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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poet vivek kumar poems

हिंदी मेरी जान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिंदी मेरी जान। ♦

अभिव्यक्ति का माध्यम है हिन्दी,
दिल में प्रेम जगाती हिंदी।
जीवन सरस बनाती हिंदी,
हिंदी से ही है हमारी शान।
हिंदी ही हमारा अभिमान,
हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

हिंदी से होती हमारी पहचान,
इससे बढ़ता राष्ट्र का मान।
हर क्षेत्र में अपना सिक्का जमाती,
लोगों के मन को है लुभाती।
भाव का करती संचार,
हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

जो पूरे राष्ट्र को एकसुत्री धागा में है जोड़,
वो मजबूत डोर है हिंदी।
जन-जन की भाषा है हिंदी,
प्रेम भाईचारे का प्रतीक है हिंदी।
इतना बेमिसाल, जिसकी पहचान,
हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

विशेषताओं से भरे भाषा का,
प्रसार जो होना चाहिए हुआ नहीं।
आओ मिलकर करें प्रचार,
हिंदी का करें खूब विस्तार।
मिलेगा इसे वाजिब हक और सम्मान,
हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अभिव्यक्ति का माध्यम है हिन्दी, दिल में सदैव ही प्रेम जगाती हिंदी, जीवन सरस बनाती हिंदी, हिंदी से ही है हमारी शान। हिंदी ही हमारा अभिमान, वह हिंदी मेरी जान है, हम इस पर कुर्बान। जो पूरे राष्ट्र को एकसुत्री धागा में है जोड़ती वो मजबूत डोर है हिंदी। जन-जन की भाषा है हिंदी, प्रेम भाईचारे का प्रतीक है हिंदी। इतना बेमिसाल, जिसकी पहचान, वह हिंदी मेरी जान। विशेषताओं से भरे भाषा का, प्रसार जो होना चाहिए हुआ नहीं। आओ हमसब मिलकर करें प्रचार, हिंदी का करें खूब विस्तार। तब मिलेगा इसे वाजिब हक और सम्मान, हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर, 1953 को मनाया गया था।

—————

यह कविता (हिंदी मेरी जान।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2022-KMSRAJ51 की कलम से, विवेक कुमार जी की कविताएं।, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: Hindi Day, hindi diwas par kavita in hindi, hindi diwas poem in hindi, hindi diwas poems, Hindi Meri Jaan, Poems On Hindi Diwas, poet vivek kumar poems, vivek kumar, vivek kumar poems, विवेक कुमार, विवेक कुमार की कविताएं, हिंदी दिवस कब मनाया जाता है और क्यों?, हिंदी दिवस कविताएँ, हिंदी दिवस पर 10 सर्वश्रेष्ठ कविता, हिंदी दिवस पर कविता, हिंदी दिवस पर कविता हिंदी में, हिंदी मेरी जान, हिंदी मेरी जान - विवेक कुमार, हिन्दी दिवस

रेशम की डोर बेजोड़।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ रेशम की डोर बेजोड़। ♦

अटूट प्रेम की पक्की डोर,
टूटे कभी न इसका जोड़।
इस रिश्ते का न कोई तोड़,
माथे तिलक, रोरी और चंदन,
बहन ने किया भाई का वंदन।

रक्षासूत्र बांध बहना ने,
लिया भाई से एक वचन।
रक्षक नहीं रक्षा का गुर,
गुरु बन ऐसी शिक्षा दो,
डर का मन में न हो डेरा।

मजबूत और फौलाद बनूं,
खुद की रक्षा सहज कर सकूं।
हमारी मनोदशा ऐसी बने,
न कभी डिगू न कभी झुकूं,
हर बहना का हो यह कहना।

भाई तुम हो मेरा गहना,
भाई बहन का प्यार अनूठा।
इस रिश्ते से न कोई रूठा,
दिल के रिश्तों का यह जोड़,
रेशम की डोर, न होगी कमजोर।

