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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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sukhmangal singh poetry

राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश। ♦

पृथ्वी पालक पृथु महाराज का,
प्रजा जब स्तुत गान करती रही।
उसी समय चार तेजस्वी मुनीश्वर,
तेज पुंज, आकाश मार्ग से आए।

आकाश और से उतरते हुए उन्हें,
राजा पृथु – अनुचर पहचान गए।
आगे बढ़ महाराज किए सम्मान,
उचित संस्कार से मुनियों का मान।

राजा निवेदन सनकादी ने माना,
आपस में बातचीत से पहचाना।
मुनि के चरणों दक सीष लगाया।
सत्य पुरुषों सा व्यवहार दिखाया।

सोने के सिंहासन पर उन्हें बिठाया।
विधिवत पूजा पाठ उनका कराया।
अग्नि देवता सदृष्य तेज था उनका।
मुनियों के तेज से आह्लादित जनता।

विनम्रता पूर्वक राजा पृथु जी बोले,
आपका दर्शन योगियों को दुर्लभ।
यद्यपि आप सर्वव्यापी और सर्वत्र,
फिर भी सर्वसाक्षी आत्मा ना सुलभ।

जिस घर आप कुछ ग्रहण करते हैं,
धनहीन भी ध्यान कर धन्य हो जाता।
हम सभी इंद्रिय संबंधी भोगों को,
अपना पुरुषार्थ मान लिया करते हैं।

आप एकाग्र चित्त ब्रह्म चारी महान।
श्रद्धा भक्ति आचरण पालक विद्वान।
जिस पर आपकी कृपा दृष्टि बरसती,
वह इस संसार में हो जाता है महान।

इन कर्मों के निस्तार का कोई उपाय,
जो भी हो मुनिवर हमको बताइए।
सांसारिक मनुष्य का कैसे होता है,
कल्याण, उसको हमें समझाइए।

यह भी सच है कि उपासक धीर,
पुरुषों के ऊपर वह कृपा करते हैं।
अजन्मा नारायण भगवान जी,
भक्तों का अपने कल्याण करते हैं।

राजा के गंभीर मधुर वाणी सुनकर,
मुनीश्वर प्रशन्नता से कहने लगे?
आप सबकुछ जानते हैं फिर भी,
जन कल्याण हेतु अच्छी बातें पूछी।

साधु पुरुषों की ऐसी बुद्धि होती।
प्रश्न से उनके कल्याण होता है।
मधुसूदन के चरणों में आपकी प्रीत,
अविरल सुंदर है आप की नीति।

ईश्वर में अविरल प्रेम जाग जाता।
वासनायें उसकी सभी नष्ट हो जाती।
आत्म स्वरूप निर्गुण का मुनि ने,
राजा पृथु जी को ब्रह्म ज्ञान बताया।

मुनीश्वर ने राजा पृथु को पावन,
पुनीत प्रीति युक्त भजन सुनाए।
ब्रह्म में लीन हो जाने पर पुरुष,
सतगुरु की शरण में जाता बताए।

विषय इंद्रिय संबंधी भोगों से बचाएं।
विचार शक्ति को बढ़ाते ही जाएं।
विचार शक्ति नष्ट हो जाने पर,
पूर्व स्मृतियां भी नष्ट हो जाती हैं।

और स्मृतियों के नष्ट हो जाने पर,
ध्यान – ज्ञान नष्ट होने लगता है।
अपने द्वारा आत्मा नाश होने पर,
जीवन का सब हानि हो जाता है।

भगवान के चरण, चरण कमल ही,
दुस्तर समुद्र को पार कर देते हैं।
कुमार से आत्मीय उपदेश सुनकर,
राजा पृथु उनकी प्रशंसा करने लगे।

आप लोग बड़े ही दयालु कृपालु हैं।
श्रीहरि भेजी, मुझ पर कृपा की है।
जिस कार्य के लिए आप पधारे थे,
आपने अच्छी तरह उसे संपन्न किया।

