kmsraj51 की कलम से…..
प्रेम एक पंछी है !!
“प्रेम एक पंछी है, उसे आज़ाद रखो ! उस पर एकाधिकार करने की कोशिश मत करो !
एकाधिकार करोगे तो वह मरजाएगा !
एक सम्पूर्ण व्यक्ति वह है जो बिना शर्त प्रेम कर सकता है !
जब प्रेम बिना किसी बंधन के, बिना किसी शर्त के
प्रवाहित होता है तो और कुछ उपलब्द्ध करने
के लिए रह ही नहीं जाता, व्यक्ति को उसकी मंजिल मिल जाती है !”
जब हम किसी से कहते हैं : आई लव यू, तो दरअसल हम किसी बारें में बात कर रहे होते हैं ?
इन शब्दों के साथहमारी कौनसी मांगें और उमीदें, कौन कौन सी अपेक्षाएं और सपने जुड़े हुए हैं !
तुम्हारे जीवन में सच्चे प्रेम कीरचना कैसे हो सकती है ?
तुम जिसे प्रेम कहते हो, वह दरअसल प्रेम नही है ! जिसे तुम प्रेम कहते हो, वह और कुछ भी हो सकता है,
पर वह प्रेमतो नहीं ही है ! हो सकता है कि वह सेक्स हो ! हो सकता है कि वह लालच हो !
हो सकता है कि अकेलापन हो !
वहनिर्भरता भी हो सकता है ! खुद को दूसरों का मालिक समझने की प्रवृति भी हो सकती है !
वह और कुछ भी हो सकता है,पर वह प्रेम नहीं है !
प्रेम दूसरों का स्वामी बनने की प्रवृति नही रखता ! प्रेम का किसी अन्य से लेना देना होता ही नहीं है!
वह तो तुम्हारे प्रेम की एक स्थिति है ! प्रेम कोई सम्बन्ध नहीं है !
हो सकता है कि कोई सम्बन्ध बन जाए, पर प्रेमअपने आप में कोई सम्बन्ध नहीं होता !
सम्बन्ध हो सकता है, पर प्रेम उसमें सीमित नहीं होता ! वह तो उससे कहींअधिक है !
प्रेम अस्तित्व की एक स्थिति है ! जब वह सम्बन्ध होता है तो प्रेम नहीं हो सकता,
क्योंकि सम्बन्ध तो दो से मिलकरबनता है !
और जब दो अहम होंगे, तो लगातार टकराव होना लाजमी होगा !
इसलिए जिसे तुम प्रेम कहते हो, वह तोसतत संघर्ष का नाम है !
प्रेम शायद ही कभी प्रवाहित होता हो !
तकरीबन हर समय अहंकार के घोड़े की सवारी ही चलती रहती है !
तुम दूसरे कोअपने हिसाब से चलने की कोशिश करते हो और दूसरा तुम्हें अपने हिसाब से !
तुम दूसरे पर कब्ज़ा करना चाहते होऔर दूसरा तुम अधिकार करना चाहता है !
यह तो राजनीती है, प्रेम नहीं !
यह ताकत का एक खेल है ! यही कारण है कीप्रेम से इतना दु:ख उपजता है !
अगर वह प्रेम होता तो दुनिया स्वर्ग बन चुकी होती, जो कि वह नहीं है !
जो व्यक्ति प्रेमको जनता है, वह आनंदमग्न रहता है, बिना किसी शर्त के !
उसके बजूद के साथ जो होता रहे, उससे उसे कोई अंतर नहींपड़ता !
मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा प्रेम फैले, बढे ताकि प्रेम की ऊर्जा तुम पर छा जाये !
जब ऐसा होगा तो प्रेम निर्देशित नहीं होगा! तब वह साँस लेने की तरह होगा!
तुम जहाँ भी जाओगे, तुम साँस लोगे ! तुम जहाँ भी जाओगे, प्रेम करोगे !
प्रेमकरना तुम्हारे जीवन की एक सहज स्थिति बन जायेगा !
किसी व्यक्ति से प्रेम करना तो केवल एक सम्बन्ध बनाना भरहै !
यह तो ऐसा हुआ की जब तुम किसी खास व्यक्ति के साथ होते हो तो साँस लेते हो
और जब उसे छोड़ते हो तो साँसलेना बंद कर देते हो !
सवाल यह है की जिस व्यक्ति के लिए तुम जीवित हो, उसके बिना साँस कैसे ले सकते हो !
प्रेम के साथ भी यही हुआ है ! हर कोई आग्रह कर रहा है, मुझे प्रेम करो,
पर साथ ही शक भी कर रहा है कि शायद तुमदूसरे लोगों को भी प्रेम कर रहे होंगे !
इसी ईर्ष्या और संदेह ने प्रेम को मार डाला है ! पत्नी चाहती है कि पति केवल उससेप्रेम करे !
उसका आग्रह होता है कि केवल मुझसे प्रेम करो ! जब तुम दुनिया में बाहर जाओगे,
दुसरे लोगों से मिलोगे तोक्या करोगे ?