बहन का प्यार, भाई का विश्वास,
इस पर्व को बनाता खास।
सावन पूर्णिमा के दिन है आता,
स्नेह और विश्वास है लाता।
रक्षाबंधन है कहलाता,
रेशम की डोर है बेजोड़।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के पवित्र प्यार का प्रतिक है, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है। रक्षा बंधन पर बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसके दीर्घायु व सुखी जीवन की प्रार्थना करती है। इसके साथ ही बहन अपने भाई से अपनी सुरक्षा का वचन लेती है, की जीवन में जब भी उस पर कोई मुसीबत आएगा उसका भाई उसकी मदद के ली आ जायेगा। एक दूजे के चेहरे को देख मुसीबतें भाप लेते हैं, ऐसा होता है भाई बहन का रिश्ता। रक्षाबंधन हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत समेत अन्य देशों में भी मनाया जाता है।

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यह कविता (रेशम की डोर बेजोड़।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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खाली समय।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ खाली समय। ♦

जब भी बैठिए खाली,
बजाइए जरूर ताली।
शरीर की करती रखवाली,
जैसे हो बाहर वाली।

जब मिले फुर्सत के क्षण,
ईश्वर का कर लो भजन।
मिलेगी मन को शांति,
ना रहेगा कोई भ्रांति।

जब मिले खाली के दो पल,
ऐसा कर जो सोचा हो बिता कल।
खुद से करें बात,
करें कुछ नया करामात।

आंखों को घुमाएं गोल गोल,
जैसे सूरज और चंदा गोल मटोल।
कोयल की निकाले बोली,
जैसे दे रहा हो कोई गाली।

हरकतें करें ऐसी,
दिल खुश हो जाए वैसी।
कभी उठक, कभी बैठक,
साथ में दीजिए आंखों को थोड़ी ठंडक।

आंखों में लगाइए काली,
जैसे हो सुरमा भोपाली।
एक मिनट के लिए हो जाओ मौन,
मिल जायेगा कुछ चैन।

चाय की चुस्की प्याली में,
नयन मटकाईये खाली में।
सिर खुजलाईए बाल खींचिए,
दाएं देखिए, बाएं देखिए।

अजब वाक्या याद कर,
मुस्कान बिखेरिए खुलकर।
खाली समय में भी काफी काम है,
नसीब में कहां लिखा आराम है।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जब हो फुरसत का समय प्रभु का भजन भी कर लिया करो। खाली समय में दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर चाय पीते हुए कुछ फुरसत के पल बिता भी लिया करो, ना जाने कब ये शरीर साथ छोड़ दे, इसलिए प्रेम से दो शब्द बोल लिया करो सभी से। जब भी मिलो किसी से मुस्कुराते हुए मिलो और समय-समय पर ख़ुशी होने पर ताली भी बजा लिया करो मेरे यार। चार दिन की ज़िन्दगी है सभी से हँस बोलकर प्रेम से बिताया करो मेरे यार।

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यह कविता (खाली समय।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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मेरी दुनिया मेरे पापा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मेरी दुनिया मेरे पापा। ♦

मां की ममता का कोई जोड़ नहीं,
पापा के प्यार का कोई तोड़ नहीं।
मां के आंचल में ममता, पसारता पांव,
पेड़ रूपी पिता के नीचे है, निर्मल छांव।
मां होती ईश्वर का रूप,
पिता होते उन्हीं के दूत।
सबसे न्यारे, सबसे प्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

मां हमारी जीवनदायिनी,
पिता हमारे संरक्षण दाता।
मां ममता की होती मूरत,
पिता में दिखता, पालक की सूरत।
मां हमपर करुणा बरसाती,
पिता करते, सर्वस्व न्यौछावर।
सबसे प्यारे, सबसे न्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

पिता वृक्ष की, देते हरदम आभास,
जीवन में उनसे पूरा है, आस।
मां में बसता है, मेरी जान,
मगर पिता से ही है, मेरी पहचान।
बिन सिकन सब दुख सहकर,
करते मेरे सपने साकार।
सबसे प्यारे, सबसे न्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

मां की गोद संग, पिता के कंधे का सहारा,
है दोनों मेरी आंखों के तारा।
ऊपर से सख्त, भीतर से नरम,
ऐसे पिता है, मेरे लिए परम।
मेरे संघर्ष में, हौसले की है दीवार,
इनका कर्ज है, मुझपर अपार।
सबसे प्यारे, सबसे न्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

