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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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stories in hindi

कर्मों का फल जन्म जन्मों तक।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ कर्मों का फल जन्म जन्मों तक। ♦

एक सन्यासी ने भगवान की भक्ति करते – करते जीवन के तीन पड़ाव गुजार दिए, चौथे पड़ाव में वो भ्रमण पर निकल पड़े, रास्ते मे भयंकर जंगल था जिसमें डाकुओं का राज था।

कुछ दूर जाने पर साधु ने देखा कि डाकुओं ने पीछा शुरू कर दिया है। लेकिन सन्यासी ने सोचा, मेरे पास क्या है जो छीन लेंगे और अपनी मस्ती से चलते रहे। डाकुओं ने भी देख लिया कि यह एक सन्यासी है, इसके पास कुछ नही मिलेगा।

जैसे ही वो डाकू सन्यासी के पास से गुजरे उन्हें जमीन पर पड़ी अठमाशी दिखाई दी, ठीक उसी समय सन्यासी के पैर में भयंकर कांटा लगा। सन्यासी ने भगवान को याद किया, इसलिए नहीं कि डाकुओं को आठमाशी मिली और ना ही इसलिये कि भक्ति का फल क्या मिला, पर इसलिए कि डाकुओं के सामने यह घटना घटी।

साधु भगवान को याद कर ही रहे थे कि भगवान जी ने दर्शन दिए और कहा, हे, साधु, चिंतित मत हो। यह सब कर्मों का फल है। पूर्व जन्म में आपके कर्म इतने खराब थे कि आपको यहां फांसी लगनी थी पर इस जन्म के कर्मों से केवल कांटे में टल गई और जो ये डाकू है इनके पूर्व जन्म के कर्म इतने अच्छे थे, इन्हें यहां राज्य सिंहासन मिला था जो इस जन्म के कर्मों के कारण केवल आठमाशी में टल गया।

जैसे कि पानी मे फेंकी गई कंकर से उठी लहर आखिरी किनारे तक पहुँचती है। उसी तरह कर्मों का फल भी जन्म जन्मों तक चलता है। अच्छे कर्म करे व अच्छा फल पाए।

♦ दौलत राम गर्ग जी – जींद – हरियाणा ♦

—————

— Conclusion —

  • “दौलत राम गर्ग जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लघु कथा में समझाने की कोशिश की है — आपकी कोशिश यही हो की आपकी वजह से कभी भी किसी को कोई दुःख न पहुंचे। इसलिए सदैव ही अच्छे कर्म करे जिससे आपका वर्तमान और भविष्य दोनों अच्छा हो। जैसे कि पानी मे फेंकी गई कंकर से उठी लहर आखिरी किनारे तक पहुँचती है। उसी तरह कर्मों का फल भी जन्म जन्मों तक चलता है। अच्छे कर्म करे व अच्छा फल पाए।

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यह लघु कथा (कर्मों का फल जन्म जन्मों तक।) “दौलत राम गर्ग जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा जन्म — जींद – हरियाणा, तहसील सफीदों, गांव खातला में हुआ, मैट्रिक तक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की फिर पानीपत S D College से B. Com में डिग्री प्राप्त की। 2 वर्ष तक इसी कॉलेज में कार्यरत रहा। 1977 में बैंक की नौकरी शुरू की और 2014 में Sr. Manager की पोस्ट से रिटायर हुआ। इस दौरान कलकत्ता, फरीदाबाद, उदयपुर, दिल्ली, चंडीगढ़, हिसार व रोहतक स्थानों में सेवा का मौका मिला। 1977 से ही गांव छोड़ दिया था। 1987 से दिल्ली में ग्रस्थ आश्रम है। अब रिटायरमेंट जीवन गुजार रहे है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बदलता दौर।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बदलता दौर। ♦

इतवार की सुबह सवेरे तड़के ही कोई रविन्द्र के आंगन से आवाजे लगा रहा था,” भाई साहब! ओ भाई साहब! चलो चलना है क्या?”

