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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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You are here: Home / Archives for Poems of Satish Shekhar Srivastava ‘Parimal’

Poems of Satish Shekhar Srivastava 'Parimal'

बरखा बहार।

Kmsraj51 की कलम से…..

Barkha Bahar | बरखा बहार।

बीत रहे पलछिन के तौर तरीके,
आने वाले आज की पहली फुलबहारें।
घटा छटा घिर-घिर आ रही,
मन की चंचलता को प्रतिपल बढ़ा रही है।
पुरवा पवन की दुहाई है,
पछवा बयार की अब विदाई है।

अंब पावस का गली-गली डंका बज रहा,
शम्पाओं का शोर है सुदामन का जोर है।
पयोजन्मा की वाहिनी आगे-आगे है,
श्वेत – श्याम और काले-काले हैं।
रिझते हैं कहीं-कहीं और कहीं निराले हैं,
कहीं क्षत्रप की तरह छा जाते।

एक टुकड़ी आती गरज-बरस कर जाती,
दूसरी वाहिनी बना छावनी गोले अंब का बरसाती।
आते जाते फिर घूम कर चले आते,
सिंगार सजा चंचला दामिनी का।
निहार-निहार विहार कर देखते सूने आँगन का,
चलती जैसे पवन की परछाँईं।

अक्षित करते पुष्कर ताल तलैईया के,
मेघराज गरज – गरज कर धरणि का।
पल-पल अपने आभा का रूप दिखला कर
बदली में फिर कहीं छुप जाते।
हँसकर मुँह चिढ़ाते तपन की,
इठलाते हर्षाते दूर क्षितिज पर।

कभी कुम्हलाते कभी खिल-खिल जाते,
ये बरखा के बादल पल भर में,
उमस गर्मी को दूर भगाते।
नवयौवना से मचल कर चलते,
अँगड़ाई ले-लेकर मन की अगन बढ़ाते।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (बरखा बहार।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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मेरी गुंजन की आवाज हो तुम।

Kmsraj51 की कलम से…..

Meri Gunjan Ki Awaaz Ho Tum | मेरी गुंजन की आवाज हो तुम।

मेरी उन्मत्त प्रीति अकिंचन,
पा लेती है तो पाने को।
मधुर प्रणय की जगी चाह को,
बहला लेती है गुंजन-रागों से।
परन्तु हिय को तृप्त करे जो,
वह अश्रु भरी गागर हो तुम,
श्वांसों की सरगम पुरातन हो तुम।

मेरी प्रीति के संदेशों को,
शांत स्वरों को देती वाणी।
यदि होता संभव तो तुम,
मनोभावों को समझती मेरी।
तेरी अँखियों की नादानी ने,
दे गई पिपासित तप्त मरुभूमि।
हृदय कमल में वासित निर्मल,
नदिया की भावित लहर थी तुम।

सोच-सोच कर थकी कामना,
वेदनाऐं पिपासित हैं।
किस तरह जी की पीड़ा दिखलाऊँ,
दर्पण मेरा टूटा है।
खंडित कर दूँ झिझकों को,
निश्शब्दों में भर दूँ मन की ज्वाला,
मेरे अलकों की परिभाषा हो तुम।

अंचल हो आगर हो निर्झर की बूंदों में,
निर्मल-निर्मल कोमल कविता हो।
दूर गई बिछड़ी मन की डाली से,
दे गई अश्रु की हिचकी मुझको।

कंठों में डाली कंपित माला,
तप्त होती माधुर्य रोम-रोम में।
व्याकुल विवश व्यथा दे डाली,
आकुल हो खोजे कस्तूरी वन-वन,
मेरी आशा की मृगनयनी हो तुम।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (मेरी गुंजन की आवाज हो तुम।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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आहट।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aahat | आहट।

हल्की सी आहट कदमों की,
पाकर बदन थिरकने लगते।
उद्विग्न प्रत्याशा जगे नयनों में,
तन पारिजात महकने लगते।

