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ϒ ब्रज के प्रसिद्ध १२ वनों के नाम। ϒ
ब्रज के प्रसिद्ध १२ वनों के नाम… 12 famous forest of Braj…..
- मधुवन
- तालवन
- कुमुदवन
- बहुलावन
- कामवन
- खदिरवन
- वृन्दावन
- भद्रवन
- भांडीरवन
- बेलवन
- लोहवन
- महावन
इनमें से आरंभ के ७ वन यमुना नदी के पश्चिम में हैं और अन्त के ५ वन उसके पूर्व में हैं। इनका संक्षिप्त वृतांत इस प्रकार है…..
मधुवन – यह ब्रज का सर्वाधिक प्राचीन वनखंड है। इसका नामोल्लेख प्रागैतिहासिक काल से ही मिलता है। राजकुमार ध्रुव ने इसी वन में तपस्या की थी। शत्रुघ्न ने यहां के अत्याचारी राजा लवणासुर को मारकर इसी वन के एक भाग में मथुरापुरी की स्थापना की थी। वर्तमान काल में उक्त विशाल वन के स्थान पर एक छोटी सी कदमखंडी शेष रह गई है और प्राचीन मथुरा के स्थान पर महोली नामक ब्रज ग्राम वसा हुआ है, जो कि मथुरा तहसील में पड़ता है।
तालवन – प्राचीन काल में यह ताल के वृक्षों का एक बड़ा वन था, और इसमें जंगली गधों का बड़ा उपद्रव रहता था। भागवत में वर्णित है, बलराम ने उन गधों का संहार कर उनके उत्पात को शांत किया था। कालान्तर में उक्त वन उजड़ गया और शताब्दियों के पश्चात् वहां तारसी नामक एक गाँव बस गया। जो इस समय मथुरा तहसील के अंतर्गत है।
कुमुदवन – प्राचीन काल में इस वन में कुमुद पुष्पों की बहुलता थी। जिसके कारण इस वन का नाम ‘कुमुदवन’ पड़ गया था। वर्तमान काल में उसके समीप एक पुरानी कदम खड़ी है, जो इस वन की प्राचीन पुष्प समृद्धि का स्मरण दिलाती है।
बहुलावन – इस वन का नामकरण यहाँ की एक बहुला गाय के नाम पर हुआ है। इस गाय की कथा ‘पद्म पुराण’ में मिलती है। वर्तमान काल में इस स्थान पर झाड़ियों से घिरी हुई एक कदम खंड़ी है, जो यहां के प्राचीन वन-वैभव की सूचक है। इस वन का अधिकांश भाग कट चुका है और आजकल यहां बाटी नामक ग्राम बसा हुआ है।
कामवन – यह ब्रज का अत्यन्त प्राचीन और रमणीक वन था। जो पुरातन वृन्दावन का एक भाग था। कालांतर में वहां बस्ती बस गई थी। इस समय यह राजस्थान के भरतपुर जिला की ड़ीग तहसील का एक बड़ा कस्बा है। इसके पथरीले भाग में दो ‘चरण पहाड़िया’ हैं, जो धार्मिक स्थली मानी जाती हैं।
खदिरवन – यह प्राचीन वन भी अब समाप्त हो चुका है और इसके स्थान पर अब खाचरा नामक ग्राम बसा हुआ है। यहां पर एक पक्का कुंड और एक मंदिर है।
वृन्दावन – प्राचीन काल में यह एक विस्तृत वन था, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य और रमणीक वन के लिये विख्यात था। जब मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के आतंक से नंद आदि गोपों को वृद्धवन (महावन) स्थित गोप-बस्ती (गोकुल) में रहना असंभव हो गया, तब वे सामुहिक रुप से वहां से हटकर अपने गो-समूह के साथ वृन्दावन में जाकर रहे थे।
भागवत आदि पुराणों से और उनके आधार पर सूरदास आदि ब्रज-भाषा कवियों की रचनाओं से ज्ञात होता है कि उस वृन्दावन में गोवर्धन पहाड़ी थी और उसके निकट ही यमुना प्रवाहित होती थी। यमुना के तटवर्ती सघन कुंजों और विस्तृत चारागाहों में तथा हरी-भरी गोवर्धन पहाड़ी पर वे अपनी गायें चराया करते थे।
वह वृन्दावन पंचयोज अर्थात बीस कोस परधि का तथा ॠषि मुनियों के आश्रमों से युक्त और सघन सुविशाल वन था।
वहाँ गोप समाज के सुरक्षित रुप से निवास करने की तथा उनकी गायों के लिये चारे घास की पर्याप्त सुविधा थी।
उस वन में गोपों-गोपियों ने दूर-दूर तक अनेक बस्तियां बसाई थी। उस काल का वृन्दावन गोवर्धन-राधाकुंड से लेकर नंदगांव-बरसाना और कामवन तक विस्तृत था।
संस्कृत साहित्य में प्राचीन वृंदावन के पर्याप्त उल्लेख मिलते हैं। जिसमें उसके धार्मिक महत्व के साथ ही उसकी प्राकृतिक शोभा का भी वर्णन किया गया है। महाकवि कालिदास ने उसके वन-वैभव और वहाँ के सुन्दर फूलों से लदे लता-वृक्षों की प्रशंसा की है। उन्होंने वृन्दावन को कुबेर के चैत्ररथ नामक दिव्य उद्यान के सदृश बतलाया है।
वृन्दावन का महत्व सदा से श्रीकृष्ण के प्रमुख लीला स्थल तथा ब्रज के रमणीक वन और एकान्त तपोभूमि होने के कारण रहा है। मुसलमानी शासन के समय प्राचीन काल का वह सुरम्य वृन्दावन उपेक्षित और अरक्षित होकर एक बीहड़ वन हो गया था। पुराणों में वर्णित श्री कृष्ण-लीला के विविध स्थल उस विशाल वन में कहाँ थे, इसका ज्ञान बहुत कम था।
भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन – ये तीनों वन यमुना की बांयी ओर ब्रज की उत्तरी सीमा से लेकर वर्तमान वृन्दावन के सामने तक थे। वर्तमान काल में उनका अधिकांश भाग कट गया है और वहाँ पर छोटे-बड़े गाँव बस गये हैं। उन गाँवों में टप्पल, खैर, बाजना, नौहझील, सुरीर, भाँट पानी गाँव उल्लेखनीय है।
लोहवन – यह प्राचीन वन वर्तमान मथुरा नगर के सामने यमुना के उस पार था। वर्तमान काल में वहाँ इसी नाम का एक गांव बसा है।
महावन – प्राचीन काल में इसी वन में भगवान की परम पावन रास लीला का प्रादुर्भाव हुआ था व आज भी भक्तों को इसकी अनुभूति होती है यह एक विशाल सघन वन था।
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