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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poonam gupta articles

परीक्षा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Exam | परीक्षा।

परीक्षा के नाम से ही बच्चों को भय व्याप्त हो जाता है। परीक्षा को वह एक डर के रूप में भी देखते हैं जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए शिक्षा का होना भी जरूरी है। यह भी निश्चित है कि सफलता किसी व्यक्ति को मिलती है जो पूरी मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई करता है, और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करके पास, अपने मानदंड को निर्धारित करता है।

“परीक्षा के लिए बच्चों में ऐसी लगन होनी चाहिए जिससे बच्चे का ध्यान लक्ष्य से कभी भी डगमगाए नहीं।” हमें बच्चों को यह समझाना चाहिए कि पढ़ाई में मेहनत करने से ही अच्छा फल मिलता है जब तक हम पढ़ाई नहीं करेंगे तो परीक्षा में हमारे नंबर अच्छे नहीं आएंगे। और इसी अंकों के कारण ही हम आगे अपने भविष्य को तय कर सकते हैं।

इस तरह बच्चों को प्रेरित करने के लिए कड़ी मेहनत से वह अपनी सफलता की राह पर आगे बढ़ सकता है। इसलिए बच्चों पर कोई दबाब नहीं होना चाहिए। “बच्चों को अपने मनपसंद विषय के साथ ही पढ़ाई करवानी चाहिए।” अगर हम उनके साथ कोई अनुचित व्यवहार करते हैं या उनके ऊपर कोई अनुचित दबाव बनाते हैं तो बच्चों पर इसका नकरात्मक प्रभाव पड़ता है…

“परीक्षाएँ छात्रों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता को प्रेरित करती हैं। वे अच्छे अंक पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। परीक्षाएँ छात्रों को अपने पाठ्यक्रम को सुव्यवस्थित करने में मदद करती हैं। परीक्षण के तीन सामान्य प्रकार हैं: लिखित परीक्षा, मौखिक परीक्षण और शारीरिक कौशल परीक्षण।”

…और वह हीन भावना के शिकार हो जाते हैं, कई बार हम दूसरे बच्चों को देख कर बोलते हैं कि यह बच्चा इतना होशियार है इससे भी बच्चों के मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वह पढ़ाई के प्रति उदासीन रवैया अपनाते है। हमें बच्चों की अनुचित माँग को भी नहीं मानना चाहिए हमें उनकी समस्याओं को समझना होगा। और उनका समाधान भी करना होगा। बच्चों के साथ दोस्ताना और प्यार भरा व्यवहार करना चाहिए।

परीक्षा की तैयारी के वक्त सभी छात्रों को कुछ विशेष बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए। कई बच्चे बिना टाइम-टेबल के ही परीक्षा की तैयारी करते है तो कई टाइम-टेबल बनाकर। पर सभी बच्चों को हर विषय को पढ़ने के लिए एक टाइम-टेबल अवश्य बनाना चाहिए और उसे फॉलो भी करना चाहिए। इसके साथ ही समयानुसार उन्हें अंतराल भी लेना बहुत आवश्यक है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — परीक्षा के लिए बच्चों में ऐसी लगन होनी चाहिए जिससे बच्चे का ध्यान लक्ष्य से कभी भी डगमगाए नहीं। हमें बच्चों को यह समझाना चाहिए कि पढ़ाई में मेहनत करने से ही अच्छा फल मिलता है जब तक हम पढ़ाई नहीं करेंगे तो परीक्षा में हमारे नंबर अच्छे नहीं आएंगे। और इसी अंकों के कारण ही हम आगे अपने भविष्य को तय कर सकते हैं। अपनी किताबों, नोट्स और निबंधों का संक्षिप्त नोट तैयार कर लें। यदि आप किसी विषय को पसंद नहीं करते हैं या मुश्किल लगता है तो उन्हें आसान बनाएं। हेडिंग और सब-हेडिंग जोड़ें, या हाइलाइटिंग पेन और रिवीजन कार्ड, कुंजी शब्द या चार्ट का उपयोग करें – जो भी आपके लिए काम करता है। माता-पिता, खान पान पर दें ध्यान​​ परीक्षा के दिनों में बच्चे की मेहनत बहुत बढ़ जाती है। ऐसे में उसकी डाइट को लेकर समझौता न करें। परीक्षा का भय कई कारणों से होता है। पढ़ने में कठिनाई, कुछ विषयों का डर, माता-पिता और शिक्षकों की अपेक्षाएँ, आत्मविश्वास की कमी और ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता , ये सभी छात्रों में चिंता और अवसाद की घटनाओं को बढ़ाते हैं। हमें बच्चों की अनुचित माँग को भी नहीं मानना चाहिए हमें उनकी समस्याओं को समझना होगा। और उनका समाधान भी करना होगा। बच्चों के साथ दोस्ताना और प्यार भरा व्यवहार करना चाहिए।

