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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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hemraj thakur poems

यह डूबती सांझ।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yah Doobati Sanjh | यह डूबती सांझ।

यह डूबती सांझ देखो, लेके, घना अंधेरा आएगी।
दिन भर की आपाधापी से, हमे मुक्ति दिलाएगी।

यह बात सच है कि यह, दैनिक प्रकाश छुपाएगी।
यह भी तो सच है कि, यह अपनी गोद में सुलाएगी।

मुमकिन है यह कि रात अंधेरी, हर दृश्य छुपाएगी।
पर यह भी वाजिब है कि, यह स्वप्न भी दिखाएगी।

कौन कहता है कि हर सांझ, दिवस को ही खाएगी?
मालूम है जग को यह भी कि, फिर नई भोर आएगी।

नाउम्मीदी में जीने से तो हमेशा, निराशा ही छाएगी।
सांझ ही तो रात को ला कर, सब थकान मिटाएगी।

आशावान को तो यह सांझ, पास मंजिल सी भाएगी।
निराशावान के लिए तो उसका, सारा संसार खाएगी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम सब ये जानते है की सूर्यास्त के बाद शाम होगी ही और शाम होगी तभी रात भी होगा और इंसान दिन भर के कार्य से थका हारा आराम की नींद, ले पाता है जिससे उसकी सारी थकावट दूर होती है। आशावान को तो सदैव ही यह सांझ, पास मंजिल सी भाएगी, लेकिन निराशावान के लिए तो उसका, सारा संसार खाएगी। क्योकि आशावान जनता है की फिर भोर होगी और सूर्य उदय होगा। इसी तरह से जीवन में भी जब चारों तरफ से मुसीबत आ जाए तो घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि कोई भी समय लंबे वक्त तक नहीं रहेगा, उसके बाद अच्छा समय भी आएगा। इसलिए सदैव ही आशावान बने रहे और अच्छे कार्य करते चले जीवन में, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।

—————

यह कविता (यह डूबती सांझ।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: hemraj thakur, hemraj thakur poems, Hindi Poems, motivational poem in hindi, poem on sinking sun in hindi, जीवन का सार पर कविता, जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली कविता, यह डूबती सांझ, यह डूबती सांझ - हेमराज ठाकुर, संघर्ष और सफलता कविता, सीख देने वाली कविता, हेमराज ठाकुर, हेमराज ठाकुर जी की कविताएं

आई है होली।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aaee Hai Holi | आई है होली।

होली रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।

आई है होली चौहूं ओर लोग झूमे हैं नाचे, रंगों की बौछार है।
किसी के दिल में वासनाएं हैं घनी, किसी के प्यार ही प्यार है।

आई है होली हरदम हृदय को, छेड़-छेड़ कर ये आती है।
फाल्गुन मास की यह क्रीड़ा, किसके मन को न भाती है?

कुदरत करती है वसंती श्रृंगार, तो हवा भी होती मदमाती है।
फूलों से सजते वन उपवन हैं, चौहूँ ओर से खुशबू आती है।

होलिका दहन से उपजी यह क्रीड़ा, ऐसे ही बस चलती है।
बुराई का दहन अच्छाई का वहन, परम्परा यूं ही फलती है।

बरसाणे की होली, कृपाण व गोली, रक्तिम रंग से खेली है।
वे प्रेम के रंग से खेले, इन्होंने प्रणाहुतियों की पीड़ा झेली है।

मलिन मन क्या जाने होली का उत्सव? पावनता जरूरी है।
तन के रंगने से नहीं मन के रंगे बिन, होली सबकी अधूरी है।

मौसम के बदलाव की, नव फसलों के उगाव की, यह धुरी है।
संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की, होली की क्रीड़ा पूरी है।

उछलते कूदते, नाचते गाते, खलियानों में युवक युवती है।
बाल वृद्ध सबको निज पाश में, बांधने की इसमें युक्ति है।

वीर शहीदों ने फिरंगी संघ, होली खेल के यातनाएं भुक्ति है।
प्रेम गुलाल से जो खेलेगा होली, उसी के लिए यह मुक्ति है।

नदी मानिद बहती परंपराएं, विकार आए हो कहां रुकती है?
भारत की अनूठी पर्व यात्रा, किसी के टोके कहां टूटती है?

