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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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You are here: Home / Archives for Poems of Satish Shekhar Srivastava ‘Parimal’

Poems of Satish Shekhar Srivastava 'Parimal'

आँखों ने आँखों से कहा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aankhon Ne Aankhon Se Kaha | आँखों ने आँखों से कहा।

आँखों ने आँखों से कहा…
मौन आँखियों ने अँखियों से,
चुप-चुप स्वर में बातें कर ली।
प्रेम ने पवित्र प्रणय से,
स्वीकृति आज प्राप्त कर ली।

हिय ने समझी हिय की बातें,
अनबोले अभाषित अनुरक्त भाषा।
हृदय पिपासु जानते हैं,
हिय की प्यासी-प्यासी परिभाषा।
नयन की नत पलकों ने,
उपहार स्वीकार कर ली।

अभिलाषाओं की आहटें,
पहचानती हैं कामनायें।
मनोभावों के व्यवहार को,
जानती इन भावनाओं को।
वेदना ने वेदना की,
व्यथाओं को जान ली।

व्याकुल हृदय की विकलता,
उद्विग्न करती अंतस् को।
वल्लभा सब पहचानती है,
प्रणय पाणिग्रहण के परस को।
लालित्य से चारुता की,
सुंदरता अच्युत कर ली।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (आँखों ने आँखों से कहा।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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मुलाकात।

Kmsraj51 की कलम से…..

Mulaakat | मुलाकात।

एकटक निहारता शान्त निरव तन से,
गूँजती गर्जन रह-रहकर निभृत संसार में।
अचानक उठती लहरों ने आकर,
चरण-रज लेकर चले गये हलचल मन आगार में,
दे-देकर हँसते हुए फिर खुद में समा गये।

कल्लोल कर आये अडिग पड़े कदमों तले,
मेरे हस्त-कमल में धरा गये।
रत्न कहें या प्रीति कहें सागर की फुलझड़ियां,
अपनी कोख से निकाल मुझ निर्बुद्ध को दे,
कोलाहल करते समेट आँचल चले गये।

था मैं चमत्कृत-सा ये मुझे क्या थमा गये,
कौतुहल भरा अंतस् में बार-बार पंखुड़ी रद की।
बुदबुदाये आखिर अधिरथी क्या दे गये,
इस बेगानी दुनियां में छली पग-पग पर मिले,
बेचैन हृदय को शक्ति स्वरूप क्या दे गये।

इस पहली मुलाकात में सिंधु-सुदामन ने,
दृढ़ निश्चय का रूप-संयोजन बता गये।
अकेला कलयुग में तू ही नहीं पगले,
विराट् मैं भी; नील-झील भी तन्हां है,
मुझ जैसा तू भी बन; छोड़ निशान चले गये।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (मुलाकात।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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ये शिरोमणि सिंहासन है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Ye Shiromani Singhasan Hai | ये शिरोमणि सिंहासन है।

ये शिरोमणि सिंहासन है।

यह वीरों का आसन है,
न किसी का इस पर स्वशासन है।
रहा बहुबल नित पद्मासन है,
यह शिरोमणि सिंहासन है।

यह विशिष्ट महाराजों से,
संग्रहित हैं राज दरबारों से।
इनके चरण-रज पोंछे जाते,
नृपों के शीश मुकुटों से।

जिसकी रक्षा के लिये हुई,
समर्पित कई बलिदानी है।
राणा तू कर रक्षा इसकी,
यह शिरोमणि सिंहासन है।

खनकती उन तलवारों की,
कौतुक होती थी कटारों से।
सारंगों की धारों से देखते ही,
छिन्न-भिन्न हो जाते अंगों से।

हल्दीघाटी के अरावली पथ पर,
सनी माटी वीर मेवाड़ी सानों से।
जननी जन्मभूमि का अर्चन करते,
जीवन के उत्थान फुलझड़ियों से।

न जाने कितनी बार चढ़ी घाटी में,
भीषण भैरवी जवानी पर।
कण-कण के उर में बसा राणा तू ,
कर रक्षा यह शिरोमणि सिंहासन है।

