::- Krishna Mohan Singh(kmsraj51) …..
जीवन का सौंदर्य- प्रेम !! – kmsraj51 की कलम से …..
हर दिन, हर समय… दिव्य सौंदर्य हमें घेरे हुए है…..
क्या आप इसका अनुभव कर पाते हैं? क्या यह आपको छू भी पाता है?
हममें से बहुतेरे तो दिन-रात की आपाधापी में इसका अंशमात्र भी देख नहीं पाते. उगते हुए सूरज की अद्भुत लालिमा, बच्चे की मनभावन खिलखिलाहट, चाय के पतीले से उठती हुई महक, दफ्तर में या सड़क में किसी परिचित की कुछ कहती हुई-सी झलक, ये सभी सुंदर लम्हे हैं.
जब हम सौंदर्य पर विचार करते हैं तो ज्यादातर लोगों में मानस में खूबसूरत वादियाँ और सागरतट, फ़िल्मी तारिका, महान पेंटिंग या अन्य किसी भौतिक वस्तु की छवि उभर आती है. मैं जब इस बारे में गहराई से सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि जीवन में मुझे वे वस्तुएं या विचार सर्वाधिक सुंदर प्रतीत होते हैं जो इन्द्रियातीत हैं अर्थात जिन्हें मैं छूकर, या चखकर, यहाँ तक कि देखकर भी अनुभव नहीं कर सकता !
वे अनुभव अदृश्य हैं फिर भी मेरे मन-मष्तिष्क पर वे सबसे गहरी छाप छोड़ जाते हैं. मुझे यह भी लगता है कि वे प्रयोजनहीन नहीं हैं. उनके मूल में भी ईश्वरीय विचार या योजना है. ईश्वर ने उनकी रचना की पर उन्हें हमारी इन्द्रियों की परिधि से बाहर रख दिया ताकि हम उन्हें औसत और उथली बातों के साथ मिलाने की गलती नहीं करें..
हमें वास्तविक प्रसन्नता और सौंदर्य का बोध करानेवाले वे अदृश्य या अमूर्त प्रत्यय कौन से हैं? वे सहज सुलभ होते हुए भी हाथ क्यों नहीं आते? इसमें कैसा रहस्य है?
ऐसे पांच प्रत्ययों का मैंने चुनाव किया है जो किसी विशेष से कम नहीं हैं..
1. ध्वनि/संगीत –
मुझे आपके बारे में नहीं पता पर मेरे लिए संगीत कला की सबसे गतिशील विधा है. ऐसे कई गीत हैं जो मुझे किसी दूसरी दुनिया में ले जाते हैं और मेरे भीतर वैसा भाव जगा देते हैं जो शायद साधकों को समाधिस्थ होने पर ही मिलता होगा…
संगीत में अद्भुत शक्ति है और यह हमारे विचारों को ही नहीं बल्कि विश्व को भी प्रभावित करती है. एक अपुष्ट जानकारी के अनुसार हम लय और ताल पर इसलिए थिरकते हैं क्योंकि हमारे मन के किसी कोने में माता के गर्भ में महीनों तक सुनाई देती उसकी दिल की धड़कन गूंजती रहती है. ये बड़ी अजीब बात है पर यह सही न भी हो तो मैं इसपर विश्वास कर लूँगा…..
“यदि मैं भौतिकविद नहीं होता तो संभवतः संगीतकार बनता. मैं अक्सर स्वरलहरियों में सोचता हूँ. मेरे दिवास्वप्न संगीत से अनुप्राणित रहते हैं. मुझे लगता है कि मानव जीवन एक सरगम की भांति है. संगीत मेरे लिए मनोरंजन का सबसे बड़ा माध्यम है” – अलबर्ट आइंस्टीन
संगीत की अनुपस्थिति में साधारण ध्वनियाँ भी मुझे उससे कमतर नहीं लगतीं. बादलों का गर्जन हो या बच्चे की किलकारी, टपरे पर बारिश की बूँदें हों या पत्तों की सरसराहट – साधारण ध्वनियाँ भी मन को प्रफुल्लित करती हैं. सारी ध्वनियाँ और संगीत अदृश्य है पर मन को एक ओर हर्षित करता है तो दूसरी ओर विषाद को बढ़ा भी सकता है!