बहन, भाई, मां, बेटी, पत्नी, पिता को, होली के रंग ही लहदे हैं।
प्रेम है सब में, पर रूप अनेक है, यही तो रिश्तों के ओहदे हैं।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आत्मिक प्रेम, निस्वार्थ स्नेह, करुणा व मानवता का पवित्र महापर्व होली हैं। अपने सम्पूर्ण विकारों को अग्नि को समर्पित कर एक अच्छे व सच्चे योगी जैसे पवित्र जीवन के नियमों के अनुसार जीना ही सच्ची होली हैं। याद रहे मलिन मन क्या जाने इस होली का उत्सव? पावनता तो जरूरी है। तन के रंगने से नहीं मन के रंगे बिन, होली सबकी अधूरी है। मौसम के बदलाव की, नव फसलों के उगाव की, यह धुरी है। संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की, होली की क्रीड़ा पूरी है। बहन, भाई, मां, बेटी, पत्नी, पिता को, होली के रंग ही लहदे हैं। प्रेम है सब में, पर रूप अनेक है, यही तो रिश्तों के ओहदे हैं। भक्त प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद वे ही असुरों के सम्राज्य के राजा बने थे। प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन हुए और विरोचन से महान राजा बलि का जन्म हुआ जो महाबलीपुरम के राजा बने। इन बलि से ही श्री विष्णु ने वामन बनकर तीन पग धरती मांग ली थी।

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यह कविता (आई है होली।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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पिता की सीख ही सच्ची थी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Pita Ki Seekh Hi Sacchi Thi | पिता की सीख ही सच्ची थी।

“कहलाना तो है मानव हमको,
पर पशु सा हमे सब करने दो।
पिता हो तुम तो फिर क्या हुआ?
हमे मर्जी से ही सब करने दो।”

“जन्म दिया और पाला – पोसा,
पढ़ाया – लिखाया, बड़ा किया।”
“कौन सा तीर मारा है तुमने?
फर्ज मां – बाप का अदा किया।”

“धन्य लला तुम जो जान खपा कर,
आज तुमसे ये शब्द उपहार मिला।
नेकी कर दरिया में डाल का उम्दा,
पितृ कर्म का उत्तम उपकार मिला।

निवाला अपने मुंह का छीन कर,
तेरे मुंह में, इसी लिए ही डाला था?
नूर गंवाया, तेरी मां ने तुझे जनाया,
क्या इसी लिए ही तुझे पाला था?”

सुन भारी-भरकम बोझिल शब्द पिता के,
हुए अनुगुंजित अधिभारित अनुशासित थे।
हुए अंकुशित बुद्धि के घोड़े डर बेदखली के,
पर मनोभाव तो अभी भी त्यों विलासित थे।

होते ही जायदाद नाम अपने पिता की,
हुआ बेटा फिर से आपे से ही बेकाबू था।
उद्भासित पिता के अनुभव को भुला कर,
किया दूर प्रयोग से विवेक का तराजू था।

कुछ यारों ने लुटा, कुछ विकारों ने लुटा,
शेष कुछ लूट गई बेवफा महबूबा थी।
पिता की कमाई तो जाती रही हाथ से,
खुद के लिए तो कमाई उसे अजूबा थी।

पिता की पीठ में बजे नगाड़े की धुन,
समझा, कितनी मीठी, कितनी खट्टी थी।
मालामाल था, कंगाल हो लिया था जब,
तब समझा, पिता की सीख ही सच्ची थी।

गर्म खून था ठंडने लगा जब उसका,
लगा तोलने हर सौदा विवेक तराजू से।
संभलती दुकान फिर से जिंदगानी की,
तब तक जा चुकी थी ताकत ही बाजू से।

