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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poet vivek kumar poems

मेरा चांद मुझे आया है नजर।

Kmsraj51 की कलम से…..

Mera Chand Mujhe Aaya Hai Nazar | मेरा चांद मुझे आया है नजर।

she starts her fast by staying without water, she pleads to Karva Mata, may my beloved live a thousand or two thousand years, don't make me wait anymore, just show me your face. I have seen my moon.

कब आओगे,
कर रही इंतजार,
नैना हो रही लाचार,
सज संवर कर बैठी तैयार,
सजाकर माथे पर बिंदिया,
साथ में गले का हार,
रचा रखी हाथों में मेहंदी,
बस कर रही एक पुकार,
कब आओगे?

जिसका है इंतजार,
हर सुहागिन जिसकी करती आस,
दिल में बसा राखी विश्वास,
निर्जला रह, करती व्रत की शुरुआत,
करवा माता से लगाती गुहार,
पिया की उम्र हो हजार दो हजार,
अब न तरसाओ,
जरा दर्श तो दिखलाओ।

तेरे दीदार में मन हो रहा अधीर,
अब तो आ जाओ,
नयनों की प्यास बुझाओ,
पूरी कर दो मेरी आस,
आ जाओ मेरे पास।

क्यों रूठकर बैठे हो,
कहां छुपकर बैठे हो,
आ जाओ भी एक बार,
पुकार सुन,
शायद चांद को आई रहम,
जिस चांद का कर रही थी इंतजार,
वो चांद मुझे आया है नजर।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता एक सुहागन के इंतजार और प्रेम की गहराई को दर्शाती है। कविता में वह अपने पति के आगमन की प्रतीक्षा कर रही है, सज-धजकर तैयार बैठी है, माथे पर बिंदी और हाथों में मेहंदी रचाई है। उसका मन व्याकुल है, और वह लगातार अपने पति के लौटने की पुकार कर रही है। करवा चौथ के व्रत में वह निर्जला रहकर, करवा माता से अपने पति की लंबी उम्र की कामना कर रही है।वह पति से रूठने या छुपने का कारण पूछती है, और उसे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पुकारती है। अंत में, उसे प्रतीक्षा में राहत मिलती है जब वह चांद को देखती है, जिसका उसे लंबे समय से इंतजार था।

—————

यह कविता (मेरा चांद मुझे आया है नजर।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। भोला सिंह हाई स्कूल पुरुषोत्तम, कुरहानी में अभी एक शिक्षक के रूप में कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2024-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: mera chand mujhe aaya hai nazar, poet vivek kumar poems, vivek kumar, मेरा चांद मुझे आया है नजर, विवेक कुमार, विवेक कुमार जी की कविताएं

हिंदी का मान बढ़ाएंगे।

Kmsraj51 की कलम से…..

Hindi Ka Maan Badhayenge | हिंदी का मान बढ़ाएंगे।

The poet tells that Hindi is the language that is learned from the mother and gets respect all over the world.

जो भाषा मां से सीखी जाती,
जग में सबका मान बढ़ाती,
एकता का प्रतीक बन जाती,
उसकी गाथा जन-जन को बतलाएंगे,
उस हिंदी का मान बढ़ाएंगे।

हिंदी की बिंदी जिसके भाल,
प्रकृति भी बिन पूछें न चलती चाल,
संस्कृति की जिससे होती पहचान,
उसकी गाथा जन-जन को बतलाएंगे,
उस हिंदी का मान बढ़ाएंगे।

हिंदी ही है सुर संगीत और तान,
इसीलिए मेरा देश कहलाता महान,
सरल सौम्य स्वभाव है जिनका,
उसकी गाथा जन-जन को बतलाएंगे,
उस हिंदी का मान बढ़ाएंगे।

जो है देश की आन बान और शान,
जिससे बढ़ता है देश का मान,
जिस भाषा पर हमसभी को है नाज,
उसकी गाथा जन-जन को बतलाएंगे,
उस हिंदी का मान बढ़ाएंगे।

अक्षर से अक्षर का ज्ञान कराती,
उच्चारण में जिसके स्पष्टता है होती,
जो प्रभावमयी और गतिशील है होती,
उसकी गाथा जन-जन को बतलाएंगे,
उस हिंदी का मान बढ़ाएंगे।

