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हेमराज ठाकुर जी की कविताये

चुनावी मौसम।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ चुनावी मौसम। ♦

मौसम आया चुनावों का देखो,
हर दल जनता को लुभाते है।
लोक लुभवन घोषणा पत्र तो कभी,
विचित्र सा स्वप्न – डर दिखलाते हैं।

कुछ का बिगड़ा मिजाज है देखो,
मय – माया से वोट खरीदवाते हैं।
सत्ता हो हासिल जैसे भी कैसे,
साम, दाम, दंड, भेद सभी अपनाते हैं।

धिक्कार है ऐसी जनता को जो,
अपना जमीर बेच के खाती है।
किस्मत फोड़ के खुद ही अपनी,
क्यों कहती है? सत्ताएं हमें सताती हैं।

तब थे देखो हुए तुम मदमाते,
अब सत्ताएं भी हुई मदमाती हैं।
तुम ने लूटा इनसे तब थोड़ा – थोड़ा,
अब सब ये तुमसे पूरा करवाती हैं।

देश की हो गई है देखो हालत पतली,
जनता – सत्ता अदला-बदली ही चुकाती हैं।
कैसे सुधरेगी हालत देश की तब तक?
जब तक जनता खुद ही न जाग जाती है।

है किसी भी दल के नेता के यहां,
नेक न देखो कोई भी इरादे।
सत्ता को हथियाने के चलते सब,
करते हैं देखो हर वादे पे वादे।

यह रोग नहीं है मात्र ऊपर ही ऊपर,
इसकी गिरफ्त में है स्थानीय निकाय।
इलाज एक ही दुरुस्त है इसका बस,
कि कैसे ना कैसे जनता जाग जाए।

सवाल एक ही चूहे – बिल्ली के खेल में,
बिल्ली के गले में घंटी कौन लटकाए?
सबकी हो गई है फितरत एक सी आज,
कैसे न कैसे जान बचे तो लाख उपाए।

देश की किसी को न चिंता है आज,
हसरत है, मेरा तुम्बा पहले भर जाए।
फिर कोई जाति – धर्म मे बांटें हमको,
या फिर खुद ही अपना वोट बिकवाए।

चुनावी मौसम है भाई हाथ मार लो,
फिर क्या मालूम फसल आए न आए?
मतदान है महा पुण्य दान, ये इनको,
कौन समझाए ? कि इसे न बिकवाए।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — चुनाव नजदीक आते ही नेता लोग आने लगते है हमारे घर पर वोट मांगने, जितने के बाद नेता जी 5 वर्ष के लिए लापतागंज में लापता हो जाते है। एक बार भी भूल से भी नज़र नहीं आते नेता जी। और तो और जनता के पैसे पर ऐश करेंगे और हमे ही डराएंगे व धमकाएंगे, कोई कार्य नहीं करेंगे, बस अपना खज़ाना भरेंगे। अपनी 12 पीढ़ियों के लिए खज़ाना भरेंगे। इनके नज़रिये से जनता जाए भाड़ में अपना खज़ाना भरेंगे दबा के। जनता भी कुछ कम नही है, चंद पैसो के लिए अपने वोट को बेच देती है। उसके बाद सरकार को कोसती रहती है।

—————

यह लेख (चुनावी मौसम।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बेटी पर है नाज।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बेटी पर है नाज। ♦

बेटी पर है नाज, बेटी ही विश्वास,
बेटी घर की साज, करती सब काज।
दो कूलों को संवारती है बेटी,
पापा की पाग सजाती है बेटी।

उनके है रूप अनेक, हर रूपों में रम वो जाती,
जीवन में मिले हर रोल, बड़ी संजीदगी से निभाती।
हर दुःख दर्द सह जाती, उफ तक न करती,
बेटी बन… पापा का नूर बन जाती।

मां बन घर को है स्वर्ग बनाती,
बहन बन भाई का रक्षा कवच बन जाती।
पत्नी के रूपों में सफल संगनी का हर फर्ज निभाती,
जिंदगी जिससे शुरू होकर जिस पर हो जाती खत्म।

