Kmsraj51 की कलम से…..
♦ वे बड़े कष्ट में हैं। ♦
उनको कष्टों ने, घेर रखा है,
जब से सुने, बुलंदी, पे हम हैं।
उजाले की आस में दिन बिताते,
मार्ग में तम, वे बड़े कष्ट में हैं।
दुनिया का संकट, उन्हें घेरे बैठा,
मंदिर अयोध्या के, जब बन रहे हैं।
वे जीवित मृत, भला कौन बताए,
सच है या भ्रम, वे बड़े कष्ट में हैं।
जो कल तक थे, उन पर कटाक्ष करते,
आज उन्हीं के दर पे, बड़े कष्ट में हैं।
सर, सर में परिसर उनका, हैरानी का,
कहें ना कहें, वे बड़े परेशान हैं।
सभी जानते उठने में समय लगता,
उठाना है गिरे को, वे बड़े कष्ट में हैं।
विसर्जन के लिए करते हाय तौबा,
बुराई के विसर्जन, वे बड़े कष्ट में हैं।
दूसरों को बूढ़ा और कमजोर कहते,
तीतर बटोरते, वे बड़े कष्ट में हैं।
थका सा समंदर दिखता उन्हें अब,
सुव्यवस्था देख, वे बड़े कष्ट में हैं।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — जब से सुना उन्होंने राम मंदिर निर्माण की सूचना वे बड़े कष्ट में हैं। दुनिया का संकट, उन्हें घेरे बैठा, मंदिर अयोध्या के, जब बन रहे हैं। वे जीवित मृत, भला कौन बताए, सच है या भ्रम, वे बड़े कष्ट में हैं। जो कल तक थे, उन पर कटाक्ष करते, आज उन्हीं के दर पे, बड़े कष्ट में हैं।
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यह कविता (वे बड़े कष्ट में हैं।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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