Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ निस्वार्थ कर्म क्यों करे ? ϒ
⇒ या – क्यों करें निस्वार्थ कर्म ?
निस्वार्थ कर्म – वह कर्म जिससे किसी भी तरह के लाभ की आशा न हो, ना ही अति सूक्ष्म, ना तो दीर्घ। अर्थात: जिस कर्म से किसी भी तरह के लाभ की आशा ना किया जाये वह निस्वार्थ कर्म कहलाता है।
क्यों करें निस्वार्थ कर्म? / Why do selfless deeds?
जब भी आप निस्वार्थ कर्म करते है तो आपके कर्म में “पूर्ण इंसानियत हित” छीपा होता है। जब भी आपके कर्म स्वार्थ पूर्ण होते है तो – उस कर्म में मानवता का हित ना के बराबर होता है, इसलिए निस्वार्थ कर्म ही सर्वोच्च कर्म है। निस्वार्थ कर्म आपको वह सब कुछ देगा जो आप स्वप्न में भी नही सोच सकते, अर्थात: आपके सोच से भी कही अत्यधिक मिलेगा आपको।
एक प्राचीन कहावत है :
बिन मांगे मोती मिले – मांगे मिले ना भीख॥
अर्थात : आपके निस्वार्थ कर्म जिसमे आपकी कोई मांग नहीं होती है – उस कर्म के फल आपको मोती से भी ज्यादा कीमती रूप में प्राप्त होते है, इस वजह से – आपको सारे कर्म निस्वार्थ भाव से करना चाहिए।
बहुत लोगों के मन में प्रश्न होगा की अगर हम निस्वार्थ कर्म करेंगे तो हमारी जरूरते कैसे पूर्ण होंगी?
- आप लोगों को पता होना चाहिए की, प्रकृति का यह नियम है की आपके निस्वार्थ कर्म आपको आपके सोच से कहीं अत्यधिक देगा। सच्चे मन से निस्वार्थ कर्म तो करे – मैं आपको आश्वस्त करता हु की आपको वह सब कुछ मिलेगा जो आपने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा।
- जब आप सच्चे मन से निस्वार्थ कर्म करेंगे तो – हर वह असंभव कार्य, जो आप नहीं कर पा रहे थे, वह कार्य भी आप सरलता पूर्वक कर पाएंगे। अर्थात: हर कार्य करना संभव हो जायेगा, आपके पास हर कार्य को करने का उपाय होगा।
- निस्वार्थ कर्म करने से आपका मन सदैव ही शांत होगा, और शांत मन से जादुई ढंग से आपको सब कुछ बहुत ही सरल अनुभव होगा। अर्थात: अशांत मन उचित निर्णय लेने की क्षमता काे खत्म(खाे) कर देता हैं, लेकिन जब मन पूर्ण शांत होगा तो उचित निर्णय लेना भी आसान होगा, जिससे आपके हर एक कर्म आसान हो जायेंगे।
अगर आपके मन में निस्वार्थ कर्म से सम्बंधित किसी तरह का और प्रश्न हो तो आप निसंकोच पूछ सकते है –
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