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The First Morning of Freedom | आज़ादी की पहली सुबह।
बहुत याद आती है वो आज़ादी की पहली सुबह,
15अगस्त 1947 को था जब भारत में तिरंगा फहराया l
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब बने थे भाई भाई,
अपनापन था झलक रहा सब में कोई नहीं था पराया॥
अपनों से बिछड़ जाने के थे दर्द बड़े-बड़े,
ना चाह कर भी देश के दो टुकड़े थे करने पड़े।
दो कौमों को आपस में लड़ा कर फिरंगी थे खुश बड़े,
ऐसी लूट मची थी उस वक्त कुछ थे हिंदुस्तान तो कुछ थे पाकिस्तान में पड़े॥
15 अगस्त 1947 से पहले की सुबह थी बहुत काली,
डर से थे कुछ कांप रहे तो कुछ मांग रहे थे पानी।
किसी ने बहुत चालाकी और चतुराई से,
थी दो कौमों को जुदा करने की साजिश रच डाली॥
दो टुकड़े करके हिंदुस्तान के,
लोगों के बीच थी लड़ाई करवा डाली।
किसी के उजड़ गए आशियाने तो किसी ने दी अपनी कुर्बानी,
फिर वो आजादी की पहली सुबह बनी थी सुहानी॥
कहे “जय” अपनी सोच को ऐसा बनाएं,
खुशहाल हो भारत अपना ऐसा अपना देश बनाएं।
आजाद तो हैं हम पर मानसिक गुलामी से भी आजाद हो जाए,
जात पात धर्म का भेदभाव छोड़कर आओ इंसान हो जाएं॥
♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में कवि 15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी की पहली सुबह को याद कर रहे है। इस दिन भारत में तिरंगा फहराया गया था, और सभी धर्मों के लोग आपस में भाईचारे के साथ रह रहे थे। हालांकि, देश के विभाजन ने लोगों को गहरे दर्द में डाल दिया था। अंग्रेजों की चालाकी से हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच विभाजन हुआ, जिससे लोग आपस में लड़ने लगे। इस विभाजन से कई परिवार उजड़ गए, और कई लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। फिर भी, आज़ादी की वह सुबह लोगों के लिए बहुत खास और सुखद थी। अंत में, कवि यह संदेश देते है कि हमें मानसिक गुलामी से भी मुक्त होना चाहिए और जात-पात, धर्म का भेदभाव छोड़कर इंसानियत को अपनाना चाहिए, ताकि हमारा देश खुशहाल बन सके।
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यह कविता (आज़ादी की पहली सुबह।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, लघु कथा, सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।
- रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
- लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
- लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
- प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
- पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
- सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
- कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
- काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
- व्यास गौरव सम्मान — 2022
- रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
- शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
- विशेष — 17 बार रक्तदान।
- देश, प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
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