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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poet satish sekhar

प्रकृति और होरी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Prakriti and Hori (Holi) | प्रकृति और होरी।

आकंठ अखंड उद्गार में,
बहता कण-कण विराग।
तिनका-तिनका तृण पल्लवी
कुसुमित हो मुस्कुराय।
दृग दिवस काल में,
देखे मन हर्षाये।
गोकर केश लोहिता,
पल-पल रूप दिखाय।

फैला इस संसार में,
विपुल गंध हर जोर।
डाली-डाली लद गई,
फूलों से चहुँ ओर।
वन कानन की शोभा बढ़ी,
बढ़ी सृष्टि आगार।
कनक पूत की आभा चढ़ी,
फागुन की है बड़जोर।

ताल तम्य तरकश में,
गाये गीत मधुमाधवी।
हर ताल-ताल के छंद में,
मधुर मिलन उत्साही रंग।
आम्र पल्लवी मधुप महुए की,
नवरंग रसरंग की बटायें।
बढ़ी चली हर छोर-छोर,
होरी है बरजोर-जोर।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (प्रकृति और होरी।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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ओ साजन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ ओ साजन। ♦

पाता जगा यदि जीवन इन्हीं तरंगों पर,
गीत तुम्हारे ओ साजन।

स्वप्न सारे रात के ये मोह-बन्धन तोड़ जाते,
घिर आती तुम्हारी छवि फिर अश्रुजल के किनारे।
बजते जिगर में तार गति के चरण निर्झर किरणों में,
लेता साध ही तुम्हें मैं वीणा मरण अधर में।
जो यह व्याप्त है चारों ओर मर्म के विरह-सा पथ में,
एक सुख से कांप उठता अमावस के पर्व में।
अवसाद श्यामल मेघ-सा साजन॥

कितने स्निग्ध शिशिर से सब्ज आते स्नेह से,
शेष संवाद किस अतल की सजाते किरणों से।
उठती चीख मर्म वाणी की अकथित भाषाहीन से,
कहानी उन प्रभातों की पाता भूल न पलभर।
घूमा निरंतर मैं रिक्तकर द्वार पर तुम्हारे जब से,
किस लिये चेतना का शून्य मन अशांत उमंगों से।
प्रचंड कुहराम है साजन॥

कितना विवश मैं आज पर जन्म-जन्मांतर से परिचित,
अन्तर की उमस से दग्ध पिपासा ही आज नीरव।
विराट-विप्लव यह लोहित कर्म का समर्पण आज,
किसी की सांस का दो कण खींच लाया निर्माल्य तक।
किसी दिन असफलता में साधना में लीन होगी मगर,
तुम्हारे इन्हीं जीवन तरंगों पर जगा पाया यदि अगर।
गा उठुंगा गान साजन॥

सदायें दिल की किसी को टूटते सुना पाता यदि,
ये रातें मरणवाहन जिसकी पनपती इक जिंदगी।
खोल पाता यदि अंतःस्थली की अमावस जिंदगी की,
पिपासाओं के प्रलय को अगर पी पाता समझ चेतन पावस।
यदि लेता सोख उभरती वांछा अपनी निदारुण,
फिर कभी बुझ न पाती मेरी लगाई।
शीतल-सी पावक साजन॥

मेरे जख्मों पर हँस सके वह दर्द का दौर आये,
रजनी सावित्री हो उठे मेरा दीप निहार बहाये।
बीती बहारें बींधती चमन में आये शिशिर को संग लाये,
मेरे मौन सूलों की गुहारें रुक न पाये ये विकल।
यदि न हो पाये मुखर भी नयन आकुल अन्तरों के,
रह ही जायेगा चिर-शून्य सच कह दूं मैं हूं शून्य।
दहक अंगार-सा जाऊंगा साजन॥

यह बसेरा इस वीरान में रात भर का मानता हूं,
कब उछाहों ने न घेरा बस विष बरसता ही मिला।
कौन सी आरज़ू लाऊं फूलों के महल में आज,
जीवन की निधियां लुटाऊं कौन संचित रह सकी जो।
जलती रहे रात भर मेरी चिरुकी भरपूर इतनी,
यह जीवन में रहे सर्वत्र क्या यही कम जलन विद्रुप रुदन के,
पाता जगा यदि जीवन इन्हीं तरंगों पर।
गीत तुम्हारे ओ साजन॥

