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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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उत्साह-वर्द्धक कहानी हिन्दी में।

चरित्रहीन।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ चरित्रहीन। ϒ

प्रिय मित्रों,

यह कहानी गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक सच्ची घटना पर आधारित हैं।

स्त्री तब तक “चरित्रहीन” नहीं हो सकती ….. जब तक पुरुष चरित्रहीन न हो।
~ गौतम बुद्ध।

gautam buddha-kmsraj51

संन्यास लेने के बाद गौतम बुद्ध ने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की। एक बार वह एक गांव में गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई और बोली – आप तो कोई “राजकुमार” लगते हैं। क्या मैं जान सकती हूँ … कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र पहनने का क्या कारण है?

बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि – … “तीन प्रश्नों” के हल ढूंढने के लिए उन्होंने संन्यास लिया।

बुद्ध ने कहा – … हमारा यह शरीर जो युवा व आकर्षक है, पर जल्दी ही यह “वृद्ध” होगा … फिर “बीमार” और … अंत में “मृत्यु” के मुंह में चला जाएगा। मुझे “वृद्धावस्था” – “बीमारी” व “मृत्यु” के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है।

बुद्ध के विचारो से प्रभावित होकर उस स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया – शीघ्र ही यह बात पूरे गांव में फैल गई। गांव वासी बुद्ध के पास आए व आग्रह किया कि वे इस स्त्री के घर भोजन करने न जाएं।

क्योंकि वह “चरित्रहीन” है!! बुद्ध ने गांव के मुखिया से पूछा? क्या आप भी यह मानते हैं कि वह स्त्री “चरित्रहीन” है?

मुखिया ने कहा कि मैं शपथ लेकर कहता हूं कि वह बुरे चरित्र वाली स्त्री है। आप उसके घर न जाएं। बुद्ध ने मुखिया का दायां हाथ पकड़ा … और उसे ताली बजाने को कहा … मुखिया ने कहा – … “मैं एक हाथ से ताली नहीं बजा सकता” – क्योंकि मेरा दूसरा हाथ आपने पकड़ा हुआ है।

बुद्ध बोले – … इसी प्रकार यह स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती है?

जब तक इस गांव के “पुरुष चरित्रहीन” न हों। अगर गांव के सभी पुरुष अच्छे होते तो यह औरत ऐसी न होती इसलिए इसके चरित्र के लिए यहां के पुरुष जिम्मेदार हैं।

यह सुनकर सभी “लज्जित” हो गए।

लेकिन आजकल हमारे समाज के पुरूष “लज्जित” नही “गौर्वान्वित” महसूस करते है। क्योकि यही हमारे “पुरूष प्रधान” समाज की रीति एवं नीति है।

सदैव सकारात्मक सोचो – सकारात्मक सोचने से ही अपना व अपने घर समाज और देश का विकास होगा। सदैव ही नारी का सम्मान करें।

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Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

 ~Kmsraj51

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Note::-

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

kmsraj51- C Y M T

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

~KMSRAJ51

 

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शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। ϒ

प्रिय मित्रों,

यह Story महाकवि कालिदास जी के जीवन से संबधित हैं।

Kalidas-kmsraj51
महाकवि कालिदास जी।

महाकवि कालिदास जी के कंठ में साक्षात सरस्वती जी का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। अपार यश, प्रतिष्ठा और मान सम्मान पाकर एक बार कालिदास जी को अपनी विद्वत्ता का बहुत घमंड हो गया।

उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ भी बाकी नहीं बचा। उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं। एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास जी विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए।

गर्मी का मौसम था, धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास जी को प्यास लग आई। थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी-फूटी झोपड़ी दिखाई दी। पानी की आशा में वह उस ओर बढ चले। झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था।

कालिदास जी ने सोचा कि अगर कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी देने का अनुरोध किया जाए। उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली। बच्ची ने कुएं से पानी भरा और वहां से जाने लगी।

तभी कालिदास जी उसके पास जाकर बोले – बालिके बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे ….. बच्ची ने पूछा – आप कौन हैं? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए। कालिदास जी को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता भला, मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता?

फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले – बालिके अभी तुम छोटी हो, इसलिए मुझे नहीं जानती। घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो। वह मुझे देखते ही पहचान लेगा। मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर – दूर तक। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूँ।

कालिदास जी के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली – आप असत्य कह रहे हैं। संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं। अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं?

