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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poetry in hindi

शहीदों की शहादत पर।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शहीदों की शहादत पर। ♦

और नहीं अब और नहीं,
सैनिक के शव और नहीं।
कायर दुश्मन दिन गिन ले,
अब न मिलेगी ठौर कहीं।

और नहीं अब और नहीं,
सैनिक के शव और नहीं।

पाक बड़ा नापाक है तू ,
बुज़दिल है जाबाँज नहीं।
हिम्मत है तो सामने आ,
धूल चटाएँ आज यहीं।

और नहीं अब और नहीं,
सैनिक के शव और नहीं।

इस घटिया हरकत पर तो,
कर सकते अब माफ़ नहीं।
अब दुनिया के नक़्शे से तू ,
हो के रहेगा साफ़ कहीं।

और नहीं अब और नहीं,
सैनिक के शव और नहीं।

हर अश्रु अंगारा बन कर,
ख़ाक तुझे कर देगा वहीं।
और उसी पल से जग में,
थम जाएगा ये दौर यहीं।

और नहीं अब और नहीं,
सैनिक के शव और नहीं।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — ये पाक बड़ा नापाक है तू , बुज़दिल है जाबाँज नहीं। हिम्मत है तो सामने आ, धूल चटाएँ आज यहीं। ये पाक कुत्ते की दुम की तरह है, अब भी समय है सुधर जा वरना तेरा अस्तित्व ही मिट जायेगा। तेरा सदैव का ये कायराना हरकत अब बर्दाश्त नहीं। अभी तक तुम्हें हमने बहुत प्रेम दिया, तुम्हारी सब हरकतों को माफ़ कर, लेकिन अब तेरे नापाक हरकत बर्दाश्त नहीं। हमारी प्रेम और शांति का तूने सदैव ही मजाक बनाया, अब तुम्हें नहीं छोड़ेगे हमारे वीर जवान, अभी भी समय है अपनी नापाक हरकतों को बंद कर दे तू। वरना विश्व के नक्शे से अदृश्य हो जायेगा तू।

—————

यह कविता (शहीदों की शहादत पर।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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फिर एक वर्ष का।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ फिर एक वर्ष का। ♦

फिर एक वर्ष का गमन हो रहा है,
नूतन का आगमन हो रहा है।
बीते पलों की यादें सहेज कर,
नव संकल्प का चयन हो रहा है।
फिर एक …….

खोये हैं बहुत से अपने सभी ने,
टूटे हैं बहुत से सपने सभी के।
है वातावरण प्रदूषण भरा सब,
हरियाली का हनन हो रहा है।
फिर एक …….

ये क़ुदरत कुपित बहुत इसलिए है,
रासायन धरा पर जो भर दिए हैं।
इस नव वर्ष में खिले बाग गुलशन,
जो अब उजड़ा चमन हो रहा है।
फिर एक …….

जाते वर्ष को करें अब नमन हम,
जीवन अपना करें अब सुमन हम।
व्यथा दूर अब करें हम सभी की,
नम जिसका भी नयन हो रहा है।
फिर एक …….

अब तो वर्ष इक्कीस जा ही रहा है,
सबको अलविदा ये कह ही रहा है।
अगले वर्ष अब बचाना है हमको,
क़ुदरत का जो भी पतन हो रहा है।
फिर एक वर्ष का …….

‘कृती’ गत समय ने रुलाया बहुत है,
लेकिन इसने सिखाया बहुत है।
ये कोविड विषाणु जाये जगत से,
केवल अब ये जतन हो रहा है।
फिर एक वर्ष का …….

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — बीत रहा वर्ष बहुत दर्द दे गया, बहुत सारे परिवार ने अपनों को खो दिया, लेकिन इस संकट के समय ने इंसान को बहुत कुछ सिखाया भी। अब भी समय है हे मानव तू सुधर जा प्रकृति को निखारने वाला कार्य कर, तूने प्रकृति के साथ बहुत खिलवाड़ किया। अब सुधर जा वरना रोने के सिवा कुछ नहीं बचेगा। हे मानव तूने प्रकृति के पांचो तत्वों को अपवित्र और प्रदूषित किया हद से ज्यादा, अब प्रकृति को निखारने व बचाने वाला कार्य कर तू, समय रहते प्रकृति को उसके ओरिजिनल रूप में सुरक्षित करो। जितना ज्यादा हो सके पेड़ लगाएं, जिससे प्रकृति अपने सभी ऋतुओं का समय पर संचालन करें, और फिर से ये धरा खिलखिला उठे। चारो तरफ खुशिया ही खुशिया बिखर जाये।

