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होली पर कविता इन हिंदी

होली के रंग खुशियों के संग।

Kmsraj51 की कलम से…..

Holi ke Rang Khushiyon ke Sang | होली के रंग खुशियों के संग।

फागुन की बयार लाए, मौसम की फुहार,
उदास मन में लाए नवीनता की बहार।
सूने चमन में छाए, उमंगों की खुमार,
अनकहे रिश्तों में लाए बेहतरीन निखार।

टूटे दिलों को जोड़े ऐसे रंगतों में सुमार,
फगुआ, आमोद प्रमोद का एकमात्र त्योहार।
आपसी भाईचारे को बनाता खास,
प्रेम बंधुत्व में घोलता, नई मिठास।

सूने जीवन को रंगीन बना, करता सपने साकार,
आपसी रंजिश मिटा, लोग होते गुलजार।
एक दूजे संग कड़वाहट भूला, होते एक,
लाल हरी पीली मगर गुलाल होते एक।

गालों पर लगी रंगों की लाली,
हाथ में सजी गुलाल से भरी थाली।
लगाकर एक दूसरे को गले, जतलाते प्यार,
ये बस एक रिवाज नहीं, है अनोखा त्योहार।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — होली अर्थात – प्रेम, स्नेह व स्वार्थ से मुक्त आत्मिक रिश्ता, जहां अपने विकारों को त्याग कर, सभी के प्रति करुणा का भाव मन में रख सबका भला करना। सभी गीले शिकवे भुला कर प्रेम से सबका सम्मान करना व गले लगाना, सबकी मदद करने का भाव मन में प्रकट हो। रंगो की तरह सदैव ही जीवन खुशहाल हो सभी का यही संदेश देता ये महापर्व होली।

—————

यह कविता (होली के रंग खुशियों के संग।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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आओ खेले पुरानी होली।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aao Khele Purani Holi | आओ खेले पुरानी होली।

आप सभी को तहे दिल से सपरिवार महापर्व होली की शुभकामनाएं!

जब न शिकवा था न थी कोई शिकायत,
बस प्यार ही प्यार ही था रिश्तों में बेजोड़।

वो पुरानी होली हुआ करती थी ऐसी,
रंग दिखाती थी ऐसा जिसका न कोई तोड़।

सूखे मेवे और फल बिस्कुट से भरी पहनकर माला,
जब लगाते थे बच्चें होली – पूजन की दौड़।

फिर रंग भरी बाल्टी, गुलाल भरी थाल, कोलड़ो की मार,
देवर – भाभी के प्यार को बनाती थी बेजोड़।

कोलड़ो की मार से बचने के लिए हर गली के,
हर मोहल्ले के मापे जाते मोड़।

एक डंडा ही बनता उनका सुरक्षा कवच,
भाभियों के आते ही भागे सब कुछ छोड़।

थकान को दूर करने बीच-बीच में आकर करें आराम,
सब चाय संग पकौड़े खाते नही देते छोड़।

वो पूरे गाँव, मोहल्ले के लोग इकठ्ठा होकर मनाते पर्व,
जो हर रिश्ते को देता था प्रेम से जोड़।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — होली अर्थात – प्रेम, स्नेह व स्वार्थ से मुक्त आत्मिक रिश्ता, जहां अपने विकारों को त्याग कर, सभी के प्रति करुणा का भाव मन में रख सबका भला करना। सभी गीले शिकवे भुला कर प्रेम से सबका सम्मान करना व गले लगाना, सबकी मदद करने का भाव मन में प्रकट हो। रंगो की तरह सदैव ही जीवन खुशहाल हो सभी का यही संदेश देता ये महापर्व होली।

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यह कविता (आओ खेले पुरानी होली।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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रस आनन्द इस होली में।

Kmsraj51 की कलम से…..

Ras Anand is Holi Mein | रस आनन्द इस होली में।

आके हुई प्रकट वह रात होली में,
मिली फागुन की सौगात होली में।
बजी जलतरंग से मिलकर सितारों से,
हुआ तरानों का नृत्य अगाध होली में।
हर्ष-आनन्द का बढ़ा व्यापार होली में,
जिह्वा पर नाम आया बार-बार होली में।

घर-घर रंग सजे उल्लासों की चहल-पहल में,
भर-भर के थाल सजे रंग अबीर गुलालों से।
नश-नश में उमंग आवेग भरे गीत गोविंदों से,
बन-बन दमकती आभा रचते स्वाँगों में,
उमड़ा हुजूम गज़ब हर गली किनारों होली में।

