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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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You are here: Home / Archives for kavi satish shekhar srivastava parimal

kavi satish shekhar srivastava parimal

हो जाओ तैयार।

Kmsraj51 की कलम से…..

Ho Jao Taiyaar – हो जाओ तैयार।

दे रहा आवाज समय हमको, हो जाओ तैयार,
जीवन का राज यही है, हो जाओ तैयार।
चलो रे साथी चलो रे मेरे यार…….

मिटा दो दिल की रंजिशें,
छुआ-छूत को दूर करो।
देश से प्रेम अगर है तो जाओ तैयार,
कदम-कदम से-ऽऽ दिल को मिला लो।
लड़ने को हो तैयार, हो जाओ तैयार,
चलो रे साथी, चलो रे मेरे यार…….

जैसे मिले-ऽऽ सुर से ताल,
तालों से मिले सुर और राग।
घुल-मिल जाओ राग बनाओ,
सरगम के शोलों से आग बनाओ।
आगों से चराग जलाओ-ऽऽ
त्यागो-ऽऽ दिल के भेद, हो जाओ तैयार।
चलो रे साथी चलो रे मेरे यार…….

ये भूख हमें क्या जलायेगी,
जल – जल कर खुद मर जायेगी।
दीवाने हैं हम वतन के,
बाँधे हैं हम कफन सर पे।
हँसकर शूली चढ़ जायेगे,
झूलकर डोरी पर कह जायेगें।
आजाद वतन के हम परिंदें,
परवाज हम कर जायेंगे।
हँस – हँसकर खेल जायेगें,
कहते-कहते हम जायेगें, हो जाओ तैयार।
चलो रे साथी, चलो रे मेरे यार…….

ये युद्ध की अब बारी है,
सरहद पर मिटने की यारी है।
अपने लहू से लिख जायेगें,
जान निछावर कर जायेगें।
शोर – शराबे से हम नहीं डरते,
किसी की धमकी से नहीं झुकते।
तिरंगे की शान बढ़ायेगें,
वतन की आन बनायेगें।
कहते कहते कह जायेगें,
चलो रे साथी, चलो रे मेरे यार…….

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला – सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (हो जाओ तैयार।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

———– © Best of Luck ®———–

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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इक प्रयास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ इक प्रयास। ♦

इक प्रयास। / पार्ट – 3

इक प्रयास (एक प्रयास)।

कभी नहीं पाला मैनें, ‘परिमल’ ऐसा रोग,
दिल्लगी सबके साथ है, नेकी अपने लोग।

कटोरा जिसके हाथ में, घर-घर माँगे खाय,
जिसके हाथ कट गये, वे कहाँ हाथ फैलाय।

माने तो सब बावले, आशिक मजनूं हीर,
उन्हें पगला न कहिये, जाने उनके हृदय पीर।

आगार अपना तो भर लिया, लंबा मारा हात,
कहता सबसे फिरे, धरम करम की बात।

मैं थककर चूर हुआ, तू भी थककर चूर,
तेरा दर तो आ गया, मेरी मंजिल अभी दूर।

भव की चिंता वो करे, जिसको जग से प्यार,
मैं बेजार हो चुका सबसे, सब मुझसे हैं बेज़ार।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (इक प्रयास। / पार्ट – 3) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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इक प्रयास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ इक प्रयास। ♦

इक प्रयास। / पार्ट – 2

इक प्रयास (एक प्रयास)।

छैल छबीली जिसके बाँहों में, सफेद झूठ उसके बोल,
कुछ क्षण का साथ है, और कुछ क्षण का मेल।

गहराई थी अतल की, वितल था दो मील,
बादल उसे पी गया, देखती रह गई झील।

जन्मों-जन्म प्यासी रही, घट-घट पिलाया नीर,
‘परिमल’ ऐसा दान तो, नदिया दे तो क्षीर।

बंदूकों के नोक पर, मचाये कौन शोर,
गली-गली में पहरेदार हैं, घर को लूटे घर के चोर।

बागों में आई नहीं, बहारों की बयार रास,
उपवन में बस गई, फूल-पंखुड़ियों की बास।

सीमा को छू न पाया, दानवीरों का दान,
भूखों को ले गया घर, इक नंगा-भूखा इंसान।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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इक प्रयास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ इक प्रयास। ♦

