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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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Hindi Stories

सोच।

Kmsraj51 की कलम से…..

Thinking | सोच।

उस दिन राम किसी लंबी यात्रा से अपने घर लौटा था। राम ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया बेटा जल्दी से दरवाजा खोलने आया और एकदम से अपने पापा के बैग से अपने लिए मिठाई ढूंढने लगा। बेटे ने ना तो पापा के चरण स्पर्श किए और ना ही हाल-चाल पूछा। क्योंकि बेटा अभी 5 साल का है इसलिए पापा ने भी ज्यादा परवाह न की। घर के अंदर बेटी ने भी पापा को नमस्ते की और कहा पापा मेरे लिए क्या लाए हैं? पापा ने भी बैग खोलते हुए उसको बताया कि उसके लिए कपड़े लाए हैं। पापा ने अपनी मां के चरण स्पर्श किए और मां ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि शाबाश मुझे तुम पर गर्व है।

इसके बाद राम की धर्मपत्नी ने ना तो राम को पानी के लिए पूछा, ना चाय के लिए पूछा, क्योंकि शाम को लगभग 8:00 का समय था, राम अभी अपने कपड़े बदल ही रहा था कि उसकी पत्नी ने उसे कहा थोड़ी सी सब्जी बची है, बाकी अगर खाना, खाना है तो खाना बना लो, बाकियों के लिए भी खाना बना लो, मैं खाना नहीं बनाऊंगी। राम को एकदम से गुस्सा आया और उसने कहा कि मैं इतनी दूर से आया हूं ना तो तुम मेरे लिए चाय के लिए पूछ रही हो, ना पानी के लिए। सीधे ही हुक्म लगा रही हो कि अपने लिए खाना बना लो, बाकी के लिए भी खाना बना लो, यह कहां का न्याय है?

राम की पत्नी तपाक से बोली तुमने कहा मेरा हाल चाल पूछ लिया मैं बीमार हूं, मेरे बारे में कोई नहीं सोचता है, जबकि ऐसा नहीं था वह पता नहीं किस बात के लिए नाराज थी। राम ने कपड़े बदल कर कुर्सी पर बैठकर सोचा कि आखिर आदमी किसके लिए कमाता है, किसके लिए वह दिन भर इधर-उधर दौड़ भाग करता है और अगर आदमी कमा भी लेता है तो अपने साथ क्या लेकर जाएगा?

आखिरकार राम ने अपने मन को शांत किया और चुपचाप रसोई घर में जाकर बहुत सारे प्रश्न लेकर खाना बनाने की तैयारी करने लग पड़ा। तभी राम की बीवी रसोई में आती है और अपनी आंखों से आंसू टपकाते हुए आटा गूंथने में लग जाती है जबकि राम ने कहा कि कोई बात नहीं, तुम अगर बीमार हो तो तुम आराम करो, मैं खाना बना लूंगा। लेकिन राम की बीवी ने आनन-फानन में आटा गूथ ली और चपाती भी बना दी। उधर राम ने सब्जी बना दी और सबने खाना खाया और थोड़ा माहौल शांत हुआ लेकिन राम के मन में उठे प्रश्नों का जवाब राम को कहीं नहीं मिल पाया?

एक तरफ राम की मां थी जो राम को आशीर्वाद देते हुए कहा कि शाबाश बेटा मुझे तुम पर गर्व है और दूसरी तरफ राम की धर्मपत्नी थी जिसने मुबारकबाद देने की बजाय हुकुम चलाना शुरु कर दिया कि तुम यह करो, तुम वह करो, तुम ऐसा नहीं करते हो, तुम वैसा नहीं करते हो? या औरत ही है जो मन भी है और बीवी भी है लेकिन सच में दिन-रात का फर्क है। कोई मां अपने परिवार के लिए दिन रात ही सोचती रहती है तो कोई मां ऐसी भी है जो सिर्फ और सिर्फ अपने तक ही सीमित है? सब सोच-सोच का फर्क है।

♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी  – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लघु कथा के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — “एक मां ही है जो अपने परिवार के लिए दिन रात ही सोचती रहती है” तो कोई मां ऐसी भी है जो सिर्फ और सिर्फ अपने तक ही सीमित है? ये सब सोच-सोच का फर्क है। भारतीय संस्कृति में माँ सदैव ही अपनों का हित चाहती है, और एक माँ ही है जो बिना किसी स्वार्थ के सबका ध्यान रखती है, भले ही खुद कितना भी कष्ट झेलती है फिर भी गुस्सा नही करती है, लेकिन आजकल की कुछ लड़कियों को क्या हो गया है जो अपनी निज संस्कार व फर्ज को भूलती जा रही है, ये कैसी सोच है इनकी? खैर एक बात याद रखे की मानव जीवन की तीन मुख्य जरूरतें है, अच्छा खाना, अच्छा पहनने को कपडा और रहने के लिए मकान, इन्हीं जरूरतों के लिए आदमी कार्य करता है जिससे उसके परिवार का जरुरत पूर्ण होता रहे। इसके बदले वह सिर्फ दिल का प्रेम व सहानुभूति के दो शब्द चाहता है अपनों से।

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यह लघु कथा (सोच।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, लघु कथा, सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।

  • रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
  • लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
  • लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
  • प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
  • पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
  • सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
  • कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
  • काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
  • व्यास गौरव सम्मान — 2022
  • रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
  • शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
  • विशेष — 17 बार रक्तदान।
  • देश, प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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दोषी कौन है?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दोषी कौन है? ♦

