डॉ• सीमा विजयवर्गीय, अलवर (राजस्थान) –♦

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एक खत तुम्हारे राजा को।

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♦ एक खत तुम्हारे राजा को। ♦

सारंगी बजाते।
अपनी धुन में।
मस्त रहने वाले।
राजा को तुम।
यदि अपनी भूख के बारे मे।
एक खत लिखना चाहते हो।
तो लिख दो॥

लेकिन उस खत को।
तुम अपने पसीने की बूंदों से।
मत लिखना।
वो उसे नहीं दिखेगा॥

लेकिन उस खत को।
तुम अपने पसीने की बूंदों से।
मत लिखना।
वो उसे नहीं दिखेगा॥

और तुम आंसुओं की।
बूंदों से भी मत लिखना।
उसे भी वो पढ़ नहीं पाएगा॥

अगर लिखना ही है।
एक खत तुम्हें राजा को।
अपनी भूख के बारे में।
तो तुम लहू की बूंदों से लिख दो।
तब दोनों में से एक तय होगा॥

अगर ऐसा ही हुआ तो।
तुम्हारा खत पढ़ने के लिए।
वो ही नहीं रहेगा।
या फिर इसका जवाब पढ़ने तक।
तुम ही नहीं रहोगे॥
♦– मीरा मेघमाला –♦

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युवा समाज बदलते जा रहे हैं।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ युवा समाज बदलते जा रहे हैं। ϒ

kavita hindi mein

दिन हो, रात हो अब युवा हिन्द के करते आराम नहीं।
समाज बदल रहा है युवा, व्याकुलता का अब काम नहीं।

भारत माता की वेदी पर निज प्राणों का उपहार लाये हैं।
शक्ति भुजा में, ज्ञान गौरव जगाने भारत के युवा आये हैं।

नित नए प्रयासों से समाज को आगे ले जा रहे है।
देखो युवा क्या – क्या नये उद्यम ला रहे है।

बिन्नी के साथ ‘फ्लिपकार्ट’ आया – देश में नया रोजगार लाया।
कुणाल और रोहित की ‘स्नैपडील’ – कंस्यूमर को हो रहा गुड फील।
देश की बेटियाँ कहाँ पीछे रहीं – राधिका की ‘शॉप-क्लूज़’ आ गयी॥

हुनर नहीं बर्बाद होता अब तहखानों में –
जीवन रागनियाँ मचल रही नव-गानों में।

समझ चुके हैं बिना प्रयास पुरुषार्थ क्षय है।
आगे बढ़ चले अब, भारत माता की जय है।

तप्त मरु को हरित कर देने की आस लगाये हैं।
युवा सुख-सुविधाओं की नए परम्परा लाये है।

भाविश का ‘ओला’ समय से घर पहुँचता।
शशांक का ‘प्रैक्टो’ डॉक्टर से मिलवाता।

दीपिंदर का ‘जोमाटो’ खाना खिलवाता।
समर का ‘जुगनू’ ऑटोरिक्शा दिलवाता।

विजय का ‘पेटीऍम’ ट्रांजेक्शन की जान।
सौरभ, अलबिंदर का ‘ग्रोफर्स’ खरीदारों की शान।

शिरीष आपटे की जल प्रणाली देश के काम आ रही।
बीएस मुकुंद की ‘रीन्यूइट’ सस्ते कंप्यूटर बना रही।

बिनालक्ष्मी नेप्रम ‘वुमेन गन सर्वाइवर नेटवर्क’ चला रहीं।
सची सिंह रेलवे स्टेशन पर लावारिसों को राह दिखा रहीं।

प्रीति गाँधी की मोबाइल लाइब्रेरी सबको ज्ञान बाँट रही।
डॉ. बोडवाला की ‘वन-चाइल्ड-वन-लाइट’ जीवन में जान डाल रही।

जादव पायेंग “फॉरेस्ट मॅन ऑफ इंडिया” जूझा अकेला।
आज १३६० एकड़ में ‘मोलाई’ का जंगल फैला।

तरक्की की कलम से भाग्य लिखते जा रहे हैं।
नव पथ पर निशाँ बनते जा रहे हैं।

नित नए नाम जुड़ते जा रहे हैं।
युवा समाज बदलते जा रहे हैं।

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ – हैदराबाद, तेलंगाना ®

हम दिलसे आभारी है – डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी के, हिंदी में कविता शेयर करने के लिए। KMSRAJ51.COM के Author Team पैनल में तहेदिल से स्वागत है – आपका।

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी के लिए मेरे विचार:

♣ “डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी” ने “युवा समाज बदलते जा रहे हैं।…“ काे कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इक – इक शब्द दिल की गहराइयों तक उतरते है। आपके लेखन की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखते है, आपके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो नज़्म, गज़ल हो या कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।

♥••—••♥

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought to life by. By doing this you Recognize hidden within the buraiya ensolar radiation, and encourage good solar radiation to become themselves.