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली , मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — अपने साजन की याद में एक सजनी की क्या मनोदशा होती है? उसके मन में किस तरह के विचारों व भावनाओ के तरंग उड़ते है ये बताने की कोशिश की है। उमड़ घुमड़ कर बहुत सारी भावनाएं चलती है उअके मन पटल पर, वो कही खो सी गई है। उसकी भावनाएं कुछ इस तरह चलती है…… मेरे जख्मों पर हँस सके वह दर्द का दौर आये, रजनी सावित्री हो उठे मेरा दीप निहार बहाये। बीती बहारें बींधती चमन में आये शिशिर को संग लाये, मेरे मौन सूलों की गुहारें रुक न पाये ये विकल। यदि न हो पाये मुखर भी नयन आकुल अन्तरों के, रह ही जायेगा चिर-शून्य सच कह दूं मैं हूं शून्य। दहक अंगार-सा जाऊंगा साजन।

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यह कविता (ओ साजन।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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दीपावली : पुकार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दीपावली : पुकार। ♦

दीपशिखा की वर्तिका समिध रहा तेल,
घृत से पूजन करें, कुल की परंपरा माता का अभिषेक।

लोक परंपरा में रही मृतिका की बनी में,
मदार की बाती रखे सरसों तेल से फिर प्रज्वलित करें।

कडुआ अनुभव रहा तम ने घेरा डाला जीवन,
इस बार मिटा दो मैया अगला साल न हो ऐसा।

कडुवे तेल से दीप जलाऊं लो कर लो स्वीकार,
मेरे जीवन का अंधेरा हटा दो अबकी बार।

बहुत लड़ चुका हूं गर्दिश से अब न लड़ पाऊंगा,
आया हूं शरण तिहारी आर्तनाद मेरी तू ले इस बार सुन।

बीत गये दिन बहुत सारे अब तो कृपा कर दे,
भोग लगा रहा मैया आस तुझ पर लगाया है।

अंधकार मिटा दे, कुछ तो इतना दे… दे,
भूखा हूं मैं मैया प्यास मेरी मिटा दे।

बस आँचल का प्यार अपना दे… दे,
तेरी कृपा से जी उठुंगा अपना मान दे… दे।

घी के दिये में तुझे पुकारूं हे नाथ कृपा इतना कीजिये,
विघ्न मेरे सारे हर लीजिये चंगा मुझे कर दीजिए।

विनायक कहलाते आप हैं शिव सुत कहलाते,
माँ लक्ष्मी के साथ आप सदा विराजते।

मुझ दीन-हीन पर अपनी कृपा-दृष्टि रखिये,
आप के संग बसे धर्मराज चित्रगुप्त से मेरी ओर दृष्टि फिराइये।

इस दीपावली आप सब से मैं भी दीप-भोग लगाईये।
इस बालक की ओर अपनी कृपा थोड़ी रखिये।

मैं अगले बरस लगाऊंगा मोदक संग ले आऊंगा,
दीपक के संग-संग अपनी खुशी भी चरणों में चढ़ाऊंगा।

ध्यान दें: मृतिका की बनी = मिट्टी का दिया

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली , मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — दीपावली महापर्व पर माँ लक्ष्मी और गणपति का आह्वान किया है। दीपावली पर माता रानी को दीप भोग लगाऊ, मुझ दीन-हीन पर अपनी कृपा-दृष्टि रखिये माँ। हे मैया मेरी अरदास सुन ले, बस आँचल का प्यार अपना दे-दे, तेरी कृपा से जी उठुंगा अपना मान दे-दे। घी के दिये में तुझे पुकारूं हे नाथ कृपा इतना कीजिये, विघ्न मेरे सारे हर लीजिये चंगा मुझे कर दीजिए। शुभ दीपावली आत्मिक साधना के लिए सबसे सर्वोत्तम दिन होता है, इस दिन हम सभी को अपने आत्मिक उत्थान के लिए सच्चे मन से साधना करना चाहिए।

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यह कविता (दीपावली : पुकार।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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यदि आपके पास हिंदी या अंग्रेजी में कोई Article, Inspirational Story, Poetry या जानकारी है जो आप हमारे साथ Share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी ID है: kmsraj51@hotmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!!

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