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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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kavi hemraj thakur

आज न होगा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आज न होगा। ♦

आज न होगा कोई मंगल गान प्रिये,
विपदा में व्यथित जो समूची धरती है।
नफरत के शोलों से विदीर्ण हर वक्ष आज है,
मानवता तिल – तिल कर आज यहां मरती है।

दर्द का दरिया बह रहा है दिल में,
हृदय की जमीन हो गई अब परती है।
मानस कल्पना की लहरों से भी अब तो,
आक्रोश – कटाक्ष की आग ही झड़ती है।

अतृप्त लालसाओं ने जग को है घेरा,
स्वार्थ बेड़ियों ने रूह ही मानो जकड़ी है।
अब उठती ही कहां है कोमल भावनाएं मन में?
हृदय भाव की गति भौतिकता ने जो जकड़ी है।

होता न आदर आज गांव के गलियारों में,
शहरों में तो पहले से ही रही आपाधापी है।
आज न नातों – रिश्तों की कद्र है कहीं पर,
मानव रूप में पाश्विक सभ्यता देखो आती है।

गांव की गुड्डी को गभरू बहन यहां कहते थे,
आज नव जवान देहाती भी खुराफाती है।
महफूज कहां रही अब अस्मत बहू – बेटी की?
वह अपनों के ही हाथों आज लूटी जाती है।

पढ़े-लिखे आदिमानव हो चले हैं हम क्या?
अर्धनग्न घूमते हैं और मद्य – मांस ही खाते हैं।
पशु सी करते हैं करतूतें सब उन्मादी में,
फिर खुद को सभ्य – सुसंस्कृत मानव बताते हैं।

हाय – हाय री! फैशन लाचारी और मानव दुर्दशे,
सच में आज विद्रूपता है जीती और हम है हारे।
शहर – शहर और गांव – गांव में देखो आज तुम,
हर कोई फिरते हैं फैशन के पीछे मारे – मारे।

आज न होगा कोई मंगल गान प्रिये,
इन सब घटनाओं से भीतर भारी पीड़ा है।
मानव समाज में विकृतियों आते देख को,
सोचता हूं, यह विधि की कैसी क्रीड़ा है?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

Must Read : क्या लिव इन रिलेशनशिप ठीक है?

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — समस्त संसार का एक ही मूलमंत्र होना चाहिए, वो है जीवमात्र पर दया करना। यह दया भाव मनुष्य का मनुष्य के प्रति या मनुष्य का अन्य जीवों के प्रति होती है। जीवमात्र पर दया करना ही मानवता है। पृथ्वी पर मनुष्य सबसे उत्तम और सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। पर आजकल हो क्या रहा है? इसके बिलकुल उलट – सबकुछ हो रहा है आज का मानव शैतान व राक्षस हो गया है, शराब पीना, मांस खाना, बलात्कार करना, काम वासना व नशे में चूर होकर बड़े से बड़ा विकर्म करने से भी जरा भी नही डरता, क्यों ? पूर्ण रूप से शैतान व राक्षस बन गया है आज का मानव पढ़-लिखकर भी ऐसे कुकर्म करने से पहले एक बार भी नहीं सोचता की आने वाली पीढ़ी के लिए हम क्या सीख दे रहे हैं, हद हैं तेरी रे मानव क्या से क्या हो गया तू !

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यह कविता (आज न होगा।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2022-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता, हेमराज ठाकुर जी की कविताएं। Tagged With: hemraj thakur, hemraj thakur poems, Inspiring Poems in Hindi, kavi hemraj thakur, motivational poem in hindi, poem in hindi, Poem on Humanity in Hindi, आज न होगा, आज न होगा - हेमराज ठाकुर, प्रसिद्ध प्रेरक कविता, प्रेरणा देने वाली कविता, प्रेरणादायक हिंदी कविता संग्रह, मानवता पर कविता, मोटिवेशनल कविता हिंदी में, विद्यार्थियों के लिए प्रेरक कविता, हेमराज ठाकुर, हेमराज ठाकुर जी की कविताएं

पेड़ों का महत्व।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पेड़ों का महत्व। ♦