स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां थी। नरपत काका के चारों बेटे खेतों में जी जान से जोर लगा रहे थे। उम्मीदें सब की ये थी कि इस बार खूब फसल होनी चाहिए। फसल से जो कमाई होगी, बाबा वह जरूर हमारी शिक्षा पर खर्च करेंगे।

नरपत काका अपना पेट मसोस मसोसकर बच्चों की अच्छी तालीम के हर संभव प्रयास करते रहते थे। प्राथमिक से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई। चार – चार बेटों का लाखों का खर्च। काका की दो चार बीघा जमीन से कैसे तैयार हो पाता ये तो वही जाने। काका का कोई सरकारी रोजगार भी तो नहीं है ना।

अबकी चारों कॉलेज से अच्छी डिग्रियां लेकर प्रशिक्षण की जिद पर अड़े हुए हैं। काका भी दिल से प्रशिक्षण कराने की सोचता है। जानता है प्रशिक्षण के बिना सरकारी नौकरियां नहीं मिलने वाली पर माली हालत इजाजत नहीं देती है।

बैंक में गिरवी

दो चार बीघा जमीन है, उसे बैंक में गिरवी रखकर बड़े वाले को शहर डिग्री के बाद प्रशिक्षण हेतु भेज देते हैं। कुछ फसल का जुगाड़ था और कुछ बैंक से ले लिया। बाकी के तीनों को ढाढस बंधाता है। “बच्चों तुम अभी छोटे हो। भैया जब प्रशिक्षण पूरा कर लेगा ना तब तुम्हें भी बारी – बारी से मौका दूंगा।”

बाबा की आंखों की कोरों पर आते आंसुओं को देखकर सब सहमत हो जाते हैं। बड़े वाला साल भर का प्रशिक्षण लाखों का डोनेशन देकर जब घर लौटता है तब तक तीनों बेटों और बाप ने एड़ी चोटी का दम लगा कर बैंक का हिसाब-किताब चुकता कर दिया था।

वह तो कृषि कार्ड की लिमिट थी। उसी लिमिट से पैसा निकाल कर दूसरे को उसकी डिग्री के हिसाब से प्रशिक्षण को भेज दिया। उसका भी कुछ यूं ही निभा। इस बार दिक्कत कुछ ज्यादा रही। सूखे की मार फसलों से इतनी कमाई नहीं करवा पाई, जितना कि पिछली बार हुई थी। पर फिर भी आस पड़ोस में मेहनत मजदूरी करके सब लोगों ने मिलकर इस बार का खाता भी क्लियर कर लिया था। इसी कदर तीसरे का भी कुछ यूं ही बीता।

अब छुटकू की बारी थी।

अब छुटकू की बारी थी। उसकी जिद डॉक्टरी करने की थी। तीनों बड़े भाइयों ने भी नरपत काका को यह कह कर मना लिया “बाबा छुटकू ठीक कहता है। हमारे पूरे इलाके में कोई डॉक्टर नहीं है। छुटकू है भी तेज। कर लेने दो उसे डॉक्टरी। परिवार के साथ साथ सबका भला हो जाएगा।”

“तुम्हारी मत मारी गई है। लाखों का खर्चा होता है उस पर। कहां से आएगा इतना पैसा। कर लेने दो इसे भी कोई छोटा – मोटा डिप्लोमा। फिर ढूंढो कहीं नौकरियां? मेरे पास इतना पैसा नहीं है। “नरपत काका कुछ रूखे से बोले।

छुटकू आंगन की पीपल के नीचे बैठकर सुबकियां भर रहा है। तीनों बड़ों ने मान मनौती करके बाबा को मना लिया और छुटकू को डॉक्टरी के लिए भेज दिया। पर इस बार सौदा कुछ महंगा था। ऐसे में नरपत काका को अपनी दो चार बीघा जमीन से एक आध बीघा को जड़ से बेच देना पड़ा।

छुटकू के जाने के बाद नरपत काका और उनकी पत्नी उस दिन शाम को उसी पीपल के नीचे बैठे – बैठे बतिया रहे थे। “पगली आज मैंने अपनी मां को बेचा है। और करता भी क्या? बच्चों ने मजबूर कर दिया।” यह कहते – कहते नरपत काका की आंखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी। उनके साथ काकी की आंखों से भी अश्रुपात होने लगा। पर बच्चों को देखकर दोनों हड़बड़ाहट में आंसू पोंछ लेते हैं।

छुटकू डॉक्टर

चारों बाप बेटों ने दिन रात मेहनत की। एक दिन छुटकू डॉक्टर बनकर के लौट आता है। घर में खुशी का माहौल है। नरपत काका और काकी बहुत खुश है। आस पड़ोस के लोग भी उन्हें बधाइयां देने लगे हैं।

“ओ यारा नरपत्या, हुन ता तू फ्री हुई गया भाई।” रामलू काका नरपत काका से कह रहे थे।

“क्येथी ओ यारा रमालू भाई? हजा ता इन्हा रे ब्याह रही गए।” नरपत काका माथे पर हाथ फेरते हुए कहते हैं।

सरकारी नौकरी का इंतजार

चारों बेटों ने सरकारी नौकरियां पाने के लिए लंबे समय तक इंतजार किया। पर कोई सरकारी नौकरी की अधिसूचना ही जारी नहीं हो पा रही है। एक दिन डॉक्टरी की पोस्टें भरने की अधिसूचना निकली भी थी। वह भी किसी कोर्ट केस के चलते रद्द कर दी गई।

