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Tum Kya Hind Banaenge | तुम क्या हिन्द बनाएंगे।
अंग्रेजी को बढ़ावा देने वालो, तुम क्या हिन्द बनाएंगे?
तुम्हारी रग-रग से वाकिफ हम, पछुआ रीत बढ़ाएंगे॥
हिन्दुस्तान में रह कर जो भी, हिन्दी की बात चलाएंगे।
राष्ट्र हित के रथ को असल में, वही ही सही चलाएंगे॥
अब जाग चुका है हर भारतवासी, कितना बुद्धू बनाएंगे?
हिन्दी में कर भाषण अपना, अंग्रेजी का जाल बिछाएंगे॥
वे चले गए हैं सैंतालीस के, जिनकी भाषा तुमको प्यारी है।
पचहत्तर सालों में न भूले उनको, वाह! जी कैसी यारी है?
अब तो छोड़ो मोह पछुआ से, राष्ट्र की बात को आगे करो।
जाति धर्म के बिखरे मानकों में, प्रेम – एकता के धागे भरो॥
भाषा वैविध्य का लाभ उठाकर, भारत को न परेशान करो।
राम कृष्ण की जाया भूमि, इस पर कुछ तो एहसान करो॥
संस्कृति सभ्यता की लुटिया डुबाने में, न यारो सहयोग करो।
निज राष्ट्र का गौरव उन्नत कर, राष्ट्र की रीत का भोग करो॥
मौंसी के घर की ठाठ में खोकर, मां का यूं न तिरस्कार करो।
मां तो मां ही होती है जी, कुछ तो लाज शर्म स्वीकार करो॥
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — राष्ट्र धर्म ही हमारे लिये तो सर्वोपरि है। राष्ट्र आराधना सबसे बड़ी ईश भक्ति है।। राष्ट्र धर्म से हमारी तो सांसे चल रही है। अंग्रेजी को बढ़ावा देने वालो भला तुम सब क्या हिन्द बनाएंगे? हम सब तुम्हारी रग-रग से वाकिफ है, तुम आगे भी पछुआ रीत बढ़ाएंगे। हम सभी अब जानते है की हिन्दुस्तान में रह कर जो भी, हिन्दी की बात चलाएंगे, असल में राष्ट्र हित के रथ को वही सही चलाएंगे। अब जाग चुका है हर भारतवासी, कितना बुद्धू बनाएंगे? हम सभी को, अब हिन्दी में कर भाषण अपना, अंग्रेजी का जाल बिछाएंगे। कितनी शर्म की बात है वे तो चले गए हैं सैंतालीस के ही, जिनकी भाषा तुमको अभी तक प्यारी है। पचहत्तर सालों में न भूले उनको, वाह! जी कैसी यह यारी है? अब तो छोड़ो प्यारे मोह पछुआ से और राष्ट्र की बात को आगे कर, जाति धर्म के बिखरे मानकों में, प्रेम – एकता के धागे भरो व आगे बढ़ो। भाषा वैविध्य का लाभ उठाकर, भारत को न परेशान करो। राम कृष्ण की जाया भूमि, इस पर कुछ तो एहसान करो तुम। संस्कृति सभ्यता की लुटिया डुबाने में, न यारो सहयोग करो और निज राष्ट्र का गौरव उन्नत कर, राष्ट्र की रीत का भोग करो प्यारों।मौंसी (अंग्रेजी) के घर की ठाठ में खोकर, मां का यूं न तिरस्कार करो। मां तो मां ही होती है जी, कुछ तो लाज शर्म स्वीकार करो। जय हिन्द!
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यह कविता (तुम क्या हिन्द बनाएंगे।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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