भीलों ने अभी रण-हुंकार भरी है,
हाथों में कटे खड्ग औ शीश लिए।
उर-झंझाओं में ललकार भरी है,
भोले-भाले भील लड़ने की तैयारी में।

गिरिराज के ऊँचे शिखरों पर,
विटपों के फूल-पत्ते अन्न बने।
रक्षक शिखर-शैल बने थे,
राणा के तुंग आस्थान-मंडल बने।

तुलजा भवानी की सौगंध ले,
शीश पग कफ़न बाँध चले।
रण-बाँकुरे मैदान चले,
करने को बलिदान चले।

खमनोर के दर्रों में,
रक्ततलाई में बहते रक्तों ने…
पुकार लगाई धरती ने रक्षा कर राणा तू ,
ये शिरोमणि सिंहासन है।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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अनुरागी लालिमा कपोलों पर।

Kmsraj51 की कलम से…..

Anuragi Lalima Kapolon Par | अनुरागी लालिमा कपोलों पर।

अनुरागी लालिमा कपोलों पर,
छटा इंद्रधनुषी-सी खिल गई।
प्रफुल्लित तरुणी की शायद,
कुमारत्व से नयन मिल गई।

दिन हो गये स्वप्निल-स्वप्निल,
आकुल बाट जोहती क्षुब्ध रजनी।
अंग-प्रत्यंगों में धूप बासंती,
नयन पटों पर खिली चाँदनी।
निंद्रित उर के धड़कन में,
मनभावन नवज्योति जल गई।

जगी मृदुल-मृदुल मादक वेदना,
अकेलेपन के आलिंगन में।
मधुर – मधुर मुग्धित कल्पना,
अरुनारा कमसिन नयन में।
हो गई निंदिया वैरागन-सी,
चेतना खोई निशा ढल गई।

परवाना पतंगे जैसी अभिलाषाएं,
श्वेत-श्याम विहंगों-सी घिरती।
अंतहीन अनंत महाशून्य में,
पंख फैलाये फिर बिचरती।
सशक्त शोभित भुजपाशों की,
बाँहों में आस लिये पल गई।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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रस आनन्द इस होली में।

Kmsraj51 की कलम से…..

Ras Anand is Holi Mein | रस आनन्द इस होली में।

आके हुई प्रकट वह रात होली में,
मिली फागुन की सौगात होली में।
बजी जलतरंग से मिलकर सितारों से,
हुआ तरानों का नृत्य अगाध होली में।
हर्ष-आनन्द का बढ़ा व्यापार होली में,
जिह्वा पर नाम आया बार-बार होली में।

घर-घर रंग सजे उल्लासों की चहल-पहल में,
भर-भर के थाल सजे रंग अबीर गुलालों से।
नश-नश में उमंग आवेग भरे गीत गोविंदों से,
बन-बन दमकती आभा रचते स्वाँगों में,
उमड़ा हुजूम गज़ब हर गली किनारों होली में।

गली चौबारों में शोर मचा इस अवसर में,
बिखरने लगी रंग की धार गली चौराहों में।
भीगे बदन मले गुलाल चेहरों में,
खुशियों की गवाही दे रहा घर-आँगन चौराहों में,
मेला देखने निकले प्रियतम् होली में।

रंग दी चुनरिया फागुन बहार से,
दिल की कामना उभर आई होंठों के द्वार से।
नैना लड़ा के पूँछे हर इक शैदाई से,
रंग – बिरंगी पोशाकों की पैमाईश से,
हसीन चेहरे-मोहरे हर्षोल्लास से भरे होली में।

देख मुखड़े पर मले गुलाल की लाली,
दिलों में भर आई हमारे खुशहाली।
नजर ने दी हमें रमणी रंग से भरी प्याली,
जो हमें दे हँस – हँसकर गाली,
तब हम समझे की ऐसी है प्यार भरी होली में।

