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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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Kahani in Hindi

पक्षियों की समझदारी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पक्षियों की समझदारी। ♦

अरे ! तोता, कबूतर, मैना सुना क्या तुमने आज। बड़ी चिड़िया आई मेरे घोसलें के पास मुझे गिरा कर खुद बैठ गई और बोली यह घर मेरा है। भाग जा यहां से। अच्छा बहन यह तो बहुत बुरा हुआ। हमने देखा था तूने कितनी मेहनत लगन से घोंसला बनाया था। हां इसी बात का तो रोना है पर हम छोटी चिड़िया कुछ कर भी तो नहीं सकते। उस बड़ी चिड़िया के सामने तोता, मैना, कबूतर सब ने कहा क्यों नहीं कर सकते हम मिलकर कोई तरकीब ढूंढते हैं। सभी मिलकर बड़ी चिड़िया को काली चिड़िया के घोसलें से निकालने की तरकीब सोचने लगे। फिर कबूतर को एक आईडिया आया। हम सब जैसे ही बड़ी चिड़िया तेरे घोंसले आएगी उसे देखकर बातें करेंगे कि अच्छा हुआ काली बहन जो तू इस घोसलें से निकल गई।

वरना आज तो। हां-हां क्यों नहीं मैं यह जरूर काम आएगा। कुछ समय पश्चात जैसे बड़ी चिड़िया घोंसले में आई। तोता, मैना, कबूतर चिड़िया जोर-जोर से बातें करने लगे काली चिड़िया अच्छा हुआ जो समय रहते घोसलें को छोड़ दिया। नहीं तो आज! इतना बोल कर सभी चुप हो गए। तभी बड़ी चिड़िया बोली नहीं तो क्या। कुछ नहीं बड़ी चिड़िया हम तो बस ऐसे ही। ऐसे ही क्या बोल रहे हो! खुल कर बोलो। नहीं तो तुम सब को मारकर खा जाऊंगी। हां हां हां बड़ी चिड़िया अभी बताते हैं।

हमने क्या देखा अभी कुछ समय पहले ही सांप आया था उसने घोंसले के चारो ओर देखा और देख कर बोला कोई नहीं चिड़िया अब तू घोसले में नहीं है जैसे ही आएगी उसे खा जाऊंगा। यह देखो सांप की केचूंली भी है। दिखाओ दिखाओ किधर किधर डर के मारे बड़ी चिड़िया का बुरा हाल हो रहा था। देखो हां हां ये तो सांप की केचूंली है।

सभी मन ही मन हंस रहे थे क्योंकि उन्होंने कहीं जंगल से केचूंली को लाकर रख दिया था। और वह भी टूटी-फूटी परंतु बड़ी चिड़िया ने तो डर के मारे देखा भी नहीं की कितनी पुरानी है और टूटी हुई भी है केचूंली।

देखते ही फुर से उड़ गई और सभी पक्षियों को बोली तुम भी भाग जाओ वरना सब के सब मारे जाओगे। सांप सब को खा जाएगा। सभी जोर-जोर से हंस रहे थे और बड़ी चिड़िया का मजाक बना रहे थे। परंतु सब की समझदारी से काली चिड़िया का घोंसला बच गया।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कहानी के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हसमझदारी और सूझबूझ से हर समस्या का समाधान किया जा सकता है। इसलिए जब भी जीवन में कोई समस्या आये तो घबराये नहीं, समझदारी और सूझबूझ से उस समस्या का समाधान निकाले। इस पृथ्वी पर एक भी ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान न हो, इसलिए धैर्य के साथ समझदारी और सूझबूझ से हर समस्या का समाधान करे। शांत मन से विचार करे आपको समाधान जरूर मिलेगा।

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यह कहानी (पक्षियों की समझदारी।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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बदलता दौर।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बदलता दौर। ♦

इतवार की सुबह सवेरे तड़के ही कोई रविन्द्र के आंगन से आवाजे लगा रहा था,” भाई साहब! ओ भाई साहब! चलो चलना है क्या?”