पछतावा तो था पर किस काम का ?
चिड़िया ने चुग लिए खेत अब सारे थे।
स्मृति पटल में अनुगुंजित शब्द पिता के,
अब समझा कि उनमें कौन से इशारे थे?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पिताजी मुझे हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए मेरा हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता। हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवन भर परिस्थितियों के अनुसार ढलने के काम आते हैं। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। आमतौर पर एक बच्चे का जुड़ाव सबसे अधिक उसके माता-पिता से होता है क्योंकि उन्हीं को वो सबसे पहले देखता और जानता है। माँ-बाप को बच्चे का पहला स्कूल भी कहा जाता है। लेकिन आजकल के बच्चों को हो क्या गया है ओ यह क्यों भूल जाते है की जैसा ओ अपने माता-पिता के साथ करेंगे वैसा ही उनके बच्चे भी उनके साथ करेंगे। एक बात याद रखें – पिता सदैव ही अपने अनुभव से आपको अच्छी सीख देते है, उनका कभी भी अनादर न करे, माता-पिता का यदि आप अनादर करेंगे तो सबकुछ मिल तो जायेगा लेकिन वह जल्द ही ख़त्म भी हो जायेगा। उनकी दुआओ व सीख से ही आप जीवन में आगे बढ़ेंगे।

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यह कविता (पिता की सीख ही सच्ची थी।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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यह अकेला है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yah Akela Hai | यह अकेला है।

हमने जाड़े की सर्दी है झेली,
हर गर्मी का मौसम है झेला।
वसन्त ऋतु की बहारें हैं देखी,
देखा वर्षा ऋतु का क्रुद्ध खेला।

स्मृति के विलासित गहवार में,
हैं उभरती धंसती कई यादें।
हसरतें जो कुछ थी पूरी हुई,
रह गए अधूरे ही थे कई वादे।

इस जिन्दगी के अधूरे सफर में,
खूब है देखा यह जग का मेला।
किसी के धन की अम्बर है देखी,
किसी के नसीब में न देखा धेला।

अजूबों से भरी इस दुनियां में,
मैंने सपने सबके अधूरे देखे।
राजा रंक सब परेशान हैं देखे,
किसी के ख़्वाब नहीं पूरे देखे।

किसी को अहम से इठलाते देखा,
तो किसी को शर्म से शर्मिंदा देखा।
अमीर – गरीब सबको मरते हैं देखा,
किसी को सदा न यहां जिन्दा देखा।

पर होड़ाहोड़ी और आपाधापी में,
निरन्तर छटपटाते हैं सबको देखा।
लक्ष्मण रेखा को लांघते जो संघर्ष में,
उनको समाज द्वारा नकारते हैं देखा।

अजीब करिश्मा है इस जीवन का,
इस भीड़ भड़ाक में यह अकेला है।
इस जीवन ने अपने पूरे सफर में,
हर वफा व छल प्रपंच को झेला है।

यह जीवन इस जग के लगभग,
हर सम्भव सुख दुख से खेला है।
हसरतें तो थी आकाश में उड़ने की,
पर जीवन की हद ने इसे नकेला है।

अनुभव में जो आया है अब तक मेरे,
कि यह जीवन तो निरन्तर अकेला है।
आया इस दुनियां में यह अकेला ही था,
जाता भी इस दुनियां से यह अकेला है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आते है, लेकिन एक बात सदैव ही कॉमन होती है, कोई भी मनुष्य आता भी अकेला है और सदैव जाता भी अकेला ही है, कुछ साथ भी लेकर नही जाता है, तो सोचने वाली बात है की फिर मनुष्य अपने जीवन में अहंकार क्यों करता है, इतना गुमान किस बात का करता है। भगवान कृष्ण ने कहा है कि शरीर का निर्माण पांच तत्वों-पृथ्वी, जल, आकाश, वायु व अग्नि और तीन गुणों- सतो (सत), रजो (रज) व तमो (तम) से हुआ है। इसके बाद ब्रह्म का अंश जीव के रूप में शरीर में प्रवेश करके उसे जीवात्मा बनाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रकृति के गुण जीव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिस प्रकार मनुष्य बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था और प्रौढ़ावस्था से वृद्धावस्था तक पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं, उसी प्रकार परिवार भी विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं।