गली चौबारों में शोर मचा इस अवसर में,
बिखरने लगी रंग की धार गली चौराहों में।
भीगे बदन मले गुलाल चेहरों में,
खुशियों की गवाही दे रहा घर-आँगन चौराहों में,
मेला देखने निकले प्रियतम् होली में।

रंग दी चुनरिया फागुन बहार से,
दिल की कामना उभर आई होंठों के द्वार से।
नैना लड़ा के पूँछे हर इक शैदाई से,
रंग – बिरंगी पोशाकों की पैमाईश से,
हसीन चेहरे-मोहरे हर्षोल्लास से भरे होली में।

देख मुखड़े पर मले गुलाल की लाली,
दिलों में भर आई हमारे खुशहाली।
नजर ने दी हमें रमणी रंग से भरी प्याली,
जो हमें दे हँस – हँसकर गाली,
तब हम समझे की ऐसी है प्यार भरी होली में।

हमनें तुमने की इक तरफा तैयारी होली की,
जिसने जिस तरह देखा इस तरफ होली की।
हमारी आन लगती हमको तो प्यारी,
लगा दो हाथ से न मारो पिचकारी होली की,
रंग – बिरंगी सतरंगी रंगों के सिंगार की होली में।

उड़ाओ तुम उधर से हम भी इधर तैयार खड़े,
मलो अबीर गुलाल हँस – हँसकर मुखड़े पर।
खुशी आनन्द का इजहार करो होली पर,
है कसम तुमको इस होली पर।
मिटा दो बैर अपने सारे गिले – शिकवे भी,
इसी उम्मीद में था वतन इंतजार होली में।

मूर्तिमान हो दे गाली हमें हँस – हँसकर,
रंग पड़ता है कपड़ों पर उड़ता गुलाल तन पर।
लगा के घात कोई मुखड़े पर लगाता है,
‘परिमल’ प्यार से कोई कहता है,
हमें भी दिखा तू रस आनन्द इस होली में।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (रस आनन्द इस होली में।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: holi poems, kavi satish shekhar srivastava parimal, Poems of Satish Shekhar Srivastava 'Parimal', Satish Shekhar Srivastava 'Parimal', फागुन की झूमती बहारों पर बेहतरीन कविताएं, रंगों का पर्व होली और हिंदी कविता, रस आनन्द इस होली में, रस आनन्द इस होली में - सतीश शेखर श्रीवास्तव परिमल, सतीश शेखर श्रीवास्तव - परिमल, होली पर कविता, होली पर कविता इन हिंदी, होली पर कविताएं, होली पर गीत और कवितायें, होली पर प्रेरणादायक कविता

होली का त्यौहार।

Kmsraj51 की कलम से…..

Holi Festival | होली का त्यौहार।

फाल्गुन का महीना आया होली का उत्सव आया है,
फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।
हिरण्यकश्यप ने स्वयं को भगवान बताया था,
पुत्र का ही शत्रु बन बैठा बहन होलिका को बुलाया था।

भक्त प्रहलाद विष्णु की पूजा करता था,
इसी बात से क्रोधित होकर प्रहलाद को बहन की गोद में बिठाया।
होलिका की गोद में बैठा प्रहलाद जल नहीं पाया था,
हुई कृपा प्रहलाद पर विष्णु की होलिका का दहन हुआ था।

नरसिंह का रूप रख विष्णु धरती पर आया था,
हिरण्यकश्यप का वध किया सारा जग हर्षाया था।
जब से होली का पर्व मनाया जाता है,
होली रंगों और खुशियों का त्यौहार है।

रंग बरसे लाल, गुलाबी, पीले रंगों से सब होली खेलते है,
भर – भर पिचकारी चलाये एक दूसरे रंग को रंग बरसाते है।
ढोलक की थाप पर नाचते सब नर – नारी है,
बनते घर – घर पकवान और व्यजंन है।

आयी – आयी देखो होली मस्तानों की टोली आयी है,
मिटाकर सारे गले – शिकवे एक दूसरे के गले मिलते है।
प्रेम, एकता की भावना का यह पर्व यही संदेश देता है,
न किसी से बैर करो, न ही किसी के दिल को दुखाना है,
मिलकर सबको होली का पर्व मानना है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आत्मिक प्रेम, निस्वार्थ स्नेह, करुणा व मानवता का पवित्र महापर्व होली हैं। अपने सम्पूर्ण विकारों को अग्नि को समर्पित कर एक अच्छे व सच्चे योगी जैसे पवित्र जीवन के नियमों के अनुसार जीवन जीना ही सच्ची होली हैं। याद रहे मलिन मन क्या जाने इस होली का उत्सव? पावनता तो जरूरी है। तन के रंगने से नहीं, मन के रंगे बिन, होली सबकी अधूरी है। मौसम के बदलाव की, नव फसलों के उगाव की, यह धुरी है। संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की, होली की क्रीड़ा पूरी है। बहन, भाई, मां, बेटी, पत्नी, पिता को, होली के रंग ही लहदे हैं। प्रेम है सब में, पर रूप अनेक है, यही तो रिश्तों के ओहदे हैं। अहंकार का नाश कर, सद्गुणों को धारण करने का महापर्व है होली। भक्त प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद वे ही असुरों के सम्राज्य के राजा बने थे। प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन हुए और विरोचन से महान राजा बलि का जन्म हुआ जो महाबलीपुरम के राजा बने। इन बलि से ही श्री विष्णु ने वामन बनकर तीन पग धरती मांग ली थी।