तुम्हें लगातार चौकन्ना रहना होगा कि कि कहीं किसी के प्रति प्रेम न जता दो !
प्रेम करना तुम्हारेअस्तित्व कि एक स्थिति है ! प्रेम साँस लेने के सामान है !
सांसें जो तुम्हारे शरीर के लिए करती है,
प्रेम वही तुम्हारीआत्मा के लिए करता है !
प्रेम के माध्यम से तुम्हारी आत्मा साँस लेती है इसलिए ईर्ष्यालु मत बनो !
यही बजह है कि सारी दुनिया में हर कोई कहता है कि आई लव यू,
पर कहीं पर कोई प्रेम नहीं दिखाई पड़ता !
उसकीआँखों में न कोई चमक होती है न चेहरे पर वैवभ !
न ही तुम्हें उसके ह्रदय की धडकनें तेज होते हुए सुनाई देंगी !
किसीभी कीमत पर अपने प्रेम को न मरने दो,
वरना तुम अपनी आत्मा को मार डालोगे और न ही
किसी दूसरे को यहनुकसान पहुँचने दो !
प्रेम आज़ादी देता है ! और प्रेम जितनी आज़ादी देता है,
उतना ही प्रेममय होता जाता है !
प्रेम एक पंछी है, उसे आज़ाद रखो !
उस पर एकाधिकार करने की कोशिश मत करो !
एकाधिकार करोगे तो वह मरजाएगा !
एक सम्पूर्ण व्यक्ति वह है जो बिना शर्त प्रेम कर सकता है !
जब प्रेम बिना किसी बंधन के, बिना किसी शर्त केप्रवाहित होता है तो
और कुछ उपलब्द्ध करने के लिए रह ही नहीं जाता, व्यक्ति को उसकी मंजिल मिल जाती है !
अगर प्रेम प्रवाहित नहीं हो रहा है तो तुम महान संत क्यों न जाओ, रहोगे दुखी ही !
अगर प्रेम प्रवाहित नहीं हो रहा है तोभले ही तुम महान विद्वान,
धर्मशास्त्री या दार्शनिक ही क्यों न बन जाओ, तुम न बदल पाओगे ! न ही रूपांतरित होपाओगे !
केवल प्रेम ही रूपांतरण कर सकता है,
क्योंकि केवल प्रेम के माध्यम से ही अंहकार समाप्त होता है !
ध्यान का अर्थ है, प्रेम के संसार में प्रवेश ! सबसे बड़ा साहस है,
बिना शर्तों के प्रेम करना, केवल प्रेम के लिए प्रेम करना,इसी को तो ध्यान कहते हैं !
और प्रेम तुम्हें फ़ौरन बदलना शुरू कर देगा !
वह अपने साथ एक नया मौसम लायेगा और तुम खिलना शुरू हो जाओगे !
लेकिन एक बात याद रखो, व्यक्ति को प्रेममय होना होगा !
तुम्हें इसके लिए चिंतित होने की जरुरत नहीं है कि दूसराबदले में प्रेम करता है कि नहीं !
प्रेम कि माँग कभी मत करो, प्रेम अपने आप आएगा !
वह जब आता है तो सौ गुना मात्रमें आता है !
तुम प्रेम दोगे तो वह जरुर आएगा ! हम जो भी देते हैं वो वापस मिलता है !
याद रहे जो भी तुम्हें मिल रहाहै, वह तुम्हें किसी न किसी रूप में मिल जरुर रहा है !
लोग सोचते हैं कि कोई उन्हें प्रेम नहीं करता इससे साफ हो जाताहै कि उन्होंने प्रेम किया ही नहीं !
वे हर समय दूसरों को कसूरवार समझते हैं, पर उन्होंने जो फसल बोई ही नही,
वोभला उसे काट कैसे सकते हैं !
इसलिए अगर प्रेम तुम्हारे पास आया है तो समझ लो कि तुम्हें प्रेम देना आ गया है !
तो फिर और प्रेम दो तुम्हें भी औरमिलेगा ! इससे कभी कँजूसी ना बरतो !
प्रेम कोई ऐसी चीज नहीं है कि देने से ख़त्म हो जाये !
असलियत तो यह है किवह देने से और बढ़ता है !
और जितना अधिक देते हैं, उतना ही ज्यादा बढ़ता है ! !
Post Share By:: Rishikesh Meena
I am grateful to Mr. Rishikesh Meena ,, (a younger author heart).
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Picture Quotes By- “तू न हो निराश कभी मन से” किताब से
100 शब्द या 10 शब्द – एक सफल जीवन के लिए –
(100 Word “or” Ten Word For A Successful Life )
“तू न हो निराश कभी मन से” किताब => लेखक कृष्ण मोहन सिंह (kmsraj51)
“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यथ॔ के लीये समय ही ना बचे” -Kmsraj51
जीवन मंदिर सा पावन हाे, बाताें में सुंदर सावन हाे।
स्वाथ॔ ना भटके पास ज़रा भी, हर दिन मानो वृंदावन हाे॥
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