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यह लेख (परीक्षा।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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आधुनिकता वरदान या अभिशाप।

Kmsraj51 की कलम से…..

Modernity a Blessing or a Curse | आधुनिकता वरदान या अभिशाप।

आज का युग विज्ञान का युग है आदिकाल से लेकर अब तक जितने भी प्रगति मनुष्य ने की है। वह सब विज्ञान की देन है हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है” जैसे – जैसे मनुष्य की आवश्यकता बढ़ती गई। वैसे-वैसे नया आविष्कार होते गए। विज्ञान ने वास्तव में हमें बहुत कुछ दिया है जिसके लिए हम सदा उनके ऋणी रहेंगे।

विज्ञान ने हमारे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है जिससे कोई भी प्रभावित नहीं रह सका। यहां तक की बच्चे भी आजकल स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे हैं जो एक तरह से उनके लिए हानिकारक भी है और फायदेमंद भी है। आधुनिकता वरदान भी है और अभिशाप भी यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसको प्रयोग कैसे करते है। आज के युग में इतनी तकनीक का विकास हो चुका है कि हम इसके प्रयोग किये बगैर कुछ करने की नहीं सोच सकते है।

हम एक ऐसे समाज और दुनिया में रहते हैं जो अपने आधुनिकता के चक्कर में अपने टेबलेट, स्मार्टफोन, लैपटॉप के जरिए इस आभासी दुनिया से लगातार संपर्क में रहते है। इसका उपयोग करने के लिए न केवल हमारे काम करने का तरीका और खेलने का तरीका भी बदला है। यह हमारे सोचने के तरीकों को नाट्य रूप से प्रभावित कर रहा है।

इंटरनेट ‘सोशल मीडिया’ कंप्यूटर के इनके इस्तेमाल से लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह मानव को कम सामाजिक संवाद आत्मक और निर्भर बनाता है यहां तक कि उनके व्यक्तिगत पहचान को भी प्रभावित करता है। और तकनीकी की वजह से दुनियाँ के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े हुए है हम चीजों को तुरंत कर सकते हैं। और अपने पुराने मित्रों को भी ‘सोशल मीडिया’ के जरिए संपर्क कर सकते हैं।

मोबाइल पर इंटरनेट की उपयोगिता तथा युवा वर्ग द्वारा इसके दुरुपयोग का अध्ययन किया गया है। जहां पर मोबाइल इंटरनेट ऐसी तकनीकी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उपयोग, उपयोगी साबित सिद्ध साबित हो रही है। वही युवा वर्ग अपने लालच और बुरी आदतों के शिकार भी हो रहा है। अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए इसको एक हथियार के रूप में भी इस्तेमाल कर रहा है इसे कारण सामाजिक मानसिक विकार भी विकसित हो रहे हैं।