इक प्रयास। / पार्ट – 1

इक प्रयास (एक प्रयास)।

हममें है सृजनकार भी, हुए कहीं-कहीं लाचार,
बोलना तो आसान है, खामोश रहना दुश्वार।

‘परिमल’ चंड शीत का, खुश्क है इसका इतिहास,
अपगा मेरे आगार की, कलकल करती हर मास।

प्यारे-प्यारे लोग हैं, प्यारा-प्यारा सा संग,
चंपई जैसा रंग है, पंखुड़ियों जैसा अंग।

दाता की देन है, ये उसका नहीं जवाब,
पवन जैसी नींद है, झंझा जैसे ख्वाब।

जब महका उसका तन, आया अनजाना ख़याल,
नागिन जैसी चाल में, बजते हैं कई सुर-ताल।

सावन की बरसात है, रिमझिम सा अहसान,
सतरंगी को मिल गई, इंद्रधनुषी सी मुस्कान।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (इक प्रयास। / पार्ट – 1) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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मैं तो बस इक बूँद हूँ।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मैं तो बस इक बूँद हूँ। ♦

छलके हृदय में अमृत कलश,
अंत: करण में बहता गरल है।
मैं तो बस इक बूँद हूँ जग में,
क्षुद्र बस इस भव समुद्र का।

देखता मुख धवल पूरणमासी का,
उल्लासित हो उठी उमंगें।
उछली आतुर हो नीलगगन तक,
मधुर मिलन को तरल तरंगें।
जन्मों – जन्म की पिपासा लिये हूँ,
तृष्णा जीवन भर का।

अश्रुकण – सा मेरा जीवन सारा,
भरा खारापन इसमें इसलिये है।
पीकर मैंने कई अग्नि-शिखायें,
भू – धात्री पर जीवन दिये हैं।
अखिल सृष्टि को द्रवित पाशों से,
दिये अनुपम मणि सौंदर्य का।

जीवन लहरों में भरा कोलाहल है,
तलहटी पर मंडलाकार भँवर चलते।
डूबते उतराते रहते हैं इसमें,
हृदय में अनगिनत सपने पलते रहते।
हमनें व्यथा व्यक्त की हर पल,
गर्जन – तर्जन कर भूमण्डल का।

युग – युगान्तों के नवीन संवेदनायें,
चुभते रहे कंटक आँचल में।
अनन्त्य महाविल के इस छाया में,
सजीले रेखाओं के आलेख्य सिमटने में।
सौंदर्यता तो नश्वर है, रहा है कौन अनश्वर सृष्टि का।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (मैं तो बस इक बूँद हूँ।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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नया सवेरा होने वाला।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ नया सवेरा होने वाला। ♦

पहल दिवा से पहले घनघोर अँधेरे घेरे,
शीतल किरणें ले आँखें अपनी खोले।
दूर क्षितिज की धुँधलाहट में,
अब कालरात्रि जाने वाली है।
नयन खोलो कलरव गान पंछियों के,
तालों से नया सवेरा होने वाला है।

इक – इक कर बुझते जाते दीपक,
झिलमिल – झिलमिल करते तारे।
अंतिम साँस लेने लगे हैं अँधियारे,
कोलाहल करते पंख – पखेरू सारे।
ज्योति जुगनुओं की जंगल में,
सम्भवत: अब सोने वाली है।

तपे मरुस्थल जितना दिनभर,
उतनी ही शीतल करे यामा निर्मल।
गझिन कालिमा के आँचल में,
उझाँकती अरुणा उज्जवल।
विपुला – वृजन और अर्णव को,
स्वर्णिम किरण धोने वाली है।

दुर्गम औंड़ा सघन सिंधु लहरों में,
उतर गहराई में मिलते मोती।
घने श्यामा के आलिंगन में,
कहीं छुपी रहती जीवन ज्योति।
घनघोर अमा की काली-काली रात,
दीप्ति – प्रकाश देने वाली है।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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बेबस हारी कामनायें।

