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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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hindi poetry

संवेदना।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ संवेदना। ♦

अरे भाई, न जाने इस भूपटल पर,
क्यों आज संवेदनाएं खो गई है?
विकल – व्यथित है बच्चा – बच्चा,
समूची मानवता क्यों रो रही है?

मानव – मानस में सिर्फ स्पर्धाएं रह गई,
सारा संवेदन खो गया।
आदमी – आदमी से लड़ – भीड़ रहा है,
न जाने यह क्या हो गया?

कहां तो थे यहां चौरासी से ऊपर,
मानव – मानस के कोमल भाव।
परहित में अपनी जाने गवा दी,
अब कहां गया वह मानव पड़ाव?

महल – अटालिकाएं खूब बनाई,
भाई – भाई में रहा न संवेदन – प्रेम।
बेहाता बहने पराई हो गई अब,
कौन पूछता है, उनका योग – क्षेम?

सास – ससुर से छुटकारा हो कैसे?
बहू – बेटियां भी ऐसा चाहती है।
जब बूढ़ों को ठुकराते बेटे उनके,
तब मानव संवेदना शर्मसार हो जाती है।

धान में सुलगी आग आज तो,
पराल भी कल जल जाएगा।
न जाने इन पश्चिम के अनुयायियों को,
यह सत्य समझ कब आएगा?

संवेदनहीन मानव, “मानव” कहां फिर?
वह पशु से भी बड़ा ढोर बन जाएगा।
यूं गिरता मानव – मानस कल तक,
समाज को, गर्त में ही ले जाएगा।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — “दिल की गहराई तक जो पहुंच कर अपने अनुभव कराएं संवेदना वह मानसिक प्रक्रम है, जो आगे विभाजन योग्य नहीं होता। यह ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करने वाली उत्तेजना द्वारा उत्पादित होता है, तथा इसकी तीव्रता उत्तेजना पर निर्भर करती है, और इसके गुण ज्ञानेन्द्रिय की प्रकृति पर निर्भर करते हैं।” जब माता-पिता बूढ़े हो जाते है तो आजकल के युवा पीढ़ी द्वारा खासकर नई नवेली बहु द्वारा बूढ़े सास-ससुर का अनादर व खरी-खोटी बोलना उन्हें अंदर तक झकझोर कर रख देता हैं। ये युवा पीढ़ी यह कैसे भूल जाते है की जो वह जो अपने माता-पिता के साथ कर रहे है… उनका अपना पुत्र भी उनके साथ वैसा ही करेगा। एक बात याद रखे कभी भी आप अपने माता-पिता का अनादर कर जीवन के किसी भी क्षेत्र में तरक्की नही कर पाएंगे, माता-पिता का आशीर्वाद ही आपके सफलता का सीढ़ी बनता हैं। इसलिए कभी भी अपने माता-पिता का अनादर ना करें, वर्ना जीवन में कभी भी सुखी नहीं रह पाएंगे।

—————

यह कविता (संवेदना।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बस एक के आगे हाथ फैलाओ।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बस एक के आगे हाथ फैलाओ। ♦

किसी के आगे तो ये हाथ फैलाना।
आत्म-स्वाभिमान को ठेस पहुँचाना॥

जरूरतमंद के लिए स्वतः ही सहारा।
होता था हम सबका कर्तव्य प्यारा॥

ये बात तो होती थी उस प्राचीन काल की।
पर वक्त ने ये कैसी बिठाई ताल सी॥

अब हाथ फैलाने में लोगों को कोई शर्म नहीं।
भीख मांगना तो किसी बात का मरहम नहीं॥

फिर क्यूँ हर गली, सड़क, चौराहे पर मिलते।
हट्टे-कट्टे होते हुए भी उनके हाथ भीख को हिलते॥