हमनें तुमने की इक तरफा तैयारी होली की,
जिसने जिस तरह देखा इस तरफ होली की।
हमारी आन लगती हमको तो प्यारी,
लगा दो हाथ से न मारो पिचकारी होली की,
रंग – बिरंगी सतरंगी रंगों के सिंगार की होली में।

उड़ाओ तुम उधर से हम भी इधर तैयार खड़े,
मलो अबीर गुलाल हँस – हँसकर मुखड़े पर।
खुशी आनन्द का इजहार करो होली पर,
है कसम तुमको इस होली पर।
मिटा दो बैर अपने सारे गिले – शिकवे भी,
इसी उम्मीद में था वतन इंतजार होली में।

मूर्तिमान हो दे गाली हमें हँस – हँसकर,
रंग पड़ता है कपड़ों पर उड़ता गुलाल तन पर।
लगा के घात कोई मुखड़े पर लगाता है,
‘परिमल’ प्यार से कोई कहता है,
हमें भी दिखा तू रस आनन्द इस होली में।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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इक प्रयास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ इक प्रयास। ♦

इक प्रयास। / पार्ट – 1

इक प्रयास (एक प्रयास)।

हममें है सृजनकार भी, हुए कहीं-कहीं लाचार,
बोलना तो आसान है, खामोश रहना दुश्वार।

‘परिमल’ चंड शीत का, खुश्क है इसका इतिहास,
अपगा मेरे आगार की, कलकल करती हर मास।

प्यारे-प्यारे लोग हैं, प्यारा-प्यारा सा संग,
चंपई जैसा रंग है, पंखुड़ियों जैसा अंग।

दाता की देन है, ये उसका नहीं जवाब,
पवन जैसी नींद है, झंझा जैसे ख्वाब।

जब महका उसका तन, आया अनजाना ख़याल,
नागिन जैसी चाल में, बजते हैं कई सुर-ताल।

सावन की बरसात है, रिमझिम सा अहसान,
सतरंगी को मिल गई, इंद्रधनुषी सी मुस्कान।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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मिले न मुझको सच्चे मोती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मिले न मुझको सच्चे मोती। ♦

वन शहर गाँवों में ढूँढ़ा मैनें,
खोजा सागर – तल की गहराई में।
बहुत मिले जन लोग – लुगाई,
पर मिले न मुझको सच्चे मोती।

सिंधु शहर में कोलाहल था,
थलचर जलथल में उछल रहे थे।
इक – दूसरे को निगल रहे,
सगे-संबंधी जीवन से खेल रहे थे।
निज स्वारथ के मनन का,
गठरी दिखी चिंतायें ढोती।

उलझे – उलझे जीव जनावर थे,
चिकनी – चिकनी संवादों में।
भागम – भाग दौड़ लगाती थी,
समर सिंधु के रहने वालों में।
खुद अपने में ही खोई थी,
हर प्राणी की जीवन – ज्योति।

खोज रहा था मैं भव-सुदामन से,
सुनहली चमकीली नग निकाली।
परन्तु सभी पाहन छलिया थी,
रूप – रंग से छलने वाली।
उद्विग्न – घायल आस रह गई,
मन सँजोती सपन धीरज खोती।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: kavita in hindi, poem on life in hindi, Poems of Satish Shekhar Srivastava 'Parimal', short poem in hindi, कविता, मिले न मुझको सच्चे मोती, मिले न मुझको सच्चे मोती - सतीश शेखर श्रीवास्तव – परिमल, मोटिवेशनल कविता हिंदी में, शोर मचाती जब-तब, शोर मचाती जब-तब – सतीश शेखर श्रीवास्तव परिमल, सतीश शेखर श्रीवास्तव – परिमल, सुंदर कविता हिंदी में, हिन्दी-कविता kavita in hindi

शोर मचाती जब-तब।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शोर मचाती जब-तब। ♦

