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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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kavita in hindi

यौवन किसको कहते हैं?

Kmsraj51 की कलम से…..

Yauvan Kisko Kahte Hain? | यौवन किसको कहते हैं?

यौवन किसको कहते हैं…?
सुरम्य पूरन की रात में,
उडुओं की बारात में,
हमने पूँछा चंदा की चाँदनी से,
यौवन किसको कहते हैं…?

हँस के बोली वह,
उर में पीड़ा के भाव हो।
जिंदगी जीने की हँसकर चाह हो,
मस्तानी चाल हो।

अभिमान का मान हो,
दु:ख-सुख दोनों से प्यार हो।
संघर्ष जीवन का हार हो,
दे जो जग उसे लेने को तैयार हो,
यौवन उसको कहते हैं जो संघर्षों में रहते हैं।

सुरम्य पर्वतों की वादी मे,
कलकल कर जो बहता है।
हमने पूँछा उन सरिता स्रोतों से,
यौवन किसको कहते हैं…?

हँसकर बोली झरने ने,
कोलाहल हो मन में भरा आह्लाद हो।
उमंग-तरंग से भरी जवानी हो,
चाहे जीवन पानी हो।

चाहे कितने पथ पर आये,
अचल अटल इरादे का फानी हो।
अड़चनों को पल में हटा दे,
तूफानों से जो लड़कर जाये,
यौवन उसको कहते हैं जो संघर्षों में रहते हैं।

मृदुल चलती बयारों को,
बसंत के श्रृंगारों से।
हमने पूँछा मलय समीरों से,
यौवन किसको कहते हैं…?

हँसकर बोली हवाओं ने,
जिस पर कहीं न प्रतिबंध हो।
आती जाती घटाओं में,
बादलों की अठखेली में।

जीवन की कामनाओं में,
प्यासी-प्यासी क्षुधाऐं हो।
विटपों की मस्ती में,
कलरव करते विहंगों की।

पर्वतों की ऊँचाईयों में,
चीड़ों देवदारों की हस्ती में।
मलय समीरों के गीतों में,
सरगम खिल-खिल जायें,
यौवन उसको कहते हैं प्रीति में मिल-जुलकर रहते हैं।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (यौवन किसको कहते हैं?) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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हे नारी तू।

Kmsraj51 की कलम से…..

Hey Nari Tu | हे नारी तू।

हे! नारी तू उठ जा,
विजयपथ पर।
जीत का परचम लहरा जा,
तू मत डर।
आंधी की तरह बढ़ आगे,
डटी रहो,
जीवन रथ पर।

अरमानों को मत दबा,
रख बाजुओं पर भार अपना।
चल पड़, निकल ले,
उठा ले खुद को।
राहों में मिलेंगे,
टेढ़े- मेढ़े रास्ते।
मत डरना, मत रुकना,
डटी रहना पथ पर।

मंजिल की कुछ दूरी पर,
होगी तू डांवाडोल जरूर।
फिर ऊर्जा से भर जाना,
रास्ता अब नजदीक है।
पथ पर पहुंचेगी,
ठोकरे होंगी हजारों सीमा।
ठोकरों को मार ठोकर,
बढ़ जाना विजय की ओर।

परचम जीत का लहरा देना,
मर्दानी तू , दुर्गा रूप में खड़ी रहना।
सिंह पर हो सवार,
डटी रहना विजय रथ पर।
लहरा देना जीत का परचम,
है नारी तू डटना यूं ही।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — नारी तू नारायणी है, माँ दुर्गा का रूप है, तुझमें सब शक्तिया निहित है, सर्व शक्ति संपन्न है तू। जीवन में कैसी भी बिपरीत परिस्थितियां आ जाएं तू कभी भी घबराना नहीं, तू डटी रहना बिना डरे, बिना थके, तेरी जीत निश्चित है देवी क्योकि – माँ आदिशक्ति की अपार शक्ति है तुझमें। ये भारत देश शक्ति सम्पन्न देवियों का है, इस धरा पर महान देवियों का जन्म सदैव से ही होता आया है। नारी अपने जिम्मेदारियों को निभाती है और कठिन परिस्थितियों में अपने शक्ति का परिचय देती हुयी नज़र आती है। देश में कई महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्र में अपने साहस और सूझ बुझ का परिचय दिया है।

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यह कविता (हे नारी तू।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख, कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. ए. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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कुछ पता नहीं।

Kmsraj51 की कलम से…..