हिंदी हिंदुस्तान की पहचान है,
इस हिंदी के बिना जीवन वीरान है,
जिससे ही मिला जग में सम्मान है,
वो कोई और नहीं हिंदी हिंदुस्तान हैं,
उस हिंदी का मान बढ़ाएंगे।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता हिंदी भाषा के महत्व और गौरव को दर्शाती है। कवि बताता है कि हिंदी वह भाषा है जो मां से सीखी जाती है और पूरे संसार में सम्मान दिलाती है। यह एकता का प्रतीक बनती है और लोगों को जोड़ने का काम करती है। हिंदी हमारी संस्कृति और पहचान का स्रोत है, और इसके बिना जीवन अधूरा है। यह सरल, सौम्य, और स्पष्ट भाषा है जो हमारे देश की आन, बान और शान है। इस कविता के माध्यम से कवि यह प्रतिज्ञा करता है कि वह जन-जन तक हिंदी की महानता को पहुंचाएगा और हिंदी का मान बढ़ाएगा।

—————

यह कविता (हिंदी का मान बढ़ाएंगे।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। भोला सिंह हाई स्कूल पुरुषोत्तम, कुरहानी में अभी एक शिक्षक के रूप में कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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आजादी का मर्म।

Kmsraj51 की कलम से…..

Marm of Freedom | आजादी का मर्म।

Wake up, rise up, don't stay silent now, fight back against the atrocities, do it yourself and tell others, sing the praises of freedom. The essence of freedom.

आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं,
वीरों की उन शहादतों की
याद दिलाने आया हूं।
गुलामी की दासताओं का
दर्द सुनाने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं।

बातें उन दिनों की है जब बेड़ियों में
जकड़ा देश हमारा था,
त्राहि-त्राहि लोग कर रहे
जुल्मों सितम करारा था।
फिरंगियों की दास्तानों से
थर्राया देश हमारा था,
खिलाफ बोलने वालों की
सरेआम चमड़ी उधेड़ी थी।

अंग्रेजों के जुल्मों ने मन में
उबाल मचाया था,
विरुद्ध बोलने की हिमाकत
नहीं किसी ने उठाई थी।
यातनाओं से तंग आ चुका
एक वीर मर्द पुराना था,
सपूत वो कोई और नहीं
मंगल पांडे का जमाना था।

धीरे-धीरे आग की लौ
पूरे देश में थी फैल गई,
गुलामी के दंश के बीच
आजादी की हवा फैल गई।
कुंवर सिंह और झांसी ने
मोर्चा खूब संभाला था,
उनकी शहादत को देश ने
सीने में बड़े संभाला था।

परतंत्रता के घाव पर
बापू ने मरहम लगाई थी,
लाल बाल पाल की तिकड़ी ने
आजादी की झलक दिखाई थी।
खूनी खेल, खेल रहे फिरंगी को
सबक सबने सिखाई थी,
सभी के प्रयासों से अंत में
आजादी हमने पाई थी।

सोने की चिड़ियां को आज
आजादी के मर्म का भान है,
फिर हम क्यूं भूल गए उन वीरों को
जिसका सभी को ज्ञान है।
एक बार पुनः उन यादों को
ताजा करने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं।

जिस आजादी के लिए
कुर्बानी दी जहान रे,
यूं ही हम भूल रहे
खो रहा हमारा मान रे।
जागो उठो अब चुप न रहो
जुल्मों का तुम प्रतिकार करो,
खुद करो औरों को बोलो
आजादी का गुणगान करो।

भूल रहे उन मर्मों की
याद कराने आया हूं,
वीरों की उन शहादतों की
याद दिलाने आया हूं।
गुलामी की दसताओं का
दर्द सुनाने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं।

बीती यादों को ताजा कर
सबक सिखाने आया हूं,
हुंकार भरने आया हूं,
संकल्पित करने आया हूं।
देश भक्ति का भाव जगा
सपना साकार करने आया हूं।