थोङा सोचकर कालिदास जी बोले – मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पिला दो। मेरा गला सूख रहा है। बालिका बोली – दो बलवान हैं ‘अन्न’ और ‘जल’। भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें। देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है।

कलिदास जी चकित रह गए। लड़की का तर्क अकाट्य था। बड़े – बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास जी एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे। बालिका ने पुन: पूछा – सत्य बताएं, कौन हैं आप? वह चलने की तैयारी में थी।

कालिदास जी थोड़ा नम्र होकर बोले – बालिके, मैं बटोही हूँ….. मुस्कुराते हुए बच्ची बोली – आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं। संसार में दो ही बटोही हैं। उन दोनों को मैं जानती हूं, बताइए वे दोनों कौन हैं? तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास जी की बुद्धि क्षीण कर दी थी पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कर दी।

बच्ची बोली – आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं जी और ये भी नहीं जानते? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है। बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं। आप तो थक गए हैं। भूख प्यास से बेदम हैं। आप कैसे बटोही हो सकते हैं?

इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई। अब तो कालिदास जी और भी दुखी हो गए। इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए। प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी। दिमाग़ चकरा रहा था। उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा…. तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली…..

उसके हाथ में खाली मटका था। वह कुएं से पानी भरने लगी। अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास जी बोले – माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा।

वृद्ध स्त्री बोली – बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं। अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी। कालिदास जी ने कहा – मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें माते। स्त्री बोली – तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम?

अब तक के सारे तर्क से पराजित और हताश कालिदास जी बोले – मैं सहनशील हूँ। अब आप पानी पिला दें। स्त्री ने कहा – नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी – पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है।

दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी ओ मीठे फल ही देते हैं। तुम सहनशील नहीं हाे, सच बताओ तुम कौन हो? कालिदास जी लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क – वितर्क से झल्लाकर बोले – मैं हठी हूँ।

वृद्ध स्त्री बोली – फिर असत्य, हठी तो दो ही हैं – पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार – बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप? पूरी तरह से अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास जी ने कहा ….. फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ।

नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो, मूर्ख दो ही हैं। पहला अयोग्य राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास जी ….. वृद्ध स्त्री के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे। वृद्ध स्त्री ने कहा – उठो वत्स… आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती जी वहां खड़ी थी। कालिदास जी पुन: नतमस्तक हो गए।

माता ने कहा – शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग(लीळा) करना पड़ा।

कालिदास जी को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

दोस्तों,

ज़िन्दगी में कभी भी किसी भी बात का अहंकार न करें। सदैव विनम्रता व धैर्य के साथ हर कार्य करें।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

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बच्चों में अच्छे संस्कार का बीज रोपण।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ बच्चों में अच्छे संस्कार का बीज रोपण। ϒ

shantivan-KMSRAJ51

बच्चो में अच्छे संस्कार 16 वर्ष की आयु तक ही डाले जा सकते है। बचपन से ही बच्चो में जो संस्कार माता पिता के द्वारा दिये जाते है, वे ही आगे जाकर उनके भावी जीवन की उन्नती अथवा अवनीति के कारण बनते है।

हमारे बड़े-बुजुर्ग, संत-महात्मा कहते है की जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष होगा, तथा वैसा ही उसका फल होगा।

बचपन से ही अच्छे संस्कारो से संस्कारीत बालक युवावस्था में शुभ कार्यो मेें प्रवृत होकर माता-पिता की प्रतिष्ठा एवं स्वयं के सुख का कारण बनता है।

परंतु यदि बचपन से कुसंगत में रहकर कुसंस्कारो का बीजारोपण यदि बालक के जीवन में हो गया तो अपने माता-पिता के साथ ही वह स्वयं अपमानित जीवन जीकर अपने को पतन एवं दुःख की आग में झोक देगा।

श्रीमद्भागवत कथा में गौकर्ण और धुंनकारी की कथा आती है जिसके अनुसार गौकर्ण बचपन से अच्छे संस्कारो में पला था जिसके फलस्वरूप उसमें अपने उद्धार के साथ ही दूसरो की मुक्ती का मार्ग प्रशस्त किया जबकि धुंधुकारी बचपन से ही कुसंगत के कारण अधोगति को प्राप्त हुआ जिसका उद्धार भी गौकर्ण ने किया।