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यह कविता (फिर एक वर्ष का।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
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बाल दिवस और इतिहास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बाल दिवस और इतिहास। ♦

बाल दिवस सार्थक हो हमारा, ऐसा बाल दिवस मनाते हैं।

आओ हम सब मिलकर बाल दिवस मनाते हैं।
बाल दिवस के साथ थोड़ा इतिहास दोहराते हैं॥

सबसे पहले ये दिवस मनाने का बीड़ा उठाते हैं।
20 नवंबर 1956 को अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस मनाते है॥

सभी देश अलग – अलग तिथियों में ये दिवस मनाते है।
सभी देश मिलकर सर्वसम्मति से बच्चों के लिए न्यायिक कानून बनाते हैं॥

14 नवंबर 1889 को जन्मे प. जवाहर लाल जी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कहलाते हैं।
बच्चे थे उनको प्यारे इसलिए चाचा नेहरू नाम धराते है॥

27 मई1964 को नेहरू जी स्वर्ग सिधार जाते है।
उनकी याद में 14 नवंबर को हम राष्ट्रीय स्तर पर बाल दिवस मनाते हैं॥

आओ हम सब मिलकर थोड़ा इतिहास दोहराते हैं।
जो देश के लिए हुए कुर्बान बच्चे उनके बारे में बच्चों को बताते हैं॥

सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह कहे जाते है,
इनकी पत्नी जीतो की कोख से चार पुत्र जन्म पाते हैं॥

अजीत, जुझार, जोरावर, फतेह सिंह नाम धराते है,
नौकर की गद्दारी से जोरावर, फतेह सिंह को सरहिंद नवाब वजीर खां दीवार में चुनवाते है॥

1705 में औरंगजेब चमकौर में सेना के साथ हमला करवाते हैं,
अजीत, जुझार सिंह उनसे लड़ते हुए 18 और 14 वर्ष की आयु में शहिद हो जाते हैं॥

इन सब के साथ जहन में वीर हकीकत राय का नाम याद आ जाता है,
1719 मे पिता लाला भागमल पुरी, माता कैरो के घर जन्म पाते हैं॥

1734 में धर्म के अपमान का प्रतिकार करने के कारण मुसलमान उनकी गर्दन कटवाते है,
आओ हम सब मिलकर ऐसे वीर बच्चों के आगे शीश झुकाते हैं॥

विजयलक्ष्मी हरियाणा है कहती आओ हम सब मिलकर ऐसा बाल दिवस मनाते हैं,
सार्थक हो बाल दिवस मनाना जब हम हर बच्चे के मन में देश भक्ति का भावना भर पाते हैं॥

♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦

—————

  • “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — बच्चे मन के सच्चे होते है, वे कुम्हार के चाक पर रखे मिट्टी के समान होते है, उन्हें जैसा ढालना चाहे ढाल सकते हैं। बच्चों को संस्कारवान, परोपकारी व दया, प्रेम, धैर्य के गुणों से सिंचित करना चाहिए, क्योंकि किसी भी देश का भविष्य उस देश के बच्चों पर ही निर्भर होता हैं। बच्चे आने वाले कल के सूत्रधार है। बच्चों पर कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए, यदि बच्चे कोई गलती करे तो उन्हें प्यार से समझा दे। कभी भी उनकी पिटाई न करे, पिटाई करने से उनके मन में आपके प्रति घृणा का भाव उत्पन्न होने लगता है, ऐसे बच्चे आगे चलकर बहुत ही गलत कदम उठाने लगते हैं। अतः सदैव ही बच्चों को प्रेम से ही समझाना चाहिए, जिससे वो समझ भी जाए, और उनके बाल मन पर कोई बुरा प्रभाव भी न पड़े।

—————

यह कविता (बाल दिवस और इतिहास।) “विजयलक्ष्मी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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बालमन के घुंघरू चाचा नेहरू।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बालमन के घुंघरू चाचा नेहरू। ♦

निश्छल निर्मल स्वर्ण धरा पर,
कोमल संग मुस्कान लिए।
कच्ची मिट्टी सा मन है जिसका,
भविष्य जिसके भाल है।
नव निर्माण का जो आधार,
जिसके मन भांप बजाते थे थमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

