Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ संयम की शक्ति। ϒ
स्वामी विवेकानन्द अपने कुछ शिष्यों को वासना का क्षय करने एवं जितेन्द्रिय बनने के लिए निर्देश दे रहे थे। मन को काम से हटाकर राम में लगाना अत्यन्त आवश्यक है – ऐसा वे उन्हें समझा रहे थे कि एक साधक ने पूछाः “स्वामी जी ! आप कहते हैं कि मन को काम से हटाकर राम में लगाना चाहिए। यह कहना तो बहुत सरल है परन्तु इसे जीवन में उतारना अत्यंत कठिन लगता है। आप कोई ऐसी युक्ति बतायें कि जिससे मन में कामवासना उठे ही नहीं, वह काम का विचार ही छोड़ दे एवं भगवदचिंतन करता रहे।”
स्वामी जी: “तुम्हारी बात सच है कि मन को कामवासना से हटाना बहुत कठिन है लेकिन उसे एक बार भी वश कर लोगे तो वह जिंदगी भर तुम्हारे कहने में चलेगा। केवल ब्रह्मचर्य का पालन किया जाय तो अल्पकाल में ही सारी विद्याएँ आ जाती हैं, श्रुतिधर एवं स्मृतिधर हुआ जा सकता है। केवल ब्रह्मचर्य के अभाव के कारण हमारे देश का सत्यानाश हो रहा है। प्रजा के रूप में हम निर्बल होते जा रहे हैं एवं सच्ची मनुष्यता खोते जा रहे हैं।” ऐसा स्वामी जी कहा करते थे। ब्रह्मचर्य के प्रभाव से मन की एकाग्रता एवं स्मरणशक्ति का तीव्रता से विकास होता है।
स्वामी विवेकानन्द अपनी यूरोप यात्रा के दौरान जर्मनी गये थे। वहाँ कील यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पॉल डयूसन स्वामी विवेकानन्द की अदभुत याददाश्त देखकर दंग रह गये थे। तब स्वामी जी ने रहस्योदघाटन करते हुए कहा था: “ब्रह्मचर्य के पालन से मन की एकाग्रता हासिल की जा सकती है और मन की एकाग्रता सिद्ध हो जाये फिर अन्य शक्तियाँ भी अपने-आप विकसित होने लगती हैं।” संयम बड़ी चीज है। जो संयमी है, सदाचारी और अपने परमात्मभाव में है, वही धर्मात्मा बनता है। जो विषय-विलास में गरकाब हो जाता है, वही दुरात्मा बनता है। लेकिन जो संयम करके परब्रह्म परमात्मा को ‘मैं’ रूप में जान लेता है वह महान आत्मा हो जाता है, महात्मा हो जाता है।
ब्रह्मचर्य का ऊँचे में ऊँचा अर्थ यही हैः ब्रह्म में विचरण करना। जो ब्रह्म में विचरण करे, जिसमें जीवनभाव न बचे वही ब्रह्मचारी है। ‘जो मैं हूँ वही ब्रह्म है और जो ब्रह्म है वही मैं हूँ….’ ऐसा अनुभव जिसे हो जाये वही ब्रह्मचर्य की आखिरी ऊँचाई पर पहुँचा हुआ परमात्मस्वरूप है, संतस्वरूप है।
संयम की आवश्यकता सभी को है। चाहे बड़ा वैज्ञानिक हो या दार्शनिक, विद्वान हो या बड़ा उपदेशक, सभी को संयम की जरूरत है। स्वस्थ रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है, सुखी रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और सम्मानित रहना हो तो भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है।
कोई चारों वेद पढ़कर कंठस्थ कर ले एवं उसका अर्थ भी समझ ले – उसके पुण्य को तराजू के एक पलड़े पर रखें और दूसरे पलड़े पर कोई अँगूठाछाप है लेकिन आठ प्रकार के मैथुन से बचा है उसका पुण्य रखें तो ब्रह्मचारी का पलड़ा भारी होगा। वेद पढ़ना तो पुण्य है, कंठस्थ करना भी पुण्य है लेकिन कोई भले अँगूठाछाप है किंतु संयमी है तो उसका पुण्य भी वेदपाठी से कम नहीं होता है। यह चतुर्वेदी से कम नहीं माना जायेगा। संयम ऐसी चीज है ! ब्रह्मचर्य बुद्धि में प्रकाश लाता है, जीवन में ओज-तेज लाता है। ब्रह्मचर्य ऊँची समझ लाता है किः “अपनी आत्मा ब्रह्म है, उसको पहचानना ही हमारा लक्ष्य है।’अगर ब्रह्मचर्य नहीं है तो गुरुदेव दिन-रात ब्रह्मज्ञान का उपदेश देते हैं फिर भी टिकता नहीं।
जो ब्रह्मचारी रहता है, वह आनंदित रहता है, निर्भीक रहता है, सत्यप्रिय होता है। उसके संकल्प में बल होता है, उसका उद्देश्य ऊँचा होता है और उसमें दुनिया को हिलाने का सामर्थ्य होता है। स्वामी विवेकानंद को ही देखें। उनके जीवन में ब्रह्मचर्य था तो उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय अध्यात्मज्ञान का ध्वज फहरा दिया था, भारत के दिव्य ज्ञान का डंका बजा दिया था।
हे भारत की युवतियो व युवानों ! तुम भी उसी गौरव को हासिल कर सकते हो। यदि जीवन में संयम को अपना लो, सदाचार को अपना लो एवं समर्थ सदगुरु का सान्निध्य पा लो तो तुम भी महान-से-महान कार्य करने में सफल हो सकते हो। लगाओ छलाँग…. कस लो कमर…. संयमी बनो…. ब्रह्मचारी बनो और अपने भाई-बन्धुओं, मित्रों, पड़ोसियों, ग्रामवासियों, नगरवासियों, प्रांतवासियों को भी संयम की महिमा समझाओ और शास्त्र की इस बात को चरितार्थ करो।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःखभाग्भवेत्।।
“सभी सुखी हों, सभी निर्मल मानसवाले हों, सभी सबका मंगल देखें और दूसरों के दुःख में सहभागी हों, दुःख हर्ता हों।’
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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)
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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)
“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”
In English
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~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)
“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”
-KMSRAJ51
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