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हैप्पी न्यू ईयर शायरी

नववर्ष वंदन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ नववर्ष वंदन। ♦

“ब्रम्हध्वज नमस्तेऽस्तु सर्वाभीष्ट फलप्रद।
प्राप्तेऽस्मिन वत्सरे नित्यं मग्द्ऋहे मंगलं कुरु॥”

वसुधा सिहरती है शीतों से, नभ में धुंध गहरी है।
निकुंज उद्यानों की सीमाओं पर, शीतल पवनों का पहरा है।
सूना निसर्ग का प्रांगण, न रंग न ही उल्लासों का मेला है।

धरती से गगन तक छाई, लालिमा विहान लिये आई।
उड़ते झोंकों में पतंग सतरंगी, ले आई प्राचीर से उजोरा आई।
उत्सु ने राग भैरवी गाई, लालिमा विहान लिये आई।
मधुर मयूखें पूरब से आई, इंदुजा के अमृत में घोल लाई।

चैन भरी रात मंगल प्रभात लाई, लालिमा विहान लिये आई।
स्कन्धों पर सारंग नये सुनहरी पातें।
वितरित करती स्नेहिल आदित्य किरणों की सौगातें।
थकित धूप खिली मनभायी, लालिमा विहान लिये आई।

यह नीहार-कुहासे को छंटने दो, यामिनी का प्रांत संकुचित होने दो।
निसर्ग का मुखड़ा निखरने दो, हृषिकेश का ज़रा रंग चढ़ने दो।
महामाया को दुल्हन का सौन्दर्य लेने दो, ये नेह – पीयूष बरसायेगी।
शस्य – श्यामल धरती माता, केतन-निकेतन सबमें उल्लास लाने दो।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — मन में किस तरह के विचारों व भावनाओ के तरंग उड़ते है ये बताने की कोशिश की है। प्रकृति के मनोरम सौंदर्य का वर्णन करते हुए नव वर्ष का आगमन किया है। इस समय वसुधा सिहरती है शीतों से व नभ में धुंध गहरी है। निकुंज उद्यानों की सीमाओं पर, शीतल पवनों का पहरा है। सूना निसर्ग का प्रांगण, न रंग न ही उल्लासों का मेला है। धरती से गगन तक छाई, लालिमा विहान लिये आई। उड़ते झोंकों में पतंग सतरंगी, ले आई प्राचीर से उजोरा आई। उत्सु ने राग भैरवी गाई, लालिमा विहान लिये आई। मधुर मयूखें पूरब से आई, इंदुजा के अमृत में घोल लाई।

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यह कविता (नववर्ष वंदन।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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