Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ क्या यही है नारी सशक्तिकरण…। ϒ
लड़कियाँ फेसबुक पर कभी खून लगे सैनिटरी पैड पकड़कर, तो कभी रात 12 से 1 बजे सड़क पर अकेले घूमने की मुहिम का हिस्सा बन रही है। कभी दुकानों पर खुद जाकर शराब की बॉटल या कंडोम खरीद कर “माह लाइफ़ माह च्वाइस कैप्शन” के साथ सोशल मीडिया पर तस्वीर अपलोड कर रही है और इस तरीके से “नारी सशक्तिकरण” पर जोर दे रही है।
क्या महिलाएँ फेसबुक पर चलाए जा रहे इन “सेलिब्रिटी कैंपेन” में अपनी मध्यमवर्गीय बैचैन अस्मिता तलाश रही है ? सूदूर देहात इलाके में सर न ढांकने की वजह से कोई महिला रुई की तरह धुन दी जाती है, कही मायके जाने की पूछने पर प्रताड़ित की जा रही है तो कही छेड़छाड़ से आहत होकर मिट्टी तेल डाल खुद को आग लगा रही है। मैंने इतनी सशक्त महिला भी देखी जो बेहतर कैरियर के लिए अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध अकेली अमेरिका चली गयी। अलग अलग पृष्ठभूमि की महिलाओं के संघर्ष को एक ही पैमाने पर रखकर “नारी सशक्तिकरण” के लिए लिखना मेरे लिए मुश्किल काम है।
पत्नी, बहू या माँ से यह अपेक्षा गलत है कि वो हर सामान आपके हाथ में थमाए क्योकि वह आर्थिक दृष्टि से घर में अनुत्पादक तत्व है। 1000 रुपये माँगने के लिए एक स्त्री को जब हजार बार हाथ फैलाना पड़े तो उसका स्वाभिमान कितनी मौत मरता है ये सिर्फ वह जानती है। तमाम अपमान, अवहेलना या नारकीय परिस्थितियों का सबसे बड़ा कारण महिलाओं का पुरुष सदस्यों पर आर्थिक निर्भरता है। बेटियों को इतना शिक्षित करिए कि वे जीवनयापन के लिए किसी पर आश्रित न हो। उसे “दहेज़” नही “शिक्षा” दीजिये। एक औरत को सबसे ज्यादा संघर्ष चारदीवारी के भीतर ही करना होता है। शिक्षा का समान अधिकार ही महिला सशक्तिकरण है।
फेसबुक में चलते नित नए सतही आयोजनों में से एक है सार्वजनिक स्थान पर स्तनपान कराना। स्तनपान कराती फ़ोटो के पक्ष और विपक्ष में महिलाओं का सैलाब आ गया। महिलाओं के कमेंट्स कुछ इस तरह से थे ….. मैं एक बार रेलवे स्टेशन पर अपने बच्चें को फीडिंग करा रही थी। पुरुष मुझे घूर रहे थे, हँस रहे थे, पलट-पलट कर देख रहे थे, छिप-छिप कर देख रहे थे। अब महिलाओं की जिद है कि सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान करा उन तस्वीरों को अपलोड कर एक बोल्ड महिला का तमगा भी चाहिये और साथ ही साथ सार्वजनिक स्थल पर मौजूद 100 अपरिचित पुरुषों से मर्यादा-पुर्षोत्तम श्रीराम सी शालीन प्रतिक्रिया भी।
- सुलगी “हसरतों” की राख उड़ाती…।….. जरूर पढ़े।
क्या आपने “मनोविज्ञान” पढा है ? काम, क्रोध, लोभ, मोह, व्यग्रता, अहंकार सामान्य “मानसिक विकार” है जो कम या अधिक मात्रा में सभी में होते ही है। आप ऐसी कोरी कल्पना में है जहाँ मानव जाति के ये स्वाभाविक विकार समाप्त हो जाए। आप बिकनी या शॉर्ट्स में है तो किसी का आप पर हँसना, छिपकर या पलटकर देखना किसी अपराध की श्रेणी में नही आता जब तक कि वह फूहड़ या अश्लील इशारेबाजी न करे। इन सबसे बचने के दो तरीके है। या तो ऐसे बेहूदा लोगो के घूरने से आप बिल्कुल बेअसर रहिये या दूसरा इन परिस्थितियों से दूर रहिये। …..आपकी बेतुकी जिद कि “आप अर्धनग्न हो और कोई आपको देखे नही” फेसबुक पर यह शोर मचाना महज़ पब्लिसिटी स्टंट माना जाएगा।
“मेरी रात मेरी सड़क” मुहिम के तहत एक निर्धारित दिन सड़कों पर आधी रात बैनर पोस्टर ले निकलने वाली हर लड़की जानती थी कि आज हम तयशुदा आयोजन के लिए समूह में निकले है इसलिये जोर-जोर से नारे लगा रहे है …”मेरी रात मेरी सड़क”…। बिल्कुल वही बैनर पकड़ी लड़की दूसरे दिन रात को उसी सड़क पर 2 बजे रेलवे स्टेशन से 1 किलोमीटर दूर अपने घर अकेली नही जाएगी। हमें हमारे देश में महिला सुरक्षा की जमीनी हकीकत पता है। देश में जनसंख्या के अनुपात में आवश्यकता से 68 प्रतिशत कम पुलिस किस-किस को सुरक्षा देगी ? एक एफ.आई.आर. करवाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते है सभी को मालूम है। हमें सावधान होना ही होगा। अपराध शून्य धरती के लिए पृथ्वी को मानवरहित करना होगा। सड़कों पर आधी रात भी महिलाएँ निकले और परिवार को सुकून से नींद आ जाए ये गारंटी देना सरकार का काम है, हमारे तंत्र का कर्तव्य है। तब है असल “नारी सशक्तिकरण”।