बड़े वाले तीनों निजी कंपनियों में बहुत कम वेतनमान पर नौकरियां करने लगे हैं। हालत यह है कि शहरी जीवन में रहते – रहते उस वेतन से महीने भर के लिए अपने पेट का ही गुजारा नहीं होता। क्वार्टर का किराया, राशन – पानी, बिजली का भाड़ा और एक आध घर का चक्कर। बस सब उसी में खत्म। काका की हालत आज भी ज्यों की त्यों है।

बड़े वाले की शादी तय कर दी गई है। जेब में खर्चने को दमड़ी भी नहीं है। फिर से एक आध बीघा जमीन बेच दी जाती है। आज काका फिर से दुखी है।

एक दिन चारों भाई शाम को आंगन में बैठकर बतिया रहे हैं। “अरे भाई न जाने यह कैसी शिक्षा प्रणाली और व्यवस्था है? इतनी महंगी पढ़ाई हासिल कर भी ढंग की नौकरी ना ही तो सरकारी क्षेत्र में नसीब हो पाती है और ना ही निजी क्षेत्र में। सरकारें वादे तो बड़ी-बड़ी करती है, पर तोड़ती डक्का नहीं।” छुटकू बड़े तैश से बोल रहा था।

“हाथी के दांत खाने के और तथा दिखाने के और वाली कहावत है यह छुटकू। आखिर दोषी कौन?” सबसे बड़े वाले ने विलक्षण स्वरों से जवाब दिया।

इतने में अंदर से आवाज आती है, “अजी सुनते हो। खाना तैयार है।”
सब खाना खाने चले जाते हैं।

घोषणा: यह मेरी मौलिक, स्वरचित रचना है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

Conclusion — निष्कर्ष

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस छोटी कहानी के माध्यम से मिडिल क्लास के परिवारों के मजबूरी और समझ को बताने की बखूबी कोशिश की है। मिडिल क्लास परिवार किस कदर मेहनत कर बमुश्किल उच्च डिग्री हासिल करता है। उसके बाद भी उसे अच्छी नौकरी नही मिल पाती।

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यह छोटी कहानी (दोषी कौन है?) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कहानी/कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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बदलता दौर।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बदलता दौर। ♦

इतवार की सुबह सवेरे तड़के ही कोई रविन्द्र के आंगन से आवाजे लगा रहा था,” भाई साहब! ओ भाई साहब! चलो चलना है क्या?”

” कौन बिरजू है क्या?” अंदर से रविन्द्र चाय पीते हुए बोला।
” जी हां भाई साहब। मैं बोल रहा हूं।” बिरजू ने झट से उत्तर दिया।
रविन्द्र ने अपनी पत्नी को जल्दी तैयार होने को कहा और स्वयं भी कपड़े पहनते हुए बिरजू से बतियाता रहा।

” क्या बताएं बिरजू? हर चेले – घोपे के पास गए। हर डॉक्टर – हकीम के पास गए।लाखों का खर्च कर लिया है, और तो और अम्मा जी के कहने पर हवन – पाठ भी करवा लिए। पर शादी के दस साल बाद भी कोई औलाद नहीं हो रही है। कल जब तुम्हे दफ्तर से आते वक्त, मन्दिर जाने के बारे में शांता से बतियाते हुए सुना तो सोचा हम भी एक बार तुम दोनों के साथ मन्दिर चल आते हैं। शायद अबकी भगवान हमारी सुन ही लें।”

“भाग्य का क्या पता भाई साहब? कब खुल जाए? मैं भी इन्हें बड़ी मुश्किल से मन्दिर में लिए जा रही हूं। वे भी आपके जाने के लिए राजी होने के बाद ही जाने को तैयार हुए हैं। वरना कहां ….? ” शांता ने अदब से कहा।

पुत्र रत्न पैदा हुआ।

इस बार सचमुच भगवान ने रविन्द्र और तारा की सुन ली। दोनों की किस्मत खुली और उनके एक पुत्र रत्न पैदा हुआ। वह बच्चा बचपन में इतना बीमार रहा कि न जाने तारा ने उसको बड़ा करने के लिए क्या – क्या नहीं किया?

बेचारे रविन्द्र की आधी तनख्वाह हर महीने उसी के इलाज में लग जाती थी। बड़ी मुद्दत से जो हुआ था लाल। दोनों ने लालन पालन में कोई कोर कसर न छोड़ी। तारा तो उसके बी ए करने तक उसे अपनी थाली से ही खिलाती रहती थी। बेचारी खुद भूखी रह जाती पर कुन्दन पर आंच न आने देती।

कुंदन और ईशा की शादी।

भगवान की कृपा से कुन्दन की नौकरी भी लग गई। नौकरी की खबर सुनकर उसकी एक सहपाठी ने उसे रिश्ता भेज दिया। यूं तो कुन्दन भी उसके प्यार में कालेज से ही लट्टू हुआ पड़ा था पर वह बड़ा भाव खा रही थी। वह थोड़े बड़े घराने की थी। पर नौकरी लगने के बाद वह कुन्दन से शादी करने को मान गई। रिश्ता तय हुआ और शादी भी हुई। साल भर सब ठीक से रहा। मां बाप ने भी न पूछा दोनों को। सोचा बच्चे हैं। करने दो मस्ती।

