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श्राद्ध।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • Shraddh | श्राद्ध।
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Shraddh | श्राद्ध।

श्राद्धों में जिनकी होती है पूजा
उन पित्रों से बढ़कर नहीं है कोई दूजा।

श्राद्धों में धरती पर हैं वे आते
पता नहीं किस रूप में आशीर्वाद दे जाते।

हर कोई तर्पण है करता
कोई जाता गया तो कोई घर पर ही पिंड भरता।

भान्ति भान्ति के पकवान है बनाते
पित्र ये सब देख खुश हो जाते।

कौओं को खाना खिलाए
पित्र रूप उनमें नजर आए।

ब्राह्मणों को कोई खाना खिलाते
उन्हें ख़ुश देख पित्रों को प्रसन्न मानते।

श्राद्धों में तो खूब होती है पेट भराई
जीते जी जिनसे दूरियां भी खूब है बनाई।

बुजुर्गों की पूजा जीते जी भी की जाए
उनको अपनेपन के लिए न तड़फाएं।

बुजुर्ग जब तक है तब तक उनको दुख देते हैं भारी
श्राद्धों में स्वादिष्ट खाने से पूजा की करते हैं तैयारी।

जिसने जीते जागते बुजुर्गों की है सेवा
श्राद्धों में क्षमता न हो फिर भी मिलेगा मेवा।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता श्राद्ध और पितरों की पूजा के महत्व को उजागर करती है। इसमें बताया गया है कि श्राद्ध के अवसर पर पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, हालांकि वे किस रूप में आते हैं, यह कोई नहीं जानता। लोग तर्पण और पिंडदान के माध्यम से उनका स्मरण करते हैं, भिन्न-भिन्न पकवान बनाते हैं, कौओं को भोजन कराते हैं और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। श्राद्ध केवल दिखावा न बनकर रहे, बल्कि बुजुर्गों और माता-पिता की सेवा और सम्मान उनके जीवित रहते हुए भी किया जाना चाहिए। अक्सर लोग अपने बुजुर्गों को जीवनकाल में उपेक्षित करते हैं और उन्हें दुख पहुंचाते हैं, लेकिन उनके निधन के बाद श्राद्ध में बढ़-चढ़कर पूजा-पाठ और भोजन की व्यवस्था करते हैं। कविता इस विरोधाभास को उजागर करती है और संदेश देती है कि असली पुण्य तो बुजुर्गों की सेवा, सम्मान और स्नेह में है, न कि केवल मृत्यु के बाद किए जाने वाले कर्मकांडों में।
  • अंततः, यह कविता बताती है कि जिसने अपने बुजुर्गों की सच्चे मन से सेवा की है, वह व्यक्ति श्राद्ध में बड़े आयोजन न कर पाने पर भी पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करता है। असली धर्म और कर्तव्य है जीवित संबंधों को महत्व देना और उनके साथ आत्मीयता का व्यवहार करना।

—————

यह कविता (श्राद्ध।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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