” कौन बिरजू है क्या?” अंदर से रविन्द्र चाय पीते हुए बोला।
” जी हां भाई साहब। मैं बोल रहा हूं।” बिरजू ने झट से उत्तर दिया।
रविन्द्र ने अपनी पत्नी को जल्दी तैयार होने को कहा और स्वयं भी कपड़े पहनते हुए बिरजू से बतियाता रहा।

” क्या बताएं बिरजू? हर चेले – घोपे के पास गए। हर डॉक्टर – हकीम के पास गए।लाखों का खर्च कर लिया है, और तो और अम्मा जी के कहने पर हवन – पाठ भी करवा लिए। पर शादी के दस साल बाद भी कोई औलाद नहीं हो रही है। कल जब तुम्हे दफ्तर से आते वक्त, मन्दिर जाने के बारे में शांता से बतियाते हुए सुना तो सोचा हम भी एक बार तुम दोनों के साथ मन्दिर चल आते हैं। शायद अबकी भगवान हमारी सुन ही लें।”

“भाग्य का क्या पता भाई साहब? कब खुल जाए? मैं भी इन्हें बड़ी मुश्किल से मन्दिर में लिए जा रही हूं। वे भी आपके जाने के लिए राजी होने के बाद ही जाने को तैयार हुए हैं। वरना कहां ….? ” शांता ने अदब से कहा।

पुत्र रत्न पैदा हुआ।

इस बार सचमुच भगवान ने रविन्द्र और तारा की सुन ली। दोनों की किस्मत खुली और उनके एक पुत्र रत्न पैदा हुआ। वह बच्चा बचपन में इतना बीमार रहा कि न जाने तारा ने उसको बड़ा करने के लिए क्या – क्या नहीं किया?

बेचारे रविन्द्र की आधी तनख्वाह हर महीने उसी के इलाज में लग जाती थी। बड़ी मुद्दत से जो हुआ था लाल। दोनों ने लालन पालन में कोई कोर कसर न छोड़ी। तारा तो उसके बी ए करने तक उसे अपनी थाली से ही खिलाती रहती थी। बेचारी खुद भूखी रह जाती पर कुन्दन पर आंच न आने देती।

कुंदन और ईशा की शादी।

भगवान की कृपा से कुन्दन की नौकरी भी लग गई। नौकरी की खबर सुनकर उसकी एक सहपाठी ने उसे रिश्ता भेज दिया। यूं तो कुन्दन भी उसके प्यार में कालेज से ही लट्टू हुआ पड़ा था पर वह बड़ा भाव खा रही थी। वह थोड़े बड़े घराने की थी। पर नौकरी लगने के बाद वह कुन्दन से शादी करने को मान गई। रिश्ता तय हुआ और शादी भी हुई। साल भर सब ठीक से रहा। मां बाप ने भी न पूछा दोनों को। सोचा बच्चे हैं। करने दो मस्ती।

साल बाद रविन्द्र की गाड़ी की एक दुर्घटना हुई। इसमें रविन्द्र ने तो अपनी जान ही गवाई और तारा की टांग टूट गई। अब घर का सारा काम कुन्दन और कुन्दन की पत्नी को करना पड़ रहा था।

साल भर के इलाज के बाद तारा भी ठीक तो हो गई थी पर बूढ़े शरीर में दर्द तो बढ़ता ही जा रहा था। ईशा कुछ दिन तो इधर उधर टल कर खुद को घर के कामकाज से बचाती रही और पति से ही खाना भी बनवाती रही और कपड़े भी धुलाती रही।

कुन्दन ने भी मां को बीमार देख चुपके से सब काम किया। परन्तु साल भर बाद एक दिन उसने साफ साफ कह दिया, _ ” बुढ़िया ज्यादा नाटक करने की कोई जरूरत नहीं है। अब तू ठीक हो गई है। पेट भरना है तो खाना खुद बनाया कर और अपने कपड़े खुद धोया कर। वरना चली जा वृद्धाश्रम। पति के मरने के बाद पेंशन मिलती है। आश्रम वाले पाल लेंगे उन्ही पैसों से। हमें न पैसों की जरूरत है और न ही मुझसे ये सब होता।”

कुन्दन ने ईशा को थोड़ा फटकारा। ईशा घर छोड़ कर माइके चली गई। उधर ईशा की मां ने तो और भी आग में घी डालने का काम किया। कुन्दन ईशा के बेगैर रह ही नहीं सकता था। मनाते – मनाते बात यहां तक आ पहुंची कि अब हमारी ईशा उस घर में तभी जाएगी, जब आप अपनी मां को अलग रखोगे या वृद्धा-आश्रम में छोड़ आएंगे।

कुन्दन ने डरते हुए से ईशा से कहा, ” ईशा तुम समझती क्यों नहीं? अभी हम मां को न अकेला रख सकते हैं और न ही तो आश्रम को भेज सकते हैं। अभी पापा को मरे हुए मात्र एक साल ही हुआ है। पति मरा है उसका, और फिर समाज क्या कहेगा?”