  • अवश्य पढ़ें — सोशल मीडिया और बच्चे।

मोबाइल के अधिक प्रयोग करने के कारण, मोबाइल का अधिक उपयोग करने के कारण और इसकी आदत सी पड़ गई है। तथा मोबाइल के उपयोग के आदि हो जाने के कारण एक व्यक्ति सामाजिक, मानसिक, और शारीरिक समस्याओं से ग्रसित हो जाता है। यह इस ओर इशारा करते हैं। सूचना तकनीकी क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ, भारतीय समाज में इंटरनेट का अत्यधिक प्रयोग किया जा रहा है जिसका जिसका दुष्प्रभाव सभी लोगों पर पड़ रहा है।

आज भौतिक दूरी पर मायने नहीं रखती, इंटरनेट के द्वारा विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस या वीडियो कॉलिंग पर भी बात कर सकता है, इस कड़ी में विभिन्न सोशल मीडिया एप्स साइट का अमूल्य योगदान रहा है यह व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर इंस्टाग्राम इन सभी प्लेटफार्म के माध्यम से हम किसी से भी बात कर सकते हैं, और अपने फोटो वीडियो और मैसेज को आसानी से भेज सकते हैं।

मोबाइल और इंटरनेट के प्रयोग के द्वारा और शिक्षा पाना भी आसान हो गया है ऐसे विद्यालय महाविद्यालय शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाती है या किसी कारण तबादला एक स्थान से दूसरे स्थान पर हो गया है, ऐसे समय विद्यार्थियों का कोई नुकसान हो इसके लिए राज सरकार और शिक्षा से जुड़ी हुई संस्थाओ एनजीओ के द्वारा वर्चुअल क्लासरूम की व्यवस्था करने का प्रयास किया जा रहा है।

वर्तमान समय में कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी हेतु कॉम्पटीशन सैंटरो ने अपने ऑनलाइन एप्स अनअकैडमी कोचिंग सेंटर ने अपने प्लेटफार्म उपलब्ध करवाए हैं, ताकि विद्यार्थी घर से बाहर गए बिना भी अपने घर में अपनी समय के अनुसार और योग्यता आधार पर घर पर ही कोचिंग क्लास ले सकता है, और अपने रोजगार को प्राप्त कर सकता है। आधुनिकता में कुछ वरदान हमको मिले है समय की बचत के साथ नयी-नयी चीजें भी सीखने को मिल रही है, लेकिन एक हद तो ठीक है इसका उपयोग अगर अपने हित के लिए कर रहे है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सोशल मीडिया और इंटरनेट अगर हम सभी सही उपयोग करें थो फायदेमंद है वर्ना इसके नुकसान भी बहुत ज्यादा है, ख़ासकर आजकल के युवक व युवती पर इसका बहुत गलत प्रभाव पड़ा है। कुल मिलकर आधुनिकता में कुछ वरदान हमको मिले है समय की बचत के साथ नयी-नयी चीजें भी सीखने को मिल रही है, लेकिन इसका सकारात्मक उपयोग करें तभी। एक हद तो ठीक है इसका उपयोग अगर अपने हित के लिए कर रहे है। कुल मिलकर यदि सोशल मीडिया का उपयोग बच्चे सही तरीके से अच्छे कार्यों के लिए करे वह भी केवल जरूरत के हिसाब से निश्चित समय के लिए तो ठीक है व फायदेमंद है। एक संरक्षक होने के नाते यह भी याद रखे की – इसकी लत छात्रों में ज्यादा लगती है यह छात्रों को सबसे ज्यादा आकर्षित करता है। छात्रों की पढ़ाई, उनका जीवन सब दांव पर लग जाता है। वह पढ़ाई से मन चुराने लगते हैं। व्हाटस्एप्प, फेसबुक और इंस्टाग्राम छात्रों को सबसे ज्यादा भटकाता है। सोशल मीडिया जोखिम भी पैदा कर सकता है। आपके बच्चे के लिए, इन जोखिमों में शामिल हैं: अनुचित या परेशान करने वाली सामग्री, जैसे आक्रामक, हिंसक या यौन टिप्पणियों या छवियों के संपर्क में आना। अनुचित सामग्री अपलोड करना, जैसे शर्मनाक या उत्तेजक तस्वीरें या स्वयं या दूसरों के वीडियो।

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यह लेख (आधुनिकता वरदान या अभिशाप।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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सोशल मीडिया और बच्चे।

Kmsraj51 की कलम से…..

