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Mantra Ko Gupt Kyon Rakha Jata Hai | मंत्र को गुप्त क्यों रखा जाता है।
मंत्र दीक्षा का अर्थ है कि जब तुम समर्पण करते हो, तो गुरु तुममें प्रवेश कर जाता है, वह तुम्हारे शरीर, मन, आत्मा में प्रविष्ट हो जाता है। गुरु तुम्हारे अंतस में जाकर तुम्हारे अनुकूल ध्वनि की खोज करेगा। वह तुम्हारा मंत्र होगा। और जब तुम उसका उच्चारण करोगे तो तुम एक भिन्न आयाम में एक भिन्न व्यक्ति होओगे।
जब तक समर्पण नहीं होता, मंत्र नहीं दिया जा सकता है। मंत्र देने का अर्थ है कि गुरु ने तुममें प्रवेश किया है, गुरु ने तुम्हारी गहरी लयबद्धता को, तुम्हारे प्राणों के संगीत को अनुभव किया है। और फिर वह तुम्हें प्रतीक रूप में एक मंत्र देता है जो तुम्हारे अंतस के संगीत से मेल खाता हो। और जब तुम उस मंत्र का उच्चार करते हो तो तुम आंतरिक संगीत के जगत में प्रवेश कर जाते हो, तब आंतरिक लयबद्धता उपलब्ध होती है।
मंत्र तो सिर्फ चाबी है। और चाबी तब तक नहीं दी जा सकती जब तक ताले को न जान लिया जाए। मैं तुम्हें तभी चाबी दे सकता हूं जब तुम्हारे ताले को समझ लूं। चाबी तभी सार्थक है जब वह ताले को खोले। किसी भी चाबी से काम नहीं चलेगा। प्रत्येक आदमी विशेष ढंग का ताला है, उसके लिए विशेष ढंग की चाबी जरूरी है।
यही कारण है कि मंत्रों को गुप्त रखा जाता है। अगर तुम अपना मंत्र किसी और को बताते हो तो वह उसका प्रयोग कर सकता है। यही कारण है कि लोगों को अपने—अपने मंत्र गुप्त रखने चाहिए, उन्हें सार्वजनिक बनाना ठीक नहीं है। वह खतरनाक है। तुम दीक्षित हुए हो तो तुम जानते हो, तुम उसका मूल्य जानते हो, तुम उसे बांटते नहीं फिर सकते। यह दूसरों के लिए हानिकर हो सकता है। यह तुम्हारे लिए भी हानिकर हो सकता है। इसके कई कारण हैं।
पहली बात कि तुम वचन तोड़ रहे हो। और जैसे ही वचन टूटता है, गुरु के साथ तुम्हारा संपर्क टूट जाता है। फिर तुम गुरु के संपर्क में नहीं रहोगे। वचन पालन करने से ही सतत संपर्क कायम रहता है। दूसरी बात, दूसरे को बताने से, दूसरे के साथ उसके संबंध में बातचीत करने से मंत्र मन की सतह पर चला आता है और उसकी गहरी जड़ें टूट जाती हैं। तब मंत्र गपशप का हिस्सा बन जाता है। और तीसरा कारण है कि गुप्त रखने से मंत्र गहराता है। जितना गुप्त रखोगे वह उतना ही गहरे जाएगा; उसे गहरे में जाना ही होगा।
“एक शिष्य के संबंध में खबर है कि जब उसके गुरु ने उसे गुह्य मंत्र दिया तो उससे वचन ले लिया कि वह उसे बिलकुल गुप्त रखेगा। उसे कहा गया कि तुम इसे किसी को भी नहीं बताओगे। फिर शिष्य का गुरु उसके स्वप्न में प्रकट हुआ और उसने पूछा कि तुम्हारा मंत्र क्या है? और स्वप्न में भी शिष्य ने वचन का पालन किया; उसने बताने से इनकार कर दिया। और कहा जाता है कि इस भय से कि कहीं स्वप्न में गुरु फिर प्रकट हों या किसी को भेजें और वह इतनी नींद में हो कि गुप्त मंत्र को प्रकट कर दे और वचन टूट जाए, शिष्य ने बिलकुल सोना ही छोड़ दिया। वह सोता ही नहीं था।
ऐसे सोए बिना शिष्य को सात आठ दिन हो गए थे। फिर जब उसके गुरु ने पूछा कि तुम सोते क्यों नहीं हो? मैं देखता हूं कि तुमने सोना छोड़ दिया है। बात क्या है? शिष्य ने गुरु से कहा : आप मेरे साथ चालबाजी कर रहे हैं। आपने स्वप्न में आकर मुझसे मेरा मंत्र पूछा था। मैं आपको भी नहीं बताने वाला हूं। जब वचन दे दिया तो मैं उसका स्वप्न में भी पालन करूंगा। लेकिन फिर मैं डर गया। नींद में, कौन जाने, किसी दिन मैं भूल भी सकता हूं!”