उस बेटी का करें सम्मान, है वो बेटा के ही समान।
बेटा – बेटी में न कर फर्क, बेटी ही मान, बेटी ही सम्मान।
जगत में जिसका बढ़ रहा शान, हर क्षेत्र में कर रही देश का नाम।
फिर क्यूं होता उनका अपमान, गर्भ में जिनका रूढ़िवादी सोच से,
कर दिया जाता बिन दुनिया देखे, भ्रूण का ही नाश।

ऐसी हैवानियत की इन्तहा से, हो रहा मानवता का है ह्रास।
विवेक कर रहा जनमानस से, एक ही गुहार,
बेटी ही मान, बेटी ही हमारा अभिमान,
फिर क्यूं हो रहा उनका अपमान, छू रही चोटी, उड़ रही आसमान।

बेटा संग बेटी कंधे से कंधा मिलाकर कर रही हर काम,
सृष्टि की रचनाकार, प्यार से परिवार को रखती बांध।
ऐसी बेटी का करें मान – सम्मान,
करें उनकी महिमा का बखान, उनका करें सदा गुणगान।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ संदेश का कर उदबोधन,
होगा जगत का उद्धार, बेटी ही मान बेटी ही सम्मान।
बेटी पर है नाज, बेटी ही विश्वास।

♦ विवेक कुमार जी – जिला मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — बेटियां शक्ति, प्रेम, करुणा, ममता की वह चुलबुली चिड़िया सी चहकती, फूल सी महकती मुस्कुराती, राजकुमारी सबकी प्यारी लाड़ली – दुलारी, सबका सदैव ही ध्यान रखने वाली। ईश्वर द्वारा मानव जाती के लिए प्रदान की गई अनमोल शक्तिपुंज हैं। जो हर रूप में प्रिय और पालनहार है। बेटा संग बेटी कंधे से कंधा मिलाकर कर रही हर काम, सृष्टि की रचनाकार, प्यार से परिवार को रखती बांध। ऐसी बेटी का करें मान – सम्मान, करें उनकी महिमा का बखान, उनका करें सदा गुणगान।

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यह कविता (बेटी पर है नाज।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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बेटियां।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बेटियां। ♦

कितनी कोमल कितनी सुंदर कितनी छबीली होती हैं बेटियां?
फिर भी न जाने क्यों करते हैं लोग मूर्खता में इनकी अनदेखियां?

दिख जाता है किसी मुस्कुराती बेटी का चेहरा जब सुबह सबेरे।
करुणा, ममता जगती है अन्तर मन में धुल जाते हैं पाप घनेरे।

वह चुलबुली चिड़िया सी चहकती फूल सी महकती गांव में मेरे।
उसकी मौजूदगी से ही तो आवाद है ये घर गांव और सबके डेरे।

लोग यूं ही है चिढ़ते और ऊंघते उसके घर में जन्म लेने के बाद।
वह बेचारी हर आंसू पी कर भी करती है दो – दो घरों को आवाद।

फूलों को यूं तोड़ना मरोड़ना तो जमाने की पुरानी सी आदत है।
वे क्या जाने कि इन्हीं फूलों से होती यहां खुदा की इबादत है।

क्यों कुचल देते हैं लोग जन्म लेने से पहले ही इसको गर्भ में?
क्या सम्भव है ऐसे पिशाचों को बेटा हो जाने पर, जगह स्वर्ग में?

बोझ नहीं उपहार है बेटी उस खुदा की कुदरत व रहनुमाई का।
क्यों हर बार पूछा जाता है हिसाब उससे ही उसकी बेगुनाही का?

किसी की मरती बहन है देखो, तो किसी की बहु – भाभी है।
किसी की मरती बेटी है देखो, क्या इसी का नाम आजादी है?