Social Media and Kids | सोशल मीडिया और बच्चे।

आजकल के समय में सोशल मीडिया का विस्तार बड़ी तेजी से हो रहा है। इससे बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है यदि बच्चों की उम्र छोटी होती है। तो स्मार्ट फोन के आदि होते जा रहे हैं और अपना अधिक समय इनके साथ ही बिताना पसंद करते हैं। वही बच्चों पर सोशल मीडिया के अच्छे और बुरे दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं।

अगर बच्चा किसी कारण से स्कूल नहीं जा पाता है तो उसकी अगर क्लास छूट जाती है, तो वह सोशल मीडिया की मदद से उसे पूरा कर सकता है। बच्चों की क्लास के ग्रुप बना दिए जाते हैं। जिससे शिक्षकों से संपर्क कर सकें और छुटी हुए क्लास के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें। इसके अलावा शिक्षकों से अपने डाउट्स आदि भी क्लियर कर सकते हैं।

कोरोना काल के समय यह अच्छा उदाहरण साबित हुआ है अगर किसी सवाल का जवाब नहीं मिलता है, तो वह यूट्यूब की मदद से उस सवाल के जवाब को समझ सकता है। जिससे लिखने में काफी हद तक मदद मिल जाती है। इसके अलावा फेसबुक के जरिए दोस्त रिश्तेदारों से जुड़कर अपनी पढ़ाई में मदद ली जा सकती है। टीवी के अलावा सोशल मीडिया को भी मनोरंजन का एक साधन माना गया है। जिसके जरिए बच्चे सकारात्मक चीजों को देखकर अपना मनोरंजन कर सकते हैं, और अच्छी आदतों को भी अपना सकते हैं।

  • इसके अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से रचनात्मक, और अपनी रुचि के अनुसार बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। जिससे वह अपनी अलग पहचान बना सकता है। हर सिक्के के दो पहलू होते है सोशल मीडिया से बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है।
  • जैसे बच्चे स्मार्ट फ़ोन पर गेम खेलते है उनका उनके दिमाग पर असर देखा जा सकता है। सोशल मीडिया का एक और फायदा यह भी है कि यह बच्चों को खुलकर बोलने का मौका देता है। जिससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और बच्चे आज के समय के अनुसार चलते हैं।
  • लेकिन सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव भी हैं जिसे हम नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं। अगर बच्चा आपके सामने स्मार्ट फोन का प्रयोग करता है। तो आपको उसकी रुचि और अरुचि को समझने में काफी हद तक सुविधा मिल जाती है, और आप उस पर नजर भी रख सकते हैं और क्या देख रहा है और किन चीजों में उसकी रुचि है।
  • इससे उसमें आत्मविश्वास की भावना की जाग्रति होती है वह सबके सामने खुलकर बोल सकता है। सोशल मीडिया के जरिये अपनी प्रतिभा का भी प्रदर्शन कर सकता है।
  • सोशल मीडिया का अधिक उपयोग बच्चों की मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। इस पर हुए एक शोध से जानकारी मिलती है कि स्मार्टफोन के अधिक उपयोग से बच्चों में मानसिक परेशानी की भी बढ़ोतरी हो सकती है। उनके संज्ञानात्मक नियंत्रण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • सोशल मीडिया जोखिम भी पैदा कर सकता है। आपके बच्चे के लिए, इन जोखिमों में शामिल हैं: अनुचित या परेशान करने वाली सामग्री, जैसे आक्रामक, हिंसक या यौन टिप्पणियों या छवियों के संपर्क में आना। अनुचित सामग्री अपलोड करना, जैसे शर्मनाक या उत्तेजक तस्वीरें या स्वयं या दूसरों के वीडियो।

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सावित्रीबाई फुले जयंती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सावित्रीबाई फुले जयंती। ♦