अगर तुम अपने वचन के प्रति इतने सावधान हो कि स्वप्न में भी उसका स्मरण रहता है तो उसका अर्थ है कि वह गहराई में उतर रहा है। वह अंतस में उतर रहा है; वह अंतरस्थ प्रदेश में प्रवेश कर रहा है। और वह जितनी गहराई को छुएगा, वह उतना ही तुम्हारे लिए चाबी बनता जाएगा। क्योंकि ताला तो अंतर्तम में है।
किसी चीज के साथ भी प्रयोग करो। अगर तुम उसे गुप्त रख सके तो वह गहराई प्राप्त करेगा। और अगर तुम उसे गुप्त न रख सके तो वह बाहर निकल आएगा। तुम क्यों कोई बात दूसरे से कहना चाहते हो? तुम क्यों बातें करते रहते हो?
- सच तो यह है कि जिस चीज को तुम कह देते हो, उससे मुक्त हो जाते हो। एक बार तुमने किसी से कह दिया, तुम्हारा उससे छुटकारा हो जाता है। वह चीज बाहर निकल गई। मनोविश्लेषण का पूरा धंधा इसी पर खड़ा है। रोगी बोलता रहता है और मनोविश्लेषक सुनता रहता है। इससे रोगी को राहत मिलती है। वह अपनी समस्याओं के बारे में, अपने दुख के बारे में जितना ही बोलता है, वह उनसे उतनी ही छुट्टी पा लेता है।
- और इसके ठीक विपरीत घटित होता है जब तुम किसी चीज को छिपाकर रखते हो, गुप्त रखते हो। इसीलिए तुम्हें कहा जाता है कि मंत्र को किसी से कभी मत कहो। तब वह गहरे से गहरे तल पर उतरता जाता है और किसी दिन ताले को खोल देता है।
इति शुभमस्तु।
♦ डॉ विदुषी शर्मा जी – नई दिल्ली ♦
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- ” लेखिका डॉ विदुषी शर्मा जी“ ने अपने इस लेख से, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है — अगर तुम अपने वचन के प्रति इतने सावधान हो कि स्वप्न में भी उसका स्मरण रहता है तो उसका अर्थ है कि वह गहराई में उतर रहा है। वह अंतस में उतर रहा है; वह अंतरस्थ प्रदेश में प्रवेश कर रहा है। और वह जितनी गहराई को छुएगा, वह उतना ही तुम्हारे लिए चाबी बनता जाएगा। क्योंकि ताला तो अंतर्तम में है। किसी मंत्र को या विचार को तुम गुप्त रख सके तो वह गहराई प्राप्त करेगा। और अगर तुम उसे गुप्त न रख सके तो वह बाहर निकल आएगा। तुम क्यों कोई बात दूसरे से कहना चाहते हो? तुम क्यों बातें करते रहते हो? जब तुम किसी चीज को छिपाकर रखते हो, गुप्त रखते हो। इसीलिए तुम्हें कहा जाता है कि मंत्र को किसी से कभी मत कहो। तब वह गहरे से गहरे तल पर उतरता जाता है और किसी दिन ताले को खोल देता है।
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यह लेख (मंत्र को गुप्त क्यों रखा जाता है।) “डॉ विदुषी शर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख / कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम डॉ विदुषी शर्मा, (डबल वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर) है। अकादमिक काउंसलर, IGNOU OSD (Officer on Special Duty), NIOS (National Institute of Open Schooling) विशेषज्ञ, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।
ग्रंथानुक्रमणिका —
- डॉ राधेश्याम द्विवेदी — भारतीय संस्कृति।
- प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति — दामोदर धर्मानंद कोसांबी।
- आधुनिक भारत — सुमित सरकार।
- प्राचीन भारत — प्रशांत गौरव।
- प्राचीन भारत — राधा कुमुद मुखर्जी।
- सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान और आध्यात्मिक प्रगति — श्री आनंदमूर्ति।
- भारतीय मूल्य एवं सभ्यता तथा संस्कृति — स्वामी अवधेशानंद गिरी (प्रवचन)।
- नवभारत टाइम्स — स्पीकिंग ट्री।
- इंटरनेट साइट्स।
ज़रूर पढ़ें — साहित्य समाज और संस्कृति।
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