” कौन बिरजू है क्या?” अंदर से रविन्द्र चाय पीते हुए बोला।
” जी हां भाई साहब। मैं बोल रहा हूं।” बिरजू ने झट से उत्तर दिया।
रविन्द्र ने अपनी पत्नी को जल्दी तैयार होने को कहा और स्वयं भी कपड़े पहनते हुए बिरजू से बतियाता रहा।

” क्या बताएं बिरजू? हर चेले – घोपे के पास गए। हर डॉक्टर – हकीम के पास गए।लाखों का खर्च कर लिया है, और तो और अम्मा जी के कहने पर हवन – पाठ भी करवा लिए। पर शादी के दस साल बाद भी कोई औलाद नहीं हो रही है। कल जब तुम्हे दफ्तर से आते वक्त, मन्दिर जाने के बारे में शांता से बतियाते हुए सुना तो सोचा हम भी एक बार तुम दोनों के साथ मन्दिर चल आते हैं। शायद अबकी भगवान हमारी सुन ही लें।”

“भाग्य का क्या पता भाई साहब? कब खुल जाए? मैं भी इन्हें बड़ी मुश्किल से मन्दिर में लिए जा रही हूं। वे भी आपके जाने के लिए राजी होने के बाद ही जाने को तैयार हुए हैं। वरना कहां ….? ” शांता ने अदब से कहा।

पुत्र रत्न पैदा हुआ।

इस बार सचमुच भगवान ने रविन्द्र और तारा की सुन ली। दोनों की किस्मत खुली और उनके एक पुत्र रत्न पैदा हुआ। वह बच्चा बचपन में इतना बीमार रहा कि न जाने तारा ने उसको बड़ा करने के लिए क्या – क्या नहीं किया?

बेचारे रविन्द्र की आधी तनख्वाह हर महीने उसी के इलाज में लग जाती थी। बड़ी मुद्दत से जो हुआ था लाल। दोनों ने लालन पालन में कोई कोर कसर न छोड़ी। तारा तो उसके बी ए करने तक उसे अपनी थाली से ही खिलाती रहती थी। बेचारी खुद भूखी रह जाती पर कुन्दन पर आंच न आने देती।

कुंदन और ईशा की शादी।

भगवान की कृपा से कुन्दन की नौकरी भी लग गई। नौकरी की खबर सुनकर उसकी एक सहपाठी ने उसे रिश्ता भेज दिया। यूं तो कुन्दन भी उसके प्यार में कालेज से ही लट्टू हुआ पड़ा था पर वह बड़ा भाव खा रही थी। वह थोड़े बड़े घराने की थी। पर नौकरी लगने के बाद वह कुन्दन से शादी करने को मान गई। रिश्ता तय हुआ और शादी भी हुई। साल भर सब ठीक से रहा। मां बाप ने भी न पूछा दोनों को। सोचा बच्चे हैं। करने दो मस्ती।

साल बाद रविन्द्र की गाड़ी की एक दुर्घटना हुई। इसमें रविन्द्र ने तो अपनी जान ही गवाई और तारा की टांग टूट गई। अब घर का सारा काम कुन्दन और कुन्दन की पत्नी को करना पड़ रहा था।

साल भर के इलाज के बाद तारा भी ठीक तो हो गई थी पर बूढ़े शरीर में दर्द तो बढ़ता ही जा रहा था। ईशा कुछ दिन तो इधर उधर टल कर खुद को घर के कामकाज से बचाती रही और पति से ही खाना भी बनवाती रही और कपड़े भी धुलाती रही।

कुन्दन ने भी मां को बीमार देख चुपके से सब काम किया। परन्तु साल भर बाद एक दिन उसने साफ साफ कह दिया, _ ” बुढ़िया ज्यादा नाटक करने की कोई जरूरत नहीं है। अब तू ठीक हो गई है। पेट भरना है तो खाना खुद बनाया कर और अपने कपड़े खुद धोया कर। वरना चली जा वृद्धाश्रम। पति के मरने के बाद पेंशन मिलती है। आश्रम वाले पाल लेंगे उन्ही पैसों से। हमें न पैसों की जरूरत है और न ही मुझसे ये सब होता।”

कुन्दन ने ईशा को थोड़ा फटकारा। ईशा घर छोड़ कर माइके चली गई। उधर ईशा की मां ने तो और भी आग में घी डालने का काम किया। कुन्दन ईशा के बेगैर रह ही नहीं सकता था। मनाते – मनाते बात यहां तक आ पहुंची कि अब हमारी ईशा उस घर में तभी जाएगी, जब आप अपनी मां को अलग रखोगे या वृद्धा-आश्रम में छोड़ आएंगे।

कुन्दन ने डरते हुए से ईशा से कहा, ” ईशा तुम समझती क्यों नहीं? अभी हम मां को न अकेला रख सकते हैं और न ही तो आश्रम को भेज सकते हैं। अभी पापा को मरे हुए मात्र एक साल ही हुआ है। पति मरा है उसका, और फिर समाज क्या कहेगा?”