अनिमेष ही नैनों से नैना मिलते,
चक्षु अरुणित से होने लगते।
मधुर मिलन की मादक चाहत,
प्रणय – स्वप्न में खोने लगते।

उत्कंठित अँखियों की आसक्त सी छुवन,
मृदुल-मृदुल अंग-गात दहकने लगते।
आश्वासों में मकरन्द धीरे से घुल कर,
मुखड़े पर लालिमा खिलने लगते।

प्रभात का पद्मराग गालों पर खिलता,
लालिमा बिखराती आभा मंद – मंद।
लाल मणि रुख़ पर किरण बिखराती,
रक्तिम छटा छलकती छंद – छंद।

हृदय – हृदय में सरगम बजती,
तृष्णा बंधती आलिंगन में।
श्वांसों की थापों में खो जाती,
तनु खो जाता दहकते बदन में।

हठ करती हृदय की धड़कन,
इन्द्रियजय तोड़ बहकने लगते।
तमस तरंगों के आँचल में,
सुलगते तन पिघलने लगते।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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आँखों ने आँखों से कहा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aankhon Ne Aankhon Se Kaha | आँखों ने आँखों से कहा।

आँखों ने आँखों से कहा…
मौन आँखियों ने अँखियों से,
चुप-चुप स्वर में बातें कर ली।
प्रेम ने पवित्र प्रणय से,
स्वीकृति आज प्राप्त कर ली।

हिय ने समझी हिय की बातें,
अनबोले अभाषित अनुरक्त भाषा।
हृदय पिपासु जानते हैं,
हिय की प्यासी-प्यासी परिभाषा।
नयन की नत पलकों ने,
उपहार स्वीकार कर ली।

अभिलाषाओं की आहटें,
पहचानती हैं कामनायें।
मनोभावों के व्यवहार को,
जानती इन भावनाओं को।
वेदना ने वेदना की,
व्यथाओं को जान ली।

व्याकुल हृदय की विकलता,
उद्विग्न करती अंतस् को।
वल्लभा सब पहचानती है,
प्रणय पाणिग्रहण के परस को।
लालित्य से चारुता की,
सुंदरता अच्युत कर ली।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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मुलाकात।

Kmsraj51 की कलम से…..

Mulaakat | मुलाकात।

एकटक निहारता शान्त निरव तन से,
गूँजती गर्जन रह-रहकर निभृत संसार में।
अचानक उठती लहरों ने आकर,
चरण-रज लेकर चले गये हलचल मन आगार में,
दे-देकर हँसते हुए फिर खुद में समा गये।

कल्लोल कर आये अडिग पड़े कदमों तले,
मेरे हस्त-कमल में धरा गये।
रत्न कहें या प्रीति कहें सागर की फुलझड़ियां,
अपनी कोख से निकाल मुझ निर्बुद्ध को दे,
कोलाहल करते समेट आँचल चले गये।

था मैं चमत्कृत-सा ये मुझे क्या थमा गये,
कौतुहल भरा अंतस् में बार-बार पंखुड़ी रद की।
बुदबुदाये आखिर अधिरथी क्या दे गये,
इस बेगानी दुनियां में छली पग-पग पर मिले,
बेचैन हृदय को शक्ति स्वरूप क्या दे गये।

इस पहली मुलाकात में सिंधु-सुदामन ने,
दृढ़ निश्चय का रूप-संयोजन बता गये।
अकेला कलयुग में तू ही नहीं पगले,
विराट् मैं भी; नील-झील भी तन्हां है,
मुझ जैसा तू भी बन; छोड़ निशान चले गये।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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ये शिरोमणि सिंहासन है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Ye Shiromani Singhasan Hai | ये शिरोमणि सिंहासन है।

ये शिरोमणि सिंहासन है।

यह वीरों का आसन है,
न किसी का इस पर स्वशासन है।
रहा बहुबल नित पद्मासन है,
यह शिरोमणि सिंहासन है।

यह विशिष्ट महाराजों से,
संग्रहित हैं राज दरबारों से।
इनके चरण-रज पोंछे जाते,
नृपों के शीश मुकुटों से।