साल बाद रविन्द्र की गाड़ी की एक दुर्घटना हुई। इसमें रविन्द्र ने तो अपनी जान ही गवाई और तारा की टांग टूट गई। अब घर का सारा काम कुन्दन और कुन्दन की पत्नी को करना पड़ रहा था।

साल भर के इलाज के बाद तारा भी ठीक तो हो गई थी पर बूढ़े शरीर में दर्द तो बढ़ता ही जा रहा था। ईशा कुछ दिन तो इधर उधर टल कर खुद को घर के कामकाज से बचाती रही और पति से ही खाना भी बनवाती रही और कपड़े भी धुलाती रही।

कुन्दन ने भी मां को बीमार देख चुपके से सब काम किया। परन्तु साल भर बाद एक दिन उसने साफ साफ कह दिया, _ ” बुढ़िया ज्यादा नाटक करने की कोई जरूरत नहीं है। अब तू ठीक हो गई है। पेट भरना है तो खाना खुद बनाया कर और अपने कपड़े खुद धोया कर। वरना चली जा वृद्धाश्रम। पति के मरने के बाद पेंशन मिलती है। आश्रम वाले पाल लेंगे उन्ही पैसों से। हमें न पैसों की जरूरत है और न ही मुझसे ये सब होता।”

कुन्दन ने ईशा को थोड़ा फटकारा। ईशा घर छोड़ कर माइके चली गई। उधर ईशा की मां ने तो और भी आग में घी डालने का काम किया। कुन्दन ईशा के बेगैर रह ही नहीं सकता था। मनाते – मनाते बात यहां तक आ पहुंची कि अब हमारी ईशा उस घर में तभी जाएगी, जब आप अपनी मां को अलग रखोगे या वृद्धा-आश्रम में छोड़ आएंगे।

कुन्दन ने डरते हुए से ईशा से कहा, ” ईशा तुम समझती क्यों नहीं? अभी हम मां को न अकेला रख सकते हैं और न ही तो आश्रम को भेज सकते हैं। अभी पापा को मरे हुए मात्र एक साल ही हुआ है। पति मरा है उसका, और फिर समाज क्या कहेगा?”

ईशा ने सर्पणी की तरह फुंकारते हुए उत्तर दिया, ” पति क्या सिर्फ तेरी मां का ही अनोखा मरा है? संसार में कईयों के पति मरे हैं। मैं कुछ नहीं सुनना चाहती। मैं समाज समूज कुछ नहीं जानती। फैसला तुम्हे करना है। तुम्हे मां चाहिए या फिर मैं? नहीं तो तलाक के पेपर तैयार करो पापा।”

“नहीं बेटी। कुछ दिन का समय इसे और देते हैं।” ईशा के पापा ने शराब का पैग लेते हुए कहा।
कुन्दन शाम को मां से सब सच सच कहता है।

तारा ने कुन्दन से कहा, ” बेटे तेरे पापा ने तो तुझे तभी कहा था कि यह लड़की कुछ ठीक नहीं है बेटा। कोई और लड़की देखते हैं। पर तेरी जिद्द के आगे हमारी एक न चली। अभी भी वक्त है बेटा। वे अगर तलाक मांग रहे हैं तो दे – दे तलाक। वह लड़की तुझे बर्बाद कर डालेगी।”

तारा के इतना कहते ही कुन्दन आग बबूला हो उठा, ” ठीक कहती है ईशा और उसके मम्मा-पापा। तेरे साथ रहना सचमुच ठीक नहीं है। पड़ी रह घर में अकेली। हम रह लेंगे क्वार्टर में। बड़ी आई तलाक दे – दे।”

दोनो पति – पत्नी क्वार्टर में रहने लगे। जितना कुन्दन महीने का कमाता, उससे तीन गुना खर्चे मैडम के थे। घर के काम काज को रखी नौकरानी पैसे न मिलने के कारण नौकरी छोड़ गई। सब काम कुन्दन को खुद करने पड़ते थे।

मैडम जी तो दिन रात व्यस्त ही रहती थी और नशे में चूर। बेटे की हालत देख कर नौकरानी को पैसे देना तारा ने चुपके से शुरू किए, ताकि बेटे पर बोझ न पड़े। कुन्दन पर बैंक का कर्ज भी बहुत हो गया था।

अब वह भी परेशान हो कर और ससुराल की संगत से शराब पीने लग गया था। एक दिन उसने दफ्तर से लौट कर मैडम को किसी गैर मर्द की बाहों में लिपटे देखा तो उससे रहा नहीं गया। उसने सासू मां और ससुर साहब से ईशा की करतूतों की शिकायत की।

उन्होंने उसे जबाव दिया,” तो क्या हुआ? यह तो आजकल आम बात है। हमारी बेटी है ही बहुत सुंदर दामाद जी। आ गया होगा किसी का दिल उस पर। तुम्हारा भी किसी और पर आ जाए तो उसमें क्या गलत है? इस बात पर ज्यादा बबाल करने की कोई जरूरत नहीं है।”

उधर बैक वालों की चिट्ठियों से कुन्दन अलग से परेशान था। कुन्दन को एक दिन दिमागी दौरा पड़ा। वह हस्पताल में कराह रहा था। तारा को नौकरानी ने खबर दी।तारा उसे घर ले आई और उस अपाहिज बुद्धि का इलाज भी करती रही और उसका कर्जा भी भरती गई।

उन बूढ़ी बाहों में अब और इतनी शेष ताकत नहीं थी कि वे इस बुढ़ापे में भी अपने बेटे को अपना पेट काट कर पालती। पर क्या करती? उसे यह सब मजबूरी में करना पड़ रहा था।

