Kmsraj51 की कलम से…..
♦ वक्त कहाँ रह पाया सदा सिकन्दर का। ♦
वक्त कहाँ रह पाया सदा सिकन्दर का।
शाम ढले-ढल जाता तेज प्रभाकर का॥
ये भी साल चला जाएगा कल परसों।
फिर से स्वागत होगा नए कलेंडर का॥
उघड़े तन को भी कोई कम्बल दे दो।
कानों में कह जाता मास दिसम्बर का॥
बुरे समय की आँधी जब भी चलती है।
तिनका-तिनका उड़ जाता है छप्पर का॥
जिम्मेदारी पूरी और आधी तनख़्वाह।
कहाँ रिटायर होगा मुखिया इस घर का॥
चलते-चलते वक्त ज़रा थम जाएगा।
आएगा जब नाम ज़ुबाँ पर अलवर का॥
पल बदले, मौसम बदला, तिथियाँ बदलीं।
रंग बदल जाएगा तन की चादर का॥
♦– डॉ• सीमा विजयवर्गीय, अलवर (राजस्थान) –♦
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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)
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