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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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You are here: Home / Archives for kavi satish shekhar srivastava parimal poems

kavi satish shekhar srivastava parimal poems

सारंग – सुमन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Sarang – Suman | सारंग – सुमन।

हे अचले! तेरे तारक सारंग,
ये सृष्टि के धवल मुक्ताहार।
दीप बागों के उज्जवल धवल,
जिससे है वन जुगनू सुकुमार।

मेरी कोमल कल्पना के तार,
तरंगित उत्साहित उद्भ्रांत।
हृदय में हिल्लोर करते रहते,
भावों के कोमल-कोमल कान्त।

नालों-नालों की ज्योति,
जगमग उर्मि पसार।
ज्योतित कर रहे आज,
किसलिए कालिमा का संसार।

ये परियों का सुंदर-सा देश,
मृदुहासों का मृदुलमय स्थान।
दिव्य ज्योत्स्ना में घुल-घुलकर,
दिखता जैसे हो अम्लान।

मोहक तरंगिणी ने धो-धो कर,
हिम उज्जवल कर लिया परिधान।
आओ चलें प्रकाशित वन में,
खोजे ज्योतिरिंगण वो अनजान।

मलय समीरों के मृदुल झोंकों में,
कतिपय कंपित डोल-डोल।
अंतर्मन में क्या सोच रहा,
अनबोले रह जाते मेरे बोल।

स्वयं के ‘परिमल’ से सुशोभित,
निज की अपनी ज्योति द्युतिमान।
मुग्धा-से अपनी ही छवि पर,
निहार पड़े स्रष्टा छविमान।

खुद की मंजुलता पर अचम्भित,
देखे विस्मित आँखें फाड़।
खिलखिलाते फूल-पल्लवों को देख,
आत्मीयता से नयनों को काढ़।

सृजित हो रहे स्वर्ग भूतल पर,
लुटा रहे उन्मुक्त विलास।
अग्नि की सुंदरता का सौरभ,
सुमन-सारंग का उल्लास।

कवि का स्वप्न सुनहला,
देखे नयन ये बार-बार।
हर पंक्ति-पंक्ति में रच डाली,
नयनों की देखी साभार।

अनन्त के क्षुद्र तारे तो दूर,
उपलब्धि के गहरे-गहरे पात।
देव नहीं हम मनुजों की,
प्रियतम है अवनी का प्रान्त।

बीते जीवन की वेदनाएं,
अम्बा की चिन्ता क्लेश।
वादी में सृजित किया तूने,
मंजुल मनोहर आकर्षक देश।

स्वागत करो अरुणोदय का,
स्वर्णिम शीशों पर पुष्कर विहार।
विश्राम करे धवल तमस्विनी,
आँचल में सोते हैं सुकुमार।

कितनी मादकता है बसी यहां,
कुंडा-कुंडा है छन्दों का आधार।
पुष्पों के पल्लव-पल्लव में बसा,
सुरभि सौरभ सुगंध का भार।

विश्व के अकथ आघातों से,
जीर्ण-शीर्ण हुआ मेरा आकार।
अश्रु दर्द व्यथा वेदना से,
परिपूरित है मेरा जीवन आधार।

सूख चुका है कब से,
मेरे कलियों का जीवात्म।
हृदय की वेदना कहती है,
बचा विश्व में बस पयाम।

इक-इक पंक्ति से बन गई,
मेरी कविता का संसार।
लेखनी को घिस-घिस कर,
उद्धृत किया अपना संस्कार।

आशा के संकेतों पर घूमा,
सृष्टि के कोने-कोने हाथ पसार।
पर अंजलि में दी ‘दुर्गा’ ने,
आत्म तृप्ति का उपहार।

छोटे से जीवन के इस क्षण में,
भरा अंतस् कण-कण में हाहाकार।
भरत-भूमि तेरी सुंदरता पे,
खड़ा सारंग-सुमन तेरे द्वार।

इक पल के मधुमय उत्सव में,
भूल सकूँ अपनी वेदना हार।
ऐसी हँसी दे दो दाता मुझको,
नित दे सकूँ सबको हँसी बेसुमार।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (सारंग – सुमन।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बदरा को आमंत्रण।

Kmsraj51 की कलम से…..