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यह कविता (होली का त्यौहार।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: poonam gupta, poonam gupta poems, कवयित्री पूनम गुप्ता, पूनम गुप्ता, पूनम गुप्ता जी की कविताएं, फागुन की झूमती बहारों पर बेहतरीन कविताएं, रंगों का पर्व होली और हिंदी कविता, होली का त्यौहार, होली का त्यौहार - पूनम गुप्ता, होली पर कविता, होली पर कविता इन हिंदी, होली पर कविताएं, होली पर गीत और कवितायें, होली पर प्रेरणादायक कविता

आया फाल्गुन का महीना।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aaya Phagun Ka Mahina | आया फाल्गुन का महीना।

आया फाल्गुन का महीना,
लेके ढेर सारी सौगात।
प्रकृति को मानें या धर्म को,
अपने आप में है धार्मिक मास।

भारतवासियों के लिए बड़ा सुंदर महीना,
पंचांग में होता साल का आखरी मास।
ये महीना लाता दो बड़े त्योहार,
पहली महाशिवरात्रि, दूसरी होली का त्योहार।

सूरज की बढ़ती गर्मी की होती शुरुआत,
मौसम होती बड़ी सुहानी,
धरती पर आती वसंत की बहार।
ढोल, नगाड़े, झाल बजाते,
सभी गाते होली के गीत।

भेद भाव को भुलाकर, गले लगाते,
मुख पे लगाते रंग, गुलाल, अबीर,
भारतीय संस्कृति में हो जाते सब लीन।
हर घर से निकले, लेके रंग, अबीर,
रंगों में रंगा सबका चेहरा,
धन्य है हिंदुस्तान की जमीन।

ना कोइ हिन्दू, ना कोइ मुस्लिम,
ना कोइ सिक्ख, ईसाई, सबका चेहरा एक जैसा।
लगते हैं सब सगे भाई भाई,
ना कोइ ऊंचा, ना कोइ नीचा, होली है महान।
सारी नफरतें जल गई होलिका में,
यही है अनेकता में एकता, मेरा भारत है महान।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150 / नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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यह कविता (आया फाल्गुन का महीना।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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प्रीत की रीत – होली।

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Preet Ki Reet – Holi | प्रीत की रीत – होली।

प्रीत की झंकार है होली,
संधि की टंकार है होली।
केवल रंगो का खेल नहीं,
संस्कारों का त्यौहार है होली।

नेह का अंबार है होली,
स्नेह का शृंगार है होली।
भेदभाव का खेल नहीं,
आदर, सत्कार है होली।

अहंकार का संघार है होली,
विजय की हुंकार है होली।
होली पर्व अंह पर जय का,
धर्म – कर्म का संचार है होली।

है राधा की प्रीत में होली,
है मीरा के संगीत में होली।
होली के रंग रंगीन प्रेम से,
बुरे पर‌ भले की जीत है होली।

♦ नंदिता माजी शर्मा – मुंबई, महाराष्ट्र ♦

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  • “नंदिता माजी शर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — आत्मिक प्रेम, निस्वार्थ स्नेह, करुणा व मानवता का पवित्र महापर्व होली हैं। अपने सम्पूर्ण विकारों को अग्नि को समर्पित कर एक अच्छे व सच्चे योगी जैसे पवित्र जीवन के नियमों के अनुसार जीवन जीना ही सच्ची होली हैं। याद रहे मलिन मन क्या जाने इस होली का उत्सव? पावनता तो जरूरी है। तन के रंगने से नहीं, मन के रंगे बिन, होली सबकी अधूरी है। मौसम के बदलाव की, नव फसलों के उगाव की, यह धुरी है। संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की, होली की क्रीड़ा पूरी है। बहन, भाई, मां, बेटी, पत्नी, पिता को, होली के रंग ही लहदे हैं। प्रेम है सब में, पर रूप अनेक है, यही तो रिश्तों के ओहदे हैं। अहंकार का नाश कर, सद्गुणों को धारण करने का महापर्व है होली।