आपको कौन सी ध्वनियाँ और संगीत सबसे अधिक प्रभावित करतीं हैं? आपका सबसे प्रिय गीत कौन सा है? क्या कहा, मेरे प्रिय गीत के बारे में पूछ रहे हैं? पचास के दशक की फिल्म ‘पतिता’ का तलत महमूद द्वारा गया गया गीत ‘है सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं’ मेरा सर्वप्रिय गीत है. पिछले तीस सालों से कोई ऐसा महीना नहीं गुज़रा होगा जब मैंने यह गीत नहीं सुना या गुनगुनाया. यह तो रही मेरी बात. हो सकता है आप मेरी पसंद से इत्तेफाक न रखें. आदमी-आदमी की बात है.
2. निस्तब्धता/मौन –
देखिये, पहले तो मैंने संगीत की बात छेड़ी थी और अब एकदम से चुप्पी पर आ गया. पर यह तो आप जानते ही हैं कि एक सुरीली ध्वनि के पीछे दस या सौ कोलाहलपूर्ण या बेसुरी आवाजें होतीं हैं. मुझे फर्श की टाइलें काटनेवाली आरी की आवाज़ या गाड़ियों के रिवर्स हौर्न बहुत बुरे लगते हैं. आपको भी कुछ आवाजें बहुत खिझाती होंगी…..
ऐसी कर्कश ध्वनियों से तो अच्छा है कि कुछ समय के लिए पूर्ण शांति हो, सन्नाटा हो. यही मौन में होता है. जब कहीं से कोई आवाज़ नहीं आती तो निस्तब्धता छा जाती है. पिन-ड्रॉप सायलेंस! आजकल का संगीत भी एक तरह के शोरगुल से कुछ कम नहीं है! सबसे अच्छा अपना सुन्न बटा सन्नाटा:) !
पर मौन अपने आप में एक बड़ी साधना भी है, अनुशासन पर्व है. जैसे हर गैजेट या मशीन में आजकल रीसेट का बटन होता है वैसा ही मौन का बटन मैंने आजमा कर देखा हुआ है. इस बटन को दबाते ही भीतर शांति छा जाती है. थोड़ी कोशिश करके देखें तो कोलाहल में भी मौन को साध सकते हैं. किसी हल्ला-हू पार्टी में कॉफ़ी या कोल्ड-ड्रिंक का ग्लास थामकर एक कोने में दुबक जाएँ और यह बटन दबा दें. फिर देखें लोग आपको शांत और संयमित देखकर कैसे खुन्नस खायेंगे. उपद्रवियों की जले जान तो आपका बढ़े मान…..
किसी ने कहा है “Silence is Golden” – बड़ी गहरी बात है भाई! इसके कई मतलब हैं. कुछ कहकर किसी अप्रिय स्थिति में पड़ने से बेहतर लोग इसी पर अमल करना पसंद करते हैं.
एक और बात भी है – अब व्यस्तता दिनभर की नहीं रह गयी है. शोरगुल और कोलाहल का सामना तड़के ही होने लगा है और सोने के लिए लेटने तक मेंटल स्टैटिक जारी रहती है. इससे बचने का एक ही उपाय है कि टीवी और किवाड़ को बंद करें और लोगों को लगने दें कि आप वाकई भूतिया महल में ही रहते हैं!!
3. गंध/सुगंध –
भगवान ने नाक सिर्फ सांस लेने या ऊंची रखने के लिए ही नहीं दी है! सांस लेने के लिए तो मुंह भी काफी है. पर नाक न हो तो तपती धरती पर बारिश की पहली फुहारों से उठती सोंधी महक और लिफ्ट में किसी अकड़ू आत्म-मुग्धा के बदन से आती परफ्यूम की महक का जायका कैसे कर पाते? वैसे इनके अलावा भी बहुत सी सुगंध हैं जो दिल को लुभा लेती हैं! मुझे हवन के समय घर में भर जानेवाली सुगंध बहुत भाती है. एक ओर ये सुगंध मन में शांति और दिव्यता भरती है वहीं दूसरी ओर दूसरी सुगंध भी हैं जिन्हें पकड़ते ही दिल से आह निकलती है और मैं बुदबुदा उठता हूँ ‘हाय, मार डाला!’