इस उपकार के बदले आपको क्या दूं ?
मेरा जो वह महापुरुषों का प्रसाद है।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने बताया है कि महाराजा पृथु ने कैसे मुनिश्वरों का स्वागत किया। आत्म स्वरूप निर्गुण मुनिश्वरों ने बहुत ही सरल शब्दों में राजा पृथु जी को ब्रह्म ज्ञान बताया।

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यह कविता (राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें: पृथु का प्रादुर्भाव।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

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राजा पृथु के यज्ञ शाला में प्रभु का प्रादुर्भाव।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राजा पृथु के यज्ञ शाला में प्रभु का प्रादुर्भाव। ♦

राजा पृथु ने सौ अश्वमेध – यज्ञ करने की दीक्षा ली,
पूर्व मुखी सरस्वती तट पर मनु के ब्रम्हावर्त क्षेत्र में यज्ञ की।
महाराज पृथु ने यज्ञ में खुश होकर आहुती दी,
सर्व लोक पूज्य जगदीश्वर भगवान श्रीहरि का साक्षात दर्शन की।

हाजिर जगदीश्वर के साथ ब्रह्मा रूद्र अनुचर लोकपाल भी जी,
नर -नारी देवी – देवता भी साथ साथ आए थे।
गंधर्व आदि और अप्सराएं प्रभु की गा रही थी गीत,
और प्राकृति कितने तरह – तरह की सामग्री समर्पित की।

छद्म वेश धारण कर इंद्र अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा खोला,
आकाश मार्ग से घोड़ा लेकर भागने का प्रयास किया।
ईर्ष्या वस गुपचुप इंद्र ने घोड़ा हरने का प्रयत्न किया,
और कवच रूप पाखंड धरवेश अपनी रक्षा में धारण किया।

पृथु अंतिम यज्ञ हेतु भगवान की पूजा में थे लीन,
एक दृष्टि, पृथु – महारथी पुत्र को अत्री ने इंद्र को मारने की आज्ञा दी।
पृथु – पुत्र महाबली घोड़े की रक्षा ने मानो ऐसे लगता,
जिस तरह रावण के पीछे जटायु ने सीता को बचाने दौड़ा।

उसका वह प्रारंभिक करती जी ने उसका नाम,
वीर विजिताश्व बहुत सोच समझकर ही है रखा।
फिर दुबारा वही इंद्र ने वहां पर घोर अंधकार फैला दिया,
उसी घोड़े को सोने की जंजीर सहित आकाश मार्ग ले जाता।

पृथु पुत्र राजकुमार को इंद्र हेतु फिर से अत्रि ने उकसाया,
राजकुमार गुस्से में आकर इंद्र पर लक्ष कर धनुष – बाण चढ़ाया।
देख, देवराज इंद्र छद्म वेष – घोड़ा छोड़ अंतर्ध्यान हो गया,
वीर विजिताश्व अपना घोड़ा लेकर पिता की व्यवस्था में आ गया।

इंद्र ने अश्व हरण की इच्छा से वो था रूप बनाया,
आपके खंड होने के कारण वही था पाखंड कहलाया।

लोक गुरु भगवान ब्रह्मा के समझाने पर प्रबल पराक्रमी,
महाराज पृथु ने अंतिम यज्ञ आग्रह को छोड़ दिया।
यज्ञांत में जब उन्होंने निवृत होकर स्नान किया,
यज्ञ से तृप्त देवताओं ने उन्हें अभीष्ट वर दिया।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने बताया है कि महाराजा पृथु ने सौ अश्वमेध – यज्ञ करने की दीक्षा ली, पूर्व मुखी सरस्वती तट पर मनु के ब्रम्हावर्त क्षेत्र में यज्ञ की। महाराज पृथु ने यज्ञ में खुश होकर आ-हुती दी, सर्व लोक पूज्य जगदीश्वर भगवान श्रीहरि का साक्षात दर्शन की। छद्म वेश धारण कर इंद्र अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा खोला, आकाश मार्ग से घोड़ा लेकर भागने का प्रयास किया। इंद्र से अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लेन के लिए, पृथु अंतिम यज्ञ हेतु भगवान की पूजा में थे लीन, एक दृष्टि, पृथु – महारथी पुत्र को अत्री ने इंद्र को मारने की आज्ञा दी।

