Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ स्वागत है बेटी। ϒ
Heart touching real Story
स्वागत है बेटी।
ऑटो में बैठी वो छोटी सी गुडिया स्कूल जा रही है। बस एक टक न जाने कहाँ निहारती। कब वह ऑटो में बैठती, कब स्कूल में पहुँचती, पता ही नहीं चलता।
कैसा मासूम था उसका बचपन? उसका वो उदासी चेहरा, उसकी मासूमियत, उसके बचपन को समझता कौन? आखिर क्यों वो ऐसे रहती हैं, अलग-थलग?
- हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।
सब बच्चे स्कूल में मस्ती करते है, वो गुमसुम बैठी सोचती रहती। कुछ तो कमी थी उसकी जिंदगी में। जब लंच में सब बच्चे कहते कि मेरी मम्मी ने ये बनाया तो वो सुन कर उदास हो जाती। उस प्यार से डर जाती, जो उसे कभी ही नहीं था।
सब स्कूल की छुट्टी होने के इंतज़ार में रहते और वो सोचती कि बस समय यहीं रुक जाए। शायद उसे स्कूल में रहना अच्छा लगता था। कभी-कभी उसके साथी पूछ लेते कि ‘घर नहीं जाना है क्या, इच्छा ?’
स्कूल गेट के बाहर जो वह नजारा देखती उसे कचोट सा जाता है। जब कहीं कोई बच्चा अपनी मम्मी, अपनी दादी तो कोई पापा के साथ घर जाता। उसकी नन्ही आँखों में छिपी मासूमियत मानो उसका खालीपन बयां करती। घर का दरवाजा खोला, अंदर गई, सहमी सी नीची नजरों से। बस यही दोहराती हुई बात रोज सुनती, “थोड़ा ठहर भी जाया कर इतनी भी जल्दी क्या रहती है, घर आने की।
♥ उछलकर वापस आना।….. जरूर पढ़े।
“और वो ‘सॉरी आंटी ’कहकर अपने कमरे में चली जाती है, आंटी तीखे स्वर से पूछती है, ‘खाना नहीं खायेगी क्या’? बेमन से अपने हाथों से खाना खाती…फिर बस अपने खिलौने के साथ खेलते हुए कब उसकी आँखो में नींद आ जाती। पता ही नहीं चलता। बस यही सोचती हुई सो जाती कि काश मेरी माँ होती तो कैसा होता?
जन्म देते ही उसकी माँ दुनिया से अलविदा हो गई। वो भी बेटी को जन्म दिया था उसने, पिता को चाहिए था बेटा। बेटे की चाहत में कई बार उसके पिता ने उस पवित्र कोख से बेटी का अपहरण कर लिया था। इसी कारण उसकी माँ कमजोर हो चली थी। आखिर बड़ी मुश्किल से एक बिटिया को जन्म दिया अपनी कोख से लेकिन उस बदनसीब माँ की आँखों में अपनी बेटी का चेहरा देखना भी मुनासिब न था।
जन्म देते ही चल बसी वो। पिता ने दूसरी शादी कर ली परन्तु इच्छा को न माँ का प्यार मिला और न ही पिता का। अब वो सौतेली माँ जिसे वो आंटी कहती है, उससे खफ़ा रहती है।
- हिंदी कविता “लड़की को मत समझो बेकार” जरूर पढ़े।
बेटी जिसे शास्त्रों में लक्ष्मी माना गया है जिसके बिना घर में लक्ष्मी माँ का नहीं होता धन की प्राप्ति नहीं होती। उसका पिता अपनी ही बेटी को अपशकुन की तरह मानते है।
माँ तो सिर्फ उसकी कल्पना में हैं। माँ का प्यार, दुलार उसे कभी मिला ही नहीं। माँ की तड़प इच्छा को, उसके पूरे वजूद को बिखरा देती है।
वो बस जी रही है। अब वो अपने को समझने लगी है। दीवार पर टंगी तस्वीर को निहारने के अलावा कुछ शेष नहीं है इच्छा के पास, जिसे उसकी माँ ने टांग रखा था और लिखा था – “स्वागत है बेटी”।
©- संदीप वर्मा – बीकानेर, राजस्थान ∇
हम दिल से आभारी हैं संदीप वर्मा जी के प्रेरणादायक हिन्दी Story साझा करने के लिए।
We wish you a great & bright future. Thanks a lot dear Sandeep Verma.
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