अमन चैन संग मिट्टी की
सौंधी खुशबू बिखेरने आया हूं,
वंदे मातरम् के गान का
अर्थ बताने आया हूं।
आजादी का राग सुना
जज्बात जगाने आया हूं,
वीरों की कहानी याद दिला,
आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कवि युवाओं को आजादी के महत्व और वीर शहीदों की कुर्बानियों को याद दिलाने आये है। वह उन दिनों का वर्णन करते है जब भारत अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ा हुआ था, और लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। अंग्रेजों के अत्याचारों ने देशवासियों को विद्रोह करने पर मजबूर कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप मंगल पांडे और अन्य वीरों ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत की। धीरे-धीरे यह विद्रोह पूरे देश में फैल गया, और वीरों ने मोर्चा संभाल लिया। कवि महात्मा गांधी, लाल-बाल-पाल की तिकड़ी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को याद दिलाते हुए बताते है कि कैसे उनके प्रयासों से अंततः भारत ने आजादी पाई। वह इस बात पर भी जोर देते है कि आज के युवाओं को उन वीरों और उनकी कुर्बानियों को नहीं भूलना चाहिए, बल्कि उनके बलिदानों का सम्मान करना चाहिए।कवि युवाओं को जागरूक करने और उन्हें देशभक्ति के लिए प्रेरित करने आये है। वह उन्हें याद दिलाते है कि हमें अपनी आजादी का सम्मान करना चाहिए और उसके महत्व को समझना चाहिए। अंत में, वह देशभक्ति की भावना जागृत करने और आजादी के महत्व को समझाने का आह्वान करते है।

—————

यह कविता (आजादी का मर्म।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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हिंदी मेरी जान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिंदी मेरी जान। ♦

अभिव्यक्ति का माध्यम है हिन्दी,
दिल में प्रेम जगाती हिंदी।
जीवन सरस बनाती हिंदी,
हिंदी से ही है हमारी शान।
हिंदी ही हमारा अभिमान,
हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

हिंदी से होती हमारी पहचान,
इससे बढ़ता राष्ट्र का मान।
हर क्षेत्र में अपना सिक्का जमाती,
लोगों के मन को है लुभाती।
भाव का करती संचार,
हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

जो पूरे राष्ट्र को एकसुत्री धागा में है जोड़,
वो मजबूत डोर है हिंदी।
जन-जन की भाषा है हिंदी,
प्रेम भाईचारे का प्रतीक है हिंदी।
इतना बेमिसाल, जिसकी पहचान,
हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

विशेषताओं से भरे भाषा का,
प्रसार जो होना चाहिए हुआ नहीं।
आओ मिलकर करें प्रचार,
हिंदी का करें खूब विस्तार।
मिलेगा इसे वाजिब हक और सम्मान,
हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अभिव्यक्ति का माध्यम है हिन्दी, दिल में सदैव ही प्रेम जगाती हिंदी, जीवन सरस बनाती हिंदी, हिंदी से ही है हमारी शान। हिंदी ही हमारा अभिमान, वह हिंदी मेरी जान है, हम इस पर कुर्बान। जो पूरे राष्ट्र को एकसुत्री धागा में है जोड़ती वो मजबूत डोर है हिंदी। जन-जन की भाषा है हिंदी, प्रेम भाईचारे का प्रतीक है हिंदी। इतना बेमिसाल, जिसकी पहचान, वह हिंदी मेरी जान। विशेषताओं से भरे भाषा का, प्रसार जो होना चाहिए हुआ नहीं। आओ हमसब मिलकर करें प्रचार, हिंदी का करें खूब विस्तार। तब मिलेगा इसे वाजिब हक और सम्मान, हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर, 1953 को मनाया गया था।

—————

यह कविता (हिंदी मेरी जान।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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रेशम की डोर बेजोड़।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ रेशम की डोर बेजोड़। ♦

अटूट प्रेम की पक्की डोर,
टूटे कभी न इसका जोड़।
इस रिश्ते का न कोई तोड़,
माथे तिलक, रोरी और चंदन,
बहन ने किया भाई का वंदन।

रक्षासूत्र बांध बहना ने,
लिया भाई से एक वचन।
रक्षक नहीं रक्षा का गुर,
गुरु बन ऐसी शिक्षा दो,
डर का मन में न हो डेरा।

मजबूत और फौलाद बनूं,
खुद की रक्षा सहज कर सकूं।
हमारी मनोदशा ऐसी बने,
न कभी डिगू न कभी झुकूं,
हर बहना का हो यह कहना।

भाई तुम हो मेरा गहना,
भाई बहन का प्यार अनूठा।
इस रिश्ते से न कोई रूठा,
दिल के रिश्तों का यह जोड़,
रेशम की डोर, न होगी कमजोर।