बहुत सारे दिवस है आते,
बालमन को कोई कोई पहचाने।
मासूमियत भरी जिनकी निगाहें,
नटखट निराली बोली जिनकी।
सत्य की जो ईश्वरत्व आधार,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

बच्चों संग बच्चे बन जाते,
भावनाओं का करते सम्मान।
प्रथम नागरिक के समान,
उनकी महिमा का कैसे करें बखान।
बच्चों के लिए हर पल करते जतन,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

बच्चे है ईश्वरत्व की अनमोल देन,
मौलिक अधिकार है उनका हक।
फिर क्यूं मिलता नहीं वाजिब हक,
नेहरू जी ने उसे पहचाना।
उनके अधिकार दिलाने हेतु थे प्रतिबद्ध,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

भावी पीढ़ी के कर्णधार,
शिक्षा मिले सभी को समान अधिकार।
बाल शोषण का सब मिलकर करें काम तमाम,
बच्चें करेंगे स्वछंद विहार।
तभी सपने होंगे साकार,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

बाल दिवस पर आज करें विचार,
सब मिलकर बनाएं सुदृढ संसार।
ऐसा बनाएं चमन नाचे गाएं होकर मगन,
बच्चे मन के सच्चे, सारी जग की आंखों के तारे।
वो नन्हें फूल खिले भगवान को लगते प्यारे,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू।
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू॥

आप सभी को प्रेम पूर्वक तहे दिल से बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — बच्चे मन के सच्चे होते है, वे कुम्हार के चाक पर रखे मिट्टी के समान होते है, उन्हें जैसा ढालना चाहे ढाल सकते हैं। बच्चों को संस्कारवान, परोपकारी व दया, प्रेम, धैर्य के गुणों से सिंचित करना चाहिए, क्योंकि किसी भी देश का भविष्य उस देश के बच्चों पर ही निर्भर होता हैं। बच्चे आने वाले कल के सूत्रधार है। बच्चों पर कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए, यदि बच्चे कोई गलती करे तो उन्हें प्यार से समझा दे। कभी भी उनकी पिटाई न करे, पिटाई करने से उनके मन में आपके प्रति घृणा का भाव उत्पन्न होने लगता है, ऐसे बच्चे आगे चलकर बहुत ही गलत कदम उठाने लगते हैं। अतः सदैव ही बच्चों को प्रेम से ही समझाना चाहिए, जिससे वो समझ भी जाए, और उनके बाल मन पर कोई बुरा प्रभाव भी न पड़े।

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यह कविता (बालमन के घुंघरू चाचा नेहरू।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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उत्सव में जीवन मोक्ष।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ उत्सव में जीवन मोक्ष। ♦

अनेकत्व, स्वयंमेव तिरोहित है,
समाज निष्ठा है संजीवनी जहां।
पुरातन गीत छठ महापर्व में छुपा,
संदेश इक जीवन-शैली का शाश्वत।

प्रथम दिवस खरा सोना जैसा ही,
स्वर्णिम हिंद का शुद्धि प्रतीक है।
करके, शुद्ध – स्व अंतः करण को,
एकभुक्त व्रती लेते हैं शुभ प्रसाद।

संध्या काल शान्त भक्ति सुलग्न में,
छठ गीत में समूह योग का साध्य है।
सतत संघर्ष में सर्वसहा का भाव है,
प्रकृति के विचार-तत्व से मानवता के,
अध्यवसाय, साहस कामिलन – उत्सव।

मन को शून्य कर, शील सम-वृत्ति को,
पूर्ण रूप देने में, समवेत स्वर तृप्ति है।
सूप, हथेली पर उठे पावन अर्घ्य में,
जीवन – संघर्ष की… जो स्वीकार्यता है,
खुद को खोकर, समुदाय मोक्षभाव है।

छठ संगीत में अध्यात्म रहस्य भाव,
प्राण प्रिय मोक्ष सुखद अनुभूति है।
यह परा जीवन का प्रेम, प्रातः अर्घ्य,
की अभिव्यक्ति, अद्भुत पूर्णाहुति है।

गंगा जल तरण करते दीप जोत में,
एकमना होने का सतत संदेश है।
संगीत भाव में, बाती – सा जलकर,
आत्म – दान के संग – संग, सदानीरा,
नारी शक्ति की जय – जयकार है।