ईशा ने सर्पणी की तरह फुंकारते हुए उत्तर दिया, ” पति क्या सिर्फ तेरी मां का ही अनोखा मरा है? संसार में कईयों के पति मरे हैं। मैं कुछ नहीं सुनना चाहती। मैं समाज समूज कुछ नहीं जानती। फैसला तुम्हे करना है। तुम्हे मां चाहिए या फिर मैं? नहीं तो तलाक के पेपर तैयार करो पापा।”

“नहीं बेटी। कुछ दिन का समय इसे और देते हैं।” ईशा के पापा ने शराब का पैग लेते हुए कहा।
कुन्दन शाम को मां से सब सच सच कहता है।

तारा ने कुन्दन से कहा, ” बेटे तेरे पापा ने तो तुझे तभी कहा था कि यह लड़की कुछ ठीक नहीं है बेटा। कोई और लड़की देखते हैं। पर तेरी जिद्द के आगे हमारी एक न चली। अभी भी वक्त है बेटा। वे अगर तलाक मांग रहे हैं तो दे – दे तलाक। वह लड़की तुझे बर्बाद कर डालेगी।”

तारा के इतना कहते ही कुन्दन आग बबूला हो उठा, ” ठीक कहती है ईशा और उसके मम्मा-पापा। तेरे साथ रहना सचमुच ठीक नहीं है। पड़ी रह घर में अकेली। हम रह लेंगे क्वार्टर में। बड़ी आई तलाक दे – दे।”

दोनो पति – पत्नी क्वार्टर में रहने लगे। जितना कुन्दन महीने का कमाता, उससे तीन गुना खर्चे मैडम के थे। घर के काम काज को रखी नौकरानी पैसे न मिलने के कारण नौकरी छोड़ गई। सब काम कुन्दन को खुद करने पड़ते थे।

मैडम जी तो दिन रात व्यस्त ही रहती थी और नशे में चूर। बेटे की हालत देख कर नौकरानी को पैसे देना तारा ने चुपके से शुरू किए, ताकि बेटे पर बोझ न पड़े। कुन्दन पर बैंक का कर्ज भी बहुत हो गया था।

अब वह भी परेशान हो कर और ससुराल की संगत से शराब पीने लग गया था। एक दिन उसने दफ्तर से लौट कर मैडम को किसी गैर मर्द की बाहों में लिपटे देखा तो उससे रहा नहीं गया। उसने सासू मां और ससुर साहब से ईशा की करतूतों की शिकायत की।

उन्होंने उसे जबाव दिया,” तो क्या हुआ? यह तो आजकल आम बात है। हमारी बेटी है ही बहुत सुंदर दामाद जी। आ गया होगा किसी का दिल उस पर। तुम्हारा भी किसी और पर आ जाए तो उसमें क्या गलत है? इस बात पर ज्यादा बबाल करने की कोई जरूरत नहीं है।”

उधर बैक वालों की चिट्ठियों से कुन्दन अलग से परेशान था। कुन्दन को एक दिन दिमागी दौरा पड़ा। वह हस्पताल में कराह रहा था। तारा को नौकरानी ने खबर दी।तारा उसे घर ले आई और उस अपाहिज बुद्धि का इलाज भी करती रही और उसका कर्जा भी भरती गई।

उन बूढ़ी बाहों में अब और इतनी शेष ताकत नहीं थी कि वे इस बुढ़ापे में भी अपने बेटे को अपना पेट काट कर पालती। पर क्या करती? उसे यह सब मजबूरी में करना पड़ रहा था।

मैडम ईशा ने अपने माइके में उसी गैर मर्द के साथ डेरा जमा लिया था। एक दिन तारा उसे घर बुलाने गई तो उसने बेहूदा जवाब दिया, “क्या करूंगी तेरे अपाहिज बेटे के साथ रह कर?”
तारा रोते – रोते घर लौट आई।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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Conclusion:

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – माता-पिता सदैव ही अपने बच्चे/बच्चियों का भला ही चाहते हैं, उनका कहना जरूर माने, उनके अनुभव का कभी भी मजाक ना बनाये। जो आपके माता-पिता का सम्मान और सेवा नहीं कर सकती/सकता वो आपका सम्मान और सेवा भला क्या करेगी। इसलिए सदैव ही माता-पिता का सम्मान और सेवा करें, उनका कहना माने। कभी भी उनका साथ ना छोड़े, चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थिति क्यों ना आ जाये।

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यह लेख/लघु कथा (बदलता दौर।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख / लघु कथा सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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प्यार का return गिफ्ट।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ प्यार का return गिफ्ट। ϒ