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को एक दलित परिवार में महाराष्ट्र के नायगांव – सतारा में हुआ था। सावित्रीबाई फुले को देश की पहली महिला शिक्षिका माना जाता है आज उनकी 192 वी जयंती है। सावित्रीबाई फुले का 9 वर्ष की आयु में ही 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ विवाह हो गया था, सावित्रीबाई फुले अपने क्रांतिकारी पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर बेटियों के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले, जिसमें पहला स्कूल और 18वां स्कूल पुणे में खोला गया था।

सावित्रीबाई फुले देश की पहली अध्यापक नारी, नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थी। असामाजिक और बुरी नीतियों के खिलाफ सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर इसका विरोध किया। छुआछूत सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध काम किया उन्होंने मजदूरों के लिए भी रात में स्कूल खोला ताकि दिन में काम पर जाने वाले मजदूर रात में अपनी पढ़ाई कर सकें और अपने पैरों पर खड़े हो सके।

गांव की छुआछूत से परेशान सावित्रीबाई फुले ने पानी न मिल पाने के लिए परेशानी होने पर अपने ही घर में एक कुआं खोद दिया था जिससे सभी लोग पानी भरा करते थे। सावित्रीबाई ने बहुत बड़ा कदम उठाया एक विधवा को आत्महत्या करने से रोका और बाद में उस महिला को अपने घर में रख कर ही उसके पुत्र को पाल पोसकर बड़ा किया और डॉक्टर बनाया। सावित्रीबाई फुले एक भारतीय समाज सुधारक शिक्षाविद और महाराष्ट्र की कवियत्री थी।

अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ महाराष्ट्र में उन्होंने भारत में महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें भारत के नारीवाद आंदोलन की अग्रणी माना जाता है सावित्रीबाई और उनके पति ने 1848 में पुणे में भारतीय लड़कियों के पहले और आधुनिकता स्कूल की स्थापना की। जाति और लिंग के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव और अनुचित व्यवहार को भी खत्म करने का विरोध किया और वह इस काम में सफल भी हुई।

सावित्रीबाई फुले की जयंती के दिन राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। सावित्रीबाई फुले का पूरा जीवन समाज सेवा में निकला। गलत लोगों के खिलाफ आवाज उठाई। समाज की कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने आंदोलन किया, महिलाओं की हक के लिए लड़ी, और 1897 में प्लेग महामारी आने पर लोगों की सेवा करते-करते उन्होंने अंतिम सांस ली। लेकिन वह लोगों की सेवा करती रही ऐसे में सावित्रीबाई भी इसकी चपेट में आ गई और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सावित्रीबाई फुले एक भारतीय समाज सुधारक शिक्षाविद और महाराष्ट्र की कवियत्री थी। सावित्रीबाई फुले देश की पहली अध्यापक नारी, नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थी। असामाजिक और बुरी नीतियों के खिलाफ सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर इसका विरोध किया। छुआछूत सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध काम किया उन्होंने मजदूरों के लिए भी रात में स्कूल खोला ताकि दिन में काम पर जाने वाले मजदूर रात में अपनी पढ़ाई कर सकें और अपने पैरों पर खड़े हो सके।

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श्री लाल बहादुर शास्त्री जयंती।

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♦ श्री लाल बहादुर शास्त्री जयंती। ♦

श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय उत्तर प्रदेश में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहां हुआ था उनकी माता का नाम राज दुलारी था। शास्त्री जी के पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। पिता के निधन के बाद उनकी परवरिश उनके नाना जी के यहां हुई, प्राथमिक शिक्षा उनकी वहीं हुई इसके बाद हरिश्चंद्र चंद्र हाई स्कूल की शिक्षा काशी विद्यापीठ में हुई।

काशी विद्यापीठ से शात्री की उपाधि मिलते ही अपने नाम से जाति सूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया।

श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा “करो या मरो” का नारा दिया इस नारे ने देश में प्रचंड क्रांति को जन्म दिया। उनका एक और नारा “जय जवान जय किसान” आज भी लोगों को याद है।