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यह कविता (राजा पृथु के यज्ञ शाला में प्रभु का प्रादुर्भाव।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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पृथु का पृथ्वी पर क्रोध।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पृथु का पृथ्वी पर क्रोध। ♦

अन्न – औषधि छिपा के पृथ्वी,
सृष्टि में, रूप बदल कर डाले।
प्रजा भूख से हो रही व्याकुल,
श्री मैत्रेय, विदुर से बोले।

जीवन सभी का अटका – अटका,
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

प्रजा करुण – क्रंदन सुन पृथु ने,
शस्त्र उठा लिया हाथ में।
पृथ्वी, गौ का रूप धारण कर,
थर-थर – थर-थर लगी कांपने।

पृथ्वी ने सर, पांव पर पटका,
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

गौ रूपी पृथ्वी ने आकर,
विनीत भाव से नमन किया।
आप जगत – उत्पत्ति – संहारक,
विश्व – रचना का मन बना।

मेरा हाल तो नटनी – नट का,
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

मेरी अन्न – औषधि सब,
राक्षस मिलकर खा जाते थे।
सही ढंग से जिन्हें था मिलना,
अन्न – औषधि नहीं पाते थे।

यह सब देख के माथा ठनका,
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने बताया है कि महाराजा पृथु ने पृथ्वी पर क्यों क्रोध, किया। महाराजा पृथु सदैव ही अपनी प्रजा को सुखमय जीवन देने के लिए तत्पर रहते थे, चाहे कैसी भी विकट समय क्यों न हो। हर विकट समस्या से बाहर निकलने की पूर्ण क्षमता थी उनमे।

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यह कविता (पृथु का पृथ्वी पर क्रोध।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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हिंदू – हिंदुस्तान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिंदू – हिंदुस्तान। ♦

हिंदू शब्द की उत्पत्ति कहां से,
उसी तुमी बतलाता हूं।
बुराइयों को दूर करने वाला,
सनातन हिंदू कहलाता है।

ऋग्वेद के बृहस्पति अह्यम में,
हिंदू शब्द का उल्लेख मिला।
देव वर्णन में कहा गया है –

हिमालयम समरंभ।
यावद इंदु सरोवरम।
तम देव निर्मित देशम,
हिंदुस्थानम प्रचचते।

हिमालय से इंदु सरोवर तक,
देव निर्मित देश हिंदुस्तान है।

शैव ग्रंथ में हिंदू शब्द का,
इस प्रकार उल्लेख किया गया –

‘हीनम च दुष्यतेव
हिंदुरित्युच्चते प्रिये।’
जो अज्ञानता और हीनता का,
त्याग करे उसे हिंदू कहते हैं।

कल्पद्रुम में कहा गया है –

‘हीनम दुष्यती इति हिंदू :।’
अज्ञानता और हीनता को त्यागें,
उसको ही हिंदू कहते हैं।

पारिजात हरण में कहा गया है –
हिनस्ती तपसा पापां
दैहिक म् दुष्टम।
हेतिभी: शत्रवर्ग च
स हिंदुभिरधियते।
जो अपने तब से शत्रु दुष्ट और
पाप का नाश करे वह हिंदू है।

माधव दिग्विजय में मिलता है कि –
ओमकार मंत्र मूला ढय
पुनर्जन्म दृढ़ाष्य :।
गौ भक्तो भारत :
गरुरहिंदुरहिर्सान बूषक।