बहन का प्यार, भाई का विश्वास,
इस पर्व को बनाता खास।
सावन पूर्णिमा के दिन है आता,
स्नेह और विश्वास है लाता।
रक्षाबंधन है कहलाता,
रेशम की डोर है बेजोड़।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के पवित्र प्यार का प्रतिक है, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है। रक्षा बंधन पर बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसके दीर्घायु व सुखी जीवन की प्रार्थना करती है। इसके साथ ही बहन अपने भाई से अपनी सुरक्षा का वचन लेती है, की जीवन में जब भी उस पर कोई मुसीबत आएगा उसका भाई उसकी मदद के ली आ जायेगा। एक दूजे के चेहरे को देख मुसीबतें भाप लेते हैं, ऐसा होता है भाई बहन का रिश्ता। रक्षाबंधन हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत समेत अन्य देशों में भी मनाया जाता है।

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यह कविता (रेशम की डोर बेजोड़।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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खाली समय।

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♦ खाली समय। ♦

जब भी बैठिए खाली,
बजाइए जरूर ताली।
शरीर की करती रखवाली,
जैसे हो बाहर वाली।

जब मिले फुर्सत के क्षण,
ईश्वर का कर लो भजन।
मिलेगी मन को शांति,
ना रहेगा कोई भ्रांति।

जब मिले खाली के दो पल,
ऐसा कर जो सोचा हो बिता कल।
खुद से करें बात,
करें कुछ नया करामात।

आंखों को घुमाएं गोल गोल,
जैसे सूरज और चंदा गोल मटोल।
कोयल की निकाले बोली,
जैसे दे रहा हो कोई गाली।

हरकतें करें ऐसी,
दिल खुश हो जाए वैसी।
कभी उठक, कभी बैठक,
साथ में दीजिए आंखों को थोड़ी ठंडक।

आंखों में लगाइए काली,
जैसे हो सुरमा भोपाली।
एक मिनट के लिए हो जाओ मौन,
मिल जायेगा कुछ चैन।

चाय की चुस्की प्याली में,
नयन मटकाईये खाली में।
सिर खुजलाईए बाल खींचिए,
दाएं देखिए, बाएं देखिए।

अजब वाक्या याद कर,
मुस्कान बिखेरिए खुलकर।
खाली समय में भी काफी काम है,
नसीब में कहां लिखा आराम है।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जब हो फुरसत का समय प्रभु का भजन भी कर लिया करो। खाली समय में दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर चाय पीते हुए कुछ फुरसत के पल बिता भी लिया करो, ना जाने कब ये शरीर साथ छोड़ दे, इसलिए प्रेम से दो शब्द बोल लिया करो सभी से। जब भी मिलो किसी से मुस्कुराते हुए मिलो और समय-समय पर ख़ुशी होने पर ताली भी बजा लिया करो मेरे यार। चार दिन की ज़िन्दगी है सभी से हँस बोलकर प्रेम से बिताया करो मेरे यार।

—————

यह कविता (खाली समय।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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मेरी दुनिया मेरे पापा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मेरी दुनिया मेरे पापा। ♦

मां की ममता का कोई जोड़ नहीं,
पापा के प्यार का कोई तोड़ नहीं।
मां के आंचल में ममता, पसारता पांव,
पेड़ रूपी पिता के नीचे है, निर्मल छांव।
मां होती ईश्वर का रूप,
पिता होते उन्हीं के दूत।
सबसे न्यारे, सबसे प्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

मां हमारी जीवनदायिनी,
पिता हमारे संरक्षण दाता।
मां ममता की होती मूरत,
पिता में दिखता, पालक की सूरत।
मां हमपर करुणा बरसाती,
पिता करते, सर्वस्व न्यौछावर।
सबसे प्यारे, सबसे न्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

पिता वृक्ष की, देते हरदम आभास,
जीवन में उनसे पूरा है, आस।
मां में बसता है, मेरी जान,
मगर पिता से ही है, मेरी पहचान।
बिन सिकन सब दुख सहकर,
करते मेरे सपने साकार।
सबसे प्यारे, सबसे न्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

मां की गोद संग, पिता के कंधे का सहारा,
है दोनों मेरी आंखों के तारा।
ऊपर से सख्त, भीतर से नरम,
ऐसे पिता है, मेरे लिए परम।
मेरे संघर्ष में, हौसले की है दीवार,
इनका कर्ज है, मुझपर अपार।
सबसे प्यारे, सबसे न्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