Kuch Pata Nahin | कुछ पता नहीं।

कुछ पता नहीं,
आई कब-कब तेरी याद।
दिन बहुत बीत गये,
पर आई न तेरे चेहरे की सौगात,
कुछ पता नहीं…?

क्षीण होती यादों में,
उभरती कई रेखाएं।
माथे पर पड़ती,
सिकन की लकीरें।
सुधों वाली वह काली रात,
इतनी शान्त थी।
की पत्ता भी हिले,
तो शोर मचाती वह काली रात।
अचानक तंद्रा को भेदकर,
अंतस् तक को झकझोरती सी,
कुछ पता नहीं…?

ऐसा लगा मानों कानों में,
कोई सरगोशी कर रहा।
छाती के द्वार पर चोट कर रहा,
दबे पाँव चुपके-चुपके।
दिल में उतर रहा,
अपनी यादों को।
मेरे जेहन में नाखूनों से,
कुरेद कुरेद कर उभार रहा,
कुछ पता नहीं…?

अँधेरें में उठ-उठकर,
उसके आने की आहट,
सुनता रहा।
न आने की चुभन हिय में लिये,
सूनी अँखियों से,
झरोखे से निहारता रहा।
कहीं से; यादों से उतर कर,
सामने आ जाये।
जिसकी यादों को,
आँखों में बसाये हुए।
चलते आ रहे हैं,
हम वीराने भरे जीवन में,
कुछ पता नहीं…?

ये इंतजार कब खतम होगा,
कभी लगता है मुझे,
वो यादों में रहकर,
करता होगा इंतजार।
मेरे मरने का,
कफ़न तो पहना है हमने।
बस उनकी यादों का,
सूनी अँखियों के पैमानों का,
कुछ पता नहीं…?

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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सफर।

Kmsraj51 की कलम से…..

Journey | सफर।

अजीब नजारा लिए चलते हैं,
जब मुसाफिर राहों पर चलते हैं।

डगर नई मंजिल नई लिए चलते हैं,
पथ पर बेगानों को लिए चलते हैं।

मंजिल तलक मुस्कुराहट लिए चलते हैं,
छोड़ पीछे गम, हंसी लिए चलते हैं।

नित दोस्त नए-नए लिए चलते हैं,
दुश्मन को अपना बना लिए चलते हैं।

कुछ पलों को अपना बना लिए चलते हैं,
बदलती शख्सियत को साथ लिए चलते हैं।

माना मंजिल पानी सबको साथ लिए चलते हैं,
कौन जाने ? कौन रहबर बना लिए चलते हैं।

टेढ़े-मेढें रास्तों पर सीधा साथी लिए चलते हैं,
प्रतिदिन बदलते रास्ते लिए चलते हैं।

मेरी छोड़ो अपनी सुना सबको बता लिए चलते हैं,
कुछ पल ही सही सबका दुख लिए चलते हैं।

कब किसका बांट देंगे गम, दुखड़ा लिए चलते हैं,
कौन बनेगा? कब किसका सहारा लिए चलते हैं।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अजीब नजारा लिए चलते हैं, जब भी मुसाफिर राहों पर चलते हैं। डगर नई होती, मंजिल भी नई लिए चलते हैं, पथ पर बेगानों को लिए चलते हैं। मन में व दिल में मंजिल तलक मुस्कुराहट लिए चलते हैं, छोड़ के पीछे सभी गम, हंसी लिए चलते हैं। रोज दोस्त नए-नए लिए राह में चलते हैं, राह में दुश्मन को भी अपना बनाये लिए चलते हैं। कुछ पलों के लिए ही सही अपना बनाये लिए चलते हैं। माना की सबको मंजिल पानी है पर सबको साथ लिए चलते हैं। प्रतिदिन बदलते टेढ़े-मेढें रास्तों पर सीधा व अच्छा साथी लिए चलते हैं। कुछ पल के लिए ही सही सबका दुख बाटते चलते हैं। कौन बनेगा? कब किसका सहारा इसलिए साथ लिए चलते हैं।