अंग्रेजो के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में श्री लाल बहादुर शास्त्री थोड़े समय के लिए (1921) में जेल गए रिहा होने पर राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय काशी विद्यापीठ वर्तमान में (महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) में अध्ययन किया संस्कृत भाषा में स्नातक की शिक्षा के बाद भारतीय सेवा संघ से जुड़ गए। स्वतंत्रता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में उनकी सक्रिय भूमिका निभाई। कई बार जेल भी गए। उसमें 1921 का असहयोग आंदोलन 1930 का दांडी मार्च और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय है।

1929 में इलाहाबाद आने के बाद टंडन जी के साथ भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया नेहरू जी के साथ उनकी निकटता बढ़ी।

1961 में मंत्रिमंडल में गृहमंत्री का पद मिला, नेहरू जी के मरने के बाद शास्त्री जी 1964 में वह भारत के प्रधानमंत्री बने। पड़ोसी पाकिस्तान से युद्ध के दौरान दिखाई गई साहस के लिए बहुत प्रशंसा हुई।

श्री शास्त्री जी की मृत्यु 1966 में हुई उनके मरणोपरांत “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया। शास्त्री जी को उनकी सादगी और देशभक्ति के लिए आज भी पूरा देश श्रद्धा से नमन करता है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गईं। शास्त्री जी को उनकी सादगी और देशभक्ति के लिए आज भी पूरा देश श्रद्धा से नमन करता है।

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यह लेख (श्री लाल बहादुर शास्त्री जयंती।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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हिंदी भाषा और लिपि।

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♦ हिंदी भाषा और लिपि। ♦

विधा — आलेख।

विश्व की प्राचीन समृद्ध, सरल भाषा होने के साथ-साथ हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा भी है। वह दुनिया में हमें सम्मान भी दिलाती है, हिंदी ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है। हिंदी दिवस भारत में हर वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया – कि हिंदी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी इस निर्णय को प्रतिपादित महत्व देते हुए हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 से संपूर्ण भारत में हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली दूसरी भाषा है। हिंदी राजभाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पसंद किया जाने लगा है। इसका एक कारण यह भी है भारतवर्ष की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंबित देश है।

आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी भारतीय संस्कृति और भाषा को सीखने के लिए आते हैं। भारत जब अंग्रेजों के अधीन था तब भी देश के महामानव और महान नेताओं ने एक राज्य भाषा की आवश्यकता को समझा। उन्होंने आजादी के साथ-साथ हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण कार्य किये। राष्ट्रभाषा हिंदी को राज भाषा की उपाधि दी है, उन्होंने कहा “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है” प्रत्येक राष्ट्र की अपनी राष्ट्रभाषा होती है।

राष्ट्रभाषा के जरिए ही हम राष्ट्र की एकता भाईचारे, सौहार्द, सद्भावना जैसे गुण, नागरिक में कर्तव्य का विकास करने में सहायक होता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान सभा ने हिंदी भाषा को देश की राजभाषा के रूप में सावधानिक मर्यादा प्रदान की है।

हिंदी दिवस को बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा आज कई रूपों में इस कार्यक्रम को मनाने का सिलसिला जारी है। खासकर सरकार के सभी कार्यालय उपक्रमों, निगमों, संस्थानों में यह दिवस बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

बैंक, रेलवे, तेल कंपनी सरकारी दफ्तर आदि संस्थानों में हिंदी दिवस पर विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित होती है। भाषण में बड़े-बड़े महानुभावों को आमंत्रित किया जाता है, हिंदी में काम करने वाले कर्मचारियों को पुरस्कार भी दिया जाता है। सरकारी क्षेत्रों में हिंदी को बढ़ावा देने हेतु पूरे सितंबर महीने तक अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदी भाषा के विकास में प्राप्त उपलब्धि को स्मरण किया जाता है।

