Kmsraj51 की कलम से…..
♦ युद्ध की तबाही। ♦
तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर आ खड़ा भव,
इस बारुदी फसलों में अब बम-बारूद उगायेंगे।
खून ही बोयेगें और लाशें ही उगायेंगे,
इस बसी-बसाई दुनिया को वीरान बनायेंगे।
हँसते-मुस्कुराते चमन के गुलाबों को,
बारूदी काले जादू से कलियों को।
अपनी उन्मुक्तता में झूमते बालियों को,
इठलाती बलखाती शोख फूलों के क्यारियों को।
नदियों समन्दरों की लहरों पहरा होगा,
कल-कल करते झरनों के स्वर पर पहरा होगा।
खग-वृंद के नटखट कलरव गुंजन पर,
मोर मैना भौंरो भृंगों के गुंजार पर पहरा होगा।
सब ओर धुंध-धुंआ बारूद बन छा जायेंगें,
कोयल का कुंजन रुदन बन चिल्लायेंगे।
पपीहे की प्रीत भी डर के साये में खो जायेंगें,
लुक-छुप कर गाने वाले मौत की नींद सो जायेंगे।
दामिनियों की कड़-कड़ भी इनके सामने अदने से,
चिंगारियां उठाती भकजोगनियां भी छिप जायेंगी।
झींगुरों-सियारों का रुदन ही हम सुन पायेंगे,
सब ओर सिमटकर खामोशी से तबाही के गीत गायेंगे।
गोलियों की बौछारों से सावन भी शरमायेंगे,
विनाश की अमराई घर गली चौराहों पर आयेंगें।
हर उपवन डाली पर बारूद अंगार बरसायेंगे,
नफरत घृणा लालच आगे-आगे डंका बजायेंगे।
आज तड़प रहा संस्कृति-संस्कारों का देश,
ऋषि-मुनियों और वेद पुराणों पर बना देश।
कहां गये कुरान की वो आयत जिसमें कहा था,
गये कहां यीशू-पैगम्बर शान्ति जो बतलाते थे।
इस युद्ध विभीषिका में नित नये अध्याय जुड़ रहे,
अपनी महत्वाकांक्षा के चलते इक सभ्यता निगल रहा।
हथियारों पर दंभ रखने वालों आगाह है तुमको,
नाको चने चबवाने को अदने भी अड़कर खड़े हैं।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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- “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — युद्ध से कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं होता। कहने को तो आज मानव अपने आपको बहुत बड़ा ज्ञानी कहता है, लेकिन उसके सोच व कर्म विकर्मी होते जा रहे हैं। पृथ्वी एक बार पुनः विनाश कि तरफ बढ़ रहा है, आज मानव ही मानव के खून का प्यासा हो गया हैं। कोई भी किसी कि कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं है, सभी अपनी-अपनी ही जोत रहे हैं, सभी एक दूसरे को मारने के लिए तैयार हैं। जरा सोचे क्या इसी दिन के लिए मानव सभ्यता का इतना विकास हुआ? क्या विकास का यह परिणाम होता हैं? अगर ऐसे ही मानव विकास होता है तो, इससे अच्छा तो प्राचीन सभ्यता ही अच्छा है आज से ५५०० वर्ष पूर्व का। अभी भी समय है समझदारी सभी अपना दिखाए और सभी मिलजुलकर रहे, नहीं तो मानव सभ्यता पूर्ण रूप से नष्ट हो जाएगा।
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यह कविता (युद्ध की तबाही।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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