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♦ बेबस हारी कामनायें। ♦

रात निगाहों में लगी ताकने,
बेबस हारी कामनायें।
आसमानों तक उड़ने वाले,
पंख-पंछियों के कट जायें।

गडमड केश सुलझाने में,
बीत गये बहारों के मौसम।
आतप उतरती रही प्राणों में,
भुलाते रहे प्रारब्ध निर्मम।
शिशिर के पीले पातों से,
जीर्ण – शीर्ण बदन कुम्हलायें।

दूर – दूर तक राहों में छितराये,
उष्णित दोपहर के सन्नाटे।
सुकोमल बिछावन पर चुभते,
क्लांतित उर में पैने काँटे।
सूखे रेगिस्तान के आँचल में,
कभी न उमड़ती गझिन घटायें।

आसक्त अभाषित अभिलाषा,
वीरानी आँखों से रो लेती है।
यामिका के निर्जन प्रहरों में,
बंद पलकों को भिगो लेती है।
धौल आलोक के चापों में,
नमित अँखियों को हम छुपायें।

वैरागन बन गई ज्योत्स्ना,
रह गई स्वप्निल आस प्यासी।
अबोल शब्दों में बातें करती,
दुर्दुम निशि से द्रवित उदासी।
धूमिल सिंधु भरी जल से,
इसमें डूब मरी सारी तृष्णायें।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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कोमल कँवल।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ कोमल कँवल। ♦

काव्य : इक नजर।

कुसुमित हुई कँवल जब रश्मि पड़ी केश की,
खिल – खिल गई पंखुड़ी उस घड़ी पड़ी जब।

रचती डली पर डली में स्वच्छ सुथरी-सुथरी,
बड़े – बड़े पल्लव कोमल वो भी भरे – भरे।

सुवासमयी सुगंध से गले – गले तक सँवरे,
तिलस्म की शंस में जैसे आँखें खुली – खुली।

सितारों में अपने जीवन की मालिकाओं के,
हार बनाये उपवन में सुघड़ – सुघड़।

सुमन मयूख के बदन पर बिखरी पड़ी,
यौवन की मदमाती रसभरी अमर कड़ी।

वियोग से भरी चितवन सारी,
चिन्मय दु:खद् मधुर भास कांति निपात।

शीर्ण हृदय अलक्ष्य रचन,
खुली आँखें हैं नयननीर भरी बड़ी-बड़ी।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (कोमल कँवल।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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राखी-साखी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राखी-साखी। ♦

काव्य : अनुराग उल्लास।

आती है अब तो सज कर बाजार में राखी,
सजकर बड़े प्रीति से बुलाती है मन साखी।
सुनहली पीली लाल बैंगनी अनार सी राखी,
रेवती रोहिणी की बनी अनुपम अनोखी है राखी,
सलोनी सुंदर-सुंदर-सी अनूठी मनोरम है राखी।

उज्जवलित है, कुसुमाकर हेमा और निहार भी,
इतराती मुस्कुराती जाती मुक्तामणि और रेशम भी।
खेल तमाशा कोलाहल कलरव में हर्षित होकर,
वेदना व्यथा पीड़ा को भुला दुआ छागे का देखती,
इंदुरत्नों में पिरोयी प्रीति के तार की राखी।

अनुराग से भरी सावन की पूर्ण-करी ये पावन,
इंदिरा के बहार के कर सजाने ढूंढती फिरती साखी।
घूम-घूम फिरे बाजार-बाजार खोजे नयन बार-बार,
ढूढ़े नजर हर तार के बाजार सुनहरी पीली संसार,
बांधे भैया के हाथों ममता दुलार राखी।

हुई है शोभित सुंदरता और भरपूर हो राखी में,
किन्तु तुमसे अब चैतन्य है कुसुम फूले वो कुछ राखी।
अनुरागी बबूले देख ललिता लगी चुनने तिनके,
सजी हाथों में मेंहदी ने अँगुलियों से नाखूनों तक,
फुलवारी उपवन की बगिया हरियाली की राखी।