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यह कविता (यह अकेला है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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यही हमारा नारा है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yahi Hamara Nara Hai | यही हमारा नारा है।

लड़ी लड़ाइयां कई है अब तक,
थी इतिहास में तीर – तलवारों से।
सियासी लड़ाइयां लड़ी जाती है,
आज जाति – धर्म की तकरारों से।

अरे जागो भारतवासी आज तो,
समझो कि भारत देश हमारा है।
हिन्दू, मुस्लिम और सिख, ईसाई,
हैं सब भाई, यही हमारा नारा है।

कद्र करो अब इक दूजे की यारो,
किसी को जाति धर्म में मत बांटो।
जो बांट रहे हैं सिहासत के माहिर,
आओ मिलकर उनको सब डांटो।

आजादी से लेकर अब तक इन्होंने,
बारी-बारी से खेल बस यही खेला।
ये करते रहे फैला कर नफरत राज है,
जाति धर्म के कहर को जनता ने झेला।

अखण्ड भारत की तस्वीर को यारो,
सिहासी बहकावों पर यूं मत तोड़ो।
देश बड़ा है जाति, धर्म और सत्ता से,
नफरत का ठीकरा देश पर मत फोड़ों।

टूटे भारत कई टुकड़ों में है साजिश,
संस्कृति पर भी तो हुआ है हमला।
हम फूल बने इस भारत फूलदान के,
हो हिंदुस्तान ही हम सबका गमला।

बिखरने न देना भारत देश को,
इनकी साजिश को नाकाम करो।
आओ तोड़ें ये नफरत की दीवारें,
मिल के एक दूजे में प्यार भरो।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इतिहास गवाह है जब भी किसी देश की जनता आपस में जाति, धर्म, मजहब व पंत के नाम पर लड़ती रहती है तो उसका अपना खुद का कोई अस्तित्व नहीं होता है, उसका कभी भी अच्छे से विकास नहीं हो पाता, उसे लम्बे समय के लिए बार-बार गुलामी का दंश झेलना ही पड़ता है और उनका पतन हो जाता है। उनके साथ साथ देश का भी पतन हो जाता है, इसलिए खुद के निजी स्वार्थ से बाहर निकल कर पहले आपसी नफरत को त्याग कर सभी मिल जुलकर नए अखंड भारत के पुनः उत्थान में भी कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करते चले। यह याद रखें – जब तक आपका देश हर तरह से सुरक्षित है तभी तक आप व आपका परिवार सुरक्षित है। जय हिन्द – जय भारत।

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यह कविता (यही हमारा नारा है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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आज आजादी है हमको मिली तो।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aaj Azadi Hai Hamko Mili Tho | आज आजादी है हमको मिली तो।

आज आजादी है हमको मिली तो,
दिलाई शहीदों और वीर जवानों ने।
सीमा के प्रहरी जवानों की वजह से
सुरक्षित हैं हम अपने मकानों में।

है उदगार हमारे क्या उनके खातिर?
क्या भाव और कितनी कैसी यादें हैं?
एक रस्म जान मजबूरन हर साल हम,
15 अगस्त व 26 जनवरी को मनाते हैं।

इन खेतों पर है आज हक हमारा तो,
उन शहीदों का बलिदान ये हम खाते हैं।
ये खेत, खलियान थे सब जमीदारों के,
न जाने ये बातें कैसे हम भूल जाते हैं?

था फिरंगियों का कब्जा जमीं पर हमारी,
हम तो उनकी शतरंज के मोहरे प्यादे थे।
जमीन हमारी थी और था देश भी हमारा,
पर फिर भी बने वे आकर यहां शहजादे थे।

हम काश्तकार थे महज जमीनों के,
मालिक तो वे ही असल कहलाते थे।
फसल उगाते वे हमसे थे यहां खेतों में,
फिर कच्चा माल अपने देश ले जाते थे।

भला तो हो उन बहादुर शहिद वीरों का,
जो देश के लिए बलिदान अपना चढ़ाते थे।
एक धेला न लिया था पगार का उन्होंने,
खुद कमाते थे और मेहनत का ही खाते थे।