जीवन में उनके कर्ज न उतार पाएंगे,
मगर बुढ़ापे की लाठी जरूर बन जायेंगे।
उनके आशीष को दिल से लगाकर,
उनके चरणों में मस्तक सदा नमायेंगे।
अपनी आंखों में उन्होंने जो, देखा सपना,
सच करके दिखलाएंगे।
सबसे प्यारे, सबसे न्यारे,
मेरी दुनिया, मेरे पापा संवारे।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — किसी भी बच्चे को माँ की गोद में जो सुख मिलता है – वो संसार में कही और नहीं मिल सकता, तथा जो निडरता और ज्ञान पिता से मिलता है वो किसी भी विश्वविद्यालय से नही मिल सकता। वैसे – माता और पिता दिवस ताे हर मनुष्य काे अपने अंतिम श्वास तक मनाना चाहिये। एक सच्चा पिता सदैव ही अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिये दिन-रात अनवरत (continuously) कार्य करता हैं। जहा माता अपने बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं ताे वही पिता उन्हे सही ज्ञान और समझ देते हैं। जहा प्रथम गुरु माँ हैं ताे वही पिता गुरु हाेने के साथ-साथ सच्चा संरक्षक भी हाेता हैं। हमे अपने पिता से ये सीख भी मिलती है की – समस्या से बचना ही आवश्यक नहीं है, समझदार वाे हैं जाे समस्या से टकराये, और उसे मिटाकर ही दम ले। इतिहास वही बदलते हैं जाे दिन में सपने देखते हैं।

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यह कविता (मेरी दुनिया मेरे पापा।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार। ♦

जीवन है अनमोल, नहीं है इसका कोई तोल,
बिन शिक्षा जीवन का, नहीं है कोई मोल।
शिक्षा से ही मिलता है जग में, मान और सम्मान,
इसी से मिलता है हमें, जीवन का हर ज्ञान।
शिक्षा बिन अधूरा, हम सब का जीवन,
अगर जीवन को बनाना है धारदार,
सुन लें पुकार चलो शिक्षा के द्वार॥

सारे काम छोड़कर, चलना है स्कूल,
गांठ ये बांध लो, होकर के कूल।
जीवन है अपना, जीना है सपना,
उन सपनों की भरने उड़ान।
शिक्षा ही है बस एक गहना, बात मेरी मान,
अगर जीवन को बनाना है धारदार,
सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार॥

ओ मछली पकड़ने वालों, ओ बिन मतलब,
भटकने वालों, बात अब ये मान लो।
शिक्षा के महत्व को पहचान लो,
जीवन संवर जायेगा, इससे नाता जोड़ लो।
शिक्षा का अधिकार मिला है, बात ये जान लो,
अगर जीवन को बनाना है धारदार,
सुन लें पुकार चलो शिक्षा के द्वार॥

सूबे सह राष्ट्र के सभी अभिभावकगण से,
आरजू विनती विवेक की है आज से।
जब शिक्षा ही घरद्वार तो फिर कैसी तकरार,
सारे काम छोड़कर, ज्ञान के मंदिर में बच्चों को खुद पहुंचाए जरूर।
हर हाल में बच्चों को भेजिए स्कूल, बिलकुल टेंशन भूल,
अगर बच्चे के जीवन को बनाना है धारदार,
सुन लें पुकार चलो शिक्षा के द्वार॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — शिक्षा मनुष्य के अंदर अच्छे विचारों को भरती है और अंदर में प्रविष्ठ बुरे विचारों को निकाल बाहर करती है। शिक्षा मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। यह मनुष्य को समाज में प्रतिष्ठित करने का कार्य करती है। इससे मनुष्य के अंदर मनुष्यता आती है। शिक्षा हमें विभिन्न प्रकार का ज्ञान और प्रैक्टिकल कौशल को प्रदान करती है। यह सीखने की एक निरंतर, धीमी और सुरक्षित प्रक्रिया है, जो हमें ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो हमारे जन्म के साथ ही शुरु हो जाती है और हमारे जीवन के साथ ही खत्म होती है। ज्ञान धन सदैव ही हमारी मदद करती है, चाहे परिस्थिति, काल व जगह कैसी भी हो। शिक्षा लोगों के मस्तिष्क को बड़े स्तर पर विकसित करने का कार्य करती है।

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यह कविता (सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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आओ मिलकर चलें स्कूल।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आओ मिलकर चलें स्कूल। ♦

नन्हें नन्हें कदमों से,
चहलकदमी करते हुए।
प्रकृति की अनुपम बेला में,
भरकर चेहरे पर मुस्कान।
सपनों का संग करके ध्यान,
साथियों संग एक होकर।
सब कुछ जाओ तुम भूल,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

