Kmsraj51 की कलम से…..
♦ आज की जरूरत। ♦
वैचारिक लेख —
वर्तमान में भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में एक भयानक महामारी ने अपना तांडव पुरजोर मचाया है। इस चपेट में विश्व का बड़े से बड़ा देश अपनी समस्त ताकतों को विफल-सा हुआ पा रहा है। ऐसे में जब हररोज हजारों लोग काल के गाल में समाते जा रहे हैं तो डर भला किसे नहीं लगेगा।
बस डर नहीं रहे हैं तो कुछ सर फिर लोग और दिल्ली के निजामुद्दीन के मरकज में जमा हुई तब्बलिकी जमात। शायद उन्हें मृत्यु ने मानव जाति के विनाश का जिम्मा सौंपा हो या फिर यह उनके जहन जनित उस अल्लाह की शरणागति का मनमुखी खुरापात है जो किसी पवित्र धार्मिक ग्रंथ में नहीं मिलता है।
अब लीजिए आप पवित्र कुरान शरीफ़ को या फिर इस्लाम धर्म के जो चार पवित्र ग्रंथ माने जाते हैं “पवित्र इंजील, जबूर, तोरात और स्वयं पवित्र कुरान मजीद।” इनमें कहीं कोई जमाती यह सिद्ध कर दें कि वहाँ खुदा की ऐसी आज्ञा है कि किसी को जानबूझ कर मारने या फिर अनजाने में मारने से अल्लाह खुश होता है।
तो मैं मान जाऊंगा कि जिहाद जैसी, जो सोच इन लोगों ने अपनाई है और अपने अनुयायियों को भी उसका अनुसरण करने को कहते हैं; वह सच में ही वाजिब है। पर शर्त है कि यह सिद्ध करने के लिए ‘देवबंध’ जैसी संस्थाओं की स्वयंभु सोच का हवाला न दिया जाए।
मक्का की पवित्र दरगाह की मूल सामग्री का ही सहारा लिया जाए। कोई खुदा, अल्लाह, गॉड, वाहे गुरु, तीर्थंकर या भगवान किसी के प्राणों को लेने की बात नहीं करता है। चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो। हाँ यदि कोई करता है तो वह भगवान हो – ही नहीं सकता। क्योंकि किसी को काल के सिवा कोई मारने वाला शैतान कहलाता है भगवान नहीं।
चलो लगे हाथों जिहाद समझ लें। जेहाद पाक कुरान में अंकित है और वह सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय के लोगों के ही करने की नहीं है बल्कि समूचे मानव प्राणी को करनी चाहिए।
जिहाद का मतलब संघर्ष करने से है न की साज़िश और खून खराबा करने से। पवित्र कुरान कहता है कि जो लोग तुझे उस एक खुदा की इवादत से भटका कर किसी दूसरे की उपासना करने को मजबूर भी करता है तो उसका प्रभाव भले ही कितना ऊंचा हो, तू उसकी नहीं मानना।
तू अपने धर्म के लिए अपनी जान दे देना पर दूसरों को कष्ट मत देना। अब इन्होंने इसका अर्थ उल्टा ले लिया कि अपना धर्म बचाने के लिए दूसरों की जान ले लेना पर अपने धर्म को बचाए रखना। असल में ऐसा तो हजरत मुहम्मद साहब बयाँ ही नहीं करते।
अब रही धर्म की बात तो यह भी हमें समझना होगा कि धर्म क्या होता है और अध्यात्म क्या होता है? धर्म असल में किसी समुदाय या समाज के सामाजिक जीवन के जीने के तौर – तरीके का नाम है और अध्यात्म आत्मा और परमात्मा के मूल तत्व को जानने का नाम है।