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मिले न मुझको सच्चे मोती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मिले न मुझको सच्चे मोती। ♦

वन शहर गाँवों में ढूँढ़ा मैनें,
खोजा सागर – तल की गहराई में।
बहुत मिले जन लोग – लुगाई,
पर मिले न मुझको सच्चे मोती।

सिंधु शहर में कोलाहल था,
थलचर जलथल में उछल रहे थे।
इक – दूसरे को निगल रहे,
सगे-संबंधी जीवन से खेल रहे थे।
निज स्वारथ के मनन का,
गठरी दिखी चिंतायें ढोती।

उलझे – उलझे जीव जनावर थे,
चिकनी – चिकनी संवादों में।
भागम – भाग दौड़ लगाती थी,
समर सिंधु के रहने वालों में।
खुद अपने में ही खोई थी,
हर प्राणी की जीवन – ज्योति।

खोज रहा था मैं भव-सुदामन से,
सुनहली चमकीली नग निकाली।
परन्तु सभी पाहन छलिया थी,
रूप – रंग से छलने वाली।
उद्विग्न – घायल आस रह गई,
मन सँजोती सपन धीरज खोती।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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शोर मचाती जब-तब।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शोर मचाती जब-तब। ♦

गा रहे पल हरदम,
गुनगुनाती सी शाम है।
उजाले में कशमशा कर,
मचाती शोर जब-तब।

दूर किसी झरोखे से झाँक,
देख रही सदा ये जिंदगी।
कानों में आ-आकर,
कहती कथा कोई पुरागी।

रहती ओट में सदा,
लुक-छिपकर कोलाहल करती है।

अंत:करण की मूक आवाजें,
कलरव करती साँसों में।
थम-थम सी जाती धमनियों को,
चेता जाती आती-जाती आहों में।

खामोश रहती चुपचुप,
गुमसुम-सी चंचल रहती है।

झुरमुट की झँझरी छिदी-छिदी,
झरझर हो गई प्रत्याशा।
क्षणभंगुर-सा जीने को,
राग वेदना गाती शाशा।

सरगम के सुर-तालों में,
वेदना व्यथा बतलाती है।

नोट: शाशा – मनमुख(मन), पुरागी – दफन।
(ये शब्द मैनें कबीलाई भाषा से ली है।)

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हकीकत।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हकीकत। ♦

नौका है टूटी हुई,
जाना है उस पार।
ना जानूं कितना गहरा पानी,
नैया बिन पतवार।

पीने को पानी नसीब नहीं,
कुऍं का ख्वाब रखता हूं।
खाने को भोजन नहीं,
दुश्मन पे फतह का ख्याल रखता हूं।

ख्वाब में भी न सोचा था हमनें,
दोस्ती का वास्ता देकर,
वो दुश्मन बन गया होगा।
उसे गुमां हो गया,
कद देखकर नाटा।

शास्त्री जी पर गुमां है सबको,
दुश्मन को दिखाया हिन्दुस्तानी चाटा।
नफरतों की फिजाओं में,
प्यास मुहब्बतों की नहीं बुझती।

कोशिश चाहे लाख कर लो,
आग से कभी आग नहीं बुझती।
पलट गई तख्तो ताज,
हिल गई सल्तनत।

हौसला व बहादुरी के आगे,
सर झुकाती हैं, हरकतें नापाक।
आग लगी है तेरे शहर में,
चिंगारी तेरे घर तक आएगी।