क्या हो गया इंसान के जमीर को आज?
क्यूँ भिखारी का चोला पहने न करे काज॥

क्यूँ इन्होंने कुछ भी कर्म न करने की ठानी।
खुद के ईमान से कर रहे ये तो बेईमानी॥

इस अनमोल शरीर से हर पल नेक कर्म कर।
शाश्वत शक्ति के आशीष से अपनी झोली भर॥

हाथ ही फैलाना है तो फैला परमेश्वर के आगे।
जिसके आगे झोली फैलाने से किस्मत जागे॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस ब्रह्मांड में सच्चा दाता केवल एक ही हैं, अगर मांगना ही है तो उस परम शक्ति से ही मांगे केवल उसी के आगे अपना हाथ व झोली फैलाये। क्या हो गया है आजकल के इंसान के जमीर को, आखिर क्यूँ भिखारी का चोला पहने न करे काम काज? क्यूँ इन्होंने कुछ भी कर्म न करने की ठानी? खुद के ही ईमान से कर रहे ये तो बेईमानी। एक बात याद रखे वह परम सत्ता भी उसी की मदद करता है जो सच्चे मन से उसे याद करता है व पवित्र दिल से कर्म करता हैं।

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यह कविता (बस एक के आगे हाथ फैलाओ।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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वाणी वंदना।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ वाणी वंदना। ♦

शारदा मां, हंसासिनी,
मन वाणी शुभ कर्म।
अवसर सेवा देना,
मां सत्य ज्योति देना।

देवांगना सुहासिनी,
ध्वनि रस मनोभाव।
कला का विन्यास देना,
त्याग सत वृत्ति देना।

ध्यायिनी वीणा वादिनी,
अर्थ रमणीयता में।
दृश्य का विधान देना,
प्रीति सुकाज देना।

सत्यज्ञानी सुभाषिनी,
देश सेवा मंत्र देना।
भाव कला शब्द शैली,
नीति संगति देना।

♦ प्रो• मीरा भारती जी – पुणे, महाराष्ट्र  ♦

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  • “प्रो• मीरा भारती जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है — शारदा मां के गुणों और शक्तियों का वर्णन किया है। मां से प्रार्थना कर रही है मन, वाणी व सुबह कर्म करने की शक्ति देना, मन में हो सदैव सेवा भाव, सत्य की ज्योति सदैव ही जलती रहे मन में मां। वाणी में मधुरता देना व कला का गन विन्यास देना, त्याग सत वृत्ति देना मां मुझे। मेरी आँखे हमेशा कल्याणकारी शुभ ही देखे ऐसी शक्ति देना मां। मेरे मन के अंदर सदैव ही अपनी जननी मातृभूमि की सेवा का भाव देना मां। मेरी संगती अच्छी हो, नियमित व संयमित जीवन हो मेरा ऐसा आशीर्वाद देना मां।

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यह कविता (वाणी वंदना।) “प्रो• मीरा भारती जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं से नई पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम मीरा भारती (मीरा मिश्रा/भारती) है। मैंने BRABU Muzaffarpur, Bihar, R.S College में प्राध्यापिका के रूप में 1979 से 2020 तक सक्रिय चिंतन और मनन, अध्यापन कार्य किया, आनलाइन शिक्षण कार्यक्रम से वर्तमान में भी जुड़ी हूं, मेरे द्वारा प्रशिक्षित बच्चे लेखनी का सुंदर उपयोग किया करते हैं। मैंने लगभग 130 कविताएं लिखी है, जिसमें अधिक प्रकाशित हैं, कई आलेख भी, लिखे हैं। दृढ़ संकल्प है, कि लेखन और अध्यापन से, अध्ययन के सामूहिक विस्तारण से समाज कल्याण – कार्य के कर्तृत्व बोध में वृद्धि हो सकती है। अधिक सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं।

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वरदान – प्राणवान वसुंधरा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ वरदान – प्राणवान वसुंधरा। ♦

केंद्रीय तत्व अस्तित्व विधान का,
सकार जीवन अग्नि यज्ञ समान।

हुताशन अजस्त्र प्रेरणा है,
शिक्षा समृद्धि प्रतिभा और विज्ञान।

आत्मसात करती दिव्य प्रबल प्रभाव संधान,
कौटुंबिकता सहृदयता शब्द और उदान।

नभमंडल का करता शुद्ध सद्गुण दैवी समान,
अनुगमन करता इहलोक का ज्ञान।

सामूहिक उत्कर्ष की सशक्त साधन पहचान,
यज्ञाग्नि की आहुति से सद्भावों का होता आविर्भाव।

अग्नि की दीपशिखा पर होता विषम दबाव,
प्रसस्त ऊर्ध्व उद्वेग से उत्ताल अग्निशिखा समान।