जो ऊंकार को ईश्वरीय धुनि मान
कर्मा पर विश्वास करें,
बुराइयों को दूर रखें,
वह हिंदू है।

हिंदू शब्द की उत्पत्ति,
वेद से हुई है माननीय।
पुराणों ने भी हिंदू शब्द,
उल्लेख किया है जानिए।

झूठ बुत बताने वालों का,
भ्रम जाल खोल बोलिए।
हिंदू राजा ऋग्वेद काल से,
पराक्रमी दानी वर्णन मिलता।

गौमाता का दान मान,
वेदों का दुनिया में सम्मान।

ऋग्वेद मंडल में लिखा है,
उसको भी जानिए।
बुराइयों को दूर करने में प्रयासरत,
सनातन हिंदू है मानिए गोपाल।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने हिंदू, हिंदुत्व – हिंदुस्तान को कविता के रूप में प्रस्तुत किया है। आदि सनातन देवी देवता धर्म – जो बाद में हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता हैं। जिसके बारे में सभी प्राचीन ग्रंथों में वर्णन है। इस कविता के माध्यम से आने वाली पीढ़ियां हिंदू धर्म को समझ पाएंगे। हमें गर्व है की हमारा जन्म हिंदू धर्म में, हिंदुस्तान में हुआ है।

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यह कविता (हिंदू – हिंदुस्तान।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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महाराजा पृथु अभिषेक।

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♦ महाराजा पृथु अभिषेक। ♦

पृथु – अभिषेक आयोजन हुआ।
अभिनंदन वेदमयी ब्राह्मणों ने किया।
पृथ्वी, नदी, गौ, समुद्र, पर्वत, स्वर्ग,
सब ने अर्पण उपहार किया।

उपहार मिला सब तटका – टटका
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

गंधर्व ने मिल किया गुणगान,
सिद्धों ने मिल पुष्प वर्षा कर बढ़ाया मान।
समवेत स्तुति ब्राह्मणों ने किया करके,
दिया मुक्त मन से समुचित ज्ञान।

दीया ज्ञान सब ने दस – दस का
हूं कवि मैं सरयू तट का।

विश्वकर्मा ने दिया सुंदर रथ।
चंदा ने अश्व दिये अमृत मय।
सुदृढ़ धनुष दिया अग्नि ने।
सूर्य ने बाण दिया तेजोमय।

शत्रु को करारा दे जो झटका,
कवि हूं मैं सरयू तट का।

सुदर्शन चक्र दिया विष्णु ने।
लक्ष्मी ने दी संपत्ति अपार।
अंबिका चंद्राकार चिन्हों की ढाल।
रूद्र दे दिए चंद्राकार तलवार।

काम जो करे सरपट सरपट का,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

पृथ्वी दी योगमयि पादुकाएं।
आकाश ने नित्य पुष्प मालाएं।
सातों समुद्र ने दिया शंख।
पर्वत नदियों ने हटाई पथ बालाएं।

बना दिया आपको जीवट का,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

जल – फुहिया जिससे प्रतिपल झ,
वरुण ने छत्र – छत्र श्वेत चंद्र – सम।
धर्म ने माला वायु दो चंवर दिया।
मुकुट इंद्रने ब्रह्मा ने वेद कवच का दम।

संपूर्ण सृष्टि का माथा ठनका,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

सुंदर वस्त्रों – अलंकारों से,
हुये सुसज्जित श्री पृथु राज।
स्वर्ग – सिंहासन विराजमान,
आभार अग्नि की जस महाराज।

पहुंचे सभी न कोई अटका,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

सूत – माधव बंदीजन गाने लगे।
सिद्ध गंधर्व आदि नाचने बजाने लगे।
प्रीति को मिली अंतर्ध्यान शक्ति।
महाराज को सभी बहलाने लगे।

