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poem on bachpan in hindi

खोता जा रहा बचपन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Khota Ja Raha Bachpan | खोता जा रहा बचपन।

बच्चों की जिंदगी में अब आराम कहाँ,
बस्ता लादे फिरते दिखते जब देखो जहाँ।

हम एक बात पर सहज करते है विचार,
क्यों डाल रहे बच्चों पर पढ़ाई की मार।

तीन वर्ष की आयु में स्कूल क्या कम था,
अब तो चेहरे पर ट्यूशन का भी गम था।

जो उम्र थी उनके खिलखिलाने की,
छोटी ~ छोटी बातों पर मचल जाने की।

वो तो गिरवी रख दिया हमने उनका बचपन,
फिर कहां से आएगा उसमें वो अपनापन।

मासूम बच्चों को क्यों इसकी है जरूरत,
मां~बाप को बदलना होगा अपना मत।

बच्चों की झुंझलाहट साफ देती है दिखाई,
जब उनकी आँखें आंसुओं से होती नहाई।

चलो स्कूल जाने तक तो ठीक थी बात,
स्कूल में दिन बीता ट्यूशन में बीती रात।

इन मासूम बच्चों का खिलौनों से कोई सरोकार नही,
माता~पिता को क्या खुद पर ऐतबार नही।

इन नन्हें बच्चों के कंधो से ट्यूशन का बोझ उतारे,
खुद भी हम इनका कुछ तो भविष्य संवारे।

माता~पिता से बड़ा कभी कोई बना महान नही,
नन्हें बालकों को ट्यूशन भेजे कोई शान नही।

भविष्य तो तभी सुंदर होगा गौर करेगे जब वर्तमान पर,
बचपन थिरेकेगा जब परिवार के संस्कारों की तान पर।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — 2/5 वर्ष से 3 वर्ष के बच्चों के कंधे पर पढ़ाई का बैग लादकर स्कूल भेजना फिर उन्हें टूशन भेजना इस चक्कर में बेचारे बच्चे ऐसा चक्कर खा जाते है की बचपन क्या होता है वो समझ ही नहीं पाते। जो पढ़ाई के लिए होड़ मची है, इस होड़ की चक्की में बच्चे पीसकर रह गए है। बच्चों को बचपन का पूर्ण आनंद देने के लिए माता-पिता और टीचर्स को भी अपने पढ़ाने पर ध्यान देना होगा, जब टीचर्स स्कूल में अच्छे से पढ़ाएंगे तो बच्चों को अलग से टूशन की जरुरत ही नहीं होगी। टीचर्स को अपनी जिम्मेवारी ईमानदारी पूर्वक निभानी चाहिए, और इस कार्य में माता-पिता का सहयोग भी होना चाहिए। एक बात याद रखें – “ये बच्चे ही भविष्य के निर्माणकर्ता बनेगे, ये मन से जितने शांत व मज़बूत होंगे, उतना ही शांति पूर्वक अच्छे से कार्य करेंगे।” अगर ये बच्चे बचपन से ही अशांत व तनाव से भरे होंगे तो अपने अशांत व चिड़चिड़े मन से कोई भी अच्छा कार्य नहीं करेंगे, अपने व समाज के लिए हानिकारक साबित होंगे।

—————

यह कविता (खोता जा रहा बचपन।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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