ईशा ने सर्पणी की तरह फुंकारते हुए उत्तर दिया, ” पति क्या सिर्फ तेरी मां का ही अनोखा मरा है? संसार में कईयों के पति मरे हैं। मैं कुछ नहीं सुनना चाहती। मैं समाज समूज कुछ नहीं जानती। फैसला तुम्हे करना है। तुम्हे मां चाहिए या फिर मैं? नहीं तो तलाक के पेपर तैयार करो पापा।”

“नहीं बेटी। कुछ दिन का समय इसे और देते हैं।” ईशा के पापा ने शराब का पैग लेते हुए कहा।
कुन्दन शाम को मां से सब सच सच कहता है।

तारा ने कुन्दन से कहा, ” बेटे तेरे पापा ने तो तुझे तभी कहा था कि यह लड़की कुछ ठीक नहीं है बेटा। कोई और लड़की देखते हैं। पर तेरी जिद्द के आगे हमारी एक न चली। अभी भी वक्त है बेटा। वे अगर तलाक मांग रहे हैं तो दे – दे तलाक। वह लड़की तुझे बर्बाद कर डालेगी।”

तारा के इतना कहते ही कुन्दन आग बबूला हो उठा, ” ठीक कहती है ईशा और उसके मम्मा-पापा। तेरे साथ रहना सचमुच ठीक नहीं है। पड़ी रह घर में अकेली। हम रह लेंगे क्वार्टर में। बड़ी आई तलाक दे – दे।”

दोनो पति – पत्नी क्वार्टर में रहने लगे। जितना कुन्दन महीने का कमाता, उससे तीन गुना खर्चे मैडम के थे। घर के काम काज को रखी नौकरानी पैसे न मिलने के कारण नौकरी छोड़ गई। सब काम कुन्दन को खुद करने पड़ते थे।

मैडम जी तो दिन रात व्यस्त ही रहती थी और नशे में चूर। बेटे की हालत देख कर नौकरानी को पैसे देना तारा ने चुपके से शुरू किए, ताकि बेटे पर बोझ न पड़े। कुन्दन पर बैंक का कर्ज भी बहुत हो गया था।

अब वह भी परेशान हो कर और ससुराल की संगत से शराब पीने लग गया था। एक दिन उसने दफ्तर से लौट कर मैडम को किसी गैर मर्द की बाहों में लिपटे देखा तो उससे रहा नहीं गया। उसने सासू मां और ससुर साहब से ईशा की करतूतों की शिकायत की।

उन्होंने उसे जबाव दिया,” तो क्या हुआ? यह तो आजकल आम बात है। हमारी बेटी है ही बहुत सुंदर दामाद जी। आ गया होगा किसी का दिल उस पर। तुम्हारा भी किसी और पर आ जाए तो उसमें क्या गलत है? इस बात पर ज्यादा बबाल करने की कोई जरूरत नहीं है।”

उधर बैक वालों की चिट्ठियों से कुन्दन अलग से परेशान था। कुन्दन को एक दिन दिमागी दौरा पड़ा। वह हस्पताल में कराह रहा था। तारा को नौकरानी ने खबर दी।तारा उसे घर ले आई और उस अपाहिज बुद्धि का इलाज भी करती रही और उसका कर्जा भी भरती गई।

उन बूढ़ी बाहों में अब और इतनी शेष ताकत नहीं थी कि वे इस बुढ़ापे में भी अपने बेटे को अपना पेट काट कर पालती। पर क्या करती? उसे यह सब मजबूरी में करना पड़ रहा था।

मैडम ईशा ने अपने माइके में उसी गैर मर्द के साथ डेरा जमा लिया था। एक दिन तारा उसे घर बुलाने गई तो उसने बेहूदा जवाब दिया, “क्या करूंगी तेरे अपाहिज बेटे के साथ रह कर?”
तारा रोते – रोते घर लौट आई।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

Conclusion:

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – माता-पिता सदैव ही अपने बच्चे/बच्चियों का भला ही चाहते हैं, उनका कहना जरूर माने, उनके अनुभव का कभी भी मजाक ना बनाये। जो आपके माता-पिता का सम्मान और सेवा नहीं कर सकती/सकता वो आपका सम्मान और सेवा भला क्या करेगी। इसलिए सदैव ही माता-पिता का सम्मान और सेवा करें, उनका कहना माने। कभी भी उनका साथ ना छोड़े, चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थिति क्यों ना आ जाये।

—————

यह लेख/लघु कथा (बदलता दौर।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख / लघु कथा सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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थोड़ी सी हिम्मत से फर्क बड़ा।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ थोड़ी सी हिम्मत से फर्क बड़ा। ϒ

बहुत समय पहले की बात है ….. एक चरवाहा था जिसके पास 10 भेड़े थीं। वह रोज उन्हें चराने ले जाता और शाम को बाड़े में डाल देता। सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक सुबह जब चरवाहा भेडें निकाल रहा था तब उसने देखा कि बाड़े से एक भेड़ गायब है। चरवाहा इधर-उधर देखने लगा, बाड़ा कहीं से टूटा नहीं था और कंटीले तारों की वजह से इस बात की भी कोई सम्भावना न थी कि बहार से कोई जंगली जानवर अन्दर आया हो और भेड़ उठाकर ले गया हो।

चरवाहा बाकी बची भेड़ों की तरफ घूमा और पुछा :- “क्या तुम लोगों को पता है कि यहाँ सेएक भेंड़ गायब कैसे हो गयी…क्या रात को यहाँ कुछ हुआ था?”