जिसकी रक्षा के लिये हुई,
समर्पित कई बलिदानी है।
राणा तू कर रक्षा इसकी,
यह शिरोमणि सिंहासन है।

खनकती उन तलवारों की,
कौतुक होती थी कटारों से।
सारंगों की धारों से देखते ही,
छिन्न-भिन्न हो जाते अंगों से।

हल्दीघाटी के अरावली पथ पर,
सनी माटी वीर मेवाड़ी सानों से।
जननी जन्मभूमि का अर्चन करते,
जीवन के उत्थान फुलझड़ियों से।

न जाने कितनी बार चढ़ी घाटी में,
भीषण भैरवी जवानी पर।
कण-कण के उर में बसा राणा तू ,
कर रक्षा यह शिरोमणि सिंहासन है।

भीलों ने अभी रण-हुंकार भरी है,
हाथों में कटे खड्ग औ शीश लिए।
उर-झंझाओं में ललकार भरी है,
भोले-भाले भील लड़ने की तैयारी में।

गिरिराज के ऊँचे शिखरों पर,
विटपों के फूल-पत्ते अन्न बने।
रक्षक शिखर-शैल बने थे,
राणा के तुंग आस्थान-मंडल बने।

तुलजा भवानी की सौगंध ले,
शीश पग कफ़न बाँध चले।
रण-बाँकुरे मैदान चले,
करने को बलिदान चले।

खमनोर के दर्रों में,
रक्ततलाई में बहते रक्तों ने…
पुकार लगाई धरती ने रक्षा कर राणा तू ,
ये शिरोमणि सिंहासन है।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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अनुरागी लालिमा कपोलों पर।

Kmsraj51 की कलम से…..

Anuragi Lalima Kapolon Par | अनुरागी लालिमा कपोलों पर।

अनुरागी लालिमा कपोलों पर,
छटा इंद्रधनुषी-सी खिल गई।
प्रफुल्लित तरुणी की शायद,
कुमारत्व से नयन मिल गई।

दिन हो गये स्वप्निल-स्वप्निल,
आकुल बाट जोहती क्षुब्ध रजनी।
अंग-प्रत्यंगों में धूप बासंती,
नयन पटों पर खिली चाँदनी।
निंद्रित उर के धड़कन में,
मनभावन नवज्योति जल गई।

जगी मृदुल-मृदुल मादक वेदना,
अकेलेपन के आलिंगन में।
मधुर – मधुर मुग्धित कल्पना,
अरुनारा कमसिन नयन में।
हो गई निंदिया वैरागन-सी,
चेतना खोई निशा ढल गई।

परवाना पतंगे जैसी अभिलाषाएं,
श्वेत-श्याम विहंगों-सी घिरती।
अंतहीन अनंत महाशून्य में,
पंख फैलाये फिर बिचरती।
सशक्त शोभित भुजपाशों की,
बाँहों में आस लिये पल गई।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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रस आनन्द इस होली में।

Kmsraj51 की कलम से…..

Ras Anand is Holi Mein | रस आनन्द इस होली में।

आके हुई प्रकट वह रात होली में,
मिली फागुन की सौगात होली में।
बजी जलतरंग से मिलकर सितारों से,
हुआ तरानों का नृत्य अगाध होली में।
हर्ष-आनन्द का बढ़ा व्यापार होली में,
जिह्वा पर नाम आया बार-बार होली में।

घर-घर रंग सजे उल्लासों की चहल-पहल में,
भर-भर के थाल सजे रंग अबीर गुलालों से।
नश-नश में उमंग आवेग भरे गीत गोविंदों से,
बन-बन दमकती आभा रचते स्वाँगों में,
उमड़ा हुजूम गज़ब हर गली किनारों होली में।

गली चौबारों में शोर मचा इस अवसर में,
बिखरने लगी रंग की धार गली चौराहों में।
भीगे बदन मले गुलाल चेहरों में,
खुशियों की गवाही दे रहा घर-आँगन चौराहों में,
मेला देखने निकले प्रियतम् होली में।

