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Essay on Sanskar in hindi

सत्य का ज्ञान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सत्य का ज्ञान। ♦

दीपक में केवल तेल, घी, और बाती होने से रौशनी नहीं मिलती, जब तक घने अंधकार में उसे प्रज्वलित न की जाए। तेल, बाती, अंधकार, अग्नि और इच्छा के बिना रौशनी की कल्पना नहीं की जा सकती। अंधकार से लड़ने की क्षमता केवल रोशनी में है। मनुष्य के अंधकारमय जीवन को सत्य का ज्ञान ही प्रकाश में ला सकता है।

बिना गुरु के सत्य का ज्ञान असम्भव, अकल्पनीय है, प्राचीन समय से शिक्षित, ज्ञानी, परमात्मा को जानने वाले, कलम एंव बुद्धि के धनी, समाज को सत्य के मार्ग पर अग्रसर करने वाले, रक्षा करने वाले, अंधकार से प्रकाश में लाने वाले, सही शिक्षा एंव संस्कार पर समान बल देने वाले, मनुष्य को अपने ज्ञान के माध्यम से न्याय के मार्ग पर चलते हुए, परमात्मा से जुड़ने का मार्ग गुरुओं ने बताया है —

“बिना गुरु ज्ञान कहाँ, जहॉं गुरु हर धाम वहां”

संस्कार मनुष्य को आत्मसंयमी, त्यागी एंव अहंकार रहित बना देता है। सही ज्ञान के अभाव में मनुष्य का जीवन कष्टों से घिर गया है, खुशी, शांति लुप्त हो गई। आज मनुष्य के भीतर संवेदना, प्रेम, त्याग, भाइचारे की कमी देखी जाती है। अमानवीय कार्य करने में थोड़ी भी झिझक नहीं होती। एक दूसरे का शोषण करना, अपना जन्म सिध्द अधिकार समझते हैं। यह दोष गलत शिक्षा, गलत परिवेश एंव गलत संस्कार का है।

दूसरे की निन्दा करना, कृतघ्नता, दूसरों के गुप्त भेद को खोलना, निष्ठुरता दिखाना, निर्दयी होना, परायी स्त्री का सेवन करना, दूसरों का धन हड़प लेना, अपवित्र रहना, धूर्त्त बनकर मनुष्य को ठगना, मनुष्यों के प्राण लेना, पद के अहंकार में अंधा हो जाना, किसी को दुःख देकर आनन्दित होना, गलत शिक्षा देकर दूसरे को भ्रमित करना, आजकल मनुष्य की प्रवृति बन गई, क्योंकि वर्त्तमान समय में इंसान वेद के उपदेशों को भूल गया।

वेद में बताए गये मार्ग को कुछ स्वार्थी, अयोग्य लोगों ने गलत ढंग से प्रस्तुत किया, षडयंत्र के तहत, लोग भ्रमित होते चले गये, शिक्षा का मतलब ही बदल गया। जब बीज ही खराब हो तो फसल कैसी होगी। सही शिक्षा लुप्त होती गई, मनुष्य के बीच ऊँच-नीच, बड़े-छोटे, छूआ-छूत का दरार पैदा हो गया। वेद को पढ़ने से वंचित कर दिया गया। सत्य को दबाकर, असत्य का प्रसार होने लगा। विद्वानों की अनदेखी होने लगी।

कुछ लोग ठेकेदार बन गए, लेकिन समय का चक्र बदलता है। महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द घोष, महर्षि महेश योगी, श्री परमहंस योगानन्द जी, श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जी, गुरु नानक जी, सम्पूर्ण मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए एक सूत्र में बॉंधकर सही मार्ग दिखाने का कार्य किया।

वेद स्वतः प्रमाण है।

वेद स्वतः प्रमाण है— ऐसी दृष्टि रखना, गुरु श्रेष्ठ, देवता, ऋषि, महात्माओं, माता-पिता एंव बड़ों का सत्कार करना, अच्छे कर्मों का अभ्यास करना, सब के प्रति मित्र भाव रखना। लेकिन आज के परिवेश में ये सभी चीजें विलुप्त होती जा रही है। इंसान कुत्ते को गोद में बिठाकर प्यार करता नजर आता है लेकिन इंसान से, अपनों से, छूआछूत एंव नफरत का भाव रखता है। अहंकार में दूरी बनाकर रखने में शान समझता है। कोई भी धर्म छूआछूत या नफरत फैलाने की इजाजत नहीं देता।