‘या’  पेड़ो की महता।

दूषित धारा को करने वालो, कुदरत का कहर तो बरपे गा।
दूसरों के दर्द से दर्द न होगा, निज पीड़ा से आंसू ढरके गा।

इन मौन गगन को चूमने वाले, पेड़ों की महता कुछ तो जानो।
जल – प्राण रगों में बहने वाले, इनकी देन है यह तो पहचानो।

माना कि लकड़ी जरूरत है, बेवजह से तो न इनको काटो।
काट काट कर इनको यारो, जीवन के बीच में खाई न पाटो।

इस धरती के सौंदर्य के खातिर, पेड़ – पौधे तुम खूब लगाओ।
मानव -मानव में चेतना भर दो, जल वायु का संकट हटाओ।

अवैध खनन और अंधा विकास भी, कहां खतरे से खाली है?
चुन – चुनकर लेगा बदला हमसे, बैठा अम्बर में वह माली है।

उसकी लाठी आवाज न करती, पर पीड़ा बहुत ही भरी है।
कई बार झेली ये पीड़ा सबने, हमको भूलने की बीमारी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जैसे हम खाने के बिना नहीं रह सकते। वैसे ही पेड़-पौधे के बिना भी हमारा जीवन अधूरा है। जैसे हमें जीवित रहने के लिए भोजन-पानी की आवश्यकता है वैसे ही प्रकृति को जिंदा रखने के लिए पेड़-पौधे, साफ-सफाई, प्रदूषण रहित धरा बनाने की आवश्यकता है। जलवायु प्रदूषण को रोकना होगा और वृक्षों की कटाई रोकनी होगी। कटाई की जगह वृक्षों को लगाना होगा जिससे कि प्राकृतिक आपदा से हम बच सकें। पर्यावरण को बचाना, प्रकृति को बचाना हमारे हाथ में है। आओ हमसब मिलकर ये संकल्प ले की हमसब खुद प्रत्येक दिन पेड़-पौधे लगाएंगे और सभी को पेड़-पौधे लगाने के लिए जागरूक करेंगे।

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यह कविता (पेड़ों का महत्व।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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हां मैं लिखता हूं!

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हां मैं लिखता हूं! ♦

मैं लिखता नहीं हूं इनाम के लिए,
मैं लिखता नहीं हूं पहचान के लिए,
मैं लिखता हूं प्यारे हिंदुस्तान के लिए।
हां मैं लिखता हूं!

मैं लिखता नहीं हूं छपने के लिए,
मैं लिखता नहीं हूं रटने के लिए,
मैं लिखता हूं तो बस सपने के लिए।
हां मैं लिखता हूं!

मैं लिखता नहीं हूं बताने के लिए,
मैं लिखता नहीं हूं जताने के लिए,
मैं लिखता हूं बस जमाने के लिए।
हां मैं लिखता हूं!

मैं लिखता नहीं हूं चाटुकारिता के लिए,
मैं लिखता नहीं हूं औपचारिकता के लिए,
मैं लिखता हूं तो बस साहित्यकारिता के लिए ।
हां मैं लिखता हूं!

मैं लिखता नहीं हूं सियासतदानों के लिए,
मैं लिखता नहीं हूं महज विद्वानों के लिए,
मैं लिखता हूं तो बस सिर्फ आवामों के लिए।
हां मैं लिखता हूं!

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — मैं किसी इनाम के लिए नहीं लिखता हूं, पहचान के लिए भी नहीं लिखता हूं। मैं लिखता हूं अपने प्यारे हिंदुस्तान के लिए व वर्तमान और आने वाली पीढ़ी के लिए। मैं छपने के लिए भी नहीं लिखता हूं और मैं लिखता नहीं हूं रटने के लिए, मैं लिखता हूं तो बस सपने के लिए। मैं बताने के लिए भी नहीं लिखता हूं, मैं लिखता नहीं हूं जताने के लिए, मैं लिखता हूं बस जमाने के लिए। मैं कभी भी लिखता नहीं हूं चाटुकारिता के लिए, मैं लिखता नहीं हूं औपचारिकता के लिए, मैं लिखता हूं तो बस साहित्यकारिता के लिए। मैं लिखता नहीं हूं सियासतदानों के लिए, मैं लिखता नहीं हूं महज विद्वानों के लिए, मैं लिखता हूं तो बस सिर्फ आवामों के लिए।