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यह कविता (प्रीत की रीत – होली।) “नंदिता माजी शर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख/आलेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

नाम – नंदिता माजी शर्मा

साहित्यिक नाम : नंदिता “आनंदिता”
लेखिका/डिजीटल अलंकरणकर्ता/कवियत्री/समाज सेविका 
संस्थापक/अध्यक्ष — कर्मा फाऊंडेशन
राष्ट्रीय सह-अध्यक्ष — साहित्य संगम संस्थान (पंजीकृत साहित्यिक संस्था)
अलंकरण प्रमुख — साहित्योदय(पंजीकृत साहित्यिक संस्था)
अलंकरण अधिकारी — अंतरराष्ट्रीय शब्द सृजन
प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष — साहित्य संगम संस्थान, (महाराष्ट्र इकाई)
जिला प्रभारी — एन.जी.टी.ओ
मीडिया प्रभारी — महाराष्ट्र शब्दाक्षर
मुख्य संपादक — दोहा संगम ( मासिक ई पत्रिका )
प्रधान संपादक — वंदिता ( मासिक ई पत्रिका )
मुख्य संपादक — महाराष्ट्र मल्हार ( मासिक ई पत्रिका )
प्रधान संपादक — आह्लाद मासिक ई-पत्रिका
प्रधान संपादक — अविचल प्रभा मासिक ई-पत्रिका

कई विधाओं में लेखन।

अनेक ई-पत्रिकाओं का सफल संपादन।
विभिन्न साहित्यिक मंचो और गोष्ठियों से ‘श्रेष्ठ रचनाकार’ ‘सर्वश्रेष्ठ रचनाकार’ इत्यादि अनेक सम्मान प्राप्त।
हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में स्वतंत्र लेखन।
०६ साझा – संग्रह ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज।
अनावृत संचालन हेतु लन्दन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज।
०१ साझा – संग्रह इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज।
०१ दिव्याक्षर ब्रेल साझा – संग्रह वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज।
हिंदी अकादमी, मुंबई द्वारा साहित्य भूषण सम्मान २०२३ से सम्मानित।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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होली से होलिका।

Kmsraj51 की कलम से…..

Holi to Holika | होली से होलिका।

होली रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।

आओ मिलकर रंगोत्सव मनाते हैं,
खोई हुई संस्कृति को वापस लाते हैं।

फाल्गुन मास, कृष्ण पक्ष, प्रतिपदा तिथि आई है,
पुरातन समय की बातें यादें साथ लाई है,
कृष्ण राधा की वो बरसाने वाली होली मन में समाई है।

होलिका दहन की परंपरा की कथा मन में समाई है,
भगत प्रहलाद(प्रह्लाद) की निष्ठा भक्ति सबके मन में समाई है।
कृष्ण राधा की वो……

हिरण्यकश्यप ने तप करके खुद को भगवान कहता भाई है,
भगत प्रहलाद की भक्ति भी बाधित करवाता भाई है।
कृष्ण राधा की वो……

बुआ होलिका के हाथों प्रहलाद को मरवाने की करता ढिठाई है,
भगत प्रहलाद को गोद में ले होलिका अग्नि बीच समाई है।
कृष्ण राधा की वो……

भगत प्रहलाद ने अग्नि के बीच भी विष्णु भगवान की माला जपाई है,
भगवान विष्णु की लीला से होलिका की चुनरी प्रहलाद के तन पर आई है।
कृष्ण राधा की वो……

भगत प्रहलाद बच गए होलिका अग्नि में समाई हैं,
उस दिन से आज तक हम होलिका दहन की परंपरा निभाते भाई है।
कृष्ण राधा की वो……

इतिहास से जुड़ी ये कहानी फिर से दोहराई है,
भगत प्रहलाद जैसी भक्ति किसी ने नहीं पाई है,
कृष्ण राधा की वो बरसाने वाली होली मन में समाई है।

♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦

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  • “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए; इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की हैं — हिरण्यकश्यप का सबसे बड़ा पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। भगत प्रहलाद बच गए होलिका अग्नि में समाई हैं, उस दिन से आज तक हम होलिका दहन की परंपरा निभाते भाई है। भक्त प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद वे ही असुरों के सम्राज्य के राजा बने थे। प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन हुए और विरोचन से महान राजा बलि का जन्म हुआ जो महाबलीपुरम के राजा बने। इन बलि से ही श्री विष्णु ने वामन बनकर तीन पग धरती मांग ली थी।

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यह कविता (होली से होलिका।) “विजयलक्ष्मी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।

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