दरअसल हुआ यूं कि लोग धर्म को ही अध्यात्म समझ बैठे। फिर चाहे वह हिन्दू धर्म की बात हो या फिर कोई और धर्म की बात हो। इसीलिए हर धर्म के नियंताओं ने अपने-अपने धर्म के संचालन हेतु किसी नियम का आगाज किया और उन्हें किसी ग्रंथ की सूरत दे दी। यह सच है कि वे नियंता पवित्र भावी थे और उन्होंने उन्हीं ग्रंथो में अध्यात्म को भी भर दिया। यह महज समाज को अनुशासन में बांधने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
अगर यूं कहा जाए कि “धर्म अध्यात्म का शरीर है और अध्यात्म उस देह की आत्मा तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह बात यहाँ से भी प्रमाणित होती है कि खुदा, भगवान, रब्बा कहो या प्रकृति, उसने तो समूचे जीव जगत को उत्पन किया।”
जब मानव प्राणी के अलावा किसी जीव जगत का कोई सामाजिक नियम ही नहीं है तो मानव का ही क्यों? शायद इसलिए कि उसमें बुद्धि है और वह भी इस प्रकार से उस बनाने वाले ने मानव में डाली कि सब के सब उसे एक बराबर प्रयोग नहीं कर पाते।
हमने इतिहास पढ़ा। जहाँ यह बताया जाता है कि असल में मानव पशुओं से विकसित हो कर बना है। वह भी पहले आदिमानव के रूप में असभ्य और पशु तुल्य जीवन जीता था। जैसे-जैसे उसने बौद्धिक विकास किया तो सभ्यता अस्तित्व में आई और धीरे-धीरे धर्म, समुदाय तथा संस्कृति चलन में आई। इन प्रमाणों को आधार माने तो, तो भी सिद्ध होता है कि धर्म मानव द्वारा स्थापित किया गया एक सामाजिक नियम है और कुछ नहीं।
प्रभु को पाना है तो उसके लिए धर्म की नहीं बल्कि अध्यात्म की ज़रूरत पड़ती है। आप निजी स्कूल में पढ़े या सरकारी में। बात एक ही है क्योंकि उद्देश शिक्षा प्राप्त करना है। वह दोनों जगह मिल जाएगी। मेरे कहने का भाव यह है कि धर्म कोई भी बुरा नहीं है। वे सभी समाज को सुंदर और पुष्ट करने की बृहद संस्थाएँ हैं।
इन्हे विकृत कुछ स्वयंभु धर्म के ठेकेदारों और कुछ राजनीतिक सरोकारों वाले लोगों द्वारा निज स्वार्थ साधने के चलते किया है। बेचारी साधारण जनता उनके बहकावे में आस्थाओं के मकड़ जाल में फंस कर बंध जाती है।
यह किसी धर्म विशेष की बात नहीं है। यह सभी धर्मों की दशा है। हिन्दू धर्म को ही ले लीजिए। हमारे तो यहाँ लोग पढ़-लिख कर भी अनपढ़ो की-सी बात करते हैं। किसी से पूछे कि —
- हिन्दू धर्म के मूल ग्रन्थ कौन है?
- पुराणों के नाम क्रमवार बताओ?
- षड्दर्शन कौन-कौन से हैं?
- 9 श्रुतियों और स्मृतियों को क्रमवार बताओ?
सब कन्नी काटते हैं। बस हम हिन्दू हैं। इस धर्म का अता पता चाहे कुछ भी न हो। और देखो, यह पूछे कि यह हिन्दू धर्म है क्या? वैदिक धर्म तो सनातन धर्म तथा आर्य धर्म की बात करता है। जिसमें वसुधैव कुटुंबकम की बात होती है। फिर यह हिन्दू धर्म कहाँ से और कैसे निकला? जैन, सिख जैसे धर्म कहाँ से निकले और क्यों?