प्यार का रिटर्न गिफ्ट – हम जानते है की शब्दो की अपेक्षा कार्य अधिक जोर से बोलते है। यदि हम किसी से कहे, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” चाहे इन शब्दों में या किसी दूसरे शब्दों में और फिर कुछ ऐसा कार्य कर दे जो यह प्रदर्शित करे कि हमारा वाकई यह मतलब नहीं था तो हमारी क्रियाएँ हमारा भेद खोल देगी। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हर स्थिति में हम वैसा ही कार्य करे जैसा हम बोलते हैं।

  • हमे लगता है कि इसका एक उत्तम उदाहरण वह सच्ची घटना हैं जो कई वर्षों पहले घटी थी और जो देश के पहले और सबसे बड़े करोड़पति व्यक्तियों में से एक और दयावान एंड्रयू कारनेगी से संबंधित है।
  • एक दिन गिरते पानी में एक मैली कुचैली सी बूढी महिला न्यूयार्क के एक डिपार्टमेंटल स्टोर में पानी से बचने और मदद मांगने के लिए आई। परन्तु वह पूरी गीली और निर्धन दिखाई पड़ रही थी, इसलिए किसी ने भी उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।
  • एक युवा सेल्समैन को छोड़कर जिसने उससे कहा – “जब तक कोई आपको लेने नहीं आता और आप उसका इंतज़ार कर रही है, क्या आप बैठना चाहेंगी?” और उसने उस बूढ़ी महिला के लिए taxi की व्यवस्था की। जाने के पहले उसने पूछा, “young मैन, तुम्हारा नाम और पता एक कागज पर लिखकर मुझे दो।” और उसने वही किया।
  • अगले दिन उस महिला के बेटे, एंड्रयू कारनेगी, ने उस स्टोर को फ़ोन किया और कहा कि वह अपने नए ख़रीदे हुए स्कॉटिश महल की सजावट के लिए पूरा furniture खरीदना चाहता है। उसने आगे कहा कि वह चाहता है कि वही युवा सेल्समैन सारी बिक्री करे और पूरा कमीशन उसे ही दिया जाए। इसके अतिरिक्त वह चाहता है कि वह युवक उसके साथ स्कॉटलैंड जाकर उस furniture को fit करने में मदद करे। 
  • मैनेजर ने अपने को लगे आघात को छुपाया और कहा कि वह युवक अनुभवहीन है और वह स्वयं वहाँ पर कई वर्षो से कार्य कर रहा है और उसे इतना बड़ा कार्य करके बहुत ख़ुशी होगी।
  • इस पर कारनेगी ने जवाब दिया, “मेरी माँ ने कहा कि इस युवक ने उसके प्रति उदारता दिखाई है जबकि वह जानता भी नहीं था कि वह महिला कौन थी। इससे मुझे पता चला कि वह व्यापार और लोगों को समझता है। उसे यह कार्य सौंपा जाता है और मैं चाहता हूँ कि उसे सभी कमीशन दिया जाए। मैं दुबारा जाँच करूँगा कि उसे यह मिले, और यदि उसे नहीं मिला, तो मैं अपना लेन-देन भविष्य में कही और करूँगा।

“दुनिया में प्यार ऐसी अकेली वस्तु है जिसे पाने के लिए उसे देना पड़ता है।”

उदारता से कार्य करते हुए उस युवक ने मानवीय प्यार का प्रदर्शन किया था।

सीख – इस संसार में प्यार से बड़ी कुछ भी नहीं। जिसे भी सच्चा प्यार मिल जाए इससे बढ़कर और कुछ भी नहीं। अगर आप प्यार चाहते है तो पहले सभी को प्यार देना शुरू कर दे – “प्यार देंगे तो प्यार मिलेगा जरूर” प्रेम ईश्वर का दूसरा रूप है। सच्चे प्यार की कोई भी कीमत नहीं लगा सकता है – अर्थात: बेशकीमती। चाहे बड़े हो या छोटे सभी को प्यार आदर और सम्मान दे बदले में आपको भी प्यार – आदर और सम्मान मिलेगा।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

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In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to become themselves.

