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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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Apostate or ego Hindi Story

धर्म भ्रष्ट या अहंकार।

Kmsraj51 की कलम से…..
Kmsraj51-CYMT-JUNE-15

ϒ धर्म भ्रष्ट या अहंकार। ϒ

एक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर में पानी नही था। इसलिए उनकी पत्नी पडोस से पानी ले आई। पानी पीकर पंडित ने पूछा…..

पंडित – कहाँ से लायी हो बहुत ठंडा पानी है।

पत्नी – पडोस के कुम्हार के घर से। (पंडित ने यह सुनकर लोटा फैंक दिया और उसके तेवर चढ़ गए वह जोर-जोर से चीखने लगा).

पंडित – अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया, कुंभार (शुद्र) के घर का पानी पिला दिया। पत्नी भय से थर-थर कांपने लगी, उसने पण्डित से माफ़ी मांग ली।

पत्नी – अब ऐसी भूल नही होगी। शाम को पण्डित जब खाना खाने बैठा तो घर में खाने के लिए कुछ नहीं था।

पंडित – रोटी नहीं बनाई, भाजी नहीं बनाई।

पत्नी – बनायी तो थी लेकिन अनाज पैदा करनेवाला कुणबी(शुद्र) था, और जिस कढ़ाई में बनाया था वो लोहार (शुद्र) के घर से आई थी। सब फेक दिया।

पंडित – तू पगली है क्या कही अनाज और कढ़ाई में भी छुत होती है? यह कह कर पण्डित बोला की पानी तो ले आओ।

पत्नी – पानी तो नही है जी।

पंडित – घड़े कहाँ गए?

पत्नी – वो तो मेने फैंक दिए क्योंकि कुम्हार के हाथ से बने थे।

पंडित – बोला दूध ही ले आओ वही पीलूँगा।
पत्नी – दूध भी फैंक दिया जी क्योंकि गाय को जिस नौकर ने दुहा था वो तो नीची (शुद्र) जाति से था न।

पंडित – हद कर दी तूने तो यह भी नही जानती की दूध में छूत नही लगती है।

पत्नी – यह कैसी छूत है जी जो पानी में तो लगती है, परन्तु दूध में नही लगती। पंडित के मन में आया कि दीवार से सर फोड़ ले। गुर्रा कर बोला – तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है।

पत्नी – खाट! उसे तो मैने तोड़ कर फैंक दिया है क्योंकि उसे शुद्र (सुतार) जात वाले ने बनाया था।

पंडित चीखा – ओ फुलो का हार लाओ भगवन को चढ़ाऊंगा ताकि तेरी अक्ल ठिकाने आये।

पत्नी – फेक दिया उसे माली (शुद्र) जाती ने बनाया था।

पंडित चीखा – सब में आग लगा दो, घर में कुछ बचा भी हैं या नहीं।

पत्नी – हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोडना बाकी है क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के मजदूरों ने बनाया है। पंडित के पास कोई जबाब नही था। उसकी अक्ल तो ठिकाने आ गई। पंडित काे अपने अहंकार व अज्ञान का बाेध हाे गया था।

दोस्तों, कहने काे ताे २१ वीं सदी में इंसान ने बहुत तरक़्क़ी की है, लेकिन अभी भी छूत व अछूत के राेग में जक़ड़ा हुआँ हैं। आखिर कब तक इंसान इस छूत व अछूत के राेग से मुक्त हाे पायेगा।

पढ़ें – विमल गांधी जी कि शिक्षाप्रद कविताओं का विशाल संग्रह।

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