नाश कर भय प्रलोभन विषम का ताप,
संकल्प जिजीविषा मनोबल का करे उत्थान।

पांचजन्य उष्णता ऊर्जा और प्रकाश,
सदृश पावक पवित्र दाहक समान।

वायु रूप बनकर जड़-चेतन को करें प्रकाशवान,
गुप्त शत्रु का भेदने, करे धूमल मरुत समान।

श्लोकों की ध्वनि के गुंजन का ही विधान,
स्वाहा प्रचंड प्रभाव है स्वधा उसका संहार।

यज्ञाग्नि से लोक – परलोक सुधरे,
प्राणवान वसुंधरा के लिये है वरदान।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — हम सभी जानते है की भगवान ने अपने अंश से पंचतत्व यानि पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि और जल का समावेश कर मानव देह की रचना की और उसे सम्पूर्ण योग्यताएं व शक्तियां भी देकर इस संसार में स्वच्छतापूर्वक जीवन बिताने के लिए भेजा है। पृथ्वी तत्त्व यानि जड़ तत्त्व, यह तत्व अनंत सहनशीलता को दर्शाता है व इस तत्त्व से मनुष्य अन्न, धन, धान्य से सम्पूर्ण होता है। इसमें विकार जब उत्पन्न होता है तब इंसान स्वार्थी हो जाता हैं। जल तत्व यानि शीतलता प्रदान करने वाला तत्व। इसमें मिलावट होने पर इसकी सौम्यता कम हो जाती है। अग्नि तत्व, विचार शक्ति में निर्णय करने में सहायक होता है विचारों के भेद अंतर को परखने वाली शक्ति को सरल सुचारु रूप प्रदान करता है। जब इसमें विकार आता है तब इंसान की सोचने समझने की शक्ति का ह्रास होने लगता है, और इंसान गुस्से वाला होकर अपना ही सर्वनाश करता है। वायु तत्व, मानसिक ऊर्जा तथा स्मृति शक्ति की क्षमता को पोषण प्रदान करता है। अगर इसमें विकार आ जाए तो इंसान की स्मरण शक्ति कम होने लगती है। आकाश तत्व, शरीर में आवश्यकतानुसार संतुलन को बनाए रखने का कार्य करता है। जब इसमें विकार आता है तब इंसान शारीरिक संतुलन खोने लगता है। जप, कीर्तन, भजन, यज्ञ-हवन, ध्यान साधना से मनुष्य का इस लोक के साथ-साथ परलोक भी सुधर जाता हैं।

—————

यह कविता (वरदान – प्राणवान वसुंधरा।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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हिन्दी काव्य दर्शन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिन्दी काव्य दर्शन। ♦

जीवन शैली है, भागवत धर्म,
हृदय सहजात है, हमारा।

इक मुल्क, कौम, संगत है,
कोई कभी न पराया।
मन तरंग आत्म बोध से,
क्षण एक में जुटता गया।

झुकने न दिया अन्य को,
सम्मान दिया हर विचार को।
हर वर्दी के नीचे, है नाम,
इक मात वसुंधरा का।

हर आत्म तन्मय जन है यहां,
योगी, हर दिवा है अर्पित प्रेम।
यज्ञ को, थाहे कौन बुनियाद,
इस भरत जन ज्ञान – विज्ञान का।

घटक अनेक राम – कृष्ण के,
इस देश में, असंख्य जाति।
धर्म, वर्ग, पंथ हैं, सुर – ताल,
लय, मन के द्वार हैं एकल।

विभिन्नता ही है छवि सुभग,
इस महा जीवन – मंत्र श्रृंगार का।
मत – भेदी होते… एकमना,
प्रश्न आता जब राष्ट्र के सेवा अस्मिता का।

संभव है, क्रूर हो कोई दस्यु ,
अंगुलिमाल सम, भाव हो अशुभ।
बुद्ध का प्रेम, ले भावांजलि,
गढ़े शुभत्व, हर नर में राम का।

कौम है यह संगम प्रेम, संयम, क्षमा का,
न रहा कभी मत्स्य न्याय यहां।
जलधार है नेह, दया, सेवा, सुख है,
वैराग्य, सहयोग, सदाचार यहां।