Invitation To Clouds | बदरा को आमंत्रण।

दे दी हमने झुके विकल नैनों से,
आमंत्रण घनेरे जल भरे बदरा को।
बढ़े कदमों को रोकने लगे,
धूमिल अर्दित विगत जीवन दर्पण में।

साँझवाती से अँगना में,
सुहागन बनी रात घनेरी।
प्राण – प्रिये को सम्मुख पाकर,
छलक पड़ी निर्मोही आँखों में।

नम पलकों पर आकर बिखर गई,
न जाने कितनी झूठी कसमें।
सिमट गई शर्वरी के पहरों से,
मीलों लम्बी दूरी जुग सहमों में।

पल भर को भूल गईं साँसें भी,
पैरों में बँधी इस मजबूरी को।
बहका जीवन लगा सिसकने,
सहसा आकर गुम यादों में।

मौन समर्पण की ज्वाला में,
द्रवित हुई कामनाशक्ति हमारे।
उद्बोधित उर के भाव बावरे,
पी लूँ पहले अपने अश्रु हमारे।

भुलाने को आये हैं ये सारे,
धर नये रूप चितवन के उसने।
आते – जाते हर इक मोड़ पर,
निज चित्त विश्वास को खोए हमने।

राहों पे लगते हैं इसलिए,
अपने भी साये पराये से।
और जलता है मेरा तन-मन,
पाकर आमंत्रण नयनों से।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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छुअन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Touch | छुअन।

पिघलती नज़रों की तपन,
वो कोमल कोमलांगी की छुअन,
बिन परस बेचैन है मन।

आहन के पंख हुये धूमिल,
निशा ने चादर तामस फैलायी।
रजनी लगी करवट बदलने,
तड़पते हृदय में है जलन।

ढूँढते हैं उन्हें प्यासे नयन,
पूँछते रहते हैं पता बहारे चमन।
बहके हिंडोलों के सताये,
रगों में है मीठी-मीठी दुखन।

वह बिछड़ते पहर याद आये,
विवश अनबोले अकुलाते से।
आँखें अलसाई-अलसाई सी,
बाजुओं में मेरी है सूना गगन।

दिये लौ की लगी थरथराने,
निंद्रा में हैं नयन आसमां ताके।
बुझ रहे जगमगाते तारे,
आसक्त है मस्ती में भुवन,
वो कोमल कोमलांगी की छुअन।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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व्यवहार नैनों का।

Kmsraj51 की कलम से…..

Behavior Of Eyes | व्यवहार नैनों का।

चंचल चितवन का निमंत्रण,
क्यूँ तुमने स्वीकार किया।
भुजपाशों में सौंपकर,
क्यूँ तुमने इतने अधिकार दिये।

भरा – पुरा संसार दान कर दूँ,
अगर साथ तुम्हारा मिल जाए।
स्वीकार करो मुझको आने दो,
सभी ताने सहुँगी गर मिल जाए।
इस राह साथ नहीं आना था,
क्यूँ तुमने मुझसे वचन लिये।

अर्पण कर चुकी तन-मन अपना,
चाहो तो प्राणों को भी ले लेना।
जन्म – जन्मांतर तक बनूँ तुम्हारी,
बस इतना अधिकार मुझे दे देना।
अधीर पिपासा को बहलाने को,
क्यूँ मैनें श्रृंगार किये।

तुम मेरे दिल की धड़कन हो,
और मैं तुम्हारी चौंध नयन की।
हृदय स्थल पर डाली थी तुमने,
मुक्तामणि अँखियों से पावन की।
धवल चंद्रिका के आँचर में,
रम्य – मनोहर विनय लिये।

है तो चोट हृदय के पर वो दुखते,
सुधि – दाह से अश्रु मैं पी लूँगा।
सृजन करूँगा रचना अपनी,
भव में तुम्हें मैं अमर कर दूँगा।
स्वयं ही सारे वचन निभाऊँगा,
जिसे हम बारंबार लिये।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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रिमझिम बरसता सावन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Rainy Sawan | रिमझिम बरसता सावन।

घिर – घिर आये काले – काले बदरा,
नयनों में उमड़ – घुमड़ रह-रह बरसाते होगें।

चली गई अँगना किसी की,
मस्ती भर-भरकर इठलाती।
सूने मेरे आँगन में आकर,
लाकर सुधि नीर बरसाती।

जगी उनींदी पलकों पर,
रह-रहकर बदली जाती होगी।
चातकनंदन की बौछारों में,
हम विलग प्रेमी फिर रोयेगें।