पूरे भारतवर्ष में हिंदी सर्वाधिक बोली जाती है देश की 80% जनता हिंदी भाषा समझ सकती है। तथा अपने विचार को प्रकट कर सकती है, हिंदी भाषा सहज और सरल है इसे संस्कृत की भगनी भी कहा जाता है। हिंदी भाषा में प्रादेशिक भाषाओं का भी उपयोग किया जाता है। हिंदी भाषा देवनागरी लिपि है, पंजाबी, उड़िया, गुजराती, राजस्थानी आज कई भाषाओं के शब्द देखने को मिलते हैं। सभी भारतवासी को हिंदी भाषा पर गर्व है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हिंदी ने हमें एक नई पहचान दिलाई है, यह संपूर्ण विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। हिंदी विश्व की सबसे प्राचीन, सरल और समृद्ध भाषाओं में से एक है। हिंदी संवैधानिक तौर पर राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई, लेकिन हम भारतीय हिंदी को ही अपनी राष्ट्रभाषा मानते हैं। पूरे भारतवर्ष में हिंदी सर्वाधिक बोली जाती है देश की 80% जनता हिंदी भाषा समझ सकती है। तथा अपने विचार को प्रकट कर सकती है, हिंदी भाषा सहज और सरल है इसे संस्कृत की भगनी भी कहा जाता है। हिंदी भाषा में प्रादेशिक भाषाओं का भी उपयोग किया जाता है। हिंदी भाषा देवनागरी लिपि है, पंजाबी, उड़िया, गुजराती, राजस्थानी आज कई भाषाओं के शब्द देखने को मिलते हैं। सभी भारतवासी को हिंदी भाषा पर गर्व है।

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यह लेख (हिंदी भाषा और लिपि।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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गुरु पूर्णिमा।

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♦ गुरु पूर्णिमा। ♦

हिंदू मान्यताओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा का त्यौहार आषाढ़ माह में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है। संस्कृति में “गु” का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं “रु” का अर्थ होता है प्रकाश, ज्ञान गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से (ज्ञान) रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।

गुरु को महत्व देने के लिए महान गुरु वेदव्यास जी की जयंती पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन भगवान शिव द्वारा अपने शिष्यों को ज्ञान दिया गया।

इस दिन कई महान गुरुओं का जन्म भी हुआ था, लोगों को ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसी दिन गौतम बुद्ध ने धर्म चक्र का परिवर्तन किया था। इस दिन गुरु पूजन का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म के अनुसार यह तिथि वेदव्यास की जयंती भी मनाई जाती है और विधिवत पूजन भी किया जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेद व्यास जी का भी जन्म हुआ था और इन्हें प्रथम गुरु का स्थान भी मिला है।

सारनाथ में गौतम बुद्ध अपने पहले 5 शिष्यो को पहला उपदेश देने के लिए गुरु पूर्णिमा मनाई जाती रही है। हिंदू और जैन धर्म में भी अपने शिक्षकों का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है गुरु ही शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और वही जीवन को पूर्ण बनाते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है। जीवन के विकास के लिए गुरु की अत्यधिक की आवश्यकता होती है।

गुरु के साथ रहकर प्रवचन आशीर्वाद अनुग्रह जैसे; गुरु जो मिल जाए तो उसका कृतार्थ जीवन भर रहता है। क्योंकि बिना गुरु के न आत्म दर्शन होता है न ही परमात्मा दर्शन इस दिन गुरु दीक्षा भी लेने का अवसर होता है।

गुरु हमें जिंदगी में एक जिम्मेदार और अच्छा इंसान बनाने में हमारी सहायता करते हैं। वही हमें जीवन जीने का असली तरीका सिखाते हैं; और वही हमें जीवन के राह पर ता-उम्र सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। जिस तरह से शिक्षक हमें शिक्षा और ज्ञान के जरिए बेहतर इंसान बनाने के लिए जो मेहनत करता है। वही स्थान गुरु का होता है।