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAJ51

 

 

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“मातृ दिवस” – ममता की माँ सूरत…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ ममता की माँ सूरत…। ϒ

⇒ Mother Nature of Mamta.

🙂 “मातृ दिवस” – ममता की माँ सूरत…।

माँ! माँ है माँ होती।
ममता की माँ सूरत।
धरा पर माँ एक सूरज।
खुद ही है माँ पलती।
बच्चा भी है पालती॥

बच्चे को वह सुधारती।
गर्भ में धारण करती।
बच्चा संवार कर रखती।
निज रक्त मज्जा -पालती।
स्तन के दूध पिलाती॥

हल्राती -दुलराती,
है प्यार उसे दिखाती।
वह साथ में सुलाती।
रात भर जाग बिताती,
विस्तार गीले रह जाती॥

खुद भूखे रहकर भी –
बच्चे को दूध पिलाती।
सूखे बिस्तर – लिटाती।
माँ – माँ ही कहलाती
मजदूरी भले कर लाती॥

नन्हकी – नन्हका खिलाती।
देती मति – मतिमान।
मगण – मगज पिरोती।
मगन मन ही मन होती।
मखतूली – पहनाती॥

‘मंगल’ भावना भारती।
बच्चे को भाति दुलराती।
माँ! माँ है माँ होती।
ममता की माँ सूरत।
धरा पर माँ एक सूरज॥

शब्दार्थ:- मति-बुद्धि | मतिमान- बुद्धिमान | मगण – चालाकी | मगज- दिमाग | मखतूली-काले रेशम का धागा |

शुभकामनाओं के साथ।

∇ सुखमंगल सिंह – ♥
——♦——
सुखमंगल सिंह जी।
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सुखमंगल सिंह जी के लिए मेरे विचार:

♣ “सुखमंगल सिंह जी” ने कविता के माध्यम से मां के गुणाें, त्याग और पालना का खुले मन से वर्णन किया हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविता छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविता काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

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लहरें गायेंगी…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ लहरें गायेंगी…। ϒ

⇒ Waves Gayengi ?

🙂 “लहरें गायेंगी”…।

लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे।
देखो दुनिया वालों मिलकर तारे रहते ‘
रहते हैं आकाश में पर सारे रहते॥

मिल जुलकर अपनों में खुशी मनाते,
देखा रहा मानव फिर भी भरम खाते।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

जानवर भी मिलकर एक किनारे रहते,
पर इंसान झगड़ते लड़ते मरते रहते।
इंसानों को डर है लुट जाने का लेकिन,
लेकिन वे सब मस्त पड़े पहलवानों जैसे॥

यहाँ सभी धरती के अपराधी पर मानव,
दूर कहीं पर रोता मजहब बनकर दानव।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

हवा भी दूषित और प्रदूषित हो गयी,
एक कलंकित नागिन कल ही सबको छू गयी।
जब आज की नारी पर हमला होता है,
दूर कोई मजहब कोना पकडे रोता है॥

भाई – भाई को जाने क्या हो गया है,
सारा पुराना नाता जाने क्यों खो गया है।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

अपने देश को बोलो क्या हो गया है,
अपने-अपने मजहब मेंही सबकुछ खो गया है।
इसे भी कोई परिंदा नहीं बताने वाला है,
भाइयों में जंग नया होने वाला है॥

रोज सबेरे निकल रहा जनाजा प्यार का,
क्या होगा अब अपने इस संसार का।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

इंसानों ने कितनों का सम्मान छीना है,
हैवानों सा बहनों पर कहर दीना है।
वह भी एक समय था भाई-भाई प्यार,
रोता है आज देखकर समय सारा संसार॥

उन इंसानों ने अपनी जान गंवाई,
लेकिन बहनों की लड़कर जान बचाई।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

शुभकामनाओं के साथ।

∇ सुखमंगल सिंह – ♥
——♦——
सुखमंगल सिंह जी।
हम दिल से आभारी हैं सुखमंगल सिंह जी के प्रेरणादायक कविता (लहरें गायेंगी।) हिन्दी में Share करने के लिए।

सुखमंगल सिंह जी के लिए मेरे विचार:

♣ “सुखमंगल सिंह जी” ने कविता के माध्यम से वर्तमान समय में मनुष्यों के मन में हाेने वाले नाेक-झाेक का खुले मन से वर्णन किया हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविता छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविता काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought to life by. By doing this you Recognize hidden within the buraiya ensolar radiation, and encourage good solar radiation to become themselves.