कोई महिला किसी यौन अपराध का शिकार हो जाती है तो उसके सामाजिक सम्मान में कोई कमी न आए इस बात के लिए लोगों के नजरिये में सकारात्मक बदलाव की पहल ही नारी स्वतंत्रता का असल आंदोलन। “महिला यौन शोषण” वास्तव में गम्भीर समस्या है। लोक लाज से आतंकित महिलाएँ सामने नही आती और अपने साथ हुई ज्यादती को दुःस्वप्न की तरह भुलाने की कोशिश करती है। समाज में कई सफेदपोश सिर्फ इसलिए बच जाते है कि मामला सामने आने पर अपराधी नही पीड़िता की मानहानि होगी। अपनी बेटियों को हौसला और हिम्मत दीजिये कि उनकी अस्मिता को चोट पहुँचाने वाले का पुरज़ोर विरोध करने का उसमें सामर्थ्य आए। समाज की इस निम्न सोच में बदलाव ही असल “नारी सशक्तिकरण” है।
लड़कियाँ फेसबुक पर अपने यूज्ड सैनेटरी पैड के साथ तस्वीर लगा किस तरीके की नारीमुक्ति का पर्व मना रही है समझ से परे है। महिला सशक्तिकरण वास्तव में संवेदनशील और संजीदा मुद्दा है। प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का बेहद चर्चित कैम्पेन .. “माह लाइफ – माह रूल्स” …में उनके बोल्ड तेवरों ने बहुत सुर्खियाँ बटोरी। अंग्रेजी में दीपिका बोल रही है कि मेरा लाइफ पार्टनर मुझे नियंत्रित नही कर सकता कि मैं रात कहाँ और किसके साथ बिताकर आ रही हूँ। देश भर की लड़कियों को यह जुमला बहुत भाया। क्या इन लड़कियों ने कभी नही सोचा कि दीपिका ने रनबीर कपूर को सिर्फ इसलिए छोड़ा क्योकि कैटरीना कैफ के साथ उनकी कोज़ी तस्वीरें सामने आयी। प्रेम एकाधिकार माँगता है। जीवनसाथी द्वारा आपके प्रेम पर एकाधिकार की माँग जायज़ है। इसमें कैसा नारी शोषण ? महिलाएँ इतनी “भटकी मुहिम” और “भ्रमित आंदोलनों” का हिस्सा कैसे बन रही है ? क्या नकारात्मकता का आकर्षण उन्हें लुभा रहा है ?
अमिताभ बच्चन ने अपने फेसबुक अकाउंट में पूरे देश की बेटियों के नाम एक खुला पत्र लिखा। लड़कियाँ मिनी पहन आधी रात डिस्को जाए या शराब पीए किसी को आपत्ति नही होना चाहिए। जी उन्होंने सही कहा क्योकि उनके घर की महिलाएँ आधी रात निकल सकती है। आप गूगल पर … ” ऐश्वर्या राय इन एयरपोर्ट टाइप करिए ” …और तस्वीर देखिए। 6 से 7 बॉडीगार्ड से हर वक़्त घिरी उनके परिवार की महिलाएँ निश्चित रूप से आधी रात बाहर निकल सकती है।
एक स्त्री होने के नाते आप संघर्ष करिए अपने परिवार के भीतर शिक्षा के अधिकार व अपने महिला स्वाभिमान को अक्षुण्ण रखने, अपनी आर्थिक आजादी के लिए, अपनी सामाजिक सुरक्षा के लिए। घर की चारदीवारी के बाहर निकल कर लम्बा संघर्ष करिए अपनी सरकार से सुरक्षित सड़कों के लिए। मुँहतोड़ जवाब दीजिये उस समाज को जो बलात्कार पीड़िता या यौन शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली को हेय दृष्टि से देखता है। किसी भेड़चाल में शामिल होने से पहले विचार करिए कि आपसे पूछा गया हर सवाल, संशय या आपत्ति आपके नारीत्व पर प्रहार नही है। संतुलित बुद्धि से तौलने का नजरिया विकसित करिए। अपने लक्ष्य स्वयं निर्धारत करिए।
अभद्रता और शालीनता, बेहूदगी और गरिमा, फूहड़ता और शिष्टता के बीच के फर्क को अंतरात्मा से महसूस करिए और स्त्री-गरिमा का सार्थक उत्सव मनाइए।…(आपकी मधु ) …..
(महिला-सप्ताह पर सभी महिलाओं के लिए।)
© …(Madhu Chaturvedi Ji) _ Writer at film association Mumbai ®
हम दिल से आभारी हैं मधु जी के “क्या यही है नारी सशक्तिकरण…।” विषय पर हिन्दी में Article (अपने विचार) साझा करने के लिए।
FB Page Link : https://www.facebook.com/madhuchaturvediwriter/
मधु जी के लिए मेरे विचार:
♣ “मधु जी” ने “क्या यही है नारी सशक्तिकरण…।” Article के माध्यम से Women’s Day Week पर विशेष दिल को छूने वाला कितना सरल सुंदर-शिक्षाप्रद व अनुकरणीय वर्णन किया हैं। असल में “नारी सशक्तिकरण” क्या है, इस बात को बखूबी बहुत ही सरल शब्दो में समझाया है। हर एक नारी को इन बातों पर विचार करना चाहिए दिल से। और इस विषय पर दिलसे सोच समझकर ही कोई कदम उठाये। तभी सच्चे अर्थो में “नारी सशक्तिकरण” होगा। आशा करता हूँ मेरे भारत देश की हर एक नारी इन बातों पर विचार जरूर करेंगी।मधु जी – की लेखनी की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखती है, इनके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।
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