इन बातों का सही तथा प्रामाणिक ज्ञान 95% लोग नहीं दे सकते। पर है हम फिर भी हिन्दू। तो सिद्ध हुआ कि धर्म असल में एक भीड़ का नाम ही रह गया है और कुछ नहीं। सबसे बड़ा धर्म मानव धर्म है, जिससे ये दुनियाँ के सारे धर्म निकले हैं। पर उसे मानने को कोई तैयार नहीं है।
सभी संतों और ज़िंदा महात्माओं ने चीख-चीख कर इसका प्रचार किया, जिन्होंने असल में जिहाद की। पर मानी किस ने। यह दुनियाँ अपने ही रसूख के लिए जीती है और इसमें मारा जाता है हमेशा गरीब, मजलूम तथा सर्वहारा और असहाय वर्ग।
कोरोना विदेशों से लाने वाले।
हाल ही में सफदर गंज की हालत आप सबने देखी। कोरोना विदेशों से लाने वाले वही रसूखदार लोग थे जिन्होंने अपनी कमाई का तो आधे से ज़्यादा पैसा विदेशों में ही ख़र्च कर दिया होता है, उल्टा हमारी गाढ़ी कमाई को भी वे सरकारी खर्चे से वहाँ उड़ाते आए हैं।
जो ये सुबह कमाते हैं और शाम को खाते हैं। ये लोग हमारे देश की फैक्ट्रियों और कारखानों में काम करने वाले वह लोग हैं, जो अपनी सुविधा बेच कर देश की अर्थव्यवस्था को संभालते हैं।
क्या कोरोना संकट में इनकी समस्याओं को दरकिनार करना उचित था। विदेशों में फंसे भारतीयों को, जो करोना पीड़ित भी थे; उन्हें लाने के लिए सरकार के पास प्लान हैं और सुविधा भी। पर अपने देश के निर्दोष लोगों की आंखों के आंसू पोंछने के लिए कुछ भी नहीं।
खैर ये लोग तो सदियों से इसी पीड़ा से गुजर रहे हैं और गुजरते रहेंगे। सताएँ और तमाम सियासी पार्टियों तो इस वक़्त भी सियासत करने से बाज नहीं आ रही है, जब विश्व व्यापी संकट सिर पर मंडरा रहा है। किसे मालूम कल क्या हो? पर ये है कि ख़ुद को खुदा समझते हैं।
इस गफलत भरे माहौल में यदि ये स्वयं सेवी संगठन और धार्मिक संगठन सामने न आते तो सरकारों की सारी हेकड़ी निकल जाती। अब आप कहेंगे कि ये दोगली बातें क्यों? एक ओर तो धर्म पर चोट करता है और दूसरी ओर उसी की प्रशंसा। नहीं भाई यह मानव धर्म की प्रशंसा है। जो हमें हमारे पुरखों ने और संतों ने विरासत में दिया था और एक हम है कि उस महा-पुनीत भाव बोध को भी अपनी रसुखता की भेंट चढ़ाने पर तुले हैं।
अब रही जमात की बात। तो बता दू कि जमात के द्वारा किया गया वाकया असल में एक अमानवीय कृत्य था। फिर चाहे वह जाने अनजाने कैसे भी हुआ हो। यह मायने नहीं रखता। मायने रखता है परिणाम। दीन बांटने वाले ही अगर नफ़रत बांटने लगे तो उस धर्म और समाज का क्या होगा? उस पर कुछ तथाकथित मानवतावादियों की भी अपनी एक जमात है, जो इस नाज़ुक घड़ी में इस घटना से पूरे मुस्लिम समाज को जोड़ने पर तुली हैं।