जीवन में उनके कर्ज न उतार पाएंगे,
मगर बुढ़ापे की लाठी जरूर बन जायेंगे।
उनके आशीष को दिल से लगाकर,
उनके चरणों में मस्तक सदा नमायेंगे।
अपनी आंखों में उन्होंने जो, देखा सपना,
सच करके दिखलाएंगे।
सबसे प्यारे, सबसे न्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — किसी भी बच्चे को माँ की गोद में जो सुख मिलता है – वो संसार में कही और नहीं मिल सकता, तथा जो निडरता और ज्ञान पिता से मिलता है वो किसी भी विश्वविद्यालय से नही मिल सकता। वैसे – माता और पिता दिवस ताे हर मनुष्य काे अपने अंतिम श्वास तक मनाना चाहिये। एक सच्चा पिता सदैव ही अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिये दिन-रात अनवरत (continuously) कार्य करता हैं। जहा माता अपने बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं ताे वही पिता उन्हे सही ज्ञान और समझ देते हैं। जहा प्रथम गुरु माँ हैं ताे वही पिता गुरु हाेने के साथ-साथ सच्चा संरक्षक भी हाेता हैं। हमे अपने पिता से ये सीख भी मिलती है की – समस्या से बचना ही आवश्यक नहीं है, समझदार वाे हैं जाे समस्या से टकराये, और उसे मिटाकर ही दम ले। इतिहास वही बदलते हैं जाे दिन में सपने देखते हैं।

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यह कविता (मेरी दुनिया मेरे पापा।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार। ♦

जीवन है अनमोल, नहीं है इसका कोई तोल,
बिन शिक्षा जीवन का, नहीं है कोई मोल।
शिक्षा से ही मिलता है जग में, मान और सम्मान,
इसी से मिलता है हमें, जीवन का हर ज्ञान।
शिक्षा बिन अधूरा, हम सब का जीवन,
अगर जीवन को बनाना है धारदार,
सुन लें पुकार चलो शिक्षा के द्वार॥

सारे काम छोड़कर, चलना है स्कूल,
गांठ ये बांध लो, होकर के कूल।
जीवन है अपना, जीना है सपना,
उन सपनों की भरने उड़ान।
शिक्षा ही है बस एक गहना, बात मेरी मान,
अगर जीवन को बनाना है धारदार,
सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार॥

ओ मछली पकड़ने वालों, ओ बिन मतलब,
भटकने वालों, बात अब ये मान लो।
शिक्षा के महत्व को पहचान लो,
जीवन संवर जायेगा, इससे नाता जोड़ लो।
शिक्षा का अधिकार मिला है, बात ये जान लो,
अगर जीवन को बनाना है धारदार,
सुन लें पुकार चलो शिक्षा के द्वार॥

सूबे सह राष्ट्र के सभी अभिभावकगण से,
आरजू विनती विवेक की है आज से।
जब शिक्षा ही घरद्वार तो फिर कैसी तकरार,
सारे काम छोड़कर, ज्ञान के मंदिर में बच्चों को खुद पहुंचाए जरूर।
हर हाल में बच्चों को भेजिए स्कूल, बिलकुल टेंशन भूल,
अगर बच्चे के जीवन को बनाना है धारदार,
सुन लें पुकार चलो शिक्षा के द्वार॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — शिक्षा मनुष्य के अंदर अच्छे विचारों को भरती है और अंदर में प्रविष्ठ बुरे विचारों को निकाल बाहर करती है। शिक्षा मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। यह मनुष्य को समाज में प्रतिष्ठित करने का कार्य करती है। इससे मनुष्य के अंदर मनुष्यता आती है। शिक्षा हमें विभिन्न प्रकार का ज्ञान और प्रैक्टिकल कौशल को प्रदान करती है। यह सीखने की एक निरंतर, धीमी और सुरक्षित प्रक्रिया है, जो हमें ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो हमारे जन्म के साथ ही शुरु हो जाती है और हमारे जीवन के साथ ही खत्म होती है। ज्ञान धन सदैव ही हमारी मदद करती है, चाहे परिस्थिति, काल व जगह कैसी भी हो। शिक्षा लोगों के मस्तिष्क को बड़े स्तर पर विकसित करने का कार्य करती है।

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यह कविता (सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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आओ मिलकर चलें स्कूल।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आओ मिलकर चलें स्कूल। ♦