मैडम ईशा ने अपने माइके में उसी गैर मर्द के साथ डेरा जमा लिया था। एक दिन तारा उसे घर बुलाने गई तो उसने बेहूदा जवाब दिया, “क्या करूंगी तेरे अपाहिज बेटे के साथ रह कर?”
तारा रोते – रोते घर लौट आई।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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Conclusion:

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – माता-पिता सदैव ही अपने बच्चे/बच्चियों का भला ही चाहते हैं, उनका कहना जरूर माने, उनके अनुभव का कभी भी मजाक ना बनाये। जो आपके माता-पिता का सम्मान और सेवा नहीं कर सकती/सकता वो आपका सम्मान और सेवा भला क्या करेगी। इसलिए सदैव ही माता-पिता का सम्मान और सेवा करें, उनका कहना माने। कभी भी उनका साथ ना छोड़े, चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थिति क्यों ना आ जाये।

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यह लेख/लघु कथा (बदलता दौर।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख / लघु कथा सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

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मनहूस या लाड़ली।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ मनहूस या लाड़ली। ϒ

मनहूस या लाड़ली,… Wretched or ladli…

एक घर में एक बेटी ने जन्म लिया, जन्म होते ही माँ का स्वर्गवास हो गया। बाप ने बेटी को गले से लगा लिया, लेकिन रिश्तेदारों ने लड़की के जन्म से ही ताने मारने शुरू कर दिए कि पैदा होते ही माँ को खा गई मनहूस।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

पर बाप ने कुछ नही कहा अपनी बेटी को। उसने अपने बेटी का पालन पोषण शुरू किया। वो खेत में काम करता और बेटी को भी खेत ले जाता। काम भी करता और भागकर बेटी को भी संभालता। रिश्तेदारों ने बहुत समझाया कि दूसरा विवाह कर लो, पर बाप ने किसी की नहीं सुनी और पूरा ध्यान बेटी की ओर रखा। बेटी बड़ी हुई, स्कूल गयी फिर कॉलेज। हर क्लास में फर्स्ट आयी। बाप बहुत खुश होता। लोग बधाइयाँ देते। बेटी अपने बाप के साथ खेत में काम करवाती, फसल अच्छी होने लगी, रिश्तेदार ये सब देखकर चिढ़ गए।

Stop Living In The Past, Spend Time In Future.
“अतीत में रहना बंद करो, भविष्य में समय व्यतीत करें।”

जो उसको मनहूस कहते थे वो सब चिढ़ने लग गए। लड़की एक दिन अच्छा पढ़ -लिख कर पुलिस में एस. पी. बन गयी। एक दिन किसी मंत्री ने उसे सम्मानित करने का फैसला लिया और समागम का बंदोबस्त करने के आदेश दिए। समागम उनके ही गांव में रखा गया। मंत्री ने समागम में लोगों को समझाया कि बेटा- बेटी में फ़र्क नहीं करना चाहिए। बेटी भी वो सब कर सकती है जो बेटा कर सकता है। भाषण के बाद मंत्री ने लड़की को कुछ कहने को कहा। लड़की ने माइक पकड़ा और कहा – मैं आज जो भी हूँ अपने पिता की वजह से हूँ, जो लोगों के ताने सह कर भी मुझे यहाँ तक ले आये। मेरे पालन पोषण के लिए दिन रात एक कर दिया।

♥ उछलकर वापस आना।….. जरूर पढ़े।

मैंने माँ नहीं देखी और न ही कभी पिता से पूछा कि माँ कैसी थी, क्योंकि अगर मैं पूछती, तो उन्हें लगता कि शायद मेरे पालन-पोषण में कोई कमी रह गयी। मेरे लिए मेरे पिता से बढ़कर कुछ नहीं। पिता सामने लोगों में बैठ कर आंसू बहा रहा था। बेटी की भी बोलते-बोलते आँखे भर आयी। उसने मंत्री से पिता को स्टेज पर बुलाने की अनुमति ली। पिता स्टेज पर आया और बेटी को गले लगाकर बोला – रोती क्यों है बेटी, तू तो मेरा शेर पुत्तर है, तू ही कमजोर पड़ गया तो मेरा क्या होगा। मुझे तुझको सारी उम्र हंसते देखना है। बाप-बेटी का प्यार देखकर सबकी आँखे नम हो गयी। मंत्री ने बेटी के गले में सोने का मेडल डाला। लड़की ने मेडल उतारकर पिता के गले में डाल दिया। मंत्री ने बोला, ये क्या किया तुमने! तो लड़की बोली मेडल को उसकी सही जगह पहुँचा दिया। इसके असली हक़दार मेरे पिता जी हैं। समागम में तालियाँ बज उठी…..।

सीख – यह उन लोगों के लिए सबक है जो बेटियों को चार दीवारी में रखना पसंद करते हैं। पर ये फूल बाहर खिलेंगे अगर आप पानी लगाकर इन फूलों की संभाल करोगे।

  • हिंदी कविता “लड़की को मत समझो बेकार” जरूर पढ़े।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought to life by. By doing this you Recognize hidden within the buraiya ensolar radiation and encourage good solar radiation to become themselves.