जहां महफूज नहीं है फिजाओं में खुले में सांसे भी लेना।
सुन नारी उस समाज को अपनी सुरक्षा का जिम्मा न देना।

माना कि कुछ नारियां चालाक है, पर सजा सब को तो न दो।
गुनाह जिसने किया है हिसाब तो लो, उसी को सजा भी दो।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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• Conclusion •

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — बेटियां शक्ति, प्रेम, करुणा, ममता की वह चुलबुली चिड़िया सी चहकती, फूल सी महकती मुस्कुराती, राजकुमारी सबकी प्यारी लाड़ली – दुलारी, सबका सदैव ही ध्यान रखने वाली। ईश्वर द्वारा मानव जाती के लिए प्रदान की गई अनमोल शक्तिपुंज हैं। जो हर रूप में प्रिय और पालनहार है।

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यह कविता (बेटियां।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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कुछ यादें हैं – जो गुदगुदाया करती हैं।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ कुछ यादें हैं – जो गुदगुदाया करती हैं। ♦

सच कहा है किसी ने ओ संग दिल,
कि मुहब्बत कभी भी नहीं मरती है।
आज भी स्मृति के एक कोने में प्रिये,
कुछ यादें हैं, जो गुदगुदाया करती हैं।

मिलना, मिलकर फिर से बिछुडना,
यह रीत संसार की बहुत पुरानी है।
है कुछ नहीं और यह जिन्दगी प्रिये,
बस खट्टी – मीठी यादों की कहानी है।

क्यों लड़ते – झगड़ते हैं ये लोग यहां?
न जाने क्यों होती इन्हे यह परेशानी है?
मुहब्बत का फलक है विशाल इतना कि,
समेटने को छोटी पड़ जाती जिंदगानी है।

बहते जल की मानिद यह जिंदगानी,
क्षण – क्षण निरन्तर बह जाया करती है।
आज तुम नहीं हो पास तो क्या हुआ?
कुछ यादें हैं, जो गुदगुदाया करती हैं।

हो जाता हूं अकेला मैं भीड़ में भी जब,
तो तुम्हारी यादों के सहारे तब जीता हूं।
मायूसियां करती हैं जब परेशान घना तो,
तब तेरी यादों के साए में गमों को पिता हूं।

प्रियतम क्या होता है? ओ दिलजानी!
खोने के बाद जिंदगी महसूस करती है।
फिर भीगे से जिंदगी के इस दामन में,
कुछ यादें हैं, जो गुदगुदाया करती हैं।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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• Conclusion •

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — यादें ही इंसान के मन पटल पर लम्बे समय तक बनी रहती है। यादें ही वह ऊर्जा है जो बीते हुए कल व किसी अपने से बिछुडने पर हम यादों के जरिए अच्छा महसूस करते हैं। यादें किसी के भी साथ बिताये हुए पल का रिकॉर्डिंग हैं जो मन में रिकॉर्ड रहता है। यादों के बिना भावनाओं का कोई महत्व नहीं है इस संसार में। चाहे वो यादें किसी की भी हो।

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यह कविता (कुछ यादें हैं – जो गुदगुदाया करती हैं।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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राष्ट्रभाषा हिंदी का दर्द।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राष्ट्रभाषा हिंदी का दर्द। ♦

ओ हिन्दी! हिंदुस्तान की वाणी,
दर्द दिल में तेरा मां चुभता है।
आज की देख अनदेखी तेरी,
भूत का वैभव तेरा जब सूझता है।

तुतलाती सी आवाज को जिसने,
निज शब्द स्नेह से संवार दिया।
उस मातृ रूपा मृदु हिन्दी को ही,
आज, हमने न जाने क्यों नकार दिया?

हमारे लिए तूने तत्सम – तद्भव,
देशज – विदेशी शब्दों को स्वीकार किया।
तेरे ही बलबूते फिल्म जगत ने भी,
अरबों – खरबों का कारोबार किया।

तू ठगी गई, तू छली गई तब,
सन उन्चास में, राजभाषा ही स्वीकार किया।
मैकाले चला गया भारत छोड़कर,
फिर भी क्यों, राष्ट्रभाषा न तुझे स्वीकार किया ?