नन्हें नन्हें कदमों से,
चहलकदमी करते हुए।
प्रकृति की अनुपम बेला में,
भरकर चेहरे पर मुस्कान।
सपनों का संग करके ध्यान,
साथियों संग एक होकर।
सब कुछ जाओ तुम भूल,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

घर से निकले,
आशा संग उमंग लिए।
चारों तरफ बजती शिक्षा की धुन,
यही है इसका सबसे बड़ा गुण।
कुछ बनने की अब चली पवन,
साथियों संग एक होकर।
सब कुछ जाओ तुम भूल,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

चलो ज्ञान का दीप जलाएं,
मिलकर हमसब हाथ बढ़ाएं।
कदम से कदम मिलाएं,
एक एक कर संग हो जाएं।
शिक्षा का अलख जगाएं,
साथियों संग एक होकर।
सब कुछ जाओ तुम भूल,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

हेमा आओ, रानी आओ,
पुन्नू आओ, साक्षी आओ।
हम भी आएं तुम भी आओ,
संग मिलकर अब एक हो जाओ।
मीना मंच और बाल संसद संग,
सब मिलकर गाएं एक ही धुन।
स्कूल चले स्कूल चले स्कूल चले हम,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

जज्बा और विश्वास लिए,
कंधे पर बस्ते का बोझ लिए।
निकल पड़े होकर निडर,
पाने की चाहत ने आखिर।
दिया शिक्षा का अनुपम वरदान,
साथियों संग एक होकर।
सब कुछ जाओ तुम भूल,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — बचपन स्कूल और हम बच्चे व हमारा बचपन। बचपन का उमंग व जोश – उत्साह के साथ सबकुछ भूलकर नन्हें नन्हें कदमों से चहलकदमी करते हुए, प्रकृति की अनुपम बेला में भरकर चेहरे पर मुस्कान, सपनों का संग करके ध्यान, साथियों संग एक होकर, आओ मिलकर हमसब चलें स्कूल। कदम से कदम मिलाकर सत्यता का पाठ पढ़ने-पढ़ाने हम बच्चे मन के सच्चे अपने नन्हें नन्हें कदमों से चहलकदमी करते हुए आओ मिलकर हमसब चलें स्कूल।

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यह कविता (आओ मिलकर चलें स्कूल।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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सुरों की मल्लिका को नमन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सुरों की मल्लिका को नमन। ♦

सुरों की साज और तेरा काज,
मां शारदे का हाथ और तेरा राज,
समझ न पाएं हम मूढ़ आज,
सहसा दिल पर गिरा गाज,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

स्वर भी जिसका करता गुणगान,
वो कोई और नहीं थी इंसान,
हमारी लता जी थी वो महान,
गायिकी से जिसने बढ़ाया देश का मान,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

कला जगत की तुम थी सिरमौर,
नहीं था तुम्हारा कोई जोर,
लता दीदी तुम थी बेजोड़,
आपके जादू का नहीं था कोई तोड़,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

जिनके गीत से झूमी दुनिया सारी,
तुम लता जी अमिट पहचान हो हमारी,
गाए आपके गीत प्रेरणा देती तुम्हारी,
कोई न कर सकता तुम्हारी बराबरी,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

हमारे दिल की धड़कन हो तुम,
तेरा यूं जाना गम देगा हरदम,
तेरे समर्पण को सजदा करते है हम,
अपूरणीय क्षति से हमारे साथ स्तब्ध है सरगम,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

हमारे दिल की धड़कन हो तुम,
तेरा यूं जाना गम देगा हरदम,
तेरे समर्पण को सजदा करते है हम,
अपूरणीय क्षति से हमारे साथ स्तब्ध है सरगम,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

मेरे प्रिय पाठकों आपको सपरिवार बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।-KMSRAJ51

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — मां शारदे का उन पर था अनमोल वरदान, वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में अनमोल संरचना थी हमारी लता जी। स्वर भी जिसका करता गुणगान, वो कोई और नहीं थी इंसान, हमारी लता जी थी वो महान, गायिकी से जिसने बढ़ाया देश का मान। कला जगत की तुम थी सिरमौर, नहीं था तुम्हारा कोई जोर, लता दीदी तुम थी बेजोड़। लता मंगेशकर (28 सितंबर 1929 – 6 फ़रवरी 2022) भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थीं, जिनका छः दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालाँकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायिका के रूप में रही है।