कभी साथ मनाते थे ईद और होली,
आज चलाते हो सरहद पे गोली।
मत ललकारो ये है हिन्दुस्तान,
तेरा मुल्क नहीं बचेगा,
बन जाएगा कब्रिस्तान।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम भारत वासी दिल से प्रेम करने वाले को प्रेम करते है और जो हमें आँख दिखाते है उनका आँख भी निकाल लेते है। हम कभी किसी पर पहले वार नही करते है लेकिन अगर दुश्मन हम पर वार करे तो हम हाथ पर हाथ धरे बैठे भी नहीं रहते है। हमें गर्व है अपने वीर सेनानी सुभाष चंद्र बोस जी पर, उन्होंने दुश्मन को दिखाया हिन्दुस्तानी चाटा। एक बात याद रखे नफरतों की फिजाओं में कभी भी प्यास मुहब्बतों की नहीं बुझती। चाहे कोई भी पड़ोसी देश हो हमारा हमसे प्यार करेगा, हम भी उन पर प्यार बरसायेंगे, लेकिन अगर हमसे गद्दारी करेंगे तो उसका जवाब उसी की भाषा में हमें देना आता हैं, जय हिन्द – जय हिन्द की सेना।

—————

यह कविता (हकीकत।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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तपन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ तपन। ♦

उसकी मुस्कान में तपन थी कितनी प्यारी सी,
भीड़ भरे जहां में लगने लगी फरिश्ता सी।

इक नई कशमकश से हम गुजरते रहे,
खिल गए फूल चमन में उनके प्यार की तपन से।

प्यार भरी बयार बहने लगी महक उठी फूलवारी तपन में,
उनके मधुर स्वरों से बह उठी सद्भावों की धाराएं सी।

तपन की अग्न लगे तो रोशन हो जाए संसार सारा,
लगने लगे माधव बंशी वाला प्यारा जब लग्न हो मीरा सी।

हर समस्या का हल निकलता है बुजुर्गो के अनुभवों से,
आचरणों को बल मिलता है संस्कारों की तपन से।

सोना जब कुंदन बन बाहर आता है आग की तपन से,
रत्न जड़ित आभूषणों में चार चांद लग जाते हैं तपन से।

भावों का उड़ता पंछी महके तपन में स्नेह की वर्षा से,
भारत धरा का कण-कण महके त्याग तपस्या के भावों से।

थोड़ा सा दुलार स्नेह उसे दो जिसका दुनिया में कोई नहीं,
जीवन औरों का भी संवार दो तुम स्नेह भरी तपन से।

♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦

—————

  • “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए; इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की हैं — भगवान महावीर स्वामी त्याग तपस्या और उनके गुणों के कारण आज भी हमारे बीच मौजूद हैं, या और भी जितने महापुरुषों को समझे तो सभी ने त्याग व तपस्या से जीवन में सफलता को बताया है। माया की चकाचौंध में हम प्रभु को भूल जाते हैं मनुष्य का मन बेलगाम है इसलिए मन पर संयम रखना बहुत जरूरी है। महापुरुषों में सबसे महत्वपूर्ण गुण मन पर नियंत्रण ही है। सच्चे मन से किये गए कार्य में जब त्याग व तपस्या का बल हो तो जीवन में सफलता जरूर मिलती हैं।

—————

यह कविता (तपन।) “विजयलक्ष्मी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।

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शहीद नहीं हूं।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शहीद नहीं हूं। ♦

दे दिए जिसने,
प्राण मातृभूमि को,
रक्षा करते – करते,
समा गया जो धरा में,
ना कहलाया शहीद।

अर्ध सैनिक बल का जवान,
कैसी विडंबना, कैसी पीड़ा।
ना समझे इसे कुर्सी वाले,
चारों दिशाओं में फैला सन्नाटा।

फिर दे दिए प्राण धरा को एक लाल ने,
पर ना कहलाया शहीद।
नादान हो तुम जो कहते,
सभी फौजियों को शहीद हो,
जरा पढ़ लो कागज।

ऐसे भी शूरवीर मिट गए, भू के लिए,
पर ना कहलाए शहीद।
अर्धसैनिक बल के जवान,
ये तो रक्षक है भू के,
करते-रहते जीवन पर्यंत।