हमारी प्राचीन शिक्षा अधिक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर निर्भर थी। बच्चों को गुरु, माता-पिता, बड़े व्यक्तियों, धर्म, धार्मिक कार्यों में रुचि उत्पन्न की जाती थी। उनके प्रति पूजनीय भाव प्रारम्भ से ही जोड़ दिये जाते थे, धार्मिक अंत:वृत्ति होने से बड़ा होने पर भी भारतीय भोगवाद की ओर प्रवृत्त न होते थे।

ब्रह्मचर्य का संयम सदैव उन्हें संयमित किया करते थे, पवित्र भाेजन, पवित्र भजन, पूजा, यज्ञ, चिंतन, अध्ययन, मनन आदि से जो गुप्त मन निर्मित होता था, वह ….. पवित्रतम भावनाओं का प्रतीक होता था।

घर का वातावरण भी उच्च नैतिकता से परिपूर्ण होता था, जिससे एक पीढ़ी के पश्चात् दूसरी पीढ़ी उन्हीं संस्कारों को निरन्तर विकसित करती चली आती थी।

जब हमारी भावनाओं में नैतिकता, श्रेष्ठता, पवित्रता का बीज नहीं डाला जायगा, तो किस प्रकार उत्तम चरित्र वाले मानव तथा समाज की या देश की सृष्टि हो सकती है?

आवश्यकता इस बात की है कि पहले माता-पिता स्वयं भावनाओं की शिक्षा की उपयोगिता समझें; स्वयं आदर की भावनाओं को संस्कार रूप में शिशु मन पर स्थापित करें।

वातावरण का भारी महत्व है, वातावरण का अर्थ व्यापक है। घर, तथा संगति तो यह महत्वपूर्ण है हीं, घर की पुस्तकें, दीवारों के चित्र, हमारे गाने, भजन, इत्यादि भी बड़े महत्व के हैं। यदि इन्हीं से उन्नति तथा सुधार की भावना में चलाई जायँ, तो आचार व्यवहार के क्षेत्र में क्रान्ति हो सकती है।

अच्छे-अच्छे भजन, पवित्र कर्त्तव्य की शिक्षा देने वाली कहानियाँ, उत्तमोत्तम व्यवहार द्वारा नये राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण हो सकता है।

बचपन से ही शिशु के मन पर बड़ों के प्रति आदर प्रतिष्ठा सम्मान, छोटों के प्रति स्नेह, दया, सहानुभूति, सहकारिता, बराबर वालों से मैत्री, प्रेम, संगठन सहयोग की भावनाएं बच्चों के गुप्त मन में उत्पन्न करनी चाहिये।

आचरण, आदर्श, तथा उचित निर्देशन से यह कार्य माता-पिता, अध्यापक सभी कर सकते हैं।

मान लीजिये, एक बच्चा सिनेमा का एक भद्दा गाना अनजाने ही कुसंगति से सुनकर याद कर लेता है। वह उसका अर्थ नहीं समझता, किन्तु उसे पुन: पुन: दोहराता है, बड़ा होकर वह उसका अर्थ समझने लगता है और जीवन भर उससे प्रभावित हुये बिना नहीं रहता।

यही बच्चा यदि कोई राष्ट्रप्रेम का गीत, उत्तम भजन, पवित्र विचार वाली उक्ति अनजाने में सीख ले, (जो माता-पिता सतत् अभ्यास, पुनरावृत्ति से सिखा सकते हैं,) तो वह बड़ा होकर निरन्तर उच्च मार्ग की ओर ही अग्रसर होगा।

Note : Post inspired by – Pujya Jaya Kishori Ji.

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शाश्वत साथी।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ शाश्वत साथी। ϒ

यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एक पुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है। लेकिन पर्स में ऐसा कुछ नहीं था जिससे कोई सुराग मिल सके। पर्स में कुछ पैसे और भगवान श्रीकृष्ण की फोटो थी। फिर उस
टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा – यह किसका पर्स है?

एक बूढ़ा यात्री बोला – यह मेरा पर्स है। इसे कृपया मुझे दे दें।

टी.टी.ई. ने कहा – तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है।

केवल तभी मैं यह पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं।

उस बूढ़े व्यक्ति ने दंतविहीन मुस्कान के साथ उत्तर दिया – इसमें भगवान श्रीकृष्ण की फोटो है।

टी.टी.ई. ने कहा – यह कोई ठोस सबूत नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान श्रीकृष्ण की फोटो हो सकती है।

इसमें क्या खास बात है? पर्स में तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है?

बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला – मैं तुम्हें बताता हूँ कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरे पिता ने मुझे दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूप में कुछ पैसे मिलते थे। उस समय मैंने पर्स में अपने माता – पिता की फोटो रखी हुयी थी।

जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मै अपनी कद – काठी पर मोहित था। मैंने पर्स में से माता – पिता की फोटो हटाकर अपनी फोटो लगा ली। मैं अपने सुंदर चेहरे और काले घने बालों को देखकर खुश हुआ करता था।

कुछ साल बाद मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे बहुत प्रेम करता था। मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे को निहारा करता।

जब मेरी पहली संतान का जन्म हुआ, तब मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चे के साथ खेलने के लिए काम पर कम समय खर्च करने लगा, और मैं देर से काम पर जाता और जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं, अब मेरे पर्स में मेरे बच्चे की फोटो आ गयी थी।

बूढ़े व्यक्ति ने डबडबाती आँखों के साथ बोलना जारी रखा – कई वर्ष पहले मेरे माता – पिता का स्वर्गवास हो गया। पिछले वर्ष मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गयी।

मेरा इकलौता पुत्र अपने परिवार में व्यस्त है। उसके पास मेरी देखभाल का वक्त नहीं है। जिसे मैंने अपने जिगर के टुकड़े की तरह पाला था, वह अब मुझसे बहुत दूर हो चुका है। अब मैंने भगवान कृष्ण की फोटो पर्स में लगा ली है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ है कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वत साथी हैं। वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता। 

जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेम यदि मैंने ईश्वर के साथ किया होता तो आज मैं इतना अकेला नहीं होता।

टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया। अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बने बुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला – क्या तुम्हारे पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में रखने के लिए चाहिए।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

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भाई से भाई का सच्चा स्नेह।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ भाई से भाई का सच्चा स्नेह। ϒ

BTA-KMSRAJ51

सेठ धर्मदास को फल खाने का बहुत शौक था। वो रोज तरह – तरह के फल खरीदते थे। एक दिन वो संतरे खरीद रहे थे कि अचानक खरीदते -खरीदते, उनका मन किया और उन्होंने एक फांक खायी, खाते ही वो दंग रह गये और उन्होंने विक्रेता से पूछा;???

क्या ये संतर विदेश से आये हैं? इतने स्वादिष्ट संतरे मैने कभी नहीं खाये।

विक्रेता ने बताया कि ये संतरे इसी शहर के हैं, और आज एक बूढा आदमी उसे बेच कर गया है।

सेठ जी, स्वाद का रहस्य जानने के लिए बूढ़े के पास गये और उनसे पूछा कि आपके संतरे के स्वाद का रहस्य क्या हैं?

बूढ़े व्यक्ति ने कहा: “भाई के प्रति भाई का प्यार।”

सेठ जी ने कहा वो कैसे मैं समझा नहीं।

तब बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि ये पेड़ उसकी माँ ने लगाया था। उसके जन्म से पहले। जब माँ इस पेड़ में रोज पानी डालती थी तब मैं माँ से पूछता था।

“माँ तुम इस पेड़ में रोज पानी लगाती हो, इसका कितना ध्यान रखती हो, ये कौन है? इससे हमको क्या फायदा होगा?

तब माँ ने कहा बेटा – ये तेरा बड़ा भाई है। तू हमेशा इसका ख्याल रखना, इसको कभी ना काटना, ये तेरा साथ तब भी देगा जब तुझे अपने ठुकरा देंगे।”

तब से मुझे भी इस से प्यार हो गया और मैने इसे अपना बड़ा भाई माना और अपनी हर खुशी, हर गम इसके साथ साझा किया। समय बीतता चला गया, मैं अमेरिका चला गया और बहुत पैसा वाला बन गया, माँ और अपने इस भाई को भूल गया ।

मेरे दो बच्चे हुए, धीरे – धीरे समय ने चक्र चलाया, मुझे बिजनेस में घाटा हुआ, मेरे सब मित्र, पत्नी, बच्चे मेरा साथ छोड़ गये।