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निर्णय बुद्धिमत्ता से …।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ निर्णय बुद्धिमत्ता से …। ϒ

निर्णय बुद्धिमत्ता से…

एक व्यक्ति ने कुत्ता और बिल्ली पाल रखे थे। बिल्ली दिन और रात म्याऊ – म्याऊ करती, इस कारण वह व्यक्ति आराम नहीं कर पाता। एक दिन उसने चिढ़कर बिल्ली की पिटाई कर डाली और बोला – “क्यों सारे दिन म्याऊ – म्याऊ करती रहती है ?”

  • जानते तो बहुत है…। ….. जरूर पढ़े।

कुत्ते ने यह देखा तो डर के मारे उसने कभी न बोलने का निश्चय कर लिया। एक रात चोर उसके घर में चोरी करने घुसे। कुत्ते ने सब देखते हुए कुछ नहीं कहा। अगले दिन उस व्यक्ति ने कुत्ते को पीटते हुए कहा – “तुझे इसलिए पाला था कि चोर आये तो तू भाैंककर सूचित करे और तूने मौन साध लिया।”

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

Stop Living In The Past, Spend Time In Future.
“अतीत में रहना बंद करो, भविष्य में समय व्यतीत करें।”

सीख – वास्तव में किन्हीं स्थितियों में मौन अच्छा है तो किन्हीं में बोलना। मनुष्य को यह निर्णय अपने विवेक के अनुसार करना चाहिए।

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छोटे अहंकार के कारण…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ छोटे अहंकार के कारण…। ϒ

छोटे अहंकार के कारण…

एक बार रेलगाड़ी में लोग यात्रा कर रहे थे। एक व्यक्ति खड़ा हुआ और खिड़की खोल दी, थोड़ी ही देर में दूसरा यात्री उठा और उसने खिड़की बंद कर दी। पहले को उसका यह बंद करना नागवार गुज़रा और उठकर खिड़की पुनः खोल दी।

  • जानते तो बहुत है…। ….. जरूर पढ़े।

एक बंद करता दूसरा खोल देता। यह बंद और खोलने का नाटक शुरू हो गया। यात्रियों का मनोरंजन हो रहा था, लेकिन अंततः सभी तंग आ गये। फिर क्या, ‘टी टी को बुलाया गया,’ टी टी ने पूछा ‘महाशय ! यह क्या कर रहे हो ? क्यों बार-बार खोल – बंद कर रहे हो ?’ पहला यात्री बोला- ‘क्यों न खोलू, मई गर्मी से परेशान हूँ, खिड़की खुली ही रहनी चाहिए।’ टी टी ने दूसरे यात्री को कहा – ‘भाई ! आपको क्या आपत्ति है, खिड़की खुली रहे तो ?’ इस पर दूसरे यात्री ने कहा- ‘मुझे ठंड लग रही है, मुझे ठंड सहन नहीं होती। टी टी बेचारा परेशान, एक को गर्मी लग रही है तो दूसरे को ठंड।

Stop Living In The Past, Spend Time In Future.
“अतीत में रहना बंद करो, भविष्य में समय व्यतीत करें।”

टी टी यह सोचकर खिड़की के पास गया कि कोई बीच का रास्ता निकल आये। उसने देखा और मुस्करा दिया। खिड़की में शीशा था ही नहीं। वहा तो मात्र फ्रेम थी। वह बोला – ‘कैसी गर्मी या कैसी ठंडी ? यहाँ तो शीशा ही गायब है, आप दोनों तो मात्र फ्रेम को ही ऊपर नीचे कर रहे हो।’ मित्रों, वस्तुतः दोनों यात्री न तो गर्मी और न ही ठंडी से परेशान थे। वे परेशान थे तो मात्र अपने अभिमान से। वे अपने अंह पाेषण में लिप्त थे, गर्मी या ठंडी का अस्तित्व ही नहीं था।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

सीख – अधिकांश कलह मात्र इसलिए होते है, कि अहंकार को चोट पहुँचती है, और आदमी को सबसे ज्यादा आनंद दूसरे के अहंकार को चोट पहुँचाने में आता है। साथ ही सबसे ज्यादा क्रोध अपने अहंकार पर चोट लगने से होता है। जो दूसरों के अहंकार को चोट पहुँचाने में सफल होता है, वह मान लेता है कि उसने बहुत ही बड़ा गढ़ जीत लिया, वह यह मानकर चलता है कि दूसरों के स्वाभिमान की रेखा को काट पीट कर ही वह सम्मानित बन सकता है। किन्तु परिणाम अज्ञानता भरे शर्म से अधिक नहीं होता। अधिकांश लड़ाइयों के पीछे कारण एक छोटा सा अहम् ही होता है। ज्ञान-ध्यान, कर्मयोग व् धर्मयोग की साधना से अहम और वहम (अहंकार और भ्रम), से ऊपर उठ कर अर्हम को प्राप्त करो।

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मन के रोग निकालें…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ मन के रोग निकालें…। ϒ

मन के रोग निकालें… Remove the disease from the mind…

एक सेठ के घर में चोर घुस गया। कमरे में कुछ खड़खड़ की आवाज हुई तो सेठानी चौक उठी। उसने अपने पति को जगाकर कहा: ‘मुझे लगता है कि अपने घर में कोई चोर घुस आया है।’ सेठ ने कहा: ‘हाँ-हाँ ज़रुर आया होगा, रात के समय और कौन आ सकता है।’ यह कहकर उसने चादर सिर तक तान ली। सेठानी ने दरवाज़े के छिद्र में से देखा – चोर ने तिजोरी खोल ली है और रुपये व जेवर आदि कपड़े में बांध रहा है। सेठानी ने पति से कहा: ‘जल्दी उठो, उसने सारी संपत्ति कपड़े में बांध ली है।’