खुशबुओं से जुड़ा हुआ एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि कभी-कभी उनका अहसास होते ही अतीत की कोई धुंधली सी स्मृति जाग उठती है. ऐसी खुशबू बहुत ही यादगार-से लम्हों को बिसरने से पहले ही जिंदा कर देती है. वैसे, ऐसा ही कुछ बदबू के में भी कहा जा सकता है..
ek friend Ki Dasta ….. मैं निजी ज़िंदगी में किसी सुगंधित प्रोडक्ट का उपयोग नहीं करता. कोई डियो या परफ्यूम नहीं लगाता. सुगंधित साबुन से स्नान भी नहीं करता. पाउडर भी नहीं लगाता. बहुत से लोग हद से ज्यादा सुगंध का उपयोग करते हैं जो अरुचिकर लगता है. लेकिन जीवन सुगंध से रिक्त नहीं होना चाहिए, इसीलिए मुझे बदल-बदलकर सुगंधित अगरबत्तियां लगाने का चस्का है. इससे सुगंध भी बनी रहती है और पत्नी इस भ्रम में भी रहती है कि मैं बहुत भक्ति-भावना से ओतप्रोत हूँ!!!
4. संतुष्टि/शांति –
जीवन में संतुष्टि और शांति का कोई विकल्प नहीं है. इन्हें ध्वनि या सुगंध की तरह महसूस भी नहीं किया जा सकता. केवल अंतरात्मा ही इनकी उपस्थिति की गवाही दे सकती है. इन्हें न तो खरीदा जा सकता है और न ही किसी से उधार ले सकते हैं. इन्हें अर्जित करने के मार्ग सबके लिए भिन्न-भिन्न हैं. ज्यादातर लोग ज़िंदगी में सब कुछ पा लेना चाहते हैं, सबसे ज्यादा, और सबसे पहले. उन्हें इसकी बहुत ज़रुरत है. मुझे लगता है कि बड़ी-बड़ी बातों में इन्हें तलाश करना अपना समय और ऊर्जा नष्ट करना ही है!
जीवन में संतुष्टि और शांति पाने के लिए बुद्ध या गाँधी या कोई मसीहा बनने की ज़रुरत नहीं है. छोटे-छोटे पलों में भी परिपूर्णता से अपने सभी ज़रूरी कामों को पूरा करते रहना मेरे लिए इन्हें पाने का उपाय है. अपने दैनिक कार्यों को पूरा करना ही नहीं बल्कि और भी कई चीज़ें करना, जैसे बच्चों को सैर पर ले जाना, किसी पड़ोसी की मदद कर देना, सैल्समैन को पानी के लिए पूछना भी कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें नहीं करने पर कोई नुकसान नहीं होता पर इन्हें करनेपर मिलनेवाला आत्मिक संतोष असली पूंजी है.
आपके अनुसार वास्तविक संतुष्टि और शांति किसमें निहित है?
संभव है इन्हें अर्जित करने के सूत्र आपके सामने ही बिखरे हों पर आप उन्हें देख नहीं पा रहे हों!!!!
5. प्रेम –
प्रेम दुनिया में सबसे सुंदर और सबसे कीमती है. यही हमें इस दुनिया में लाता है और हम इसी के सहारे यहाँ बने रहते हैं. जीवन को सतत गतिमान रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रेम से ही मिलती है. गौर करें तो हमारा दिन-रात का खटना और ज्यादा कमाने के फेर में पड़े रहने के पीछे भी प्रेम की भावना ही है हांलांकि जिनके लिए हम यह सब करते हैं उन्हें प्यार के दो मीठे बोल ज्यादा ख़ुशी देंगे. प्यार के बारे में और क्या लिखू …..
आप किससे प्रेम करते हैं? आप प्रेम बांटते हैं या इसकी खोज में हैं?
प्यार की राह में केवल एक ही चीज़ आती है, और वह है हमारा अहंकार. ज़माना बदल गया है और अब लोग निस्वार्थ भाव से आचरण नहीं करते !
इस लिस्ट में आप और क्या इजाफा कर सकते हैं? आप जीवन का वास्तविक सौंदर्य किन वस्तुओं या विचारों में देखते हैं?
Note::-
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