सब अपने – अपने शेयर बेच कर अलग हो गए।

मैंने अपनी सारी संपत्ति बेच कर कर्ज पटाया।

मैं अपनों के बेगानेपन, अकेलेपन, निराशा, हताशा से टूट गया।

फिर मुझे बचपन में माता की बात याद आई, मेरे पास यहाँ Return आने लायक पैसे बचे थे।

फिर मैं अपने इस टूटे – फूटे घर वापस आया, आते ही मैं अपने इस भाई से मिलकर खूब रोया। फिर मैंने इसकी देखरेख की और आज ये अपने छोटे, बूढ़े भाई को सहारा दे रहा है।

मेरे प्रति जो इसके अंदर प्यार है, वो इसके फलों में स्वाद बनकर आता है। मेरा ये भाई आज भी मेरे साथ खड़ा है।

सेठ जी ने मुड़कर देखा तो पेड़ स्वीकृति में हिल रहा था ।

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काैन दोस्त व काैन दुश्मन।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ काैन दोस्त व काैन दुश्मन। ϒ

एक बार एक छोटी चिड़िया सर्दी में खाने की तलाश में उड़ कर जा रही थी, ठंड इतनी ज्यादा थी कि उससे ठंड सहन नही हुई और खून जम जाने से वो वहीं पर एक मैदान में गिर गयी…..

वहां पर एक गाय ने आकर उसके ऊपर गोबर कर दिया। गोबर के नीचे दबने के बाद उस चिड़िया को एहसास हुआ की उसे दरअसल उस गोबर के ढेर में गर्मी मिल रही थी। लगातार गर्माहट के एहसास ने उस छोटी चिड़िया को सुकून से भर दिया और उसने गाना गाना शुरू कर दिया।

वहां से निकल रही एक बिल्ली ने उस गाने की आवाज़ सुनी और देखने लगी की ये आवाज़ कहाँ से आ रही है। ….. थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुआ की ये आवाज़ गोबर के ढेर के अंदर से आ रही है, उसने गोबर का ढेर खोदा और उस चिड़िया को बाहर निकाला और उसे खा गयी।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि…..

“आपके ऊपर गंदगी फेंकने वाला हर इंसान आपका दुश्मन नहीं होता।
और
आपको उस गंदगी में से बाहर निकालने वाला हर इंसान आपका दोस्त नहीं होता।“

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

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समान बल का प्रयोग।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ समान बल का प्रयोग। ϒ

UTSF-KMSRAJ51

गंगा तट पर एक संत अपने शिष्याें काे शिक्षा दे रहे थे, तभी एक शिष्य ने पूछा, “गुरुजी, यदि हम कुछ नया, कुछ अच्छा करना चाहते है, लेकिन समाज उसका विराेध करता है ताे हमे क्या करना चाहिए?

गुरुजी ने कुछ साेचा और बाेले “इस प्रश्न का उत्तर मैं कल दूंगा।”

अगले दिन जब सभी शिष्य नदी के तट पर एकत्रित हुए ताे गुरुजी बाेले, ताे आज हम एक प्रयोग करेंगे….. इन तीन मछली पकड़ने वाली डंडियाें काे देखाे, ये एक ही लकड़ी से बनी हैं और बिल्कुल एक समान हैं।”

उसके बाद गुरुजी ने उस शिष्य काे आगे बुलाया जिसने कल प्रश्न किया था। “पुत्र, ये लाे इस डंडी से मछली पकड़ाे।” ,गुरुजी ने निर्देश दिया। शिष्य ने डंडी से बंधे कांटे मे आंटा लगाया और पानी में डाल दिया। फाैरन ही एक बड़ी मछली कांटे में आ फंसी। जल्दी पूरी ताकत लगाकर बाहर की ओर खींचाे” गुरुजी बाेले।

शिष्य ने ऐसा ही किया, उधर मछली ने भी पूरी ताकत से भागने की काेशिश की। फलतः डंडी टूट गयी। “काेई बात नहीं; ये दूसरी डंडी लाे और पुनः प्रयास कराे।” गुरुजी बाेले। शिष्य ने फिर से मछली पकड़ने के लिए कांटा पानी में डाला।

इस बार जैसे ही मछली फंसी, गुरुजी बाेले, “आराम से एकदम हल्के हाथ से डंडी काे खींचाे।” शिष्य ने ऐसा ही किया, पर मछली ने इतनी ज़ाेर से झटका दिया कि डंडी हाथ से छूट गयी। गुरुजी ने कहा, “ओहहाे लगता है मछली बच निकली, चलाे इस आखिरी डंडी से एक बार फिर से प्रयत्न कराें।”