दे दे करके लटकी – लटका,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

गुण कर्मों का बंदीजन गुणगान किया।
महाराज ने सभी को मुक्त भाव से दान दिया।
मंत्री पुरोहित पुरवासी सेवक का मान किया।
चारों वर्णों का महाराज ने सम्मान किया।

गुंजाइश नहीं किसी खटपट का,
कवि हूं मैं सरयू – तट का ।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने राजा पृथु के अभिषेक का मनोरम सुन्दर दृश्य का सटीक वर्णन किया है। बहुत ही सरल शब्दों में बताया है, की किस किस दैवी शक्ति ने कौन – कौन सा अस्त्र दिया महाराजा पृथु को। इस कविता को पढ़ते समय आप महाराजा पृथु के दरबार की अनुभूति करेंगे।

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यह कविता (महाराजा पृथु अभिषेक।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें: पृथु का प्रादुर्भाव।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

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पृथु का प्रादुर्भाव।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पृथु का प्रादुर्भाव। ♦

कवि हूं मैं सरयू – तट का।
समय चक्र के उलट पलट का।

मानव मर्यादा की खातिर,
मेरी अयोध्या खड़ी हुई।
कालचक्र के चक्कर से ही,
विश्व की आंखें गड़ी हुई।

हाल ये जाने है घट घट का।
कवि मैं सरयू – तट का।

प्रादुर्भाव हुआ पृथु – अर्ती का,
अंग – वंश वेन- भुजा मंथन से।
विदुर – मैत्रेय का हुआ संवाद,
गंधर्व ने सुमधुर गान किया मन से।

मन भर गया हर – पनघट का।
भाग्यशाली घूंघट का।

मनमोहक हरियाली छाई।
सकल अवध खुशियाली आई।
राजा पृथु का आना सुनकर।
ऋषियों की वाणी हरसाई।

मगन हुआ मन घट – पनघट का।
कवि हूं मैं सरयू तट का।

पृथु के पृथ्वी पर प्रादुर्भाव से,
दोस्तों को लगा बड़ा झटका।
माया – मोह को उसी ने पटका,
काबिल हूं मैं सारी घूंघट का।

विवेकी पुरुष कहीं ना भटका।
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने राजा पृथु के प्रादुर्भाव का, अवध के मनोरम सुन्दर दृश्य का वर्णन किया है। ऋषियों के वाणी हरसाई, सकल अवध खुशियाली आई।

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यह कविता (पृथु का प्रादुर्भाव।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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जगत जननी का परित्याग।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जगत जननी का परित्याग। ♦

पता क्या जगत जननी सीता को,
फिर जंगल में जाना होगा।
घनी पश्चिम की पहाड़ी के जंगल में,
जीवन उन्हें बिताना होगा।

श्रीराम के निर्मल देह पर,
मृग – चर्म जूट जटाएं फाहरेंगी।
हवन चंदन गंध व दहकते,
गुगल से ऋचाएं होंगी।

रथ साथ सारथी पुत्रवत लखन,
घने जंगल में छोड़ेंगे।
जिसने अपने जीवन में,
सीता के मुख नहीं देखे होंगे।

पर विधाता का लिखा लिखनी,
कौन मिटा सकता है यहां।
वहीं विश्व विख्यात विधाता,
सीता को जंगल पहुंचा सकता जहां।

धैर्य – धर्म की मूर्ति मई कल्याणी तुम,
खंडित व्यक्तित्व लिए विलख रही।
सच कहूं प्रिय! मेरी सीते!
मैं राम तत्वों का आदर्श लिए थक रहा।

विवश हूं प्रजा की बात पर,
धर्म की मर्यादा और राज पाठ पर।
स्वयं दंड दूंगा मैं अपने आप को,
धर्म की धात्री तुम अयोध्या राज की।

लोका पवाद में घिरा अवध की,
शाम मंत्रणा राज लखन से बोले राम।
राजा का राज्य पर निष्ठा निर्विवाद,
विधि के विधान पर किसका अधिकार।