—————

यह कविता (हां मैं लिखता हूं!) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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बर्बाद बाबा का सपना कर दिया।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बर्बाद बाबा का सपना कर दिया। ♦

बर्बाद बाबा का सपना कर दिया,
कुछ खुदगर्ज मिजाजी लोगों ने।
आरक्षण का रबड़ कुछ यूं खेंचा,
कि भूले समता सत्ता के भोगों में।

जात पात का जो जहर था भारत में,
उसको और भी ज्यादा बढ़ावा दिया।
अमीर तो अमीर ही बनता गया बस,
दलित होने का महज दिखावा किया।

आरक्षण तो बाबा ने भारत की विधि में,
सिर्फ समता के खातिर ही अपनाया था।
आजादी के अगले दशक में बाबा जी ने,
इसे हटाने का विकल्प भी सुलझाया था।

सत्ता सागर में नहाने वालों ने ही तो इसे,
स्वार्थ हेतु दशक दर दशक बढ़ाया था।
नुकसान हुआ असली पिछड़े दलित को,
जिसको हर लाभ से वंचित करवाया था।

उच्च दलित की पीढ़ियां तो उठती ही गई,
निम्न दलित निरन्तर त्यों ही पीसता रहा।
आर्थिक विषमता की लौ में भूनता भारत,
जाति धर्म के झगड़ों में एडियां घिसता रहा।

कन्याकुमारी से ले कर काश्मीर तलक,
समूचे भारत में जाति धर्म का नाम न हो।
मानव धर्म का पालन करे राष्ट्र की जनता,
ऊंच नीच से ग्रसित शेष कोई भी ग्राम न हो।

शायद यही था सपना बाबा भीम का, पर,
उनके सपनों पर उड़ेली सियासी मिट्टी है।
रह गया दफन सपना संविधान में शायद,
जो कानूनों की किताब बाबा ने लिखी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — सत्ता के लोभ में नेताओं ने जात पात की रूढ़ भावना को अभी तक खींचते आ रहे है। जिस कारण अमीर और अमीर व गरीब और गरीब होता चला जा रहा हैं। इस जातिगत आरक्षण के कारण एकता और भाईचारा ख़त्म हो गया हैं। संविधान में तो इस भेद भाव को मिटाने की बात की गई है। जबकि संविधान में आरक्षण का प्रावधान मात्र 10 साल तक प्रभावी रखने के निर्देश संविधान निर्माताओं ने दिए थे। लेखक का मानना है कि संसार में मात्र दो ही जातियां हैं, एक स्त्री और दूसरी पुरुष। जो प्रकृति ने सृष्टि संचालन के उद्देश्य से अपना सहयोग करने के लिए बनाई है। बाकी सब मानव मस्तिष्क की खुराफत है।

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यह कविता (बर्बाद बाबा का सपना कर दिया।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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दुहागन रोटी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दुहागन रोटी। ♦

औरंगाबाद की पटरियों पर,
बिखरी रोटी आज शर्मिंदा है।
तार -तार है इज्जत उसकी,
खाने वाला ही न जिंदा है।

खून-पसीना बहा कर उसने,
मुश्किल से इसको पाया था।
क्षुधा नाशनी इस महासुंदरी से,
निवाला एक न खाया था।

पटरी पर थी बिखरी रोटी,
पटक रही थी अपने माथे।
जलमग्न नयन थे उस बेचारी के,
कहानी इश्क की बताते-बताते।

अपने बाबा को मेरे बारे,
गांव में सुना था उसने बतियाते।
फिदा हुआ था मुझ पर तब वह,
मेरे कदमों में बाबा थे शीश नमाते।

निकल पड़ा वह गांव छोड़कर,
शहर को मेरी तलाश में।
मैं पा के रहूंगा, उस महा प्रेयसी को,’
क्या, ताकत थी उसके विश्वास में?

वह ललचता रहा, मैं ललचाती रही,
वह भटकता गया, मैं भटकाती गई।
खूब थी खेली ठिठोली उससे,
मैं भी कितनी मदमाती रही?