शिष्य ने फिर वही किया। पर इस बार जैसे ही मछली फंसी गुरुजी बाेले, “सावधान इस बार न अधिक ज़ाेर लगाओ न कम बस जितनी शक्ति से मछली खुद काे अंदर की ओर खींचे उतनी ही शक्ति से तुम डंडी काे बाहर की ओर खींचाे। कुछ ही देर में मछली थक जायेगी और तब तुम आसानी से उसे बाहर निकाल सकते हाे।” शिष्य ने ऐसा ही किया और इस बार मछली पकड़ मेें आ गयी।

“क्या समझे आप लाेग?” शिष्य गुरुजी ने बाेलना शुरु किया….. ये मछलियाँ उस समाज के समान हैं जाे आपके कुछ करने पर विराेध करता है। यदि आप इनके खिलाफ अधिक शक्ति का प्रयाेग करेंगे ताे आप टूट जायेंगे। यदि आप कम शक्ति का प्रयाेग करेंगे ताे भी वे आपकाे या आपकी याेजनाओं काे नष्ट कर देंगे। ….. लेकिन यदि आप उतने ही बल का प्रयाेग करेंगे जितने बल से वे आप का विराेध करते हैं ताे धीरे-धीरे वे थक जायेंगे….. हार मान लेंगे और तब आप जीत जायेंगे।

ताे प्रिय मित्रों,

इसलिए कुछ उचित करने में जब ये समाज आपका विराेध करे ताे समान बल प्रयाेग का सिद्धांत अपनाइये और अपने लक्ष्य काे प्राप्त कीजिये।

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ईश्वर से सच्चा प्रेम।

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ϒ ईश्वर से सच्चा प्रेम। ϒ

गाँव की एक अहीर बाला दूध बेचने के लिये रोजाना दूसरे गाँव जाती। रास्ते में एक नदी पड़ती। नदी किनारे दूध का डिब्बा खोलती और उसमें से एक लोटा दूध निकालती। दूध के डिब्बे में एक लोटा पानी मिलाती और नदी पार के गाँव की ओर चल पड़ती दूध बेचने। यह उसकी रोज की दिनचर्या थी।

नदी किनारे एक वृक्ष पर संत मलूकदास जी जप माला फेरते हुऐ इस अहीर बाला की गतिविधियों को रोज आश्चर्य से देखा करते। एक दिन उनसे रहा नहीं गया और ऊपर से आवाज लगा ही दी।

बेटी सुनो।

हाँ – बाबा, बोलिये ना।

बुरा न मानो तो तुमसे एक बात पूछना चाहता हूँ।

पूछिये ना बाबा, आपकी बात भी कोई बुरा मानने की होती है क्या?

बेटी – मैं रोज देखता हूँ। तुम यहाँ आती हो। दूध के डिब्बे में से एक लोटा दूध निकालती हो और डिब्बे में एक लोटा पानी मिला देती हो। क्यों करती हो तुम ऐसा?

लड़की ने नज़रें नीची कर ली।

कहा – बाबा, मैं जिस गाँव में दूध बेचने जाती हूँ ना….. वहाँ मेरी सगाई पक्की हुई है। मेरे वो वहीं रहते हैं। जबसे सगाई हुई है मैं रोज एक लोटा दूध उन्हें लेजाकर देती हूँ। दूध कम न पड़े इसलिये एक लोटा पानी डिब्बे में मिला देती हूँ।

पगली तू ये क्या कर रही है?

कभी हिसाब भी लगाया है तूने? कितना दूध – पानी कर चुकी है अभी तक तू। अपने मंगेतर के लिये?

लड़की नें नज़रें तनिक उठाते हुऐ उत्तर दिया – बाबा, जब सारा जीवन ही उसे सौंपने का फैसला हो गया तो फिर हिसाब क्या लगाना? जितना दे सकी दिया… जितना दे सकूंगी देती रहूंगी।

मलूक दास जी के हाथ से माला छूट कर नदी में जा गिरी। उस अहीर बाला के पाँव पकड़ लिये उन्होंने। बोले – बेटी, तूने तो मेरी आँखें ही खोल दी। माला का हिसाब लगाते-लगाते मैंने तो जप का मतलब ही नहीं समझा। जब सारा जीवन ही उसे सौंप दिया तो क्या हिसाब रखना? कितनी माला फेर ली?

यह है वास्तविक प्रेम ईश्वर से …..