♦ प्रो• मीरा भारती जी – पुणे, महाराष्ट्र  ♦

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  • “प्रो• मीरा भारती जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है — इस भारत भूमि के हर उत्सव में जीवन मोक्ष का पर्याय छिपा रहता है, चाहे वो पर्व कोई भी हो, दीपावली हो, छठ पूजा, होली हो, दशहरा हो। हमारे ऋषि मुनि और पूर्वजों ने अध्यात्म व विज्ञान के साथ-साथ नियमित और शांत तरीके से हर पर्व का नियम बनाया ऋतुओं को ध्यान में रखकर। जिससे हर एक मनुष्य को शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का लाभ हो। हर उत्सव में मनुष्य को जीवन मोक्ष का अनुभव हो।

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यह कविता (उत्सव में जीवन मोक्ष।) “प्रो• मीरा भारती जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं से नई पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम मीरा भारती (मीरा मिश्रा/भारती) है। मैंने BRABU Muzaffarpur, Bihar, R.S College में प्राध्यापिका के रूप में 1979 से 2020 तक सक्रिय चिंतन और मनन, अध्यापन कार्य किया, आनलाइन शिक्षण कार्यक्रम से वर्तमान में भी जुड़ी हूं, मेरे द्वारा प्रशिक्षित बच्चे लेखनी का सुंदर उपयोग किया करते हैं। मैंने लगभग 130 कविताएं लिखी है, जिसमें अधिक प्रकाशित हैं, कई आलेख भी, लिखे हैं। दृढ़ संकल्प है, कि लेखन और अध्यापन से, अध्ययन के सामूहिक विस्तारण से समाज कल्याण – कार्य के कर्तृत्व बोध में वृद्धि हो सकती है। अधिक सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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हे छठी मईया भर द झोलिया हमार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हे छठी मईया भर द झोलिया हमार। ♦

आस्था और विश्वास का, सबसे अनूठा पर्व,
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को आता, यह महापर्व।
षष्ठी तिथि के कारण इसे, कहा जाता छठ, होता है गर्व,
मनोवांछित फल पाने की लालसा में, व्रती करती सब्र।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

चार दिनों का यह पावन पर्व, अतुल्य अनमोल,
साक्षात ईश्वर के दर्शन का, बड़ा ही है मोल।
नहाय खाय से इस व्रत का, होता है आगाज,
दिल में लिए समर्पण भाव, व्रती करती काज।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

चार दिनों के पर्व में पहला दिन, होता काफी अहम,
घर की साफ सफाई से हर व्रती, शुरू करती काम।
कद्दू की सब्जी का उस दिन, महत्तम है अपार,
सबसे बड़े इस पर्व की महिमा है अपरम्पार।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

पर्व का दूसरा दिन खरना या लोहंडा काफी खास,
इस दिन व्रती करती पूर्ण उपवास।
बड़े निर्मल मनोभाव से बनाती प्रसाद, लेकर आस,
सूर्यदेव को नैवैद्य दे, करती एकांतवास।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

36 घंटों के व्रत के तीसरे दिन, पूरी होती मुराद,
मिलन की आस, संध्या अर्घ्य देती, संग प्रसाद।
प्रसाद में ठेकुआ, इस पर्व को बनाता खास,
सभी व्रती सूर्यदेव की कर पांच परिक्रमा, नमाती शीश।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

महापर्व का अंतिम दिन सूर्योपासना के बाद,
उषा अर्घ्य दे पूर्ण करती व्रत, उठाकर प्रसाद।
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए,
प्रसिद्ध लोकगीत, हर छठ व्रती गुनगुनाती जाए।
व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

अंत में इस पर्व का विशेष महत्व, सुने सज्जन जन,
ऐसी मान्यता है अपार, व्रत करे जो सच्चे मन।
छठी मईया पूरी करती, मन में हो जो जतन,
मुरादे होती पूरी, होता जग का कल्याण।
इसलिए व्रती लगाती एक ही छठी मईया से गुहार,
हे छठी मईया भर द झोलिया हमार॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — छठी मैया का व्रत को कैसे करना है? छठी मैया का व्रत करने से अनादि काल से ही लोगों को सूर्यदेव से मन चाहा फल मिलता आया है। समय समय पर जिस किसी ने भी सच्चे मन से छठी मैया का व्रत रख कर सूर्य देव की आराधना की है उसे जरूर मनोवांछित फल मिलता है। इस व्रत को कुवारी कन्या नहीं रख सकती। जिस जिस ने पूजा सच्चे मन से सूर्य देव को किया उनका कल्याण सूर्य देव ने। आओ मिलकर सूर्य भक्ति में छठ की अलख जगायें। करें वंदना चार दिनों तक, दो दिन नमक न खाएं। अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य प्रथम चढ़ाएं। होते सवेरे दूसरे दिन फिर जाकर सूरज को मनाए।

