Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ Q. A. W. ~ KMSRAJ51 ϒ
ओम गंग गणपतये नमः
श्री गणेश मंत्र ~
ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभं।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
Q. 1 . ⇒ चिन्ता मुक्त कैसे हो ?
या
चिन्ता से बाहर कैसे निकले ? या
चिन्ता मुक्त होने का सहज formula क्या हैं ?
-सपना राजवंशी, जयपुर (राजस्थान)
-नेहा कपूर, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
A. 1 . ⇒ सबसे पहले यह समझ ले कि चिंता क्यों होती हैं ? चिंता का मुख्य कारण है only अपनी कमजोरियों को देखना। आज की पीढ़ी की सबसे बड़ी problem है कि वह only अपनी कमजोरियों को देखते है। चिन्ता करना किसी भी problem का solution (समाधान) नहीं। कभी भी चिन्ता करने से काेई काम अच्छा नहीं हाेता। चिन्ता मुक्त बनने के लिए आपकाे सर्वप्रथम स्वयं पर व स्वयं के आंतरिक स्ट्रांग Power काे समझना और उस पर पूर्ण विश्वास करना हाेगा। अपने स्ट्रांग Power की एक लिस्ट तैयार करें।
अपने स्ट्रांग Power की लिस्ट में वह सबकुछ शामिल करें, जिसमें आप बेस्ट हैं। सदैव ही अपने स्ट्रांग Power के बारे में ही सोचे। जितना ज्यादा हो सके, अपने आपको अच्छे कार्यों में व्यस्त रखें।
“प्रकृति का एक बहुत ही कारगर नियम है, यदि मिट्टी में काेई बीज न बाेया जाये ताे प्रकृति उस मिट्टी काे घास-फूस से भर देती है।”
बिल्कुल यही नियम इंसान के दिमाग पर भी लागू होता हैं। अगर इंसान का दिमाग व मन अच्छे विचाराें से नहीं भरा जाये ताे उसमें नकारात्मक विचार स्वचालित रूप से अपना जगह बना लेते है और इंसान चिंताग्रस्त हाे जाता है। एक कहावत भी है –
“खाली मन शैतान का घर हाेता है।”
अच्छे works में जब अपने आपकाे busy रखेगें ताे, फालतू विचार साेचने का time ही नहीं हाेगा। “जहा तक हाे सके सदैव ही अपने मन काे अच्छे विचाराें से भरें।”
अपना संग सकारात्मक लोगों के साथ रखें। ऐसे लोगों से दोस्ती रखें जो सदैव ही सकारात्मक सोचते है। नकारात्मक सोच रखने वालों से जितना हो सके दूरी बनाकर रखें।
दोस्तों – एक कहावत है –
“एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है।”
जरुरत है उस गंदी मछली काे तालाब से बाहर निकालने की। न कि तालाब काे बार-बार साफ करने की। ठिक इसी तरह अगर आपका दोस्ताना नकारात्मक साेच रखने वालाे से है ताे, … “जरुरत है कि उनसे दूरी बना ले, न कि उन्हें बार-बार समझाने कि काेशिश करें।”
- सदैव अपना दोस्ताना – सकारात्मक सोच रखने वालों से करें।
- अपनी सोच व कर्म को सदैव ही सकारात्मक रखें।
- सदैव अपने internal स्ट्रांग power काे देखें।
- Life में एक बार जो गलती हो जाए उसे दूबारा रिवाइज न करें।
- जीवन भर अपने पढ़ने व सीखने की आदत काे बनाये रखें। अर्थांत – इंसान काे सदैव ही सीखने के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
- याद रखें – कभी भी काेई ज्ञान बुरा नहीं हाेता, हा इंसान बुरे हाे सकते हैं(अपने बुरे कर्माें कि वजह से)।
- “इस संसार में ज्ञान के जितने भी स्रोत है या जितने भी ज्ञान के भंड़ार available है, सब अच्छें कार्याें के लिए है।”
- वह ताे शैतानी(राक्षसी) साेच रखने वाले इंसानाे द्वारा गलत इस्तेमाल की वजह से लोगों काे समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- चिन्ता मुक्त होने के लिए मन काे शांत रखें। मन काे शांत रखने का तरिका है – मैडिटेशन(ध्यान), व सत्य का ज्ञान। अपने स्व शक्तियों का ज्ञान। मन काे शांत रखने के लिए, जीवन में ज्ञान व ध्यान का हाेना बहुत जरूरी हैं।
अशांत मन उचित निर्णय लेने की क्षमता काे खत्म(खाे) कर देता हैं।
~Kmsraj51
Q. 2 . ⇒ क्या इंसान का पुनर्जन्म इंसान के रूप में ही होता हैं या किसी अन्य योनि में? `या`
क्या काेई भी Soul(आत्मा) सदैव ही पुरुष शरीर और स्त्री शरीर काे ही धारण करती है, या कभी पुरुष व कभी स्त्री शरीर ? `या`
क्या काेई भी आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से सदैव के लिए मुक्त हाे जाती हैं ? `या`
इंसान काे उसके कर्माें का भाेगदंड़ उसके इसी जन्म में मिलता है या अन्य जन्म में भी कर्माें का भाेगदंड़ मिलता है ?
