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रिश्तों को निभाना सीखो।

Kmsraj51 की कलम से…..

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Rishton Ko Nibhana Sikho | रिश्तों को निभाना सीखो।

रिश्तों की अहमियत पर कविता | गलतफहमियां और संबंधों का मूल्य

रिश्तों को निभाना सीखो,
गलतफहमी के धागे मत खींचो।
जहां जहां गलतफहमियां है बढ़ी,
वहां वहां रिश्तों में दीवार हुई है खड़ी।

रिश्ते बनना भी है एक संयोग,
गर रहोगे कोसते तो भोगना पड़ेगा वियोग।
रिश्ते बनते यहीं निभाने भी पड़ते यहीं,
कहीं फलते फूलते तो बर्बादी नजर आती कहीं।

कोई रिश्ता जन्मों जन्मान्तरों तक बनाता,
तो कोई एक जन्म भी नहीं निभाता।
रिश्तों में आपसी समझ चाहिए जरूरी,
निभाने में न समझे मजबूरी।

कहीं रिश्ते तार तार भी होते,
तो कहीं कत्ल की सजा तक है भोगते।
मतलब के जो रिश्ते हैं बनते,
ज्यादा देर नहीं है वो टिकते।

जब से मनुष्य तरक्की की राह पर है चला,
उसके मन में रंजिश का दानव है पला।
यही दानव उसे उकसाता, विवश करता,
फिर क्या वही होता जो रिश्ता नहीं चाहता।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में रिश्तों की महत्ता और उन्हें निभाने की कला को समझाया गया है। कवि कहता है कि गलतफहमियों को बढ़ाने से रिश्तों के बीच दूरी और दीवारें पैदा हो जाती हैं। रिश्ते संयोग से बनते हैं, लेकिन उन्हें निभाना प्रयास, धैर्य और समझदारी से होता है। कई रिश्ते लंबे समय तक चलते हैं, जबकि कुछ लोग एक जन्म का रिश्ता भी नहीं निभा पाते। कविता यह संदेश देती है कि रिश्तों में मजबूरी नहीं, बल्कि आपसी समझ और भावनात्मक जुड़ाव होना चाहिए।

    👉 जहां रिश्ते स्वार्थ पर टिके होते हैं, वे जल्दी टूट जाते हैं, लेकिन जहां प्रेम, धैर्य और संवेदना होती है, वहां रिश्ते मजबूत बनते हैं। कवि आधुनिक समय की ओर संकेत करते हुए कहता है कि तरक्की के साथ मनुष्य के भीतर रंजिश, अहंकार और स्वार्थ बढ़ गया है, जिससे रिश्तों में दूरी और टूटन बढ़ रही है। इसलिए रिश्तों को समझकर, धैर्य और प्रेम से निभाना आवश्यक है।

—————

यह कविता (रिश्तों को निभाना सीखो।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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