आज हमको मिली आजादी विरासत में,
हम पगार लेकर भी काम कहां करते हैं?
लाखों के वेतन भत्ते हैं हमारे फिर भी तो,
सब्सिडी और मुफ़्त का इंतजार करते हैं।

मुफ़्तखोरी की आदत से भारत को जल्दी,
हम सबको मिलकर निजात दिलाना होगा।
आर्थिक संकट में फंसते आजाद भारत को,
हमको ही तो बरबाद होने से बचाना होगा।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जरा सोचिये जमीं भी अपनी थी देश भी अपना था फिर भी था फिरंगियों का कब्जा जमीं पर हमारी, हम तो उनकी शतरंज के मोहरे व प्यादे थे। जमीन हमारी थी और था देश भी हमारा, पर फिर भी बने वे आकर यहां शहजादे थे क्यों ? हम तो नाम मात्र के काश्तकार थे जमीनों के, मालिक तो वे ही असल कहलाते थे। फसल उगवाते वे हमसे थे यहां खेतों में और फिर कच्चा माल अपने देश ले जाते थे। गर्व करों उन बहादुर शहिद वीरों का, जो देश के लिए बलिदान अपना चढ़ाते थे। कभी भी एक धेला न लिया था पगार का उन्होंने, सदैव ही खुद कमाते थे और मेहनत का ही खाते थे। जो आज़ादी हमे विरासत में मिली है उसका सम्मान क्यों नहीं करते आज? पगार लेते है लाखों में काम ना करने के। करों संकल्प की आज से ही मुफ़्तखोरी की आदत से भारत को जल्दी, हम सबको मिलकर निजात दिलाना होगा। आर्थिक संकट में फंसते आजाद भारत को, हमको ही तो बरबाद होने से बचाना होगा।

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यह कविता (आज आजादी है हमको मिली तो।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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प्रकृति और खिलवाड़।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ प्रकृति और खिलवाड़। ♦

पावन प्रकृति के आंचल में जब, मानव ने खोली आंखे थी।
कितना निश्छल रहा मानव होगा? खिलती उसकी बांछे थी।

वक्त गुजरा तो होड़ बढ़ी, उसने कुदरत से खिलवाड़ किया।
हरे भरे और खिलते चमन को, नादान मानुष ने उजाड़ दिया।

अब रोगी काया और भोगी मानस, बाँछों में पड गई झाईं है।
धन वैभव तो है बहुत बड़ा पर, सुख सन्तोष पास में नाही है।

प्रकृति महतारी जग सब जीवों की, मानव ने उसको लूटा है।
भूल गया वह मरना है इक दिन, मोह इस जग का झूठा है।

जंगल काटे, भूमि खोदी, हवा, पानी व व्योम को दूषित किया।
जोशीमठ की दरारें आज डराती, प्रकृति से खिलवाड़ किया।

काश ! यूं न रौंदता कुदरत को, खुद खुदा मान के भूल करी।
नतीजन सांसे उखड़ रही है, जवां फेफड़ों में है अब धूल भरी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस धरा पर इंसान से भी काफी समय पहले से ही प्रकृति अतिसुन्दर और मनोरम रूप में उपस्थित है। मनुष्य ने अपनी नाशवान भौतिक सुख सुविधा के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जिसके परिणाम स्वरूप आज अब रोगी काया और भोगी मानस हो गया है। धन वैभव तो है बहुत बड़ा पर, सुख सन्तोष उसके पास में नाही है। प्रकृति माँ है सभी जीवों की, मानव ने उसको इस क़दर लूटा है की भूल गया, वह मरना है इक दिन, मोह इस जग का सब झूठा है, सब कुछ यही रह जाना है। मानव ने जंगल काटे, भूमि खोदी, हवा, पानी व व्योम को भी दूषित किया, इसी कारण जोशीमठ की दरारें आज डराती, प्रकृति से खिलवाड़ किया बढ़चढ़ कर क्यों? काश ! यूं न रौंदता कुदरत को, मनुष्य ने खुद भगवान् मान के भूल करी। नतीजन सांसे उखड़ रही है, जवां फेफड़ों में है अब धूल भरी। अगर अब भी नहीं सुधरे तो, आने वाला समय और भी भयावह होगा।