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निरंतर प्रयास।

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CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ निरंतर प्रयास। ϒ

प्यारे दोस्तों, Secret of success…

महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप में लगे थे। उन्होंने शरीर को काफी कष्ट दिया, यात्राएं की घने जंगलों में कड़ी साधना की, पर आत्मज्ञान की प्राप्ति नही हुई। एक दिन बुद्ध निराश होकर सोचने लगे मैंने अभी तक कुछ भी प्राप्त नही किया। अब आगे क्या कर पाउँगा? निराशा, अविश्वास के इन नकारात्मक भावों ने उन्हें क्षुब्ध कर दिया। कुछ ही क्षणों बाद उन्हें प्यास लगी। वे थोड़ी दूर स्थित एक झील तक पहुंचे। वहां उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक नन्ही सी गिलहरी के दो बच्चे झील में डूब रहे है। पहले ताे वह गिलहरी जड़वत बैठी रही, फिर कुछ देर बाद उठकर झील के पास गई, अपना सारा शरीर झील के पानी में भिगोया और फिर बाहर आकर पानी झाड़ने लगी। ऐसा वह बार – बार करने लगी। 

बुद्ध सोचने लगे, इस गिलहरी का प्रयास कितना मूर्खतापूर्ण है। क्या कभी यह इस झील को सुखा सकेगी? किन्तु गिलहरी का यह क्रम लगातार जारी था। “बुद्ध को लगा मानो गिलहरी कह रही हो – यह झील कभी खाली होगी या नहीं, यह मैं नहीं जानती, किन्तु मैं अपना प्रयास नहीं छोडूंगी।” अंततः उस छाेटी सी गिलहरी ने महात्मा बुद्ध को अपने लक्ष्य-मार्ग से विचलित होने से बचा लिया। वे सोचने लगे कि जब यह नन्ही गिलहरी अपने लघु सामर्थ्य से झील को सूखा देने के लिए कृत संकल्पित है तो मुझमें क्या कमी है? मैं तो इससे हजार गुना अधिक क्षमता रखता हूँ। यह सोचकर महात्मा बुद्ध पुनः अपनी साधना में लग गए और एक दिन बाेधि-वृक्ष तले उन्हें ज्ञान का आलोक प्राप्त हुआ।

सीख – असफलताओं के बावजूद, असफलताओं से सीख लेकर – लगातार प्रयास जारी रखना चाहिए। यदि हम प्रयास करना न छोड़े तो एक न एक दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो ही जाती है। शांत दिमाग से धैर्य के साथ प्रयास जारी रखें। परिवर्तन व risk लेने से घबराये नहीं। Life में Growth करना है तो परिवर्तन जरूरी है। सफलता प्राप्त करने के लिए अपने Comfort Zone से बाहर निकले। प्रयासों के छोटे-छोटे सकारात्मक step के साथ आगे बढ़े। सफलता आपको अवश्य मिलेगी।

Put your heart, mind, and soul into even your smallest acts. This is the secret of success.

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In English

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 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

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मेरी अपनी है मंजिले।

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CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ मेरी अपनी है मंजिले। ϒ

प्यारे दोस्तों,

एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था। वहा रोज मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चें एक – दूसरे की शर्ट पकड़कर रेल – रेल का खेल खेलते थे।

रोज कोई बच्चा इंजन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे। इंजन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल जाते, पर केवल चड्ढी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए रोज गार्ड बनता था। एक दिन उन बच्चो को खेलते हुए रोज देखने वाले एक व्यक्ति ने काैतुहल से गार्ड बनने वाले बच्चें को पास बुलाकर पूछा … बच्चें तुम रोज गार्ड बनते हो। तुम्हे कभी इंजन कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती ?

इस पर वो बच्चा बोला… बाबू जी मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पीछे वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे … और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा …? इसलिए मै रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हूँ। ये बोलते समय मुझे उसकी आँखों में पानी दिखाई दिया।

वो बच्चा जीवन का एक बड़ा पाठ पढ़ा गया…। अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमे कोई न कोई कमी जरूर रहेगी …। वो बच्चा माँ – बाप से गुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। परन्तु ऐसा न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा।

हम कितना रोते हैं ? कभी अपने सांवले रंग के लिए, कभी छोटे कद के लिए, कभी पैसे के लिए, कभी पड़ोसी की बड़ी कार, कभी पड़ोसन के गले का हार, कभी अपने कम marks, कभी English, कभी Personality, कभी नौकरी की मार तो कभी धंधे में मार …। हमे इससे बाहर आना पड़ता हैं … ये जीवन है… इसे ऐसे ही जीना पड़ता हैं।

चील की ऊँची उड़ान देखकर चिड़िया कभी depression में नहीं आती, वो अपने आस्तित्व में मस्त रहती है। मगर इंसान – इंसान की ऊँची उड़ान देखकर बहुत जल्द चिंता में आ जाता है। तुलना से बचें और खुश रहें। न किसी से ईर्ष्या, ना किसी से कोई होड़, मेरी अपनी है मंजिले, मेरी अपनी दौड़ …।