सेठ बोला – ‘मैं जानता हूँ, वह आया है, तो कुछ लेकर ही जाएगा। सेठानी बोली: ‘हम लुट गए हैं।’ सेठ ने कहा – ‘मैं जानता हूँ, मगर अब कोई उपाय भी तो नहीं है।’ इस बार सेठानी को आवेश आ गया। बोली – ‘तुम बस जानते ही रहो। अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।’ वह दाैड़कर घर के मुख्य द्वार पर पहुंचकर ज़ोरों से चिल्लाई: ‘बचाओ ! चोर-चोर !’ चोर डरकर गठरी को वहीं फेंक कर भाग खड़ा हुआ। सेठानी ने गठरी अंदर लेकर पति से कहा: ‘मैंने चोर को भगा दिया है।’ सेठ उठकर बोला: ‘मैं जानता था, तुम कमरे से बाहर गई हो तो बचाव का कुछ न कुछ उपाय करके ही आओगी।’ सेठानी ने अपना सिर थाम कर कहा: ‘जानते थे तो फिर साथ क्यों नही दिया ?’

इसी तरह आज हम सब जानते है, लेकिन ज्ञान को आचरण में उतार नहीं पाते। ज्ञान केवल जान लेने मात्र से कुछ भी लाभ होने वाला नहीं है। उदाहरण के तौर पर, हम सर्प को भी जानते है, इसलिए उसके मुँह को तो क्या पूंछ को भी हाथ नहीं लगाते। बिच्छू के स्वभाव से परिचित होने के कारण हम उसे अपनी जेब में रखकर नहीं घूमते, क्योंकि हमें यह ज्ञान है कि ये विषैले जीव हैं। हम स्वप्न में भी इन्हें पकड़ने की भूल नहीं करते।

सीख – आज हमारे तन में जितने रोग नहीं हैं, उससे कहीं अधिक रोग हमने अपने मन में पाल रखे हैं। हमारा चिंतन सकारात्मक कम और नकारात्मक अधिक हो गया है। जीवन की यह मस्ती ही जीवन की कश्ती को डुबो देगी। अभी हमारे पास समय है। हम जागें, अंधकार से बाहर निकलें और जीवन को जागृति और सत्यता के साथ जियें।

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अभी समय नहीं…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ अभी समय नहीं…। ϒ

अभी समय नहीं…

एक बार कबीरदास जी परमात्मा का भजन करते हुए गली से निकल रहे थे। उनके आगे कुछ स्त्रियां जा रही थी। उनमे से एक स्री की शादी कहीं तय हुई होगी तो उसके ससुराल वालों ने शगुन में एक नथुनी भेजी थी। वह लड़की अपनी सहेलियों को बार-बार नथनी के बारे में बता रही थी कि नथनी ऐसी है वैसी है…। ये ख़ास उन्होंने मेरे लिए भेजी है… बार-बार बस नथनी की ही बात…।

उनके पीछे चल रहे कबीरदास जी के कान में सारी बातें पड़ रही थी।

तेजी से कदम बढ़ाते हुए कबीरदास जी उनके पास से निकले और कहा –
‘नथनी देनी यार ने,
तो चिंतन बारम्बार, और
नाक दीनी जिस करतार ने,
उनको तो दिया बिसार… ।

सोचो यदि नाक ही न होती तो नथनी कहाँ पहनती।’

यही जीवन में हम भी करते हैं। भौतिक वस्तुओं का ज्ञान तो हमे रहता है, परंतु जिस परमात्मा ने यह दुर्लभ मनुष्य देह दी और इस देह से सम्बंधित सारी वस्तुएं, सभी रिश्ते-नाते दिए, उसी को याद करने के लिए हमारे पास समय नहीं होता। इसलिए सदा उन अनगिनत अमूल्य देन के लिए पारब्रह्मा परमात्मा के आभारी रहें जो उन्होंने हमें दी है।

मन को अचल-अडोल स्थिती मैं स्थित करने के लिए सर्वप्रथम अपने मन को फालतू विचारों से मुक्त करना होगा अर्थात: अपने मन से फालतू विचारों का कचरा हटाना होगा, तभी आप अपने मन के अंदर अच्छे विचारों को स्थित कर पाएंगे।

♥ – एक बात सदैव ही – याद रखें ….. समय का प्रबंधन वास्तव में जीवन का प्रबंधन है। यह दरअसल घटनाओं के क्रम को नियंत्रित करना है। समय का प्रबंधन का अर्थ है, इस बात पर नियंत्रण करना कि आप अगला कार्य कौन सा करेंगे, और आप हमेशा अपना कार्य चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं। महत्वपूर्ण और महत्वहीन के बीच विकल्प चुनने कि आपकी काबिलियत, जिंदगी और काम-धंधे में आपकी सफलता तय करने वाली अहम कुंजी हैं। असरदार और उत्पादक लोग खुद को इस बात के लिए अनुशासित कर लेते हैं कि वे सबसे महत्वपूर्ण कार्य से ही दिन कि शुरुआत करें।

“किसी महत्वपूर्ण कार्य को शुरू और पूरा करने के बारे में सोचने भर से ही आप प्रेरित हो जाते हैं। इससे आपको टालमटोल छोड़ने में मदद मिलती हैं।”