वे ये नहीं समझते कि इस समाज में भी सभी लोग एक जैसे नहीं है। बहुत से ऐसे भी मुस्लिम पैरोकार है जो हिन्दू-मुस्लिम की भावना से ऊपर उठ कर मानव धर्म की बात करते हैं। इस पूरे मामले में उन्हें क्यों घसीट रहे हो? यहाँ भी ध्रुवीकरण और मजहबवाद की बू आती है।
तो फिर मैं क्यों न कहूँ कि पूरे फसाद की जड़ धर्म ही है। यदि ये अलग-अलग धर्म न होते तो यह सब न घटता। यह सब सदियों से होता आ रहा है। पहले साम्राज्यवाद के नाम पर तो आज धर्मवाद के नाम पर।
मैं धर्मों का विरोधी नहीं हूँ। मैं विरोधी हूँ तो इन धर्मो की व्यवस्थाओं और सरकारी तंत्र की स्वार्थपरता का। सरकारें चाहें तो यह झगड़ा ही सदा को समाप्त हो सकता है। पर वे ऐसा नहीं करना चाहती। ऐसा करने से उनकी राजनीति नहीं चल पाएगी।
यह भारत है साहब। यहाँ कोई भी इमोशनली ब्लैकमेल हो ही जाता है बस। सरकारें ऐलान करें कि किसी भी धर्म या समुदाय के बच्चों को सरकारी शिक्षा ही लेनी होगी। कोई भी धर्म या समुदाय अपनी निजी पाठशाला नहीं चलाएगा। धर्म को लेकर की जाने वाली पढ़ाई भी स्कूलों में ही होगी। जो उलंघन करता है तो उसे सजा दी जाएगी। तो सारे फसाद बंद हो जाएंगे। पर नहीं, उन्हें तो निजीकरण से अपने चहेतों को लाभ पहुँचाना है। बस फिर उसी की आड में दूसरे लोग भी अपना उल्लू साधने में कामयाब हो जाते हैं।
बच्चों को मुफ्त और सरकारी गुणवत्ता युक्त शिक्षा क्यों नहीं मिल रही है?
सरकारें और सियासी पार्टियाँ तो उल्टा सरकारी अध्यापकों को बदनाम करने पर तुली रहती है और बेचारा समाज उनकी बातों में आ कर असलियत भूल जाता है। ज़रा सोचो भाई कि क्या आजादी के 70 साल बाद भी हमारे बच्चों को मुफ्त और सरकारी गुणवत्ता युक्त शिक्षा क्यों नहीं मिल रही है?
जिसका प्रावधान करने की बात संविधान में की गई है। क्यों गरीब का बेटा या बेटी अमीरों या हुक्मरानों के बच्चों की तरह अच्छी शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं? क्योंकि यह एक बड़ी चालाकी है। ताकि इन्हीं के बेटे बड़े-बड़े पदों पर बने रहे और हमारे आजाद गुलाम। यह पूर्ण सत्य है।
आज दुनियाँ के उच्च शैक्षिक धरातल पर भारत की सरकारी शिक्षा प्रणाली की सुविधाओं को रखा जाए तो हम शायद कहीं खड़े ही न हो पाएंगे। कई बदलाव हर सरकारों में करवाए गए। पर सब आंकड़ों और कागजों में। क्योंकि इन स्कूलों में किसी बड़े आला अधिकारी या नेता के अपने बच्चे नहीं पढ़ते हैं। सब ख्याली घोड़े।
सब को बराबर लाने के लिए पूरे देश में एक ही पाठ्यक्रम होना चाहिए और सभी नागरिकों को सरकारी स्कूलों में ही बच्चे पढ़ाने के सरकारी आदेश होने चाहिए। संविधान में संशोधन पर संशोधन किए जा रहे हैं तो क्या यह नहीं हो सकता?