सीख – परिस्थितियां कभी समस्या नहीं बनती, समस्या इसलिए बनती है, क्योंकि हमें उन परिस्थितियों से लड़ना नहीं आता। यह सृष्टि एक रंगमंच है और सभी मनुष्य आत्मा Actor व Actress है सभी को अपना- अपना पार्ट पूरा करना चाहिए। हर इंसान के अंदर असीमित शक्तियां निहित है – बस जरूरत है इन शक्तियों को जागृत कर – उसे सही तरीके से Use करना। जिससे जीवन में सरलता पूर्वक सुख व शांति मिले।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to become themselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAJ51

 

 

 

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उसी को तू अर्पण कर दे।

Kmsraj51 की कलम से…..

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♦ उसी को तू अर्पण कर दे। ♦

१ जुलाई ब्लॉग्गिंग दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

एक बार एक अजनबी किसी के घर गया। वह अंदर गया और मेहमान कक्ष में बैठ गया। वह खाली हाथ आया था तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना अच्छा रहेगा। तो उसने वहा टंगी एक पेंटिंग उतारी और जब घर का मालिक आया, उसने पेंटिंग देते हुए कहा, यह मैं आपके लिए लाया हूँ। घर का मालिक जिसे पता था कि यह मेरी चीज़ मुझे ही भेंट दे रहा है, सन्न रह गया।

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अब आप ही बताये कि क्या वह भेंट पाकर, जो कि पहले से ही उसका हैं, उस आदमी काे खुश हाेना चाहिए? मेरे

 

ख्याल से नहीं….. लेकिन यही चीज़ हम भगवान के साथ भी करते हैं। हम उन्हे रूपया, पैसा चढ़ाते है और हर चीज़ जाे उनकी ही बनाई है, उन्हे भेंट करते हैं। लेकिन मन में भाव रखते है कि ये चीज़ मैं भगवान काे दे रहा हूँ, और सोचते है कि भगवान खुश हो जायेंगे।

मूर्ख हैं हम। हम यह नहीं समझते कि उनकाे इन सब चीज़ाे की जरुरत नहीं। अगर आप सच में उन्हे कुछ देना चाहते हैं ताे अपनी शृद्धा दीजिए, उन्हे अपने हर एक श्वास में याद कीजिये और विश्वास मानिये प्रभु जरूर खुश हाेगा।

अजब हैरान हूँ भगवान तुझे कैसे रिझाऊं मैं; कोई वस्तु नहीं ऐसी जिसे तुझ पर चढ़ाऊं मैं। भगवान ने जवाब दिया : संसार कि हर वस्तु तुझे मैंने दी है। तेरे पास अपनी चीज़ सिर्फ तेरा अहंकार है, जो मैंने नहीं दिया। उसी काे तू मेरे अर्पण कर दे। तेरा जीवन सफल हाे जायेगा।

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हिम्मत आपकी मदद उसकी।

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ϒ हिम्मत आपकी मदद उसकी। ϒ

एक बार एक किसान का घोड़ा बीमार हो गया। उसने उसके इलाज के लिए डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने घोड़े का अच्छे से मुआयना किया और बोला….. आपके घोड़े को काफी गंभीर बीमारी है। हम तीन दिन तक इसे दवाई देकर देखते हैं, अगर यह ठीक हो गया तो ठीक, नहीं तो हमे इसे मारना होगा। क्योंकि यह बीमारी दूसरे जानवरों में भी फैल सकती है।

यह सब बातें पास में खड़ा एक बकरा भी सुन रहा था। अगले दिन डॉक्टर आया, उसने घोड़े को दवाई दी और चला गया। उसके जाने के बाद बकरा घोड़े के पास गया और बोला – दोस्त, हिम्मत करो, नहीं तो यह तुम्हें मार देंगे। दूसरे दिन डॉक्टर फिर आया और दवाई देकर चला गया। बकरा फिर घोड़े के पास आया और बोला, दोस्त, तुम्हें उठना ही होगा। हिम्मत करो, करो नहीं तो तुम मारे जाओगे। मै तुम्हारी मदद करता हूँ।