गुरु हमें अंधकार भरे जीवन से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु एक दीपक की भांति होता है जो अपने शिष्यों के जीवन को प्रकार से भर देते हैं। विद्यार्थी जीवन में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गुरु विद्यार्थी को हर प्रकार के विषय से संबंधित ज्ञान देते हैं; और जीवन के अलग-अलग पड़ाव पर मुसीबतों से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। गुरु के बिना किसी का कोई जीवन नहीं होता है गुरु ही शिष्य के व्यक्तित्व का विकास करने में अत्यधिक सहायक होते हैं।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — गुरु हमें जिंदगी में एक जिम्मेदार और अच्छा इंसान बनाने में हमारी सहायता करते हैं। वही हमें जीवन जीने का असली तरीका सिखाते हैं; और वही हमें जीवन के राह पर ता-उम्र सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। गुरु हमें अंधकार भरे जीवन से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु एक दीपक की भांति होता है जो अपने शिष्यों के जीवन को प्रकार से भर देते हैं। विद्यार्थी जीवन में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

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यह लेख (गुरु पूर्णिमा।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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योग दिवस।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ योग दिवस। ♦

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस हर वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। पहला अंतराष्ट्रीय योग दिवस 2015 में मनाया गया था तबसे ही इसकी शुरूआत हुई। इस दिन विश्व में करोड़ो लोगों ने योग किया। योग व्यायाम एक प्रभावशाली प्रकार है जिसके माध्यम से शरीर के अन्य अंगों को मजबूत बनाया जा सकता है।

मन, मस्तिष्क और आत्मा में संतुलन बनाया जाता है योग से अनेक प्रकार के लाभ होते है जब हम ज्यादा थकान महसूस करते है तो योगा करने से हमें थोड़ी शांति मिलती है ये अनेक प्रकार से लाभकारी है यही कारण है योग से शारीरिक और मानसिक बीमारियों से मुक्ति मिल सकती है।

योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द के युज शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है आत्मा का सार्वभोमिक मिलन चेतना से होता है।

योग दस हजार वर्ष से अपनाया जा रहा है। हिन्दू धर्म में योग साधु, संतों के द्वारा प्राचीन काल से अपनाया गया है। योग की महिमा को आधुनिक युग में एक विधा के रूप अपनाया गया है।

आज की जीवन शैली को देखते हुए यह बहुत जरूरी हो गया है कि हम अपनी व्यस्त जिंदगी में से थोड़ा समय निकाल कर योग करें और अपने स्वास्थ्य को ठीक रखें। जब शरीर स्वस्थ होगा तो मन भी स्वस्थ होगा। जब ही देश का हर एक नागरिक स्वस्थ होगा तब ही वो देश की सेवा में अपना सहयोग दे पाएंगे।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रत्येक वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ही इस दिन को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव दिया था। योग का अभ्यास एक बेहतर इंसान बनने के साथ एक तेज दिमाग, स्वस्थ दिल और एक सुकून भरे शरीर को पाने के तरीकों में से एक है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — योग आकाश के नीचे लगभग किसी भी बीमारी को ठीक कर सकता है। वास्तव में यह कहना उचित होगा कि यदि आप प्रतिदिन योग का अभ्यास करते हैं तो आप सभी रोगों से मुक्त रह सकते हैं। योग एक कला है जो हमारे शरीर, मन और आत्मा को एक साथ जोड़ता है और हमें मजबूत और शांतिपूर्ण बनाता है। योग आवश्यक है क्योंकि यह हमें फिट रखता है, तनाव को कम करने में मदद करता है और समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखता है और एक स्वस्थ मन ही अच्छी तरह से ध्यान केंद्रित करने में सहायता कर सकता है। योग के अभ्यास की कला व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। यह भौतिक और मानसिक संतुलन कर के शान्त शरीर और मन प्राप्त करवाता हैं। तनाव और चिंता का प्रबंधन करके आपको राहत देता हैं। यह शरीर में लचीलापन, मांसपेशियों को मजबूत करने और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में भी मदद करता हैं।

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