अमर बेल से एकत्व से बनता,
विश्व धर्म जन मन संगीत सदा।
है जनाधार सत् चित् आनन्द का,
आत्मबल ही… मनमीत यहां।

हिन्दी ही जोड़े, गुण धर्म सभी के,
गुण ग्राहिता, हर जन सम्मान यहां।

♦ प्रो• मीरा भारती जी – पुणे, महाराष्ट्र  ♦

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  • “प्रो• मीरा भारती जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है — अतुल्य हमारा भारत देश सबसे न्यारा है, यहां बहुत सारी जातियों और धर्म के लोग, अलग – अलग बोली भाषा के साथ रहते है फिर भी सभी के बीच एक बात कॉमन है, सभी अपने मातृभूमि से अटूट प्रेम करते है। हर भारतीय के अंदर अपने देश के प्रति सच्चा प्रेम है, देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा है। हम आध्यात्मिकता, अहिंसा और वसुधैव कुटुम्बकम वाले लोग है, हम सभी से प्यार करते है, हम कभी भी किसी का बुरा नही चाहते है। हम सदैव से ही पूरी मानव जाती के कल्याण के लिए कार्य करते आ रहे है।

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यह कविता (हिन्दी काव्य दर्शन।) “प्रो• मीरा भारती जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं से नई पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम मीरा भारती (मीरा मिश्रा/भारती) है। मैंने BRABU Muzaffarpur, Bihar, R.S College में प्राध्यापिका के रूप में 1979 से 2020 तक सक्रिय चिंतन और मनन, अध्यापन कार्य किया, आनलाइन शिक्षण कार्यक्रम से वर्तमान में भी जुड़ी हूं, मेरे द्वारा प्रशिक्षित बच्चे लेखनी का सुंदर उपयोग किया करते हैं। मैंने लगभग 130 कविताएं लिखी है, जिसमें अधिक प्रकाशित हैं, कई आलेख भी, लिखे हैं। दृढ़ संकल्प है, कि लेखन और अध्यापन से, अध्ययन के सामूहिक विस्तारण से समाज कल्याण – कार्य के कर्तृत्व बोध में वृद्धि हो सकती है। अधिक सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं।

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भगवान धन्वन्तरि – धनतेरस।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ भगवान धन्वन्तरि – धनतेरस। ♦

आयुर्वेद के हैं प्रणेता,
धनतेरस अवतरण दिवस।
समुद्र मन्थन की समाप्ति पर,
हुए प्रकट ले अमृत – कलश।

देवराज ने की जो विनती,
आग्रह उनका मान लिया।
अमृत कलश से सब देवों ने,
अमृत सुधा का पान किया।

दीर्घतथा माता हैं उनकी,
लिखा है विष्णु पुराण में।
श्यामवर्ण चतुर्भुज हैं निपुण,
वनस्पतियों के ज्ञान में।

विनीत भाव से बोले इन्द्र,
आयुदाता भगवान से।
स्वीकार करो पद देव – वैद्य,
हे… तेजपुंज सम्मान से।

कालक्रम में मानव जगत के,
बहु रोगों से पीड़ित हुए।
कल्याण हेतु सकल जगत के,
वे धरा पर अवतरित हुए।

अवतार लिया काशी नगरी,
कहलाए नृप दिवोदास।
लिखा ग्रन्थ ‘धन्वन्तरि संहिता’,
रोग निवृत्ति का इतिहास।

आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने,
उनसे ज्ञान प्राप्त किया।
धन्वन्तरि से हो कर दीक्षित,
लोगों का कल्याण किया।

धनतेरस की तिथि है पावन,
श्रद्धा से सम्मान करें।
प्रसन्न हों भगवान सभी पर,
तन निरोगी, प्रदान करें।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि हैं। यूं तो प्राचीन काल से ही आयुर्वेद में जटिल से जटिल रोगों का इलाज होता आया है। और तो और कोविड काल में हर व्यक्ति आयुर्वेद के महत्व से भी अच्छे परिचित हो गया। आयुर्वेदिक दवा स्वर्णप्राशन को तो स्वयं आयुष मंत्रालय ने रिसर्च के बाद कोविड में बच्चों के इलाज में सर्वाधिक इम्युनिटीवर्धक घोषित भी किया और लोगों को इससे लाभ भी हुआ।