—————

यह कविता (हे छठी मईया भर द झोलिया हमार।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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छठी मैया का व्रत।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ छठी मैया का व्रत। ♦

आओ मिलकर सूर्य भक्ति में,
छठ की अलख जगायें।
करें वंदना चार दिनों तक,
दो दिन नमक न खाएं।

अस्ताचलगामी सूर्य देव को,
अर्घ्य प्रथम चढ़ाएं।
होते सवेरे दूसरे दिन फिर,
जाकर सूरज को मनाए।

कद्दू – लौकी के दूसरे दिन,
पूरी – खीर साथ में खाएं।
चना दाल अथवा गेहूं आटा,
हाथ से पीस के पकाएं।

पंचमी तिथि पर सायंकाल में,
सूर्य अर्घ्य देने जाएं।
चावल – गुड़ से बनी हुई खीर,
प्रसाद रूप में पाएं।

अन्य भक्तों में प्रसाद बांट कर,
‘खरना’ पर्व मनायें।
सायंकल, षष्टी तिथि, अस्ताचल,
सूर्य को अर्घ्य देने जाएं।

विविध पकवान और ऋतु फल से,
सूर्य की डलिया सजाएं।
धूपबत्ती कुमकुम देसी घी के दीप से,
भगवान सूर्य को मनायें।

सप्तमी तिथि के उषाकाल में अर्घ्य,
सूर्य देव को देकर आयें।
उगते सूरज की किरणों के संग में,
छठ की गीत सुनायें।

विविध कामना छठ से होती पूरी,
मईया कभी न रखती अधूरी।
पुत्र कामना के लिए जो व्रत करते,
छठ कृपा होती, मनौती पूरी।

कन्याकुमारी व्रत ना उठाएं,
इसको लीजिए मान।
अनादि काल से ही सूर्य देव ने,
आकर देते हैं वरदान।

व्रत किया था आदिशक्ति ने,
पाया आदि गणेश।
तेरी व्रत लीला में है पराल्प,
ना जाने कोई अल्पज्ञ।

देवी कुन्ती सूर्य उपासना की,
मिला दानवीर कर्ण।
सूर्य उपासना – छठ की पूजा,
लीजिए पांचों मान।

जिस जिस ने पूजा सूर्य देव को,
किया उनका कल्याण।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — छठी मैया का व्रत को कैसे करना है? छठी मैया का व्रत करने से अनादि काल से ही लोगों को सूर्यदेव से मन चाहा फल मिलता आया है। समय समय पर जिस किसी ने भी सच्चे मन से छठी मैया का व्रत रख कर सूर्य देव की आराधना की है उसे जरूर मनोवांछित फल मिलता है। इस व्रत को कुवारी कन्या नहीं रख सकती। जिस जिस ने पूजा सच्चे मन से सूर्य देव को किया उनका कल्याण सूर्य देव ने। आओ मिलकर सूर्य भक्ति में छठ की अलख जगायें। करें वंदना चार दिनों तक, दो दिन नमक न खाएं। अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य प्रथम चढ़ाएं। होते सवेरे दूसरे दिन फिर जाकर सूरज को मनाए।

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sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (छठी मैया का व्रत।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन। ♦

विद्युत तरंगों से पोषित मानव शरीर,
प्राकृतिक वातावरण शांति भाषा की।
शीघ्र मुक्ति पाने की कामना करता,
मंदिर – गिरजाघर खोज में रहता॥

सात्विक, आध्यात्मिक ऊर्जा संपन्न खोजने,
शास्त्र – पुराण में वह खोज करता है।
कष्ट प्रद स्थित में जब होता मानव,
असंतुष्ट हो कष्ट से छटपटाता॥

कामनाओं के भंवर से उबर नहीं पाता,
मुक्ति मार्ग पर वह भटकते हुए जाता है?
आत्मबल भी कमजोर हो जाता,
नकारात्मकता से वह जीवन बिताता।