एक शिक्षा एक पाठ्यक्रम।
अब आप कहेंगे कि इस से क्या होगा? एक शिक्षा एक पाठ्यक्रम से गरीब-अमीर सबके बच्चों को समान शिक्षा मिलेगी और बराबर ज्ञान मिलेगा। उससे बड़े से बड़ी सरकारी सेवा में गरीबों के मेहनती बच्चे पहुँच जाएंगे और पूरे राष्ट्र की विचारधारा भी एक बनेगी।
जिससे ये जमात जैसी घटनाएँ नहीं घटेगी। ये सभी धार्मिक संगठन हो, पर धर्म की शिक्षा सरकार के अधीन हो। सरकार तय करें कि किस धर्म के लोगों और बच्चों को कैसी धार्मिक शिक्षा देनी है। नहीं तो हम सब लोग इन ठेकेदारों के यहाँ यूं ही लूटते रहेंगे। भारत में पहले भी धर्म गुरु राजदरबार के ही सदस्य होते थे।
अब तो धर्म के क्षेत्र में ऐसी बाढ़ आ गई है कि जिसे भी अच्छे से बोलना और गाना-बजाना या डराना – धमकाना आ गया, वहीं स्वयंभु धर्मगुरु बन जाता है। न कोई परीक्षा और न ही कोई रोक-टोक। न हींग लगे न फिटकरी रंग चोखे का चोखा।
मैं यह नहीं कहता कि सभी धर्म गुरु निकम्मे हैं। पर सवाल तो उठते हैं। जैसे ग़लत किया जमातियों ने उंगली उठी पूरे मुस्लिम समाज पर। मेरा तो मानना है कि सभी ज्योतिष, अध्यात्म, वास्तु और योग जैसे गूढ़ विषय स्कूलों में पढ़ाए जाने चाहिए और वे भी मुफ्त। तभी निरीह जनता लूटने से बचेगी और इस तरह की आफतों से भी बचेगी, जो आज आई है।
हमें बच्चों को मानव बनाना है न की किसी धर्म का पैरोकार या महज़ कोई कर्मचारी और अधिकारी। वे बने, पर पहले वह एक मानव बने। आज ज़रूरत है सर्व धर्म समभाव की। यह भारत को ही नहीं, पूरी दुनियाँ को समझना होगा।
आज हमें मशीनी – इंजीनियरों से ज़्यादा मानवता के इंजीनियरों की ज़रूरत है। यह महामारी चाहे मानव मस्तिष्क की खोपड़-वाजी हो या फिर किसी दैवी शक्ति का प्रकोप। चाहे फिर प्रकृति की विडम्बना हो। पर हर दृष्टि से कहीं न कहीं इस सब के लिए मानव की अमानवता जिम्मेवार है। अतः आज ज़रूरत है तो मानव को मानव बनाने की है।
सब जानते हैं कि चीन के बुहान से यह रोग दुनियाँ के कोने-कोने तक फैल गया। क्या इसके पीछे भी अमानवीयता का हाथ नहीं है? क्यों विश्व समुदाय के सामने यह बात चीन ने समय पर नहीं रखी? क्यों चीन अन्य देशों की यात्रा अपने लोगों से करवाता रहा, जबकि वह जानता था कि यह एक जानलेवा और लाइलाज घातक बीमारी है।
हम नहीं जानते कि यह चीन की चाल थी या फिर कोई प्राकृतिक घटना। परन्तु विश्व मानवतावादी दृष्टिकोण तो चीन को भी होना चाहिए था। वहीं नहीं रुकी यह गाड़ी। उस पर कई देशों के जमाती टूरिस्ट वीजा पर भारत घूमने आते हैं और यहाँ अपने ही धर्म को शर्मसार कर दिया। क्या फिर भी मानवता का पाठ स्कूलों में पढ़ाने के विपक्ष में खड़े होंगे हम? यह विश्व समुदाय को गहनता से सोचने की ज़रूरत है आज।
पूरे विश्व में ही धार्मिक शिक्षा को सरकारों को अपने हाथों में लेना चाहिए।
वरना भविष्य में इस के और भी गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। मैं तो कहता हूँ कि पूरे विश्व में ही धार्मिक शिक्षा को सरकारों को अपने हाथों में लेना चाहिए। भले ही उसके लिए सरकारें जनता की राय समय – समय पर लेती रहे। तभी यह भीड़ तंत्र राह पर आएगा। वरना यह पीढ़ी दर पीढ़ी यूं ही घटता जाएगा।
भले ही आज जान पर बन आई है, इसलिए लोग डाक्टरों को भगवान कहने लगे हैं। कहना भी चाहिए। पर असल में सबसे ज़्यादा ज़रूरी समाज को सही शिक्षा देना है। अगर शिक्षा का विकेंद्रीकरण और दोहरी व्यवस्थाएँ न रोकी गई तो भविष्य में डॉक्टर भी हाथ खड़े कर देंगे।
कुदरत या खुदा अपनी ओर से कुछ नहीं करता है। वह हमारे ही कर्मो को कई गुना बढ़ा कर हमें वापिस करती / करता है। किसी घाटी के बीच डाली जाने वाली आवाज़ ज्युं उल्टा हमारे ही कानों में कई गुना बढ़ कर प्रतिध्वनि के रूप में लौट आती है, उसी प्रकार कर्म भी लौटते हैं।
असल में सारे फसाद की जड़ कौन है?