रंग दी चुनरिया फागुन बहार से,
दिल की कामना उभर आई होंठों के द्वार से।
नैना लड़ा के पूँछे हर इक शैदाई से,
रंग – बिरंगी पोशाकों की पैमाईश से,
हसीन चेहरे-मोहरे हर्षोल्लास से भरे होली में।

देख मुखड़े पर मले गुलाल की लाली,
दिलों में भर आई हमारे खुशहाली।
नजर ने दी हमें रमणी रंग से भरी प्याली,
जो हमें दे हँस – हँसकर गाली,
तब हम समझे की ऐसी है प्यार भरी होली में।

हमनें तुमने की इक तरफा तैयारी होली की,
जिसने जिस तरह देखा इस तरफ होली की।
हमारी आन लगती हमको तो प्यारी,
लगा दो हाथ से न मारो पिचकारी होली की,
रंग – बिरंगी सतरंगी रंगों के सिंगार की होली में।

उड़ाओ तुम उधर से हम भी इधर तैयार खड़े,
मलो अबीर गुलाल हँस – हँसकर मुखड़े पर।
खुशी आनन्द का इजहार करो होली पर,
है कसम तुमको इस होली पर।
मिटा दो बैर अपने सारे गिले – शिकवे भी,
इसी उम्मीद में था वतन इंतजार होली में।

मूर्तिमान हो दे गाली हमें हँस – हँसकर,
रंग पड़ता है कपड़ों पर उड़ता गुलाल तन पर।
लगा के घात कोई मुखड़े पर लगाता है,
‘परिमल’ प्यार से कोई कहता है,
हमें भी दिखा तू रस आनन्द इस होली में।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (रस आनन्द इस होली में।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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इक प्रयास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ इक प्रयास। ♦

इक प्रयास। / पार्ट – 1

इक प्रयास (एक प्रयास)।

हममें है सृजनकार भी, हुए कहीं-कहीं लाचार,
बोलना तो आसान है, खामोश रहना दुश्वार।

‘परिमल’ चंड शीत का, खुश्क है इसका इतिहास,
अपगा मेरे आगार की, कलकल करती हर मास।

प्यारे-प्यारे लोग हैं, प्यारा-प्यारा सा संग,
चंपई जैसा रंग है, पंखुड़ियों जैसा अंग।

दाता की देन है, ये उसका नहीं जवाब,
पवन जैसी नींद है, झंझा जैसे ख्वाब।

जब महका उसका तन, आया अनजाना ख़याल,
नागिन जैसी चाल में, बजते हैं कई सुर-ताल।

सावन की बरसात है, रिमझिम सा अहसान,
सतरंगी को मिल गई, इंद्रधनुषी सी मुस्कान।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (इक प्रयास। / पार्ट – 1) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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मिले न मुझको सच्चे मोती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मिले न मुझको सच्चे मोती। ♦

वन शहर गाँवों में ढूँढ़ा मैनें,
खोजा सागर – तल की गहराई में।
बहुत मिले जन लोग – लुगाई,
पर मिले न मुझको सच्चे मोती।

सिंधु शहर में कोलाहल था,
थलचर जलथल में उछल रहे थे।
इक – दूसरे को निगल रहे,
सगे-संबंधी जीवन से खेल रहे थे।
निज स्वारथ के मनन का,
गठरी दिखी चिंतायें ढोती।

उलझे – उलझे जीव जनावर थे,
चिकनी – चिकनी संवादों में।
भागम – भाग दौड़ लगाती थी,
समर सिंधु के रहने वालों में।
खुद अपने में ही खोई थी,
हर प्राणी की जीवन – ज्योति।

खोज रहा था मैं भव-सुदामन से,
सुनहली चमकीली नग निकाली।
परन्तु सभी पाहन छलिया थी,
रूप – रंग से छलने वाली।
उद्विग्न – घायल आस रह गई,
मन सँजोती सपन धीरज खोती।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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