आपाधापी से गुरूर होने लगता है,
प्रेत योनि में ही, वह अक्सर चला जाता।
दुर्घटना से शरीर तुरंत छूट जाती,
इच्छाएं कामनाएं ही याद में रह जाती॥

आत्मा का अस्तित्व शक्तिशाली होता,
कामना और इच्छा शक्ति प्रबल होती।
विद्युतीय सूक्ष्म शरीर का क्षरण नहीं होता,
अचानक आघात से शरीर का अंग काम नहीं करता॥

ब्राह्मण! अकाल मृत्यु होने पर ब्रह्म हो जाता,
हजारों वर्ष सूक्ष्म शरीर नष्ट होने का इंतजार करता।
भूत, प्रेत जिन्न – पिशाच में चला जाता,
जिस अस्तित्व का मानव कल्पना नहीं करता है॥

आधुनिक विज्ञान और पश्चिमी देशों ने,
भूत – प्रेत जीवधारी सूक्ष्म शरीर माना है।
स्वाभाविक मृत पहले, धीरे-धीरे शरीर की,
काम करने वाली क्रिया को बंद करते जाता है॥

यानी ऊर्जा परिपथ का क्षरण होता रहता,
शरीर सुन्न और मस्तिष्क का, ह्रदय से संबंध छूट जाता॥

सब कुछ शरीर के अंग को सुन्न कर देता,
अंत में प्राण शरीर से निकल जाता है।
आत्मा कोई दूसरा विद्युत तरंगों की शरीर तलाशता,
भ्रूण के रूप में उसमें प्रवेश कर जाता है॥

मानव और जंतु का शरीर कोशिका से निर्मित होता,
उस शरीर में विविध अवयव पाया जाता है।
नाभिक में एक अदृश्य किरण जुड़ी होती है,
एक छोर पर सूक्ष्मतम परमाणु कण मिलता॥

जिसने उसके पालन पोषण का प्रयत्न करता,
वैज्ञानिक उसे गॉड पार्टिकल नाम से पुकारता।
अपने कर्मों के फल से जीव प्रेत योनि को पाता,
और धरती पर आकर अपना शुभ कर्म भूल जाता॥

धर्म परायण जीव भोग में जगत को पाता,
राजा बनकर धरती पर फिर, वही यहां आता।
विद्दूतीय तरंगों से पोषित मानव इस शरीर,
और प्राकृतिक वातावरण में, शांति पाता॥

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — पांच तत्वों से मिलकर बना ये शरीर जिसका मूल स्वरूप शांत है और इस शरीर को चलायमान बनाने वाली ऊर्जा का भी मूल स्वरुप शांत है। इंसान अपने कर्मों के अनुसार अपना भाग्य बनता है। इंसान के कर्म ही उसे इस संसार में जीवित रखते है। इसलिए अच्छे कर्म ही करना चाहिए मानव को इस संसार में। आपके अच्छे कर्म आपको सद्गति देंगे व बुरे कर्म दुर्गति देंगे। अकाल मृत्यु किसी भी इंसान को प्रेत योनि में ले जाता है। इच्छाओं के भंवर से बाहर निकले सत्य का बोध कर सन्मार्ग पर चलकर धर्म परायण अच्छे कर्म करें।

—————

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अजब तेरी माया।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अजब तेरी माया। ♦

इस संसार से विदा, जो हो गए।
समय – असमय जो, चिरनिद्रा में सो गए॥

हे मालिक! बता तुमने, उन्हें कहाँ छुपाया है।
फिर क्यूँ उनका अक्स भी, नजर नहीं आया है॥

तेरे तो खेल निराले, अजब तेरी माया है।
जो तूनें ब्रह्मांड में, जीवन – मरण का खेल रचाया है॥

इस जग की रीत, तो तुझसे भी निराली है।
जो विदा हो गए यहाँ से, फिर उनकी परछाई भी काली है॥

फिर क्यूँ इस जगत में, मेरा – मेरी ने कोहराम मचाया है।
न जाने क्यूँ इंसान ने, अपने – पराए का जाल बिछाया है॥

मालूम है ये सबको, कि देने वाला लेना भी जानता है।
फिर भी अहम में डूबा इतना, तुझकों नही पहचानता है॥