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यह कविता (सुरों की मल्लिका को नमन।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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बालमन के घुंघरू चाचा नेहरू।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बालमन के घुंघरू चाचा नेहरू। ♦

निश्छल निर्मल स्वर्ण धरा पर,
कोमल संग मुस्कान लिए।
कच्ची मिट्टी सा मन है जिसका,
भविष्य जिसके भाल है।
नव निर्माण का जो आधार,
जिसके मन भांप बजाते थे थमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

बहुत सारे दिवस है आते,
बालमन को कोई कोई पहचाने।
मासूमियत भरी जिनकी निगाहें,
नटखट निराली बोली जिनकी।
सत्य की जो ईश्वरत्व आधार,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

बच्चों संग बच्चे बन जाते,
भावनाओं का करते सम्मान।
प्रथम नागरिक के समान,
उनकी महिमा का कैसे करें बखान।
बच्चों के लिए हर पल करते जतन,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

बच्चे है ईश्वरत्व की अनमोल देन,
मौलिक अधिकार है उनका हक।
फिर क्यूं मिलता नहीं वाजिब हक,
नेहरू जी ने उसे पहचाना।
उनके अधिकार दिलाने हेतु थे प्रतिबद्ध,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

भावी पीढ़ी के कर्णधार,
शिक्षा मिले सभी को समान अधिकार।
बाल शोषण का सब मिलकर करें काम तमाम,
बच्चें करेंगे स्वछंद विहार।
तभी सपने होंगे साकार,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

बाल दिवस पर आज करें विचार,
सब मिलकर बनाएं सुदृढ संसार।
ऐसा बनाएं चमन नाचे गाएं होकर मगन,
बच्चे मन के सच्चे, सारी जग की आंखों के तारे।
वो नन्हें फूल खिले भगवान को लगते प्यारे,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

आप सभी को प्रेम पूर्वक तहे दिल से बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — बच्चे मन के सच्चे होते है, वे कुम्हार के चाक पर रखे मिट्टी के समान होते है, उन्हें जैसा ढालना चाहे ढाल सकते हैं। बच्चों को संस्कारवान, परोपकारी व दया, प्रेम, धैर्य के गुणों से सिंचित करना चाहिए, क्योंकि किसी भी देश का भविष्य उस देश के बच्चों पर ही निर्भर होता हैं। बच्चे आने वाले कल के सूत्रधार है। बच्चों पर कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए, यदि बच्चे कोई गलती करे तो उन्हें प्यार से समझा दे। कभी भी उनकी पिटाई न करे, पिटाई करने से उनके मन में आपके प्रति घृणा का भाव उत्पन्न होने लगता है, ऐसे बच्चे आगे चलकर बहुत ही गलत कदम उठाने लगते हैं। अतः सदैव ही बच्चों को प्रेम से ही समझाना चाहिए, जिससे वो समझ भी जाए, और उनके बाल मन पर कोई बुरा प्रभाव भी न पड़े।

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यह कविता (बालमन के घुंघरू चाचा नेहरू।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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हे छठी मईया भर द झोलिया हमार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हे छठी मईया भर द झोलिया हमार। ♦

आस्था और विश्वास का, सबसे अनूठा पर्व,
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को आता, यह महापर्व।
षष्ठी तिथि के कारण इसे, कहा जाता छठ, होता है गर्व,
मनोवांछित फल पाने की लालसा में, व्रती करती सब्र।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

चार दिनों का यह पावन पर्व, अतुल्य अनमोल,
साक्षात ईश्वर के दर्शन का, बड़ा ही है मोल।
नहाय खाय से इस व्रत का, होता है आगाज,
दिल में लिए समर्पण भाव, व्रती करती काज।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

चार दिनों के पर्व में पहला दिन, होता काफी अहम,
घर की साफ सफाई से हर व्रती, शुरू करती काम।
कद्दू की सब्जी का उस दिन, महत्तम है अपार,
सबसे बड़े इस पर्व की महिमा है अपरम्पार।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

पर्व का दूसरा दिन खरना या लोहंडा काफी खास,
इस दिन व्रती करती पूर्ण उपवास।
बड़े निर्मल मनोभाव से बनाती प्रसाद, लेकर आस,
सूर्यदेव को नैवैद्य दे, करती एकांतवास।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

