Kmsraj51 की कलम से…..
Pollution | प्रदूषण।
वह गरजता बादल नभ में, मानो जग से यह बोल रहा है।
क्यों फैला कर प्रदूषण पगले, नाहक आफत मोल रहा है?
गंदला कर पानी, माटी, हवा को, ध्वनि में जहर घोल रहा है।
क्यों अपने लिए बिना वजह के, द्वार नरक के खोल रहा है?
अन्तर मन के पावनपन को, क्यों भ्रष्टाचारण में रोल रहा है?
हर रिश्ते नातों को दिन प्रतिदिन, स्वार्थ तुला में तोल रहा है।
आषाढ़ श्रावण की बरसात भादो में, तेजाबी मेघ बरसाएगी।
फिर न कहना ये क्या हुआ? वह सकल धरा को जलाएगी।
धुंआ ही धुंआआसमान में, कारखाने, मोटर गाड़ी फैलाएगी।
फिर तो तेजाबी वर्षा कुदरत, नित दिन धारा पर करवाएगी।
दूषित मृदा जब अपनी कोख से, उपयोगी अन्न न उपजाएगी।
क्या खाएगी तब जग की जनता, या भूखे ही मर जाएगी?
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कविता में व्यक्त किए गए विचार यह हैं कि मानव जाति के द्वारा किए जा रहे प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के लापरवाह उपयोग के कारण प्राकृतिक वातावरण को क्षति पहुंच रही है। कविता में यह संदेश दिया गया है कि हमें अपने कृत्यों को संशोधित करना और प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करने की दिशा में काम करना चाहिए, ताकि हमारे प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण का संरक्षण हो सके।
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यह कविता (प्रदूषण।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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