सच तो यह हैं कि किसी महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए भी अक्सर उतने ही समय की जरूरत होती हैं, जितनी कि महत्वहीन कार्य को करने के लिए। फर्क यह है कि महत्वपूर्ण कार्य पूरा करने के बाद आपको गर्व और संतुष्टि का जबरदस्त एहसास होता हैं। बहरहाल जब आप उतना ही समय और ऊर्जा खर्च करके कोई मूल्यहीन या महत्वहीन कार्य पूरा करते हैं, तो आपको बहुत कम संतुष्टि मिलती हैं या जरा भी नही मिलती। उत्पादक लोग(productive people) या सफल लोग – महत्वपूर्ण कार्य को ही सबसे पहले करते हैं, भले ही वह कठिन हो, चाहे वह जो भी हो। नतीजा यह होता हैं – कि वे आम आदमी से कहीं ज्यादा हासिल करते हैं और ज्यादा खुश भी रहते हैं।

“कार्य करने का ये तरीका आपको भी अपनाना चाहिए।”

महत्वपूर्ण कार्य का जर्नल(नाेटबुक या डायरी) रखें – और उसमें रात में सोते समय ही अगले दिन के कार्य का डिटेल्स लिख ले – सबसे पहले अपनी डायरी में तीन कालम बना ले, पहले वाले कालम में हेडिंग्स डाले – अत्याधिक महत्वपूर्ण कार्य, दूसरे वाले कालम में हेडिंग्स डाले – महत्वपूर्ण कार्य, और तीसरे वाले कालम में हेडिंग्स डाले – कम महत्वपूर्ण कार्य।

सीख – क्योंकि प्रभु स्मृति और निराभिमानी स्थिति ही उन चीजों या देन को अविनाशी और सदैव खूबसूरत बनाये रख सकती है। इसलिए मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।

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स्व का पहचान सर्व ज्ञान का स्रोत।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ स्व का पहचान सर्व ज्ञान का स्रोत। ϒ

प्यारे दोस्तों – आज मैं आप सभी को बहुत समय पहले की एक सत्य से अवगत करवाता हूँ।

महर्षि उद्दालक के पुत्र श्वेतकेतु अत्यंत प्रतिभाशाली थे। गुरुकुल में निरंतर १२ वर्षो तक शास्त्रों का अध्ययन करने के पश्चात् – जब वे महर्षि के पास लौटे तो उन्होंने उनसे प्रश्न किया – “वत्स ! वह क्या है, जिसका ज्ञान होने से सृष्टि के समस्त पहलुओं का ज्ञान हो जाता है।”

इस प्रश्न का उत्तर श्वेतकेतु से न देते बना तो – उसकी जिज्ञासा का समाधान करते हुए महर्षि उद्दालक बोले – “पुत्र जिस प्रकार स्वर्ण का ज्ञान हो जाने से स्वर्ण से बनी सभी वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, कृषि का ज्ञान हो जाने से सभी अन्य वनस्पतियो को उगाने का ज्ञान हो जाता है।”

“वैसे ही आत्मा का ज्ञान हो जाने से सृष्टि के समस्त पहलुओं का ज्ञान हो जाता है। तुम अब अपना जीवन उसी आत्मज्ञान को प्राप्त करने में लगाओं।”

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जो जैसा दिखता है – वैसा होता नहीं सदैव।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ जो जैसा दिखता है – वैसा होता नहीं सदैव। ϒ

दो बंदर एक दिन घूमते-घूमते एक गांव के समीप पहुंच गये। उन्होंने वहाँ फलों से लदा पेड़ देखा। एक बंदर ने चिल्लाकर कहा – “इस पेड़ को देखो ! ये फल कितने सूंदर दिख रहे है। ये अवश्य ही स्वादिष्ट होंगे। चलो, हम दोनों पेड़ पर चढ़कर फल खाये।”

दूसरा बंदर बुद्धिमान था। उसने कुछ सोचकर कहा – “नहीं, नहीं। ज़रा ठहराे ! यह पेड़ गांव के समीप है और इसके फल इतने सुंदर और पके हुए है, लेकिन यदि ये फल अच्छे होते तो गांव वाले ही इन्हे तोड़ लेते, इन्हें ऐसे ही पेड़ पर नहीं लगे रहने देते। लेकिन इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि किसी ने भी इन फलों को हाथ तक नहीं लगाया है। हो सकता है कि ये फल खाने लायक न हो।”

उसकी ये बातें सुनकर पहले बंदर ने कहा – ” कैसी बेकार कि बातें कर रहे हो। मुझे तो इन फलों में कुछ बुरा नहीं दिख रहा। मैं तो इन्हें खाने जा रहा हूँ, तुम्हे साथ चलना है तो चलो।”

दूसरे बंदर ने फिर से उसे सावधान करते हुए कहा – “तुम्हे इस बारे में फिर से सोचकर निर्णय लेना चाहिए। मैं भोजन के लिए कुछ और ढूंढता हूँ।” पहला बंदर पेड़ पर चढ़कर फल खाने लगा, परन्तु वे फल ही उसका अंतिम भोजन बन गए; क्योकि वे फल ज़हरीले थे।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

दूसरा बंदर जब लौटा तो उसने अपने साथी को मरा हुआ पाया। इसलिए कहा जाता है कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं हुआ करती। अर्थात: जो जैसा दिखता है – वैसा होता नहीं सदैव।

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In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought to life by. By doing this you Recognize hidden within the buraiya ensolar radiation and encourage good solar radiation to become themselves.

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