मुझे पाने को देख सखी,
क्या-क्या पीड़ा न उसने झेली है?
शायद मेरे गुनाहों की सजा है,
आज पटरियों पर अकेली है।

न जाने क्यों सड़कों से डर कर,
पटरी पर वह आया था?
आज सरकार ने नचाया उसको,
जीवन भर मैंने नचाया था।

धूप – धार की होकर मैंने,
पीछा उससे करवाया था।
वह भी मोह में पड़कर मेरे,
गांव से शहर को आया था।

मुझे पाने की जद्दोजहद में,
उसने, खूब मेहनत से कमाया था।
एक से बढ़कर एक करतब,
दिखा कर, उसने मुझे रिझाया था।

मैं बंध चली थी उसके पल्लू में,
मेहनत का लोहा मुझसे मनवाया था।
चल दिए अब बिन भोगे मुझको,
क्यों मेरी जिंदगी में आया था?

बेवफा न कहना प्यारे मुझको,
मैंने कदम-कदम पर सताया था।
तेरे प्यार को हे प्रियतम प्यारे!
जी भर कर मैंने आजमाया था।

क्यों छोड़ दिया इसे हालत पर इसकी?
इसका जीवन क्या इतना सस्ता है?
वह रोटी है सिसक रही आज,
यह भी कैसी व्यवस्था है?

महबूब मेरे क्या मिलन हुआ यह?
देख रहा ये जमाना है।
किस्मत में मिलन था इतना ही शायद,
मौत तो महज एक बहाना है।

हो गई हूं अछूत सी अब मैं,
कोई मानुष न मुझको अब खाएगा।
कौन मिलेगा प्रीतम ऐसा?
जो तुझ सा मुझे कमाए गा।

तू जा प्यारे में जी लूंगी,
भूखा, चील-कौआ मुझे कोई नोचेगा।
है कौन सहारा, बेसहारा का अब?
जो मेरी इज्जत की इतनी सोचेगा।

आज मैं समझी प्रीतम-प्यारे,
सच्चा प्यार क्या होता है?
तू जिया मेरे लिए, मरा मेरे लिए,
मुझे पाने को हल तक जोता है।

बाकी तो खरीददार है सब,
चंद पैसा ही मोल मेरा होता है।
वे क्या जाने कीमत मेरी?
रोटी का मोल क्या होता है?

तेरी शहादत पर आज प्रिये,
मेरा जर्रा-जर्रा रोता है।
तेरा अरमान थी मैं, तेरा भगवान थी मैं,
मुझसे बढ़कर तेरा, और कोई न होता है।

खामोश है बिखरी रोटी बेचारी,
आंखों से अश्रुओं का सोता है।
किया प्रेम न जीवन में जिसने, वह क्या जाने?
मिलकर बिछड़ने का, दर्द क्या होता है?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — मैं रोटी हूं, हर किसी को मुझे देखकर बहुत ही खुशी होती है क्योंकि मैं हर किसी की भूख मिटा देती हूं। चाहे गरीब हो, चाहे अमीर हो, चाहे बच्चे हो, बूढ़े हो, नौजवान हो सभी को सदैव ही मेरी जरूरत होती है। मैं दूसरों के काम आती हूं हर किसी की मैं मदद करती हूं, भूखे बेसहारा लोगों के चेहरे पर पलभर में मुझे देखकर मुस्कान आ जाती है। मेरे लिए ही सब अपना घर बार छोड़कर गांव से शहर को आते है, लेकिन उन्हें कहाँ पता था की कोरोना रुपी राक्षस, असुर, दैत्य आएगा और हमें (मजदूरों) रुलाएगा। हमें क्या पता था की हम एक एक रोटी के लिए मोहताज हो जायेंगे।

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यह कविता (दुहागन रोटी।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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धरती पर ही।

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♦ धरती पर ही। ♦

धधक रही है विश्व धारा आज, ज्वालाओं सी बैर – विकारों से।
अराजकताएं है कहीं फैली तो, कहीं जल रही है भ्रष्टाचारों से।

अम्बर का सब पानी बुझा न सके, कहां ठंडक चांद सितारों से?
यह नस – नस में फैली नफरत कैसे, हो सकेगी दूर सरकारों से?

ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्यी आग से, हर देश है दुनियां में जुलस रहा।
कहीं जाति, धर्म के झगड़े हैं, कहीं आवाम सत्ता से उलझ रहा।

खतरे में आज है समूची दुनियां, न के महज एक मानव प्राणी।
आतंकवाद कहीं दमन की नीति, हर देश की देखो एक कहानी।

रोग – शोक और महामारी, भ्रष्टाचार से मानवता सब भूल गए।
नकली जीवन, झूठ फरेबी, सच्चे तो मशाल से ढूंढने को ही रहे।

भाई – भाई का बैरी बना है, बाप – बेटों में भी तो आज दरारें हैं।
बहनों के साथ भी निभती कहां? पति – पत्नी में भी तकरारें हैं।

अध्यात्म से होती दूर यह दुनियां, जल रही है दहकते अंगारों सी।
अध्यात्म की पावन जलधारा ही, धो सकेगी मैल ये विकारों की।

पर लोग कहां सुनते बात यहां अब, ज्ञान, ध्यान व संस्कारों की।
होड़ लगी है सब में तो बस, कैसे कृपा मैं पा सकूं सरकारों की।

धन से बड़ा तो कुछ नहीं लगता, आज दुनियां में देखो लोगों को।
लालसा बढ़ी कि, भोग ले धरती पर ही, स्वर्ग के सारे भोगों को।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से वर्तमान समय में धरती पर पर क्या – क्या हालात हो गए है, इंसानियत किस दिशा में जा रही है कुछ पता नही किसी को। वर्तमान समय में पृथ्वी पर अनियंत्रित बिखरे हालात का सुंदर मनोरम वर्णन किया है।

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यह कविता (धरती पर ही।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

 

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देहातन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ देहातन। ♦

वे गोबर से मटमैले हाथ, पसीने की बूंदों से तर वह चेहरा।
गौ सेवा में रत ओ री देहातन ! कितना सुन्दर रूप वह तेरा?

आठों याम तू लगी रहती है, गौ सेवा में ही चारा कभी पानी।
दूध पिलाते, घी खिलाते, तेरी यूं ही गुजर जाती है जिंदगानी।

बचपन – बुढ़ापा यूं ही गुजरे तेरा, तेरी यूं ही गुजरे ये जवानी।
शालीन, सभ्य ओ नारी रत्न तेरी! कौन समझेगा यह कहानी?

जो भी किया वह, दूसरों के लिए, किया तूने ओ महादानी!
देहात से शहर तक मेहर तेरी पर, किसी ने ये कब है मानी?

जब जूझती है नित नई उलझन से, लगती है झांसी की रानी ।
खेत खलिहानो में उगाती फसलें, खिलाती सबको है महारानी।

दिन व दिन की मेहनत के चलते, ढल जाती तेरी जवानी।
हाड़ मांस सब सुखा देती है तू, सुखा देती है चेहरे का पानी।

झुर्रियों से भरपूर तेरा चेहरा, बताता है मेहनत की कहानी।
बुढ़ापे का वह नूर तेरा, है तेरे मेहनतकश जीवन की निशानी।

वह सुख सन्तोष उन झुर्रियों से झरता, बस काया हुई पुरानी।
बूढ़ी धमनियों में अभी भी शेष है, लहू में वही स्फूर्ति रवानी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – गांव के पवित्र और शुद्ध वातावरण में सुन्दर जीवन यापन। आठों पहर तू लगी रहती है, गौ सेवा में ही चारा कभी पानी। दूध पिलाते, घी खिलाते, तेरी यूं ही गुजर जाती है जिंदगानी। झुर्रियों से भरपूर तेरा चेहरा, बताता है मेहनत की कहानी। बुढ़ापे का वह नूर तेरा, है तेरे मेहनतकश जीवन की निशानी।

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यह कविता (देहातन।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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संसार ही स्वर्ग बन जाता।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ संसार ही स्वर्ग बन जाता। ♦