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यह कविता (भगवान धन्वन्तरि – धनतेरस।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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हे आदिशक्ति।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हे आदिशक्ति। ♦

अब तो आजा!
हे करुणावतार!
कुमकुम लगें पैरों से अब आजा।
इस दुनिया को चैन,
अमन का रास्ता दिखा जा॥

तेरी राहें बुहारें हैं, कब से हम।
आ मिटा दे ये चारों ओर फैला तम।
भीगी पलकों से तड़पते ह्रदय ने …
तुम्हें ही पुकारा है।
हम तेरे दीवानों को न कोई और सहारा है॥

तुझें बरसाना ही होगा,
अपनी करुणा का जल।
दहकती ज्वाला को शांत,
तुझें ही करना होगा।
चाहे तू आज करें या कल॥

हमने तो भिखारी बन,
दामन यहां ही पसारा है।
हे आदिशक्ति, झोली भर,
एक तूही तो जीवन का उजियारा है॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से — आदिशक्ति माँ का आह्वान किया है। इस कविता में भक्त के मन में चलने वाले भावों को बखूबी व्यक्त किया है। हे आदिशक्ति माँ हम पर बरसा अपनी करुणा का जल, हमने तो दामन यहां ही पसारा है। हे आदिशक्ति, झोली भर, एक तूही तो जीवन का उजियारा है।

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यह कविता (हे आदिशक्ति।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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राम : द्वारा दुष्टों का संहार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राम : द्वारा दुष्टों का संहार। ♦

राजा दशरथ के सत्य वचन की रक्षा में,
श्रीराम राज पाठ छोड़ कर वन में निकले।
वन में वे चलते चलते जब थक जाते,
हनुमान और लखन उनका पांव दबाते॥

सहन नहीं कर पाते कुमारी से पांव दबवाना,
जनक नंदिनी सुकुमारी जानकी जी को सबने माना।
श्रीराम के वक्ष: स्थल में जिसे सम्मान मिला,
उन्हें लक्ष्मी – सीता जी का ही नाम मिला है॥

लक्ष्मण द्वारा रावण की बहन सूर्पनखा का,
नाक कान काटने से,
अपनी प्रियतमा का वियोग उन्हें सहना पड़ा।
वियोग के कारण उनकी क्रोध में तनी भौहों से,
भारी समुद्र को भी भयभीत होना पड़ा॥

लंका जाने के लिए एक पुल बाधा गया,
समुद्र ऊपर पुल से सेना लंका कूंच किया।
पहले ही वीर हनुमान ने लंका को जैसे जला दिया।
जस जंगल की दावाग्नि जले वैसे ही मिटा दिया॥

सीता स्वयंबर में शिव का धनुष जिसको,
बड़ा – बड़ा वीर योद्धा भी हिला नहीं पाया।
गुरु का आदेश मिलते ही बात – बात में राम ने,
डोरी चढ़ा खींच कर दो टुकड़ा उसका कर दिया॥

पिता वचन शिरोधार्य कर स्वजन छोड़ जंगल  पयान,
योगी जैसे काया छोड़ चलता है अपने धाम।
खर दूषण, तृषिरा जैसे राक्षसों का संहार किया,
महा धनुष बाण चला कर दुष्टों पर वार किया॥

पर्ण कुटी तक स्वर्ण हिरण भेष में छुपे मरीच आया,
श्री राम ने उसको भी दौड़ा कर मार गिराया।
दक्ष प्रजापति को जैसे वीरभद्र ने मारा था,
उसी तरह श्री राम ने उसका पीछा कर संहार किया॥

सुग्रीव का बड़ा भाई बलवान और था आतताई,
बालि हरण कर सुग्रीव की पत्नी को घर लाया।
वचन देकर सुग्रीव को श्री राम ने उसको मारा,
मार उसे राम ने वचन और मित्रता का धर्म निभाया॥

राम और रावण की सेना में भीषण युद्ध हुआ,
एक एक कर क्रमश: रावण के वीरों का संहार किया।
जब श्री राम जी के सम्मुख था रावण आया,
शिरोमणि राम ने अभिमानी को फटकार लगाया॥

