Kmsraj51 की कलम से…..
♦ वाह रे ओ खुदगर्ज इंसान। ♦
वाह रे ओ खुदगर्ज! चौरासी श्रेष्ठ इंसान,
मैं हूं इंसान बस, मैं ही रहूंगा जिंदा।
निरीह प्राणियों की, बलि चढ़ा कर,
क्यों करता है इंसानियत को शर्मिंदा?
हिन्दू – मुस्लिम दोनों ढोंगी,
देव – खुदा का करते बहाना।
प्रथा तो यहां पर नर बली की भी थी,
काटना मुझ को, पकाना – खाना।
बकरों की बलि से सुधरे कुछ तो,
इंसानी बलि से फिर होगा कमाल।
नर बलि को तो कानून बना डाले,
वे कटते रहे और होते रहे हलाल।
वे देव कहां फिर दानव है सब,
जो खुश होने को लेते हैं किसी की जान।
वे इंसान कहां फिर राक्षस है सब,
जो अपनी सलामती में करते हैं निरीह कुर्बान।
वे बकरीद की नमाज में हलाली चाहते हैं,
ये मंदिरों में काट – काट के करते हैं पूजा।
मेरे लेखे ये दोनों ही नृशंस – निरीह हत्यारे,
न एक है धर्मी गुण ज्ञानी और न ही तो दूजा।
वेद – कतेब में कहां लिखी बलि?
कौन स्वीकारता है इनकी पूजा?
ये दानव संस्कृति के संवाहक सारे,
मानव संस्कृति में कौन है जूझा?
बकरे का बच्चा काट कर,
खुद के बच्चे की मनाते हैं खैर।
ईमान – धर्म तुम बांट रहे हो,
या कि, गुड में मिलाकर मीठा जहर ?
प्रलय – कयामत में क्या होगा?
जब खुदा – प्रभु की कचहरी होगी।
निरीह की होगी बल्ले – बल्ले,
तुम पर चोटें, गहरी होगी।
कुदरत सिखाती सत्य साहेब,
लॉकडाउन में क्यों सब बिन बलि रहे?
देव – खुदा का दोष नहीं सब,
इंसानी फितरत, क्या किससे कहे?
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बकरीद पर जानवरों को लटका देना और धारदार हथियार से मौत के घाट उतार देना अत्याचार के सिवा और कुछ भी नही। पशु बलि देना किसी के लिये भी ठीक नही है। यह बच्चों में जानवरों के प्रति संवेदनशीलता को समाप्त करता है व उनमें हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। सनातन हिंदू धर्मं में कही भी इस बात की चर्चा नहीं की गई है की किसी देवी-देवता को किसी पशु-पक्षी या अन्य जीव की बली देनी चाहिए या बली देने से मनोकामना पूर्ण होती है या बलि देना अनिवार्य है। अपने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए धर्मांध बनकर निर्दोष-बेजुबान पशु-पक्षीओं का बलि देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
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यह कविता (वाह रे ओ खुदगर्ज इंसान।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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