36 घंटों के व्रत के तीसरे दिन, पूरी होती मुराद,
मिलन की आस, संध्या अर्घ्य देती, संग प्रसाद।
प्रसाद में ठेकुआ, इस पर्व को बनाता खास,
सभी व्रती सूर्यदेव की कर पांच परिक्रमा, नमाती शीश।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

महापर्व का अंतिम दिन सूर्योपासना के बाद,
उषा अर्घ्य दे पूर्ण करती व्रत, उठाकर प्रसाद।
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए,
प्रसिद्ध लोकगीत, हर छठ व्रती गुनगुनाती जाए।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

अंत में इस पर्व का विशेष महत्व, सुने सज्जन जन,
ऐसी मान्यता है अपार, व्रत करे जो सच्चे मन।
छठी मईया पूरी करती, मन में हो जो जतन,
मुरादे होती पूरी, होता जग का कल्याण।
इसलिए व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — छठी मैया का व्रत को कैसे करना है? छठी मैया का व्रत करने से अनादि काल से ही लोगों को सूर्यदेव से मन चाहा फल मिलता आया है। समय समय पर जिस किसी ने भी सच्चे मन से छठी मैया का व्रत रख कर सूर्य देव की आराधना की है उसे जरूर मनोवांछित फल मिलता है। इस व्रत को कुवारी कन्या नहीं रख सकती। जिस जिस ने पूजा सच्चे मन से सूर्य देव को किया उनका कल्याण सूर्य देव ने। आओ मिलकर सूर्य भक्ति में छठ की अलख जगायें। करें वंदना चार दिनों तक, दो दिन नमक न खाएं। अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य प्रथम चढ़ाएं। होते सवेरे दूसरे दिन फिर जाकर सूरज को मनाए।

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यह कविता (हे छठी मईया भर द झोलिया हमार।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली। ♦

दो शब्दों की दिवाली लाती घर-घर खुशहाली,
दीप से दीपक बना श्रृंखला बनाती आवली।
खुशियों से दामन भर जाती भरकर थाली,
मन की तरंगे संग मिल जाती होती मतवाली।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

दिवाली तमस मिटाती घनघोर घटा काली,
मन में फैले अंधियारों को दूर भगाने वाली।
राम का सत्कर्म सत्य की आभा दिखलाती,
जन-जन को संदेश है देती असत्य है नाली।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

तमसो मा ज्योतिर्गमय: है बताती दीपावली,
दीपों की चमक से जगमगाती अमावस्या की काली।
दिवाली बुराई पर अच्छाई की जीत बतलाती,
अज्ञानता पर ज्ञान और निराशा पर आश है लाती।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

हमारा मन खाली रहता है हम करते काली,
अगर हमें चाहिए हर घर सुख शांति वाली।
मन के काली को इस दिवाली करनी होगी लाली,
सबके घर लक्ष्मी मईया भरकर देंगे झोली।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

दीप से दीप मिले बन जाती एकता निराली,
मन से मन आज मिल जाए बजेंगी सद्भावना की ताली।
हर दिल को साफ करती है हमारी दिवाली,
आज मिलकर प्रण करें मिटायेगे दिलों की काली।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — संस्कारों का, धैर्य का, इंसानियत, ईमानदारी व भाईचारे के लिए भी एक ज्योत जगा लो। हम सब जानते है की सदैव से ही त्याग का प्रतीक है दीप और सत्य की मशाल है दीप। अपने मन मंदिर में एक दीप जला लो, सुकून का एक ज्योत जगा लो। दिवाली तमस मिटाती घनघोर विकारों वाली घटा काली, सदैव से ही मन में फैले अंधियारों को दूर भगाने वाली दिवाली। राम का सत्कर्म सत्य की आभा दिखलाती ये दिवाली, जन-जन को संदेश है देती असत्य है समान नाली के, दिवाली बुराई पर अच्छाई की जीत बतलाती, अज्ञानता पर ज्ञान और निराशा पर आश है लाती। मन के इस काली को इस दिवाली करनी होगी लाली, सबके घर लक्ष्मी मईया भरकर देंगे झोली। हर दिल को साफ करती है हमारी दिवाली, आज मिलकर प्रण करें मिटायेगे दिलों की काली। दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली।

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यह कविता (दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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