अंदाज़ से हाथ उठने में फूल राखी के जो हिलते हैं,
देखने वालों के उर में न जाने कितने फूल खिलते हैं।
यह पहुँचे कहाँ ये कोमल रंग कहाँ मिलते हैं,
सावन की साख पर चमन के हर्ष फूल खिलते हैं,
सद्गुण है चंचल सुमन के कपोल से हैं राखी।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के पवित्र प्यार का प्रतिक है, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है। रक्षा बंधन पर बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसके दीर्घायु व सुखी जीवन की प्रार्थना करती है। इसके साथ ही बहन अपने भाई से अपनी सुरक्षा का वचन लेती है, की जीवन में जब भी उस पर कोई मुसीबत आएगा उसका भाई उसकी मदद के लिए आ जायेगा। कृष्ण ने फर्ज निभाया भाई का, द्रोपदी बहन की लाज बचाने को। राखी की शक्ति देखो, कृष्ण दौड़े, दुष्टों को मजा चखाने को। रक्षाबंधन हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत समेत अन्य देशों में भी मनाया जाता है।

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यह कविता (राखी-साखी।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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रक्षा सूत्रों का।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ रक्षा सूत्रों का। ♦

काव्य : हिंदुत्व की राखी।

संसर्ग उर हिय कुसुमित सुमन-सुमन,
तत्वज्ञ आलोक विवुध अंतस् रहे।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।

स्कन्ध अनुगत नव्य आलय में,
स्तुत्य-प्रशस्त सम्पूर्ण समस्त जगत रहे।
इसके निमित्त ढलते चलते हम,
स्वस्ति अभिप्रणयन अंत:करण रहे।

ममतामयी दुर्लभ प्रवाहमयी इस माटी की,
वेदित्व मधु पा सब लीन रहे।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।

सुगमता के लिये ऐसा करें साधन,
विपत्ति में भी सदैव तत्पर बने।
लक्षित अंतस् साधना बने अनुष्ठान हमारी,
उपासक सेवक बन चले गिरि शेखर बने।

आत्म-अभिमान में भ्रमण करे,
डोले उसे देखे सदा ये संसार।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।

नव्य-नूतन मंगल कल्याण बदलाव को,
अंत:पुर से हो सबको स्वीकार।
कैसी भी हो कठिन चुनौती या ललकार,
आर्यधर्म रहे विश्वजनीय नेत्री अपना संस्कार।

वह सुसुप्त है जिनके मन में राष्ट्रधर्म प्यार नहीं,
जो रहे क्रियाशील वो सब करे वैभव-वंदन।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।

अटल निश्चय है हमारा,
उद्देश्य निमित्त पथ हम न छोड़ेगें।
इस नूतन युग के हम महीपाल,
आशुतोष उमेश भी साथ निभाऐगें।

आओ मिलकर बाँधें सूत्र राखी का हम,
प्रकृति के इस कर कमलों में।
शुभ मंगलमय हो राष्ट्र हमारा,
दिन-रात इसी में लगे रहें।

संसर्ग उर हिय कुसुमित सुमन-सुमन,
तत्वज्ञ आलोक विवुध अंतस् रहे।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — वह सुसुप्त है जिनके मन में राष्ट्रधर्म प्यार नहीं, जो रहे क्रियाशील वो सब करे वैभव-वंदन। बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे, जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे। रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के पवित्र प्यार का प्रतिक है, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है। रक्षा बंधन पर बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसके दीर्घायु व सुखी जीवन की प्रार्थना करती है। इसके साथ ही बहन अपने भाई से अपनी सुरक्षा का वचन लेती है, की जीवन में जब भी उस पर कोई मुसीबत आएगा उसका भाई उसकी मदद के लिए आ जायेगा। कृष्ण ने फर्ज निभाया भाई का, द्रोपदी बहन की लाज बचाने को। राखी की शक्ति देखो, कृष्ण दौड़े, दुष्टों को मजा चखाने को। रक्षाबंधन हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत समेत अन्य देशों में भी मनाया जाता है।

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