गा रहे पल हरदम,
गुनगुनाती सी शाम है।
उजाले में कशमशा कर,
मचाती शोर जब-तब।

दूर किसी झरोखे से झाँक,
देख रही सदा ये जिंदगी।
कानों में आ-आकर,
कहती कथा कोई पुरागी।

रहती ओट में सदा,
लुक-छिपकर कोलाहल करती है।

अंत:करण की मूक आवाजें,
कलरव करती साँसों में।
थम-थम सी जाती धमनियों को,
चेता जाती आती-जाती आहों में।

खामोश रहती चुपचुप,
गुमसुम-सी चंचल रहती है।

झुरमुट की झँझरी छिदी-छिदी,
झरझर हो गई प्रत्याशा।
क्षणभंगुर-सा जीने को,
राग वेदना गाती शाशा।

सरगम के सुर-तालों में,
वेदना व्यथा बतलाती है।

नोट: शाशा – मनमुख(मन), पुरागी – दफन।
(ये शब्द मैनें कबीलाई भाषा से ली है।)

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (शोर मचाती जब-तब।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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सूना-सूना दूर गगन है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सूना-सूना दूर गगन है। ♦

प्रेम के धागे टूटे, टूटा रक्त का संबंध,
बोलते मुखड़े पर, सूना-सूना दूर गगन है।

रुनझुन गाती भोर है,
दालान की साँझ सुहानी।
कच्ची गलियाँ गाँवों की,
बन गई बिसरी कहानी।
घनी छाँव पीपल की,
ढूँढ़ता श्रापित मन है।

रसभरी अमराईयों की,
वेदना प्राणों में जन्मती।
रह गये आँखों में अश्रु अकेले,
खोजती अँखियां नेह प्रीति।
हाय! बेचैनियाँ अधरों पर,
मोह यादों की चुभन है।

रहा मानस के जंगल में,
पहन स्वांगों के मुखौटे।
हर दिन ताजा चोट लेकर,
किंवाड़ पीछे साँझ लौटे।
कुहासों में घुली साँस है,
घावों की थकन पाँव में है।

निरर्थक सी जिंदगी को,
जी रही गुमसुम उदासी।
श्याम-शित पन्थों पर भटकती,
पी कोलाहल की आशा प्यासी।
अनुरक्ति में कसमसाता वह,
आज तक लड़कपन है।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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लें संकल्प पुनरावर्तन का।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ लें संकल्प पुनरावर्तन का। ♦

अंतस् का विश्वास यह स्वर्ण-चक्र रुके नहीं,
मानस की सुमंगली कुंकुम कभी चुके नहीं।

प्रवाह रहे झिलमिल,
जैसे आदित्य की थाल।
वृन्तों पर अतीत के,
खिले आगम श्रीवास।
नैनों में धूप रक्तिम,
रंग उन अधरों की।
जिसके गातों तनुरूह में,
सिन्धुनंदनी की कली।

छाँव में पलकों के कलाधार कभी थके नहीं,
मानस की सुमंगली कुंकुम कभी चुके नहीं।

मन-आत्मा का अटल विश्वास,
धरा में जैसे ज्वाल रहे।
नजरों की अँगड़ाईयों में,
जैसे अदृश्य मनुहार रहे।
मिट्टी की खुशबू जल में,
विटप-वृंद में बयार रहे।
विचारों की शुचीर्य की,
पैदावार बारंबार रहे।

उर-अंतस्-प्राणों के संघर्षों में वेदनायें कभी दुखे नहीं,
मानस की सुमंगली कुंकुम कभी चुके नहीं।

भावी समय के पन्थ मिले,
अल्पना की कल्पना रंग भरे।
यामित रक्षित कंगूरों पर,
देश भविष्य का दीप धरे।
श्रद्धा आलंब आधार पर,
कभी न धूमिल साँझ घिरे।
आयुष्य प्रखर सुर-ताल बने,
युगों – युगों तक विश्व में,
भारत की जय गान बजे।

चरणों में अनाचार के मनु-आर्य के कभी झुके नहीं,
मानस के सुमंगली कुंकुम कभी चुके नहीं।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

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