इसलिए अच्छे कर्म करने की सीख जब तक न दी गई, तब तक अच्छे कर्म की उम्मीद रखना भी बेईमानी है। अब आप समझ गए होंगे कि असल में सारे फसाद की जड़ कौन है। सरकारें हैं कि इसका ठीकरा उसके सिर और उसका ठीकरा इसके सिर पर फोड़ती रहती है। अपनी गलती मानने को न पक्ष तैयार है और न विपक्ष। अब मेरे एक मित्र का कहना है कि ये मुस्लिम साले गद्दार है। ये मोदी जी से जलते हैं, इसलिए इन्होंने ऐसा किया। इन्हे तो गोली मार देनी चाहिए।
वह बेचारा भाजपाई है और उसके विरोध में दूसरे मित्र ने कहा कि हां-हाँ, जो तुम सोचते हो और बोलते हो वहीं सही है और सच भी वहीं होता है। माना कि ये जमाती साज़िश रच गए। तेरे मोदी जी की सरकार कहाँ सोई हुई थी। कहाँ थी खुफिया एजेंसियाँ। क्या वे सिर्फ़ और सिर्फ़ विरोधी पार्टियों की खुफिया जानकारी में ही लगा के रखी है? वे देश के लिए होती है जनाब किसी व्यक्ति या पार्टी की खुशामद के लिए नहीं। वह बेचारा कांग्रेसी था।
भाजपाई ने उसका दोष केजरीवाल के सर मढ़ दिया। यह तो राज्य सरकार को देखना चाहिए था। कांग्रेसी ने जबाव दिया कि पढ़ कल का अखबार। देख आपकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता शांत कुमार का बयान। वे कहते हैं कि इस मामले में चूक दोनों सरकारों ने की है। पर उनकी सुनता कौन है।
आपके तो यहाँ गुजराती जोड़ी की दादागिरी चलती है और भी बहुत कुछ वे अनापशनाप कह गए। सब यहाँ लिख पाना संभव नहीं है। यहाँ गुटवाजियों की बू आ रही थी। तो मुझे लगा कि असल में यह भीड़ तंत्र ही सारे फसाद की जड़ है। यदि आदमी दिमाग़ के बजाए दिल से पढ़ जाए तो सब ठीक हो जाएगा। पर अफसोस यह होगा कैसे?
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बताया है की — कोरोना संकट के समय पर भी इस्लामिक धार्मिक संगठन की जानबूझकर लापरवाही क्या ठीक था? याद रखे – सबसे बड़ा धर्म मानव धर्म है। “हमें बच्चों को मानव बनाना है न की किसी धर्म का पैरोकार या महज़ कोई कर्मचारी और अधिकारी। आज हमें मशीनी – इंजीनियरों से ज़्यादा मानवता के इंजीनियरों की ज़रूरत है।” यदि आदमी दिमाग़ के बजाए दिल से पढ़ जाए तो सब ठीक हो जाएगा। पर अफसोस यह होगा कैसे?
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यह वैचारिक लेख (आज की जरूरत।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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