काश! सासें बहुओं को बेटी ही मानती,
बहुएं सासों को मानने लग जाए माता।
क्या जरूरत थी तब भिस्त की चाह की?
फिर तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाता।

बाप – बेटे, भाइयों को पत्नियां न लड़ाए,
दोस्त सा व्यवहार करने लगे हर भ्राता।
घर की बहुएं – बेटियां बहनों सी रहे सब,
फिर तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाता।

बहुओं को न सताए हम और बेटे हमारे,
बेटियों को न सताए ससुराल – जामाता।
हर रिश्तों में प्यार ही प्यार फैल जाए तो,
फिर तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाता।

काश! पड़ोसी से कोई पड़ोसी न लड़ता,
ईर्ष्या, राग, द्वेष का भाव खत्म हो जाता।
मोह, ममता, नफरत की दीवारें गिर जाती,
फिर तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाता।

रहते न रोग – शोक, दम्भ, आधी और व्याधि,
न रहता झगड़े का हेतु जोरु, जमी और बुढ़ापा।
सबके घरों में रहती बराबर सी सुविधाएं तो,
फिर तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाता।

सर्पणी सा न लीलती निज जाए को जननी,
पिता पर नारी के झांसे में सुत को न भुलाता।
बहु – बेटे न ठुकराते अपने ही मां – बाप को तो,
फिर तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाता।

रंग भेद, जाति – धर्म के सब झगड़े ही मिट जाते,
आता न आजीवन किसी को इस जग में बुढ़ापा।
दया, करुणा, सहजता, सरलता सब में फैल जाती,
तो फिर तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाता।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – हर सास अपनी बहु को बेटी समझे और वैसा ही व्यवहार करें तथा हर बहु सास को माँ की तरह समझे और वैसा ही व्यवहार करें, तो यह घर संसार शांतिमय स्वर्ग जैसा बन जाये। बाप – बेटे, भाइयों को पत्नियां न लड़ाए। दोस्त सा व्यवहार करने लगे हर भ्राता। घर की बहुएं – बेटियां बहनों सी रहे सब। फिर तो यह संसार ही स्वर्ग बन जाता।

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यह कविता (संसार ही स्वर्ग बन जाता।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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त्रासदी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ त्रासदी। ♦

इस सदी की सुनकर त्रासदी,
नई नस्लें तो थरथर कांपेगी।
यह भी सच है, वे व्याधि की,
हर घटना का राज भी जांचेगी।

विश्व पटल पर जो है घटित हुआ आज,
कल को इतिहास वही तो बन जाएगा।
एक दूसरे देश का परदा फाश कर कर,
हर छुपाया राज भी तब सामने आएगा।

लोथ पे गिरती लोथों को देख देख,
मुलायम मोम सी जलती छाती है।
दारुण दंश देख दिल द्रवित न होवे,
वह इंसान नहीं खूनी खुराफाती है।

भव्य भवनों में ओ रहने वालो,
ये झुग्गियों के लोग भी अपने हैं।
जीने दो इत्मीनान से इनको भी,
इनके भी तो अपने कुछ सपने हैं।

जैविक युद्ध की सुगबुगाहट है या कि,
फिर कुदरत ने ही मचाई तबाही है?
शोध – चर्चाएं हैं विश्व में नित बड़ी बड़ी,
बन सकी न रोग की पक्की दवाई है।

पसीना चू – चू पड़ता है देखो तो,
भयभीत हो, होकर हर भालों से।
एक तो गुप्त यह व्याधि है व्यापी,
ऊपर से परेशानी दुगनी नकालों से।

श्वेत – ब्लैक और दो फंगस है आए अब,
कोरोना से कहां कोई कसर रही थी?
मानी कितनी वे बातें हमने अब तक, जो,
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमसे कही थी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – कोरोना काल के दौरान दुनिया भर में होने वाले उथल – पुथल, जान-माल की हानि को बखूबी दर्शाया है कविता के रूप में। विश्व पटल पर जो है घटित हुआ आज, कल को इतिहास वही तो बन जाएगा।। एक दूसरे देश का परदा फाश कर कर, हर छुपाया राज भी तब सामने आएगा।

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यह कविता (त्रासदी।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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