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वस्तुओं को बर्वाद ना करें।

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ϒ वस्तुओं को बर्वाद ना करें। ϒ

भगवान् बुद्ध के एक अनुयायी ने कहा – प्रभु!

मुझे आपसे एक निवेदन करना है।
बुद्ध : बताओ क्या कहना है ?

अनुयायी : मेरे वस्त्र पुराने हो चुके हैं। अब ये पहनने लायक नहीं रहे। कृपया मुझे नए वस्त्र देने का कष्ट करें।

बुद्ध ने अनुयायी के वस्त्र देखे, वे सचमुच बिलकुल जीर्ण हो चुके थे और जगह जगह से घिस चुके थे।

इसलिए उन्होंने एक अन्य अनुयायी को नए वस्त्र देने का आदेश दे दिए। कुछ दिनों बाद बुद्ध अनुयायी के घर पहुंचे।

बुद्ध : क्या तुम अपने नए वस्त्रों में आराम से हो ? तुम्हे और कुछ तो नहीं चाहिए?

अनुयायी : धन्यवाद प्रभु। मैं इन वस्त्रों में बिलकुल आराम से हूँ और मुझे और कुछ नहीं चाहिए।

बुद्ध : अब जबकि तुम्हारे पास नए वस्त्र हैं तो तुमने पुराने वस्त्रों का क्या किया?

अनुयायी : मैं अब उसे ओढने के लिए प्रयोग कर रहा हूँ ?

बुद्ध : तो तुमने अपनी पुरानी ओढ़नी का क्या किया?

अनुयायी : जी मैंने उसे खिड़की पर परदे की जगह लगा दिया है।

बुद्ध : तो क्या तुमने पुराने परदे फ़ेंक दिए ?

अनुयायी : जी नहीं, मैंने उसके चार टुकड़े किये और उनका प्रयोग रसोई में गरम पतीलों को आग से उतारने के लिए कर रहा हूँ।

बुद्ध : तो फिर रसॊइ के पुराने कपड़ों का क्या किया ?

अनुयायी : अब मैं उन्हें पोछा लगाने के लिए प्रयोग करूँगा।

बुद्ध : तो तुम्हारा पुराना पोछा क्या हुआ?

अनुयायी : प्रभु वो अब इतना तार – तार हो चुका था कि उसका कुछ नहीं किया जा सकता था। इसलिए मैंने उसका एक – एक धागा अलग कर दिए की बातियाँ तैयार कर लीं …. उन्ही में से एक कल रात आपके कक्ष में प्रकाशित था।

बुद्ध अनुयायी से संतुष्ट हो गए। वे प्रसन्न थे कि उनका शिष्य वस्तुओं को बर्वाद नहीं करता और उसमे समझ है कि उनका उपयोग किस तरह से किया जा सकता है।

मित्रों, आज जब प्राकृतिक संसाधन दिन – प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं ऐसे में हमें भी कोशिश करनी चाहिए कि चीजों को बर्वाद ना करें और अपने छोटे छोटे प्रयत्नों से इस धरा को सुरक्षित बना कर रखें।

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∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

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In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

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भगवान के दोस्त।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ भगवान के दोस्त। ϒ

एक बच्चा फटे पुराने जूतों के साथ प्लास्टिक की गेंद से खेल रहा था। लोगों को उसके जूते देखकर बहुत दुःख हुआ। तभी किसी सज्जन ने बाज़ार से नया जूता ख़रीदा और उसे देते हुए कहा “बेटा लो, ये जूता पहन लो”। लड़के ने फ़ौरन जूते निकाले और पहन लिए, उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा था।

वो मेरी तरफ़ पल्टा और मेरा हाथ थाम कर पूछा  “आप भगवान हैं ? उसने घबरा कर हाथ छुड़ाया और कानों को हाथ लगा कर कहा – “नहीं बेटा, नहीं, मैं भगवान नहीं”। लड़का फिर मुस्कराया और कहा “तो फिर ज़रूर आप भगवान के दोस्त होंगे।

क्योंकि मैंने कल रात में ही भगवान से कहा था कि मुझे नऐ जूते दे-दें। 

“वो सज्जन मुस्कुरा दिया और उसके माथे को प्यार से चूमकर अपने घर की तरफ़ चल पड़ा।

अब वो सज्जन भी जान चुके थे कि भगवान का दोस्त होना कोई मुश्किल काम नहीं……॥

और हम…..??

पढ़ें – विमल गांधी जी कि शिक्षाप्रद कविताओं का विशाल संग्रह।

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