घर से निकले,
आशा संग उमंग लिए।
चारों तरफ बजती शिक्षा की धुन,
यही है इसका सबसे बड़ा गुण।
कुछ बनने की अब चली पवन,
साथियों संग एक होकर।
सब कुछ जाओ तुम भूल,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

चलो ज्ञान का दीप जलाएं,
मिलकर हमसब हाथ बढ़ाएं।
कदम से कदम मिलाएं,
एक एक कर संग हो जाएं।
शिक्षा का अलख जगाएं,
साथियों संग एक होकर।
सब कुछ जाओ तुम भूल,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

हेमा आओ, रानी आओ,
पुन्नू आओ, साक्षी आओ।
हम भी आएं तुम भी आओ,
संग मिलकर अब एक हो जाओ।
मीना मंच और बाल संसद संग,
सब मिलकर गाएं एक ही धुन।
स्कूल चले स्कूल चले स्कूल चले हम,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

जज्बा और विश्वास लिए,
कंधे पर बस्ते का बोझ लिए।
निकल पड़े होकर निडर,
पाने की चाहत ने आखिर।
दिया शिक्षा का अनुपम वरदान,
साथियों संग एक होकर।
सब कुछ जाओ तुम भूल,
आओ मिलकर चलें स्कूल॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — बचपन स्कूल और हम बच्चे व हमारा बचपन। बचपन का उमंग व जोश – उत्साह के साथ सबकुछ भूलकर नन्हें नन्हें कदमों से चहलकदमी करते हुए, प्रकृति की अनुपम बेला में भरकर चेहरे पर मुस्कान, सपनों का संग करके ध्यान, साथियों संग एक होकर, आओ मिलकर हमसब चलें स्कूल। कदम से कदम मिलाकर सत्यता का पाठ पढ़ने-पढ़ाने हम बच्चे मन के सच्चे अपने नन्हें नन्हें कदमों से चहलकदमी करते हुए आओ मिलकर हमसब चलें स्कूल।

—————

यह कविता (आओ मिलकर चलें स्कूल।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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सुरों की मल्लिका को नमन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सुरों की मल्लिका को नमन। ♦

सुरों की साज और तेरा काज,
मां शारदे का हाथ और तेरा राज,
समझ न पाएं हम मूढ़ आज,
सहसा दिल पर गिरा गाज,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

स्वर भी जिसका करता गुणगान,
वो कोई और नहीं थी इंसान,
हमारी लता जी थी वो महान,
गायिकी से जिसने बढ़ाया देश का मान,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

कला जगत की तुम थी सिरमौर,
नहीं था तुम्हारा कोई जोर,
लता दीदी तुम थी बेजोड़,
आपके जादू का नहीं था कोई तोड़,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

जिनके गीत से झूमी दुनिया सारी,
तुम लता जी अमिट पहचान हो हमारी,
गाए आपके गीत प्रेरणा देती तुम्हारी,
कोई न कर सकता तुम्हारी बराबरी,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

हमारे दिल की धड़कन हो तुम,
तेरा यूं जाना गम देगा हरदम,
तेरे समर्पण को सजदा करते है हम,
अपूरणीय क्षति से हमारे साथ स्तब्ध है सरगम,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

हमारे दिल की धड़कन हो तुम,
तेरा यूं जाना गम देगा हरदम,
तेरे समर्पण को सजदा करते है हम,
अपूरणीय क्षति से हमारे साथ स्तब्ध है सरगम,
दिल रो रहा तेरी याद में होकर मगन,
सुरों की मल्लिका को शत-शत नमन॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

मेरे प्रिय पाठकों आपको सपरिवार बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।-KMSRAJ51

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — मां शारदे का उन पर था अनमोल वरदान, वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में अनमोल संरचना थी हमारी लता जी। स्वर भी जिसका करता गुणगान, वो कोई और नहीं थी इंसान, हमारी लता जी थी वो महान, गायिकी से जिसने बढ़ाया देश का मान। कला जगत की तुम थी सिरमौर, नहीं था तुम्हारा कोई जोर, लता दीदी तुम थी बेजोड़। लता मंगेशकर (28 सितंबर 1929 – 6 फ़रवरी 2022) भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थीं, जिनका छः दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालाँकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायिका के रूप में रही है।

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यह कविता (सुरों की मल्लिका को नमन।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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