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यह कविता (प्रकृति और खिलवाड़।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जंगलों की बात।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जंगलों की बात। ♦

आंधी तूफानों के गहन थपेड़ों में,
हमने झेली सदा से हर पीड़ा है।
हिले डुले और टूटे कभी बिखरे,
उठाया जीव संरक्षण का बीड़ा है।

हम धरती के वंशज धरती से उपजे,
कहां किसने हमको खुद से उपजाया है?
जीये सदा से अम्बर पिता की छत के नीचे,
पालती पोषती सदा से हमे हमारी जाया है।

न जाने क्यों नर नृशंस ने संघारा फिर हमको?
हमने आखिर उसका कब और क्या खाया है?
उल्टा उसने ही है हमको हमेशा लूटा खसोटा,
फल, छाया, सांसें ली लकड़ी से घर बनाया है।

अंधा मानुष नासमझी में जाने अनजाने ही,
क्यों मारता खुद के ही पांव में कुल्हाड़ी है?
अपने ही प्राणदाता को जो नर मारे काटे,
वह मंद बुद्धि है, न के कोई बड़ा खिलाड़ी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम पेड़ों ने आंधी तूफानों के गहन थपेड़ों में, हमने झेली सदा से हर पीड़ा है। हिले डुले और टूटे कभी बिखरे भी उठाया जीव संरक्षण का बीड़ा है। वनों में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियाँ, झाड़ियाँ आदि होते हैं। उनमें से कई औषधीय मूल्य प्रदान करते हैं। हमें वनों से विभिन्न प्रकार के लकड़ी के उत्पाद भी प्राप्त होते हैं। इसके अलावा, वे वायु में प्रदूषकों को हटाने में भी सहायक होते हैं, इस प्रकार वायु प्रदूषण को कम करने में वन अहम भूमिका निभाते हैं। फिर भी आज का मानव विकास के नाम पर वनों को सम्पूर्ण रूप से ख़त्म करता जा रहा है, आखिर कब समझेगा ये मानव की पेड़ों का हमारे जीवन व श्वास से गहरा तार जुड़ा है। आओ हम सब मिलकर ये संकल्प ले की प्रत्येक वर्ष एक बड़े पेड़ को जरूर लगाएंगे और उसका रख रखाव तब तक करेंगे जब तक वह अपना खुराक जमीं से खुद न लेने लगे।

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यह कविता (जंगलों की बात।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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मुश्किल नहीं नामुमकिन है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मुश्किल नहीं नामुमकिन है। ♦

मानव मन के मतभेदों को, धरती से मिटाना मुश्किल है,
रामायण हुआ महाभारत हुआ, मानव मदहोशी वैसी है।
मानव ही कहलाया कभी देव तो कभी दानव या राक्षस,
जाति धर्म में बंटे इंसानों की, आज भी यह लड़ाई कैसी है?

उम्मीद तो जागती है अंधेरे में जुगनुओं की रोशनी से भी,
पर उनकी टिमटिमाहट से मुकमल उजाला नहीं होता है।
लगता तो है दूर से कि मानो टीका अंबर क्षितिज पर ही है,
पर असल में तो अंबर को किसी ने संभाला नहीं होता है।

मुश्किल नहीं नामुमकिन है इस दौर में नीति समझाना,
क्योंकि आज हर तरकश में तर्कों के तीखे तीर भरे हैं।
जब पूछते हो सब कोई सवाल यही कि “ईश्वर कहां है?”
“तुमने देखा क्या?” ऐसे माहौल में भगवान से कौन डरे हैं?