-मधु शर्मा, देहरादून – (उत्तराखंड)
-स्मिता सिंह राजपूत, बिकानेर – (राजस्थान)
-स्नेहा घोष, कोलकाता – (पश्चिम बंगाल)
-आशीष पुरी, पुरी – (ओडिशा)
A. 2 . ⇒ इंसान सदैव ही इंसान के रूप में ही जन्म लेता हैं, कभी भी किसी अन्य योनि में उसका जन्म नहीं हाेता। “पूरे विश्व में आजतक जितने भी Rebirth के वास्तविक केस के रिसर्च सामने आये है, एक भी ऐसी आत्मा(soul) नहीं जिनका किसी अन्य योनि में जन्म हुँआ हाे। इस बात काे अब Science(विज्ञान) भी – प्रूफ कर चुकी हैं।”
- जरा गहराई से साेचे “यदि किसी आत्मा काे अपने कर्माें का भाेगदंड़ भाेगने के लिए, किसी अन्य योनि में जन्म लेना हाेता ताे फिर – जब कोई बच्चा गर्भ में ही मर जाता है ताे, जन्म लेने से पहले ही ऐसा काैन सा बुरा कर्म कर दिया जाे गर्भ में ही मर गया।
- क्यों कोई बच्चा जन्म से ही गर्भ में ही अंधा, बहरा, गुगां, लंगड़ा या शारीरिक रूप से पूर्ण विकलांग हाेता है ताे, जन्म लेने से पहले ही या जन्मते ही ऐसा काैन सा पाप कर्म कर दिया जाे उसे ऐसी सजा मिली।
“जबकी सभी के बीच एक झूठा भ्रम पैदा कर दिया गया है कि – बहुत ही सत्यकर्माें या अच्छें कर्माें के बाद ही मनुष्य तन मिलता हैं।”
- मनुष्य सदैव ही मनुष्य तन में ही जन्म लेता हैं। जन्मते ही किसी भी बच्चे ने काेई बुरा कर्म नहीं किया, जिसकी वजह से वह जन्म से ही अंधा, बहरा, गुगां, लंगड़ा इत्यादि हुआ। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उसने पिछले जन्म में कर्म(बुरे कर्म) किए थे। जिसकी वजह से उसका ऐसा जन्म हुआ, या जन्म लेने से पहले ही मर गया।
- किसी भी मनुष्य की आत्मा में सदैव ही तीन सूक्ष्म शक्तियाँ निहित हाेती हैं। जो सदैव ही आत्मा के साथ पुनर्जन्म होने पर भी साथ ही जाती हैं। वह तीन सूक्ष्म शक्तियाँ हैं मन, बुद्धि व संस्कार।
- मन सोचने का कार्य करता हैं।
- बुद्धि निर्णय करने का कार्य करता हैं।
- मन के द्वारा साेचे जाने के बाद बुद्धि जाे निर्णय लेती हैं, शरीर कि कर्मेंद्रिया उसी तरह कर्म करती है, और कर्मेंद्रियाें द्वारा जाे कर्म हाेता है वही संस्कार के रूप में आत्मा के अंदर रिकॉर्ड हाेता रहता हैं। इसी रिकॉर्ड काे संस्कार कहते है, और इसी संस्कार के अनुसार ही अगला जन्म हाेता हैं।
- हर तीन जन्म के बाद पुरुष शरीर धारण करने वाली आत्मा, स्त्री शरीर काे धारण करती हैं। अर्थांत – तीन जन्म पुरुष शरीर, उसके बाद तीन जन्म स्त्री शरीर काे धारण करती है, यही चक्र सदैव ही चलता रहता हैं।
- इंसान का सदैव ही पुनर्जन्म होता हैं।
- काेई भी आत्मा जन्म-मरण के चक्र से सदैव के लिए मुक्त नहीं हाे सकती। हा यदि बहुत अच्छें कर्म है, बहुत ही पुण्य आत्मा हैं। साधना(ध्यान) के दाैरान कैवल्य कि स्थिति में मुक्त हाेने की तीव्र इच्छा हाे ताे – वह आत्मा कुछ समय के लिए जन्म नहीं लेती हैं। वह आत्मा कुछ समय के लिए परमधाम(ब्रह्मलोक) में रहती है।
- किसी भी इंसान का यदि पुण्य का खाता बहुत ज्यादा है ताे – उसे इसी जन्म में उसके सारे कर्माें के सारे भाेगदंड़ नहीं मिलेगे। जब उसके पुण्य का खाता क्षिण होगा तब ही उस का भाेगदंड़ मिलता हैं। इंसान काे उसके बुरे कर्माें का भाेगदंड़ उसके पुण्य के खाते की वजह से कुछ समय के लिए टल जाता हैं। बहुत ज्यादा पुण्य का खाता है ताे – उसे थाेड़ा सा समय मिल जाता हैं। लेकिन भाेगदंड़ मिलेगा जरुर।
~Kmsraj51
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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)
~Kmsraj51
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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)
“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”
In English
Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.
~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)
“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”
~KMSRAJ51