एक दिन सबको चले जाना है, ये मानुष तन छोड़कर।
आओं! फिर नेक कर्मों के खाते में रखें, अपना नाम जोड़कर॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — इस संसार में जिसका भी जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। इसलिए अच्छे कर्म कर ले, विकर्म का खाता इकट्ठा न करें। आपके अच्छे कर्म ही आपको इस संसार में जीवित रखेंगे। इसलिए बुरे कर्म का त्याग कर, अच्छे कर्म ही करे।

—————

यह कविता (अजब तेरी माया।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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मेरा मन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मेरा मन। ♦

घड़ी दो घड़ी तो मेरे पास भी बैठ।
कभी खामोश कभी उदास भी बैठ।
तितलियों सा बेफिक्र डोलते रहते हो।
कभी परेशान कभी हताश भी बैठ।
आसमान में उड़ते रहते चिड़ियों सा,
सबके खेत में घुस जाते हो नदियों सा।

अपने पराये, लोकलाज का कोई शर्म नहीं।
ठहर क्यूँ नहीं जाते, ऐ मन, सदियों सा।
नजर लग जाएगी थक के कभी तू ,
मेरे पहलू में आ बदहवास भी बैठ
घड़ी दो घड़ी…..

मत भूल ये अपना गाँव नहीं शहर है।
जमाने की टेढी, तुम ही पे नजर है।
सभी को खबर है तेरी दिलनवाजी का।
तुमको ही अपनी नही कोई खबर है।
पर्दे का थोड़ा तो लिहाज लाजिमी है।
कभी नाउम्मीद, हो निराश भी बैठ।
घड़ी दो घड़ी…..

पंथी, ग्रंथी औ पुजारी, महापौर का,
तू मेरा ही है या है किसी और का।
तन-स्पंदन में भी कभी मिलते नहीं।
तू इसी दौर का है या है उस दौर का।
बता तुझे ला दूंगा सारे खेल खिलौने।
ला दूंगा तुझको जमीं आकाश भी बैठ।
घड़ी दो घड़ी…..

बीच – बीच में लंबी ताजी साँसें लो सुस्ता लो।
कभी – कभी अपने घर का भी रस्ता लो।
मेहमान नवाजी, आवारगी कुछ दिन ही अच्छी।
वतन वापसी का विकल्प भी बावस्ता लो।
रोज दीवान-ए-आम तू जाया करता है।
आज हृदय के साथ दीवान-ए-खास भी बैठ।
घड़ी दो घड़ी…..

♦ शैलेश कुमार मिश्र (शैल) – मधुबनी, बिहार ♦

  • “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है – मन के यूँ उमड़ने – घुमड़ने की प्रक्रिया को समझाने की कोशिश की है। मन से संवाद किया है, सभी को खबर है तेरी दिलनवाजी का तुमको ही अपनी नही कोई खबर है। मेरे पहलू में आ बदहवास भी बैठ घड़ी दो घड़ी।

—•—•—•—

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यह कविता (मेरा मन।) “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपने सच्चे मन से देश की सेवा के साथ-साथ एक कवि हृदय को भी बनाये रखा। आपने अपने कवि हृदय को दबाया नहीं। यही तो खासियत है हमारे देश के वीर जवानों की। आपकी कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

About Yourself – आपके ही शब्दों में —

  • नाम: शैलेश कुमार मिश्र (शैल)
  • शिक्षा: स्नातकोत्तर (PG Diploma)
  • व्यवसाय: केन्द्रीय पुलिस बल में 2001 से राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत।
  • रुचि: साहित्य-पठन एवं लेखन, खेलकूद, वाद-विवाद, पर्यटन, मंच संचालन इत्यादि।
  • पूर्व प्रकाशन: कविता संग्रह – 4, विभागीय पुस्तक – 2
  • अनुभव: 5 साल प्रशिक्षण का अनुभव, संयुक्त राष्ट्रसंघ में अफ्रीका में शांति सेना का 1 साल का अनुभव।
  • पता: आप ग्राम-चिकना, मधुबनी, बिहार से है।

आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे, जनमानस के कल्याण के लिए। उस अनंत शक्ति की कृपा आप पर बनी रहे। इन्ही शुभकामनाओं के साथ इस लेख को विराम देता हूँ। तहे दिल से KMSRAJ51.COM — के ऑथर फैमिली में आपका स्वागत है। आपका अनुज – कृष्ण मोहन सिंह।

  • जरूर पढ़े: चली जाती है।
  • जरूर पढ़े: अच्छा लगता है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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