सभी भेड़ों ने ना में सर हिला दिया।

उस दिन भेड़ों के चराने के बाद चरवाहे ने हमेशा की तरह भेड़ों को बाड़े में डाल दिया। अगली सुबह जब वो आया तो उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयीं, आज भी एक भेंड़ गायब थी और अब सिर्फ आठ भेडें ही बची थीं।इस बार भी चरवाहे को कुछ समझ नहीं आया कि भेड़ कहाँ गायब हो गयी। बाकी बची भेड़ों से पूछने पर भी कुछ पता नहीं चला। ऐसा लगातार होने लगा और रोज रात में एक भेंड़ गायब हो जाती। फिर एक दिन ऐसा आया कि बाड़े में बस दो ही भेंड़े बची थीं।

चरवाहा भी बिलकुल निराश हो चुका था, मन ही मन वो इसे अपना दुर्भाग्य मान सब कुछ भगवान् पर छोड़ दिया था।आज भी वो उन दो भेड़ों के बाड़े में डालने के बाद मुड़ा। तभी पीछे से आवाज़ आई :-
“रुको-रुको मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ वर्ना ये भेड़िया आज रात मुझे भी मार डालेगा.!”
चरवाहा फ़ौरन पलटा और अपनी लाठी संभालते हुए बोला, “ भेड़िया ! कहाँ है भेड़िया.?”

भेड़ इशारा करते हुए बोली : “ये जो आपके सामने खड़ा है दरअसल भेड़ नहीं, भेड़ की खाल में भेड़िया है। जब पहली बार एक भेड़ गायब हुई थी तो मैं डर के मारे उस रात सोई नहीं थी। तब मैंने देखा कि आधी रात के बाद इसने अपनी खाल उतारी और बगल वाली भेड़ को मारकर खा गया!”

भेड़िये ने अपना राज खुलता देख वहां से भागना चाहा, लेकिन चरवाहा चौकन्ना था और लाठी से ताबड़तोड़ वार कर उसे वहीँ ढेर कर दिया।चरवाहा पूरी कहानी समझ चुका था और वह क्रोध से लाल हो उठा, उसने भेड़ से चीखते हुए पूछा – “जब तुम ये बात इतना पहले से जानती थीं तो मुझे बताया क्यों नहीं?”

भेड़ शर्मिंदा होते हुए बोली : “मैं उसके भयानक रूप को देख अन्दर से डरी हुई थी, मेरी सच बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई, मैंने सोचा कि शायद एक-दो भेड़ खाने के बाद ये अपने आप ही यहाँ से चला जाएगा पर बात बढ़ते-बढ़ते मेरी जान पर आ गयी और अब अपनी जान बचाने का मेरे पास एक ही चारा था- हिम्मत करके सच बोलना, इसलिए आज मैंने आपसे सब कुछ बता दिया!”

चरवाहा बोला : “तुमने ये कैसे सोच लिया कि एक-दो भेड़ों को मारने के बाद वो भेड़िया यहाँ से चला जायेगा…भेड़िया तो भेड़िया होता है…वो अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता ! जरा सोचो तुम्हारी चुप्पी ने कितने निर्दोष भेड़ो की जान ले ली। अगर तुमने पहले ही सच बोलने की हिम्मत दिखाई होती तो आज सब कुछ कितना अच्छा होता?”

दोस्तों, ज़िन्दगी में ऐसे कई मौके आते हैं जहाँ हमारी थोड़ी सी हिम्मत एक बड़ा फर्क डाल सकती है पर उस भेड़ की तरह हममें से ज्यादातर लोग तब तक चुप्पी मारकर बैठे रहते हैं जब तक मुसीबत अपने सर पे नहीं आ जाती। चलिए इस कहानी से प्रेरणा लेते हुए हम सही समय पर सच बोलने की हिम्मत दिखाएं और अपने देश को भ्रष्टाचार, आतंकवाद और बलात्कार जैसे भेड़ियों से मुक्त कराएं।

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Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
of,,  http://kmsraj51.com/

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

kmsraj51- C Y M T

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

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In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

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