मूर्खता है आज कहना किसी से कि भगवान से तो डरो,
इतनी भी लूटपाट और अभद्रता बिल्कुल ठीक नहीं है।
आज हर कोई देता फिरता है जवाब यही कि “बस करो,
यह जमाना है प्रैक्टिकल का, जिन्दगी कोई भीख नहीं है।

फिर सोचता हूं कि होना चाहिए फिर से कोई महाभारत,
जो बेकाबू इंसान सातवें आसमान से जमीन पर आ जाए।
फिर से जाग उठे इन्सान के भीतर वही पुरानी इंसानियत,
आदमी फितरतों को छोड़कर भगवान से डर खा जाए।

आज वश में नहीं है समझाइश चांद सितारों के भी शायद,
आज तो फिर से दुनियां में ज्ञान का सूरज उगना चाहिए।
मकसद नहीं है महज किसी की जिन्दगी में उजाला लाना,
कोशिश यह है कि जग में अहम अंधकार ही डूबना चाहिए।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आज का इंसान इंसानियत को बिलकुल भूल गया है, उसे अपने स्वार्थ के अलावा और कुछ दिखता ही नहीं है। अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए आज का इंसान कोई भी बड़े से बड़ा विकर्म करने से डरता नहीं है। उसे भगवान या उस अनंत सत्ता का भी डर भी अब नहीं रहा। क्या फिर से इंसान को सुधारने के लिए महाभारत की जरूरत है। आखिर क्यों आज का इंसान इतना स्वार्थी हो गया है। अपने अहंकार में डूबा आज का इंसान अपने विकर्मो के कारण अपना सर्वनाश करता जा रहा है। आने वाली पीढ़ी का भविष्य और भी ज्यादा अंधकारमय बना रहा है। अगर अब भी नहीं संभले और सुधरे तो तुम्हारा विनाश निश्चित है।

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यह कविता (मुश्किल नहीं नामुमकिन है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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घोर कलयुग है आ गया क्या?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ घोर कलयुग है आ गया क्या? ♦

नेता है लेते लुत्फ सत्ता का, अधिकारी बने सहयोगी है।
भ्रष्टाचार और महंगाई हर राज में, जनता ने ही भोगी है।

यह पैट्रोल बढ़ा यह डीजल बढ़ा, यह तो बात पुरानी है।
सरकारी तन्त्र में भ्रष्टाचार की, सबको मालूम कहानी है।

बदसलूकों की महफिल में, शराफत की बात बेईमानी है।
नीचे से ऊपर ये सारे मिले हैं, किससे आवाज उठानी है?

खरीद तंत्र घोटाला, भर्ती घोटाला, सिर से ऊपर पानी है।
सब्सिडी लेती जनता भी देखो, हो गई कितनी शाणी है?

दुर्दशा देश की होती है तो होए, सबको अपनी चिन्ता है।
महा स्वार्थ के इस दौर में, हर मानव में कितनी हीनता है?

पंचायत से घोटाले संसद तक, जांच एजेंसियां भी डूबी है।
न्यायालयों के दरवाजों के आगे, विलम्ब की झाड़ उगी है।

गरीब जाए तो किधर को जाए? चारों ही ओर तो अंधेरा है।
वोट की चोट से हर राज है बदला, सबमें लुटेरों का डेरा है।

हम सब जानते सचाई पर जाने, कैसे इस आग में जिंदा है?
इसी में ढलना मजबूरी है सबकी, इस बात से मैं शर्मिंदा है।

घोर कलयुग है आ गया क्या? हर ओर जो आपाधापी है।
ऐसा है लगता, देखता हूं, इन्साफ की चौखट में बेइंसाफी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — नेता बड़े मजे से सत्ता का आनंद ले रहे है, उनको जनता की फिक्र ही नहीं है। पंचायत से लेकर संसद तक सब तरफ घोटाला ही घोटाला हो रहा है, क्या नेता क्या अधिकारी सबके सब मिले हुए है। खरीद तंत्र घोटाला, भर्ती घोटाला, सिर से ऊपर पानी है। सब्सिडी लेती जनता भी देखो, हो गई कितनी शाणी है? किसी को भी देश की चिंता नहीं है, दुर्दशा देश की होती है तो होए, सबको अपनी चिन्ता है। महा स्वार्थ के इस दौर में, हर मानव में कितनी हीनता भर गई है? पंचायत से घोटाले संसद तक, जांच एजेंसियां भी इनमें डूबी है। न्यायालयों के दरवाजों के आगे खड़े बेचारे, विलम्ब की झाड़ उगी है।

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