झिलमिल – झिलमिल जले जुगनूँ,
मन की दहक फिर भड़कायेगें।
यादों की शम्पाओं से कर गर्जन-तर्जन,
रह – रहकर हृदय को डरायेगें।

निभृत सन्नाटों में आ – आकर,
विकलता उर के बढ़ायेंगे।
बिछुड़न की बेदी पर लाकर,
उर दाह घाव – शूल से धोयेगें।

कालिमा निशिता से पूँछ रही,
मेघ क्यूँ उमड़े कजरारे नयनों में।
किसने कब लूट लिये सपने,
भर दिये अँगारे प्राणों में।

भीष्म प्रश्न सुलगते कानों में,
हृदय व्यथित पड़ा किनारों में।
प्राणों में भर दी बिछुड़न,
दाग हृदय के अब शूल चुभोयेगें।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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मुलाकात।

Kmsraj51 की कलम से…..

Mulaakat | मुलाकात।

एकटक निहारता शान्त निरव तन से,
गूँजती गर्जन रह-रहकर निभृत संसार में।
अचानक उठती लहरों ने आकर,
चरण-रज लेकर चले गये हलचल मन आगार में,
दे-देकर हँसते हुए फिर खुद में समा गये।

कल्लोल कर आये अडिग पड़े कदमों तले,
मेरे हस्त-कमल में धरा गये।
रत्न कहें या प्रीति कहें सागर की फुलझड़ियां,
अपनी कोख से निकाल मुझ निर्बुद्ध को दे,
कोलाहल करते समेट आँचल चले गये।

था मैं चमत्कृत-सा ये मुझे क्या थमा गये,
कौतुहल भरा अंतस् में बार-बार पंखुड़ी रद की।
बुदबुदाये आखिर अधिरथी क्या दे गये,
इस बेगानी दुनियां में छली पग-पग पर मिले,
बेचैन हृदय को शक्ति स्वरूप क्या दे गये।

इस पहली मुलाकात में सिंधु-सुदामन ने,
दृढ़ निश्चय का रूप-संयोजन बता गये।
अकेला कलयुग में तू ही नहीं पगले,
विराट् मैं भी; नील-झील भी तन्हां है,
मुझ जैसा तू भी बन; छोड़ निशान चले गये।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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ये शिरोमणि सिंहासन है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Ye Shiromani Singhasan Hai | ये शिरोमणि सिंहासन है।

ये शिरोमणि सिंहासन है।

यह वीरों का आसन है,
न किसी का इस पर स्वशासन है।
रहा बहुबल नित पद्मासन है,
यह शिरोमणि सिंहासन है।

यह विशिष्ट महाराजों से,
संग्रहित हैं राज दरबारों से।
इनके चरण-रज पोंछे जाते,
नृपों के शीश मुकुटों से।

जिसकी रक्षा के लिये हुई,
समर्पित कई बलिदानी है।
राणा तू कर रक्षा इसकी,
यह शिरोमणि सिंहासन है।

खनकती उन तलवारों की,
कौतुक होती थी कटारों से।
सारंगों की धारों से देखते ही,
छिन्न-भिन्न हो जाते अंगों से।

हल्दीघाटी के अरावली पथ पर,
सनी माटी वीर मेवाड़ी सानों से।
जननी जन्मभूमि का अर्चन करते,
जीवन के उत्थान फुलझड़ियों से।

न जाने कितनी बार चढ़ी घाटी में,
भीषण भैरवी जवानी पर।
कण-कण के उर में बसा राणा तू ,
कर रक्षा यह शिरोमणि सिंहासन है।

भीलों ने अभी रण-हुंकार भरी है,
हाथों में कटे खड्ग औ शीश लिए।
उर-झंझाओं में ललकार भरी है,
भोले-भाले भील लड़ने की तैयारी में।

गिरिराज के ऊँचे शिखरों पर,
विटपों के फूल-पत्ते अन्न बने।
रक्षक शिखर-शैल बने थे,
राणा के तुंग आस्थान-मंडल बने।

तुलजा भवानी की सौगंध ले,
शीश पग कफ़न बाँध चले।
रण-बाँकुरे मैदान चले,
करने को बलिदान चले।

खमनोर के दर्रों में,
रक्ततलाई में बहते रक्तों ने…
पुकार लगाई धरती ने रक्षा कर राणा तू ,
ये शिरोमणि सिंहासन है।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (ये शिरोमणि सिंहासन है।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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