मेरी अनुपस्थिति में प्राण प्रिया मेरी हर कर लाया?
काल को कोई टाल नहीं सकता तेरी सामत आई!
वज्र समान वाण चलाया, खून फेंक दिया रावण वहीं,
रावण का हृदय विदीर्ण हुआ वह हुआ धरासाई॥

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में — समय समय पर रावण से लेकर खर दूषण, तृषिरा जैसे राक्षसों का संहार किया – मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी ने, बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया है।

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यह कविता (राम: द्वारा दुष्टों का संहार।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

 

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मेरा मन।

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♦ मेरा मन। ♦

घड़ी दो घड़ी तो मेरे पास भी बैठ।
कभी खामोश कभी उदास भी बैठ।
तितलियों सा बेफिक्र डोलते रहते हो।
कभी परेशान कभी हताश भी बैठ।
आसमान में उड़ते रहते चिड़ियों सा,
सबके खेत में घुस जाते हो नदियों सा।

अपने पराये, लोकलाज का कोई शर्म नहीं।
ठहर क्यूँ नहीं जाते, ऐ मन, सदियों सा।
नजर लग जाएगी थक के कभी तू ,
मेरे पहलू में आ बदहवास भी बैठ
घड़ी दो घड़ी…..

मत भूल ये अपना गाँव नहीं शहर है।
जमाने की टेढी, तुम ही पे नजर है।
सभी को खबर है तेरी दिलनवाजी का।
तुमको ही अपनी नही कोई खबर है।
पर्दे का थोड़ा तो लिहाज लाजिमी है।
कभी नाउम्मीद, हो निराश भी बैठ।
घड़ी दो घड़ी…..

पंथी, ग्रंथी औ पुजारी, महापौर का,
तू मेरा ही है या है किसी और का।
तन-स्पंदन में भी कभी मिलते नहीं।
तू इसी दौर का है या है उस दौर का।
बता तुझे ला दूंगा सारे खेल खिलौने।
ला दूंगा तुझको जमीं आकाश भी बैठ।
घड़ी दो घड़ी…..

बीच – बीच में लंबी ताजी साँसें लो सुस्ता लो।
कभी – कभी अपने घर का भी रस्ता लो।
मेहमान नवाजी, आवारगी कुछ दिन ही अच्छी।
वतन वापसी का विकल्प भी बावस्ता लो।
रोज दीवान-ए-आम तू जाया करता है।
आज हृदय के साथ दीवान-ए-खास भी बैठ।
घड़ी दो घड़ी…..

♦ शैलेश कुमार मिश्र (शैल) – मधुबनी, बिहार ♦

  • “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है – मन के यूँ उमड़ने – घुमड़ने की प्रक्रिया को समझाने की कोशिश की है। मन से संवाद किया है, सभी को खबर है तेरी दिलनवाजी का तुमको ही अपनी नही कोई खबर है। मेरे पहलू में आ बदहवास भी बैठ घड़ी दो घड़ी।

—•—•—•—

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यह कविता (मेरा मन।) “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपने सच्चे मन से देश की सेवा के साथ-साथ एक कवि हृदय को भी बनाये रखा। आपने अपने कवि हृदय को दबाया नहीं। यही तो खासियत है हमारे देश के वीर जवानों की। आपकी कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

About Yourself – आपके ही शब्दों में —

  • नाम: शैलेश कुमार मिश्र (शैल)
  • शिक्षा: स्नातकोत्तर (PG Diploma)
  • व्यवसाय: केन्द्रीय पुलिस बल में 2001 से राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत।
  • रुचि: साहित्य-पठन एवं लेखन, खेलकूद, वाद-विवाद, पर्यटन, मंच संचालन इत्यादि।
  • पूर्व प्रकाशन: कविता संग्रह – 4, विभागीय पुस्तक – 2
  • अनुभव: 5 साल प्रशिक्षण का अनुभव, संयुक्त राष्ट्रसंघ में अफ्रीका में शांति सेना का 1 साल का अनुभव।
  • पता: आप ग्राम-चिकना, मधुबनी, बिहार से है।

आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे, जनमानस के कल्याण के लिए। उस अनंत शक्ति की कृपा आप पर बनी रहे। इन्ही शुभकामनाओं के साथ इस लेख को विराम देता हूँ। तहे दिल से KMSRAJ51.COM — के ऑथर फैमिली में आपका स्वागत है। आपका अनुज – कृष्ण मोहन सिंह।

  • जरूर पढ़े: चली जाती है।
  • जरूर पढ़े: अच्छा लगता है।

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तोते में जान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ तोते में जान। ♦

मुहब्बत की यूँ इब्तिदा नजर आती है।
उसकी सूरत में मुझे माँ नजर आती है,
दिल ये मानने को हरगिज राजी नहीं।
उसकी ना – ना में भी हाँ नजर आती है।

मेरे नाम पे उसकी भी नजर झुक जाती।
थोड़ी – थोड़ी वो भी मेहरबां नजर आती है।
वो जो नहीं भी कहती मैं समझ जाता हूँ।
आँखें आईना ही नहीं जुबां नजर आती है।

जबसे मन नें नजरिया, लिबास बदला है।
बहुत खूबसूरत ये दुनियाँ नजर आती है।
खुद से भी लंबी गुप्तगू होने लगी है अब।
साँसों में एक दरिया रवां नजर आती है।

ये दुनियाँ कहती है कि तू बावरा हो गया है।
मुझे ये दुनियाँ बावरा, दरमियाँ नजर आती है।
हो सकता है कि वो ठीक भी कह रहे हों,
पर मुझे बारहा ये उल्टा चश्मा नजर आती है।

मतलब साफ है कि हमें इश्क़ हो गया है।
आशिकों को और कुछ कहाँ नजर आती है।
अब समझ में आ रहा, क्यों किसी को खुदा,
और एक तोते में अपनी जाँ नजर आती है।

♦ शैलेश कुमार मिश्र (शैल) – मधुबनी, बिहार ♦

  • “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है – प्यार के दौरान मन में उमड़ने वाले भावनावों को सरल शब्दों में बयां किया है। किस-किस तरह के विचार मन में उमड़ने लगते है, यह भी समझाने की कोशिश की हैं।

—•—•—•—

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यह कविता (तोते में जान।) “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपने सच्चे मन से देश की सेवा के साथ-साथ एक कवि हृदय को भी बनाये रखा। आपने अपने कवि हृदय को दबाया नहीं। यही तो खासियत है हमारे देश के वीर जवानों की। आपकी कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

About Yourself – आपके ही शब्दों में —

  • नाम: शैलेश कुमार मिश्र (शैल)
  • शिक्षा: स्नातकोत्तर (PG Diploma)
  • व्यवसाय: केन्द्रीय पुलिस बल में 2001 से राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत।
  • रुचि: साहित्य-पठन एवं लेखन, खेलकूद, वाद-विवाद, पर्यटन, मंच संचालन इत्यादि।
  • पूर्व प्रकाशन: कविता संग्रह – 4, विभागीय पुस्तक – 2
  • अनुभव: 5 साल प्रशिक्षण का अनुभव, संयुक्त राष्ट्रसंघ में अफ्रीका में शांति सेना का 1 साल का अनुभव।
  • पता: आप ग्राम-चिकना, मधुबनी, बिहार से है।

आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे, जनमानस के कल्याण के लिए। उस अनंत शक्ति की कृपा आप पर बनी रहे। इन्ही शुभकामनाओं के साथ इस लेख को विराम देता हूँ। तहे दिल से KMSRAJ51.COM — के ऑथर फैमिली में आपका स्वागत है। आपका अनुज – कृष्ण मोहन सिंह।

  • जरूर पढ़े: चली जाती है।
  • जरूर पढ़े: अच्छा लगता है।

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  • प्रकृति और होरी।
  • तुम से ही।
  • होली के रंग खुशियों के संग।
  • आओ खेले पुरानी होली।
  • हे नारी तू।
  • रस आनन्द इस होली में।

KMSRAJ51: Motivational Speaker

https://www.youtube.com/watch?v=0XYeLGPGmII

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ब्रह्मचारिणी माता।

हमारा बिहार।

शहीद दिवस।

स्वागत विक्रम संवत 2080

नव संवत्सर आया है।

वैरागी जीवन।

मेरी कविता।

प्रकृति के रंग।

फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

यह डूबती सांझ।

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