रक्षा देश की,
रहते गोलियों में हरदम।
लग जाती गोली सीने में,
पर ना दिया जाता,
दर्जा शहीद का।
नासमझ हो तुम,
जो कह देते हर फौजी को शहीद।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सच्च में शहीद वह है जिन्होंने दे दिए प्राण धरा को, नादान हो तुम जो कहते, सभी फौजियों को शहीद हो, जरा पढ़ लो कागज।। इस भारत भूमि पर ऐसे भी शूरवीर मिट गए, भू के लिए,पर ना कहलाए वह शहीद कभी। अर्धसैनिक बल के जवान, ये तो रक्षक है भू के, करते-रहते जीवन पर्यंत भारत भूमि की रक्षा। पहचानो सच्चे शहीद को तुम, और उन्हें पूर्ण मान सम्मान दो जिसके वह हकदार हैं।

—————

यह कविता (शहीद नहीं हूं।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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वरदान – प्राणवान वसुंधरा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ वरदान – प्राणवान वसुंधरा। ♦

केंद्रीय तत्व अस्तित्व विधान का,
सकार जीवन अग्नि यज्ञ समान।

हुताशन अजस्त्र प्रेरणा है,
शिक्षा समृद्धि प्रतिभा और विज्ञान।

आत्मसात करती दिव्य प्रबल प्रभाव संधान,
कौटुंबिकता सहृदयता शब्द और उदान।

नभमंडल का करता शुद्ध सद्गुण दैवी समान,
अनुगमन करता इहलोक का ज्ञान।

सामूहिक उत्कर्ष की सशक्त साधन पहचान,
यज्ञाग्नि की आहुति से सद्भावों का होता आविर्भाव।

अग्नि की दीपशिखा पर होता विषम दबाव,
प्रसस्त ऊर्ध्व उद्वेग से उत्ताल अग्निशिखा समान।

नाश कर भय प्रलोभन विषम का ताप,
संकल्प जिजीविषा मनोबल का करे उत्थान।

पांचजन्य उष्णता ऊर्जा और प्रकाश,
सदृश पावक पवित्र दाहक समान।

वायु रूप बनकर जड़-चेतन को करें प्रकाशवान,
गुप्त शत्रु का भेदने, करे धूमल मरुत समान।

श्लोकों की ध्वनि के गुंजन का ही विधान,
स्वाहा प्रचंड प्रभाव है स्वधा उसका संहार।

यज्ञाग्नि से लोक – परलोक सुधरे,
प्राणवान वसुंधरा के लिये है वरदान।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — हम सभी जानते है की भगवान ने अपने अंश से पंचतत्व यानि पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि और जल का समावेश कर मानव देह की रचना की और उसे सम्पूर्ण योग्यताएं व शक्तियां भी देकर इस संसार में स्वच्छतापूर्वक जीवन बिताने के लिए भेजा है। पृथ्वी तत्त्व यानि जड़ तत्त्व, यह तत्व अनंत सहनशीलता को दर्शाता है व इस तत्त्व से मनुष्य अन्न, धन, धान्य से सम्पूर्ण होता है। इसमें विकार जब उत्पन्न होता है तब इंसान स्वार्थी हो जाता हैं। जल तत्व यानि शीतलता प्रदान करने वाला तत्व। इसमें मिलावट होने पर इसकी सौम्यता कम हो जाती है। अग्नि तत्व, विचार शक्ति में निर्णय करने में सहायक होता है विचारों के भेद अंतर को परखने वाली शक्ति को सरल सुचारु रूप प्रदान करता है। जब इसमें विकार आता है तब इंसान की सोचने समझने की शक्ति का ह्रास होने लगता है, और इंसान गुस्से वाला होकर अपना ही सर्वनाश करता है। वायु तत्व, मानसिक ऊर्जा तथा स्मृति शक्ति की क्षमता को पोषण प्रदान करता है। अगर इसमें विकार आ जाए तो इंसान की स्मरण शक्ति कम होने लगती है। आकाश तत्व, शरीर में आवश्यकतानुसार संतुलन को बनाए रखने का कार्य करता है। जब इसमें विकार आता है तब इंसान शारीरिक संतुलन खोने लगता है। जप, कीर्तन, भजन, यज्ञ-हवन, ध्यान साधना से मनुष्य का इस लोक के साथ-साथ परलोक भी सुधर जाता हैं।

—————

यह कविता (वरदान – प्राणवान वसुंधरा।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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