ये हिन्दी मानुष अंग्रेजी बने कब?
क्यों नित अंग्रेजी का ही प्रचार किया?
गर इतना ही लगाव है अंग्रेजी से तो,
क्यों न, अंग्रेजी में ही, फिल्मी कारोबार किया?

कमाई को है मां तू लगाई,
यूं सौतेली का सा व्यवहार किया।
पढ़ते – लिखते अंग्रेजी में ही सब,
फिर क्यों हिन्दी में कारोबार किया?

भारत देश की ओ जन भाषा!
किसने तेरा उद्धार किया?
औंधे मुंह गिर जाता है वह इक दिन,
जिसने माता का प्रतिकार किया।

अपने ही घर में पराई हो गई,
भारत देश की मातृभाषा।
अपनों ने ही नकारा और धुधकारा,
औरों से तो करनी ही क्या आशा?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — अंग्रेजो से आजादी के इतने वर्षों बाद भी हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा की मान्यता आधिकारिक रूप से क्यों दर्ज नही हुआ, हिंदी को उसका सम्मान क्यों नहीं मिला? हिन्दी राष्ट्रभाषा के महत्व, गुणों और प्रभाव को बताया है। हिन्दी हर भारतीय के दिल से निकलने वाली भाषा हैं। हिन्दी भाषा दिल को दिल से जोड़ने का कार्य करती है। एकलौती हिन्दी भाषा ही है जिसमे अपनापन है दुनिया की किसी भी अन्य भाषा अपनापन का स्थान नहीं।

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यह कविता (राष्ट्रभाषा हिंदी का दर्द।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जनक शहीदों के…

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जनक शहीदों के… ♦

समन्दर बनकर आंसू बहते, हमने उन माँओं के देखे हैं।
शहीद हो कर सरहदों से जब, लौटते बलिदानी बेटे हैं।

पत्थर दिल बापों को हमने, पीटते छाती अपनी देखा है।
जब तिरंगे में लिपट लौटता, शहिद हो उनका बेटा है।

विधवा बहू की मांग को सूनी, देख के दोनो जब रोते हैं।
मृत प्राय से पड़ जाते हैं दोनो, सुध – बुद्ध अपनी खोते हैं।

जाना था जब हमको पहले, क्यों लल्ला को भिजवा दिया?
उल्टी गंगा बहाकर रब्बा, यह तुमने आखिर क्या किया?

नेह के आंसू सावन से झरते, बरसात को भी शर्मिंदा किया।
रुग्ण – रूष्ट इस मीच निगोडी ने, मुर्दों को कब जिंदा किया?

बूढ़ी आंखे बस रोती रही, बेटा धूं – धूं कर तब जलता गया।
मां सिसकियां भरती रह गई, बाप दोनों हाथ ही मलता गया।

अंतिम सत्य है मौत जीवन का, यह सबको इक दिन आनी है।
बेटा क्यों गया हमसे पहले? बूढ़ी आंखों में इसलिए पानी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — जब जवान सैनिक बेटा शहीद होकर घर आता है उस समय उसके माता – पिता की क्या मनोस्थिति होती है। उनके कलेजे का टुकड़ा उनसे पहले इस दुनिया से विदा होता है यही गम सबसे बड़ा होता है उनके लिए, मृत्यु एक अटल सत्य है इस जीवन का लेकिन समय से पहले दर्द दे जाता है। विधवा बहू की मांग को सूनी, देख के दोनो जब रोते हैं, मृत प्राय से पड़ जाते हैं दोनो, सुध – बुद्ध अपनी खोते हैं।

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यह कविता (जनक शहीदों के…) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

 

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गुरु ही गोविंद है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ गुरु ही गोविंद है। ♦

पिता का सा बृहद प्यार है जिसमें,
है मां की सी जिसमें कोमल ममता।
उसी गुरुदेव के दिए ज्ञान में ही तो है,
गोविन्द से जीव को मिलाने की क्षमता।

तुतलाती सी इस जुबान को जिसने,
निज शब्द स्नेह का अमृत पिलाया।
गुरुदेव ही तो है वह दुनियां में अपना,
जो उंगली पकड़ कर लिखना सिखाया।

