Kmsraj51 की कलम से…..

ϒ यह जीवन भी पारस मणि समान है। ϒ
एक था कृपण और एक थे सिद्ध पुरुष। कृपण बार-बार सिद्ध के पास जाता और कोई बड़ी धनराशि दिलाने के लिए गिड़गिड़ाया करता। सिद्ध पुरुष को मौज आ गई। उनने झोली से निकाला पारस पत्थर और उसे कृपण के हाथ में पकड़ाते हुए कहा, “यह पत्थर सात दिनों तक तुम्हारे काम आयेगा लोहे से स्पर्श कराकर जितना चाहे सोना बना लेना।” कृपण बहुत प्रसन्न हुआ। एक ही दिन में करोड़पति बनने के सपने देखने लगा। पैर जमीन पर कहां पड़ते। खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
घर पहुंचने पर लोहा खरीदने की योजना बनाई। अधिक लोहा- सस्ता लोहा, यह दो प्रश्न ही प्रमुख बन गये। कृपणता पूरे जोर-शोर से उभर आई। खरीद के लिये कहां जाया जाय? इस योजना में जुट गया।
दौड़-धूप चली। ज्यादा- सस्ता अधिक मात्रा की तलाश में एक बाजार से दूसरे में दूसरे से तीसरे में दौड़ लगी, पर कोई सौदा पटा नहीं।
इतने में एक सप्ताह गुजर गया। होश तो तब आया, जब पारस का प्रभाव निष्फल हो गया था। मणि महात्मा को लौटाते हुए कृपण की उदासी देखते ही बनती थी।
त्रिकालदर्शी महात्मा ने कहा-
“मूर्ख यह जीवन भी पारस मणि ही है। इसका तत्काल श्रेष्ठतम उपयोग करने वाले महान होते हैं- अमूल्य स्वर्ण बन जाते हैं और जो लालच में निरन्तर रहकर अवसर को चुका देते हैं, वे तेरी ही तरह खाली हाथ रहते हैं और निराश होते हैं।”
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आप सभी का प्रिय दोस्त,
Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
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