चलो उठाे। तीसरे दिन जब डॉक्टर आया तो किसान से बोला, मुझे अफसोश है की हमे इसे मारना पड़ेगा क्योकि कोई भी सुधार नज़र नही आ रहा। जब वो वहां से गए तो – बकरा घोड़े के पास फिर आया और बोला, देखो दोस्त, “करो या मरो” वाली स्थिति बन गई है। अगर तुम आज भी नहीं उठे ताे कल तुम मर जाओगें। इसलिए हिम्मत करो। हाँ, बहुत अच्छे। थोड़ा और, तुम कर सकते हो। शाबाश , अब भाग कर देखो, तेज और तेज।

इतने में किसान वापस आया तो उसने देखा कि उसका घोड़ा भाग रहा है। वो ख़ुशी से झूम उठा और सब घर वालो को इकट्ठा करके चिल्लाने लगा, चमत्कार हो गया, मेरा घोड़ा ठीक हो गया। हमे जश्न मनाना चाहिए …। हिम्मत रखे जीने की। अगर हम हिम्मत का एक कदम आगे बढ़ाएंगे, तो हमारी जिंदगी बच जाएगी। तभी तो ऊपर वाला कहता है कि तुम हिम्मत का एक कदम आगे बढ़ाओ तो मैं हजार कदम आगे बढ़ाऊंगा। हम सिर्फ आई हुई परिस्थितियों के प्रभाव रुपी चश्मे से ही देखते हैं। देखना तो ये चाहिए कि अपनी क्षमता को पूर्ण रूप से क्रियान्वित कर रहे हैं या नहीं।

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* अपनी आदतों को कैसे बदलें।

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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सच्ची मानवता – संवेदनशीलता।

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ϒ सच्ची मानवता – संवेदनशीलता। ϒ

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प्यारे दोस्तों – एक Postman ने घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा, “चिट्ठी ले लिजिये”। अंदर से एक बालिका की आवाज़ आई, “आ रही हूँ”। लेकिन तीन से चार मिनट तक काेई न आया ताे Postman ने फिर कहा, “अरे भाई! घर में काेई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लाे”। लड़की की फिर आवाज़ आई, “Postman साहब, दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए, मैं आ रही हूँ”। “नहीं, मैं खड़ा हूँ, रजिस्टर्ड पत्र है, पावती पर तुम्हारे signature चाहिए”।

करीबन छह से सात मिनट के बाद दरवाज़ा खुला। Postman इस देरी के लिए झल्लाया हुआ ताे था ही और उस पर चिल्लाने वाला था लेकिन, दरवाज़ा खुलते ही वह चाैंक गया। एक अपाहिज कन्या जिसके पांव नहीं थे, सामने खड़ी थी।

Postman चुपचाप पत्र देकर और उसके signature लेकर चला गया। सप्ताह – दो सप्ताह में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती, Postman एक आवाज़ देता और जब तक वह कन्या न आती तब तक खड़ा रहता। एक दिन लड़की ने Postman काे नंगे पांव देखा।
दिपावली नज़दीक आ रही थी। उसने सोचा Postman काे क्या उपहार दूँ।

एक दिन जब Postman डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने जहाँ मिट्टी में Postman के पांव के निशान बने थे, उस पर काग़ज रखकर उन पांवाे का चित्र उतार लिया। अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाईं से उस नाप के जूते मंगवा लिये।

दिपावली आई और उसके अगले दिन Postman ने गली के सब लाेगाें से ताे उपहार माँगा और साेचा कि अब इस बिटिया से क्या उपहार लेना? पर गली में आया हूँ ताे उससे मिल ही लूँ। उसने दरवाज़ा खटखटाया। अंदर से आवाज़ आई, “काैन ?” Postman उत्तर मिला। कन्या हाथ में एक Gift पैक लेकर आई और कहा, “अंकल, मेरी तरफ से दिपावली पर आपकाे भेंट है। “Postman ने कहा” तुम मेरे लिए बेटी के समान हाे, तुमसे मैं उपहार कैसे लूँ?” कन्या ने आग्रह किया कि मेरी इस उपहार के लिए मना न करें।

ठिक है कहते हुए Postman ने पैकेट ले लिया। कन्या न कहा, “अंकल इस पैकेट काे घर ले जाकर खाेलना। घर जाकर जब उसने पैकेट खाेला ताे विस्मित रह गया, क्योंकि उसमें एक जाेड़ी जूते थे। उसकी आँखे भर आई। अगले दिन वह Office पहुंचा और Postmaster से फरियाद की कि उसका तबादला फाैरन कर दिया जाए। Postmaster ने कारण पूछा, ताे Postman ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखाें और रूंधे कंठ से कहा, “आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूंगा। उस अपाहिज बच्ची ने मेरे नंगे पाँवाें काे ताे जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊंगा ?”