हां हम भूल गए आज सब ज्ञानी होकर,
प्राप्त ज्ञान को अपनी उपलब्धि बताया।
स्वार्थपरता के इस धुंधलके अंधे युग में,
गुरु उपकारों को उसका फर्ज ठहराया।

ओ नादान मानुष! क्या औकात है तेरी?
कबीर सरीखों ने गुरु को गोविन्द बताया।
ज्ञान सागर से बूंद भर लेकर तू इतराता है,
तेरी फितरत का यह रंग कुछ समझ न आया।

गुरु ही गोविन्द है, सन्तों, ऋषि, मुनियो ने,
पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों से बहुत समझाया।
नादान मानुष की फितरत तो देखो, हैरत है,
उसकी समझ में आज तक कुछ न आया।

तथाकथित आधुनिकता के नशे में चूर होकर,
अपनी चिर परिचित सभ्यता को है भुलाया।
गुरु – गुड़ व चेला शक्कर, कहावत के बल पर,
नादान ने खुद को गुरु से बढ़कर है बताया।

गुरु चरण कमल की धूली के बिन,
कभी खुलते नहीं है बुद्धि के दरवाजे।
गुरु की दी शब्दशक्ति के बल से ही,
गूंजती है भीतर में कल्पना, आवाजे।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — प्राचीन काल से ही गुरु ही गोविन्द है, सन्तों, ऋषि, मुनियो ने, पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों से बहुत समझाया। नादान मानुष की फितरत तो देखो, हैरत है, उसकी समझ में आज तक कुछ न आया। तथाकथित आधुनिकता के नशे में चूर होकर, अपनी चिर परिचित सभ्यता को है भुलाया। गुरु – गुड़ व चेला शक्कर, कहावत के बल पर, नादान ने खुद को गुरु से बढ़कर है बताया।

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आज न जाने क्यों?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आज न जाने क्यों? ♦

आज न जाने क्यों मेरे हर हौसले है, यूं बेबजह पस्त हुए?
इस दुनियां में हर आदमी, क्यों बेपरवाह और व्यस्त हुए?

आज है फुरसत नहीं यहां, किसी को किसी से बतियाने की।
रही तहजीब नहीं है शेष अब, किसी में किसी को मनाने की।

जो रूठ गया सो रूठ गया, फिर करता ही कोई बात नहीं।
अरे भाई सुलह भी तो रास्ता है, हर बात का हल तलाक नहीं।

नेमत है यह जिन्दगी खुदा की, यूं ही तो कोई इतेफाक नहीं।
सौदे जिन्दगी के हैं ये दोस्त, कोई सड़कों पर बिछी खाक नहीं।

बुजुर्गों की अब सुनता ही कौन है? युवा नशों में है खो गए।
चोर – उचक्के घूम रहे हैं खुले आम आज, कोतवाल है सो रहे।

ऊपर से नीचे तक है फैल गया, देखो तो आज भ्रष्टाचार यहां।
आदमी से आदमी का रिश्ता है स्वार्थ का, रहा कहां अब प्यार यहां?

खौलता है देख के खून तो अपना, यह लूटपाट होती खुले आम, में।
चाहकर भी न कर पाता हूं इच्छित कुछ, फंस जाता हूं बने विधान में।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बताया है की “आजकल के युवाओं का जीवन किस राह पर भटक रहा है, उनको खुद ही नही मालूम। उनके अनियंत्रित भटकते हुए जीवन का कोई किनारा नहीं।” ये कैसा समय चल रहा है जहां खुले आम लूटपाट होती है। चोर – उचक्के घूम रहे हैं खुले आम आजकल, कोतवाल है सो रहे।

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यह कविता (आज न जाने क्यों?) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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धरती पर ही।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ धरती पर ही। ♦

धधक रही है विश्व धारा आज, ज्वालाओं सी बैर – विकारों से।
अराजकताएं है कहीं फैली तो, कहीं जल रही है भ्रष्टाचारों से।

अम्बर का सब पानी बुझा न सके, कहां ठंडक चांद सितारों से?
यह नस – नस में फैली नफरत कैसे, हो सकेगी दूर सरकारों से?

ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्यी आग से, हर देश है दुनियां में जुलस रहा।
कहीं जाति, धर्म के झगड़े हैं, कहीं आवाम सत्ता से उलझ रहा।

खतरे में आज है समूची दुनियां, न के महज एक मानव प्राणी।
आतंकवाद कहीं दमन की नीति, हर देश की देखो एक कहानी।

रोग – शोक और महामारी, भ्रष्टाचार से मानवता सब भूल गए।
नकली जीवन, झूठ फरेबी, सच्चे तो मशाल से ढूंढने को ही रहे।

भाई – भाई का बैरी बना है, बाप – बेटों में भी तो आज दरारें हैं।
बहनों के साथ भी निभती कहां? पति – पत्नी में भी तकरारें हैं।

अध्यात्म से होती दूर यह दुनियां, जल रही है दहकते अंगारों सी।
अध्यात्म की पावन जलधारा ही, धो सकेगी मैल ये विकारों की।

पर लोग कहां सुनते बात यहां अब, ज्ञान, ध्यान व संस्कारों की।
होड़ लगी है सब में तो बस, कैसे कृपा मैं पा सकूं सरकारों की।

धन से बड़ा तो कुछ नहीं लगता, आज दुनियां में देखो लोगों को।
लालसा बढ़ी कि, भोग ले धरती पर ही, स्वर्ग के सारे भोगों को।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से वर्तमान समय में धरती पर पर क्या – क्या हालात हो गए है, इंसानियत किस दिशा में जा रही है कुछ पता नही किसी को। वर्तमान समय में पृथ्वी पर अनियंत्रित बिखरे हालात का सुंदर मनोरम वर्णन किया है।

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यह कविता (धरती पर ही।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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देहातन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ देहातन। ♦

वे गोबर से मटमैले हाथ, पसीने की बूंदों से तर वह चेहरा।
गौ सेवा में रत ओ री देहातन ! कितना सुन्दर रूप वह तेरा?

आठों याम तू लगी रहती है, गौ सेवा में ही चारा कभी पानी।
दूध पिलाते, घी खिलाते, तेरी यूं ही गुजर जाती है जिंदगानी।

बचपन – बुढ़ापा यूं ही गुजरे तेरा, तेरी यूं ही गुजरे ये जवानी।
शालीन, सभ्य ओ नारी रत्न तेरी! कौन समझेगा यह कहानी?

जो भी किया वह, दूसरों के लिए, किया तूने ओ महादानी!
देहात से शहर तक मेहर तेरी पर, किसी ने ये कब है मानी?

जब जूझती है नित नई उलझन से, लगती है झांसी की रानी ।
खेत खलिहानो में उगाती फसलें, खिलाती सबको है महारानी।

दिन व दिन की मेहनत के चलते, ढल जाती तेरी जवानी।
हाड़ मांस सब सुखा देती है तू, सुखा देती है चेहरे का पानी।

झुर्रियों से भरपूर तेरा चेहरा, बताता है मेहनत की कहानी।
बुढ़ापे का वह नूर तेरा, है तेरे मेहनतकश जीवन की निशानी।

वह सुख सन्तोष उन झुर्रियों से झरता, बस काया हुई पुरानी।
बूढ़ी धमनियों में अभी भी शेष है, लहू में वही स्फूर्ति रवानी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – गांव के पवित्र और शुद्ध वातावरण में सुन्दर जीवन यापन। आठों पहर तू लगी रहती है, गौ सेवा में ही चारा कभी पानी। दूध पिलाते, घी खिलाते, तेरी यूं ही गुजर जाती है जिंदगानी। झुर्रियों से भरपूर तेरा चेहरा, बताता है मेहनत की कहानी। बुढ़ापे का वह नूर तेरा, है तेरे मेहनतकश जीवन की निशानी।

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यह कविता (देहातन।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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