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समय की कीमत समझाते…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ समय की कीमत समझाते…। ϒ

⇒ Explain the value of time

“जूनियरहाईस्कूल की शिक्षा”
‘मंगल ‘गुरुओं की बात बताते।

आप बीती जो सो कह जाते।
नैतिकता का गुर सिखाते।
पीने खाने की बात बताते।
पढ़ना लिखना समझाते।
समय की कीमत समझाते॥

शिक्षा-शिक्षित की चाह बढाते।
आगे बढ़ने की राह दिखाते।
खेती-बारी करना सिखाते।
समय की कीमत समझाते॥

साथ हाथ मिलना बताते।
बाएं-दायें चलना सिखाते।
पढ़ाई अच्छी पढ़ाते।
समय की कीमत को समझाते॥

साहित्य और सन्देश दे जाते।
कविता -आलेख -महत्व बताते।
धैर्य-धर्म की मर्यादा सिखाते।
समय की कीमत समझाते॥

धरम की महत्ता बताते।
कीमत कर्म की समझाते।
मानवता क पाठ पढ़ाते।
समय की कीमत समझाते॥

प्रथम गुरु ,गुरु नाम बताते।
मातु-पिता क प्यार समझाते।
गुरुओं ने ज्ञान सिखाते।
समय की कीमत समझाते॥

सार्थ -सारथि में मेल कराते।
पुस्तकीय भी पाठ रटाते।
सद्भावना का ज्ञान सुनाते।
समय की कीमत समझाते॥

व्याकरणिक ज्ञान कराते।
वीरों की गाथा थे गाते।
महिलाओं के मान बढाते।
समय की कीमत समझाते॥

पुस्तकीय प्रेम करना बताते।
समाज में रहना सिखाते।
गावं क भी महत्व बताते।
समय की कीमत समझाते॥

मालिक-मजदूर के प्रेम बताते।
त्योहारों की खुशियाँ समझाते।
दान-दक्षिणा का मान बताते।
समय की कीमत समझाते॥

प्रार्थना की महत्ता बताते।
प्रकृति सत्ता समझाते।
भेद- भाव सुदूर भगाते।
समय की कीमत समझाते॥

भाग्य कर्म से बनता बताते।
धर्म से जीवन सुखमय सिखाते।
ज्ञान से समाज निर्माण बताते।
समय की कीमत समझाते॥

सुबह -सुबह उठना बताते।
भोरहरियय निपटना कह जाते।
नहा धोकर पढ़ना समझाते।
समय की कीमत समझाते॥

जनगण मन का पाठ पढाते।
वन्देमातरम का महत्व बताते।
राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगा लहराते।
समय की कीमत समझाते॥

प्रेयर में जो पाठ पढ़ाते।
प्रभु से विनती करना सिखाते।
ज्ञान का दान प्रभु से मंगवाते।
समय की कीमत समझाते॥

प्रभु शरणम का पाठ पढ़ाते।
ईश्वर कृपा हेतु कह जाते।
दानी -विज्ञानी सीख सिखाते।
समय की कीमत समझाते॥

ब्रह्मचर्य कत पाठ पढ़ाते।
सुशिक्षा का ज्ञान कराते।
मुंडन -उपनयन महत्व बताते।
समय की कीमत समझाते॥

पाप -पुन्य भेद समझाते।
सेना -योद्धा के पाठ पढ़ाते।
न्याय,दण्ड-विधान बताते।
समय की कीमत समझाते॥

धन-दौलत उपयोग सिखाते।
विविध व्यापार गुर बताते।
समृद्धि एश्वर्य का भान कराते।
समय की कीमत समझाते॥

सद्गुण और पुरुषार्थ समझाते।
उन्नति शान्ति का मार्ग बताते।
यदाकदा माया से दूर ले जाते।
समय की कीमत समझाते॥

दीर्घायु होने का पाठ पढ़ाते।
आयुर्वेद का ज्ञान कराते।
शक्ति -बल का मर्म बताते।
समय की कीमत समझाते॥

पशु -प्राण रक्षा ज्ञान समझाते।
जल – पृथ्वी का महत्व बताते।
कृषि विज्ञान की शक्ति समझाते।
समय की कीमत बतलाते॥

लेखन कला -सभ्यता सिखाते।
योग – तप का पाठ पढ़ाते।
जीवन- मृत्यु का कह जाते।
समय की कीमत समझाते॥

आस्तिक-नास्तिक – भेद सुनाते।
राजा – प्रजा का कर्म बताते।
युद्धकला की विधि सिखाते।
समय की कीमत समझाते॥

सूर्य – सोम का प्रभाव सुनाते।
अग्नि- वायु के महत्व बताते।
सत्य -अहिंसा का राज बताते।
समय की कीमत समझाते॥

शुभकामनाओं के साथ।

∇ सुखमंगल सिंह – ♥
——♦——
सुखमंगल सिंह जी।
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सुखमंगल सिंह जी के लिए मेरे विचार:

♣ “सुखमंगल सिंह जी” की कविता के हर एक शब्द में समय की कीमत का अलाैकिक सार भरा हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविता छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविता काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।

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