सीख : संवेदनशीलता का यह श्रेष्ठ दृष्टांत है। संवेदनशीलता यानि, दूसराें के दुःख दर्द काे समझना, अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदारी करना, उसमें शरीक हाेना। एक ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है।

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दयालु लकड़हारा।

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प्यारे दोस्तो – बहुत समय पहले किशनपुर गाँव में रामू नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह दूसराे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता। जीवाें के प्रति उसके मन में बहुत दया थी। एक दिन वह जंगल से लकड़ी इकट्ठी करने के बाद थक गया ताे थाेड़ी देर सुस्ताने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी उसे सामने के पेड़ से पक्षियों के बच्चाें के ज़ाेर-ज़ाेर से चीं-चीं करने की आवाज़ सुनाई दी।

उसने सामने देखा ताे डर गया। एक सांप घाेसले में बैठे चिड़िया के बच्चाें की तरफ बढ़ रहा था। बच्चे उसी के डर से चिल्ला रहे थे। रामू उन्हें बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगा। सांप लकड़हारे के डर से नीचे उतरने लगा। उसी दाैरान चिड़िया भी लाैट आई। उसने जब रामू काे पेड़ पर देखा ताे समझा कि उसने बच्चाें काे मार दिया।

वह रामू काे चाेच मार-मारकर चिल्लाने लगी। उसकी आवाज़ से और चिड़िया भी आ गईं। सभी ने रामू पर हमला कर दिया। बेचारा रामू किसी तरह पेड़ से नीचे उतरा। चिड़िया जब घाेसले में गई ताे उसके बच्चे सुरक्षित बैठे थे। बच्चाें ने चिड़िया काे सारी बात बताई ताे उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।

वह रामू से माफी मांगना चाहती थी और उसका शुक्रिया अदा करना चाहती थी। उसे कुछ दिन पहले दाना ढूंढ़ते हुए एक कीमती हीरा मिला था। उसने हीरे काे अपने घाेसले में लाकर रख लिया था। चिड़िया ने वह हीरा रामू के आगे डाल दिया और एक डाली पर बैठकर अपनी भाषा में धन्यवाद करने लगी। रामू ने हीरा उठा लिया और चिड़िया की तरफ हाथ उठाकर उसका धन्यवाद किया और वहां से चल दिया। तभी कई चिड़िया आईं और उसके ऊपर उड़कर साथ चलने लगीं मानाे वे उसका आभार करते हुए विदा करने आई हाें।

सीख – किसी भी जीव पर किये गये उपकार का फल सदैव ही सकारात्मक नतीजे के रूप में return मिलता हैं।

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* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

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* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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कर्तव्य की उपेक्षा।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ कर्तव्य की उपेक्षा। ϒ

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एक सेठ के पास बहुत सारी गायें थी। उसने उनकी देखभाल के लिए दाे नाैकर रखे। कुछ दिनाें के बाद पता चला कि गायें बहुत दुबली हाे गई हैं और कुछ मर भी चुकी हैं। सेठ को इस पर बहुत गुस्सा आया। उसने इसके लिए दाेनाें नाैकराें काे जिम्मेदार ठहराया। जांच करने पर पता चला कि दाेनाें नाैकर अपने-अपने व्यसनाें में लगे रहे। एक काे जुआ खेलने की आदत थी। गायाें की देखभाल करने में उसका मन नहीं लगता था।

अक्सर वह जुआ खेलने बैठ जाता और गायाें की देखभाल नहीं हाे पाती थी। यही बात दुसरे के साथ भी थी। वह पूजा-पाठ का व्यसनी था। वह गायाे की तरफ ध्यान नहीं देता और पूजा-पाठ में लगा रहता था। सेठ दाेनाें काे राजा के पास ले गया। राजा काे उनके बारे में फैसला करना था। लाेगाें काे लगा कि राजा पूजा-पाठ करने वाले नाैकर काे क्षमा कर देगा। लेकिन राजा ने दाेनाें काे समान दंड दिया और कहा कर्तव्य की उपेक्षा अपराध है चाहे वह किसी भी कारण से किया जाए।

प्यारे दोस्तों – जब भी कभी काेई भी जिम्मेदारी वाला कार्य आपके ऊपर हाे, अर्थांत आपके ऊपर निर्भर हाे ताे सही समय पर कार्य काे प्रधानता देते हुए सही तरह से करें।

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© आप सभी का प्रिय दोस्त ®

Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* अपनी आदतों को कैसे बदलें।

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

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