संकल्पों का विकल्प नहीं होता,
वैराग्य धर्म बन वासी मेरी नियति।
विकल्प केवल सीता का परित्याग,
प्रिये मेरी अभिन्न अंग हो, ना होना खिन्न।

मेरी निर्णय को कहना ना तू कठोर,
सीता कल निर्वासन का है भोर।
अभिषेक करेगी तेरी वन्य भोर,
संदेशवाहक दिल से निकलेगा चोर।

रथारूढ़ जाना गंगा तट पर लेकिन,
उद्घाटित अभी करना ना भेद गूढ़।
लक्ष्मण राम के मंत्रणा परिपूर्ण,
आरण्य निकट सीते को छोड़ना तुम।

देना धो आंचल का उभरा कालुष्य,
रूधने लगा कहते कंठ राम।
बिकट लगा उस संध्या का गुंजा शूल,
कर प्रणाम अस्ताचल ढल गया सूर्य।

छलक उठे लक्ष्मण के भरे नैन,
थरथर कांप उठा धरती का स्वर्ग मौन।
देख रहा मौन रहकर राजमहल,
धार सरयू की हुई स्तब्ध अंतर्मन।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – जगत जननी माता सीता जी का परित्याग, करते समय श्री राम जी के मनःस्थिति का खूबसूरत वर्णन किया है। माता सीता जी से श्री राम जी कहते है “धैर्य – धर्म की मूर्ति मई कल्याणी तुम खंडित व्यक्तित्व लिए विलख रही। सच कहूं प्रिय! मेरी सीते! मैं राम तत्वों का आदर्श लिए थक रहा। विवश हूं प्रजा की बात पर धर्म की मर्यादा और राज पाठ पर। स्वयं दंड दूंगा मैं अपने आप को धर्म की धात्री तुम अयोध्या राज की।”

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यह कविता (जगत जननी का परित्याग।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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त्रिभाग पर भरोसा करूं।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ त्रिभाग पर भरोसा करूं। ♦

बंट चुका त्रिभाग में
किससे कहूं।
हो गया अवसाद माना
कैसे लिखूं।

हृदय शरीर दिमाग जाना
क्या कहूं।
पहले शरीर से अलग
किससे कहूं।

शरीर से अलग है हृदय
अलग दिखा दिमाग,
कहां पलूं।
देती शरीर जवाब
कैसे चलूं।

खुश रहता हूं फिर भी,
ब्रह्मा विष्णु महेश में,
यादों से कहता।

जैसे चलाएं।
चलता चलूं।
मचलता चलूं।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – कौन हूँ मैं, शरीर, हृदय, या दिमाग। कौन शरीर से अलग है, भगवान चलाते जैसे चलाएं, चलता चलूं, मचलता चलूं। आत्मा, शरीर, हृदय, व दिमाग के बीच तालमेल।

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सोशल मीडिया – भारत।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सोशल मीडिया – भारत। ♦

भारत पहले सबको मिलकर समझाता है।
सभ्यता और संस्कृत का उसको ज्ञान कराता है।
भारत की संस्कृति में यही कहा जाता है,
सबको यह पहले बहुत खूब समझाता है।

मनमानी करने वालों को ज्ञान पहले बताता है।
नियम और कानून का ध्यान उसको कराता है।
त्याग और तपस्या का भी पाठ उसे पढ़ाता है।
अहिंसा और शांति का संदेश उसको सिखाता है।

पुरुषोत्तम का देश है भारत उनका मान दिखाता है।
सूर्पनखा रावण की बहना उसको भी समझाता है।
श्रीराम द्वारा लक्ष्मण की तरफ ध्यान दिया जाता है।
इधर उधर जाकर भी जब नहीं मानती शूर्पणखा है।

अंत कोप भाजन से नाक अपनी कटवा दी है।
जबकि श्रीराम द्वारा उसको समझाया जाता है।
एक कथा और सुनाने का मन कर जाता है।
बालकृष्ण के पास कंस की बहन को भेजा जाता है।

