Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ जैन – “विशुद्ध वंदना” ϒ
परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के चरणों में समर्पित…..
“विशुद्ध वंदना”
वेष दिगम्बर धारी मुनिवर करुणा अब जगाएँगे।
पार करो खेवैया नहीं तो हम भव में ठहर जाएँगे।
भक्ति भाव से आपको पुकारें हे! विशुद्ध महासंत।
कृपा प्रकटाओ अपनी नहीं तो हम किधर जाएँगे।
आपने ठहराई आस अब लेता हूँ दोनों हाथ पसार।
नाम आपका लेकर बाधाओं से हम पार हो जाएँगे।
कर्म किये भवों से खोटे पास आपके अब आये हैं।
ले लो शरण में हमें भाग्य हमारे भी सँवर जाएँगे।
विषयों का विष पीकर विषधर से क्या कम हैं हम।
दे दो आशीष हमें इस गरल से हम मुक्त हो जाएँगे।
सब करके देखा फिर भी चैन कहीं न मुझको आया।
आपने ठुकराया प्रभु तो अब हम और कहा जाएँगे।
लड़ता रहा जग से, आत्म से आयी युद्ध की बारी है।
थामलो हाथ मेरा गुरुवर हम भी भव से तर जाएँगे।
अंत अब नमन करूँ श्री आचार्य परमेष्टि मंगलकार।
चरण रज माथे धरूँ ‘राहत’ कर्म कंटक मिट जाएँगे।
– डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ – हैदराबाद, तेलंगाना ®
हम दिलसे आभारी है – डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी के, हिंदी में “विशुद्ध वंदना” शेयर करने के लिए।
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी के लिए मेरे विचार:
♣ “डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी” ने “विशुद्ध वंदना”…“ काे “विशुद्ध वंदना” के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इक – इक शब्द दिल की गहराइयों तक उतरते है। आपके लेखन की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखते है, आपके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो नज़्म, गज़ल हो या कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।
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