कोई भी पवित्र, स्वच्छ इंसान किसी भी धर्मस्थल पर जाने का अधिकारी है। “रोको मत, जाने दो, रोको, मत जाने दो।” इन दोनों वाक्यों में जो फर्क है, वही फर्क कुछ लोगों ने पैदा किया, समाज को बॉंटने के लिए, अपनी जीविका चलाने के लिए, अपनी रोटी सेंकने के लिए, नफरत की बीज बोने के लिए। नींव की ईंट कभी दिखाई नहीं पड़ती। गुनाहगार हमेशा पर्दे के पीछे रहना चाहता है, सत्य का ज्ञान नहीं होने के कारण लोग निर्दोष को ही गुनहगार मान लेते हैं।

आज मंदिर, गुरुद्वारा, जैन मंदिर, बौद्ध मंदिर, संतसंग, चर्चे हर जगह है, संख्या में काफी वृद्धि हो गई लेकिन गलत विचार के कारण गुनाहगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। धार्मिक स्थल पर जाने के बाद बहुत शकुन, शांति मिलती है क्योंकि वहां विचार पवित्र हो जाता है।

अगर सत्य का ज्ञान हो तो घर में अकेले बैठकर आंख बंद कर लेने के बाद जो शांति मिलती है वह कहीं नहीं मिलेगी। भगवान तो दिल में है, हर इंसान भगवान का ही अंश है, हम सभी परमपिता परमेश्वर की संतान है, यह कैसी बिडम्बना है कि जिस भगवान ने इंसान को पैदा किया, वही इंसान भगवान पैदा करे, यह असंभव ही नहीं, अनुचित प्रतीत होता है, यह एक विचार है। भगवान तो सर्वप्रिय, सर्वमान्य हैं, उनके बिना इच्छा, एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, वह सर्वशक्तिमान है। प्राण डालने का अधिकार केवल भगवान को है, इंसान, प्राण नहीं डाल सकता। जन्म और मृत्यु केवल भगवान के हाथ में है।

हर सम्प्रदाय या कुछ गुरु केवल अपनी बात थोपने का प्रयास करते हैं। खुद को ही भगवान घोषित कर देते हैं। शिक्षित, अशिक्षित सभी पूजने लगते है, इंसान कभी भगवान हो ही नहीं सकता। अच्छा बनने के लिए, बुराई को त्यागना पड़ता है। कोई भी इंसान धर्म का सही पालन करेगा, वह स्वतः बुराइयों से दूर हो जायेगा।

धरती पर लाखों धर्म स्थल हैं, लोगों की बहुत आस्था है फिर व्यभिचार, चोरी, बेईमानी, ईर्ष्या, जलन, कत्ल दंगे, फसाद क्यों, भगवान शिव, कृष्ण, मॉं दुर्गा, चित्रगुप्त, भगवान महावीर, बौद्ध, गुरु नानक, गुरु गोविंद सिंह के उपासक, आराधना करने वाले खुद ही संयमित होकर परोपकार करते हुए जीवन व्यतीत करने लगेंगे। लेकिन अशिक्षा और अज्ञानता के कारण लोग मार्ग से भटक गये हैं।

जो करना है, वह नहीं करते, जो नहीं करना है वो अवश्य करते हैं। सही कुलीन गुरु, सही मार्ग दर्शन देने वाले, भटके हुए को सही रास्ते पर लाने वाले, वेद का सही अर्थ समझाने वाले, आडम्बर से दूर रहने की सलाह देने वाले, शोषण से मुक्त रहने की प्रेरणा देने वाले गुरु ही सत्य का ज्ञान दे सकते हैं। सभी गुरुजनों को कोटी-कोटी नमन, सत्य को जाने, असत्य नरक का द्वार खोलता है। चूहा-सांप, मोर-बैल, शेर सभी एक साथ एक दूसरे का दुश्मन होते हुए भी, एक साथ शिव परिवार में रहते हैं। प्रभु चरण में समर्पित होने के बाद, अहंकार स्वतः गायब हो जाता हैं। जहाँ प्रेम, वहाँ भय कैसा, ये है सत्य का ज्ञान।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — ज्ञान, ध्यान और योग किसी भी इंसान के जीवन में सदैव ही खुशियाँ ले आती है। वेद, पुराण, श्रीमद भागवत गीता, रामायण, रामचरित मानस, का पाठ करना जरूरी है। गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता, समय-समय पर धर्म की रक्षा के लिए, महान आत्माये धरती पर आती रहती है, और धर्म का रक्षा करती हैं। अपने बच्चों को बचपन से ही धर्म और शास्त्र का ज्ञान दे, अच्छा संस्कार दे, तभी आपका बच्चा आगे चलकर, देश और समाज का भला करेगा।

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यह लेख (सत्य का ज्ञान।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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