उसका भी अंत श्री कृष्ण द्वारा किया जाता है।
कहने का तात्पर्य ही है जो भारत में आया है,
भारत के बने कानून का पालन उसको करना है।
मनमानी इस देश में कहीं नहीं चलने वाला है।
एक समय तक ही उसको छूट दिया जाता है।

इसलिए नियम कानून के अंदर काम करने हैं।
शांति और विश्व बंधुत्व से यहां पर आने हैं।

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श्री कृष्ण द्वारा वसुदेव को ब्रह्म ज्ञान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ श्री कृष्ण द्वारा वसुदेव को ब्रह्म ज्ञान। ♦

श्री कृष्ण बलराम जी वसुदेव जी को,
प्रातः दोनों आकर किया प्रणाम।
दोनों भाइयों का उन्होंने किया अभिनंदन,
ऋषियों के श्री मुख से सुना था जैसा वंदन।

हृदय से वसुदेव जी करने लगे दोनों से आलिंगन,
सच्चिदानंद स्वरूप का होने लगा उन्हें दर्शन।
वसुदेव बोले सच्चिदानंद स्वरूप श्री कृष्ण,
और मेरे महायोगेश्वर संकर्षण।

तुम दोनों ही जगत के हो प्रधान,
पुरुष के भी नियामक परमेश्वर।
तुम ही इस मायावी जगत के आधार हो,
तुम ही निर्माता और निर्माण सामग्री हो।

तुम दोनों जगत के स्वामी हो।
सब कुछ धारक तुम ही हो।
तुम भोग्य और भोक्ता से परे।
साक्षात भगवान तुम ही हो।

जगत की वस्तुओं के सृष्टिकर्ता,
पालन पोषण करता तुम ही हो।
विनाश वान सभी पदार्थों में तुम,
कारण रूप अविनाशी तत्व हो।

हो रहस्य ज्ञान योग माया का,
तुम्हारी कीर्ति गान लोग करते हैं।
भजन सुनकर श्री वासुदेव जी के,
भक्तवत्सल कृष्ण मुस्कुराने लगे।

विनय पूर्वक झुककर पिताजी को,
सु-मधुर वाणी में सुनाने लगे।

हम तो आपके पुत्र ही हैं पिता जी।
हमें लक्ष्य कर आपने ब्रह्म ज्ञान का,
उपदेश आप ही हमें सुनाने लगे।
मैं हूं! वही! सब आप ही बताने लगे।

जैसे छिति जल पावक गगन समीरा,
एक होते हुए अलग-अलग कहलाने लगे।
पंचमहाभूत अप्रकट – प्रकट होकर,
बड़े छोटे अधिक थोड़े दिखने लगे।

वैसे ही मैं! और बलराम जी भी,
भेद से ही दो पहचाने जाने लगे।

धरा पर जन्म – मृत्यु चक्कर रूप,
भटकते हुए जीव निमित्त आने लगे।
हम दोनों अन्याय के खिलाफ अपना,
आकर यहां शस्त्र उठाने लगे।

शरणागत उनके संसार भय को मिटाने लगे,
इस धरा को भार से मुक्ति दिलाने लगे।
मंगल प्रभु के श्री – चरण में जाने लगा,
अमृत तत्व सुख सागर सबको सुनाने लगा।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – श्री कृष्ण और वासुदेव जी के मिलन और संवाद का सुर मधुर वर्णन किया है। जहाँ एक तरफ पिता – पुत्र पर प्रेम वात्सल्य बर्षा रहा है तो, वहीं दूसरी तरफ श्री कृष्ण जी, वासुदेव जी को ब्रह्म ज्ञान दे रहे है। इस मधुर मिलन के साक्षी बलराम जी है।

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यह कविता (श्री कृष्ण द्वारा वसुदेव को ब्रह्म ज्ञान।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

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