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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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Diwali Kavita in Hindi

दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली। ♦

दो शब्दों की दिवाली लाती घर-घर खुशहाली,
दीप से दीपक बना श्रृंखला बनाती आवली।
खुशियों से दामन भर जाती भरकर थाली,
मन की तरंगे संग मिल जाती होती मतवाली।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

दिवाली तमस मिटाती घनघोर घटा काली,
मन में फैले अंधियारों को दूर भगाने वाली।
राम का सत्कर्म सत्य की आभा दिखलाती,
जन-जन को संदेश है देती असत्य है नाली।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

तमसो मा ज्योतिर्गमय: है बताती दीपावली,
दीपों की चमक से जगमगाती अमावस्या की काली।
दिवाली बुराई पर अच्छाई की जीत बतलाती,
अज्ञानता पर ज्ञान और निराशा पर आश है लाती।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

हमारा मन खाली रहता है हम करते काली,
अगर हमें चाहिए हर घर सुख शांति वाली।
मन के काली को इस दिवाली करनी होगी लाली,
सबके घर लक्ष्मी मईया भरकर देंगे झोली।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

दीप से दीप मिले बन जाती एकता निराली,
मन से मन आज मिल जाए बजेंगी सद्भावना की ताली।
हर दिल को साफ करती है हमारी दिवाली,
आज मिलकर प्रण करें मिटायेगे दिलों की काली।
दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — संस्कारों का, धैर्य का, इंसानियत, ईमानदारी व भाईचारे के लिए भी एक ज्योत जगा लो। हम सब जानते है की सदैव से ही त्याग का प्रतीक है दीप और सत्य की मशाल है दीप। अपने मन मंदिर में एक दीप जला लो, सुकून का एक ज्योत जगा लो। दिवाली तमस मिटाती घनघोर विकारों वाली घटा काली, सदैव से ही मन में फैले अंधियारों को दूर भगाने वाली दिवाली। राम का सत्कर्म सत्य की आभा दिखलाती ये दिवाली, जन-जन को संदेश है देती असत्य है समान नाली के, दिवाली बुराई पर अच्छाई की जीत बतलाती, अज्ञानता पर ज्ञान और निराशा पर आश है लाती। मन के इस काली को इस दिवाली करनी होगी लाली, सबके घर लक्ष्मी मईया भरकर देंगे झोली। हर दिल को साफ करती है हमारी दिवाली, आज मिलकर प्रण करें मिटायेगे दिलों की काली। दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली।

—————

यह कविता (दिवाली जीवन में लाती भरकर खुशहाली।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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दीपावली सुहावन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दीपावली सुहावन। ♦

झुर – झुर बहत पुरवइया दीपावली सुहावन,
दीप सजी अंगनैया है औ मिष्ठान लुभावन।
धरती का हर कोना सजा आसमान सुहावन,
झिलमिल झिलमिल दीप टिमटिमाते मनभावन।

कुंजों – उपवनों से शांति, सुख धाम दिखावन,
गुरुजन परिजन संग – संग दिखत ज्ञान लुटावत।
मंदिर – द्वार से हो रहा लक्ष्मी ध्यान मनावन,
काशी, मथुरा, अयोध्या, प्रयाग धाम सुहावन।

धनवंतरी पहले आए मोरा गांव – गांव बतावन,
माटी के दिए घी – तेल – बाती जलते दिखावन।
सखी संग भीतर बाहर साजन शोभा पाता पावन,
स्वार्थ सब भूल गए सुख दायक सुख शांति आंगन।

‘मंगल’ छवि मनमोहक कुंज कुनबा पर पावन,
गोरी छोरी मिलि दीप जलाए हरि मन को भावन।
गृह – गृह गगन मंडल जस गाते गीत सुहावत,
ताल तलैया तट समुद्र नदियां मोहक मनभावन।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — मंदिर द्वार से हो रहा लक्ष्मी ध्यान मनावन, हो काशी, मथुरा, अयोध्या, या प्रयाग धाम सुहावन। दीपावली महापर्व पर धरती का हर कोना सजा आसमान सुहावन, झिलमिल झिलमिल दीप टिमटिमाते मनभावन। शुभ दीपावली आत्मिक साधना के लिए सबसे सर्वोत्तम दिन होता है, इस दिन हम सभी को अपने आत्मिक उत्थान के लिए सच्चे मन से साधना करना चाहिए।

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यह कविता (दीपावली सुहावन।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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दीपावली : पुकार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दीपावली : पुकार। ♦

दीपशिखा की वर्तिका समिध रहा तेल,
घृत से पूजन करें, कुल की परंपरा माता का अभिषेक।

लोक परंपरा में रही मृतिका की बनी में,
मदार की बाती रखे सरसों तेल से फिर प्रज्वलित करें।

कडुआ अनुभव रहा तम ने घेरा डाला जीवन,
इस बार मिटा दो मैया अगला साल न हो ऐसा।

कडुवे तेल से दीप जलाऊं लो कर लो स्वीकार,
मेरे जीवन का अंधेरा हटा दो अबकी बार।

बहुत लड़ चुका हूं गर्दिश से अब न लड़ पाऊंगा,
आया हूं शरण तिहारी आर्तनाद मेरी तू ले इस बार सुन।

बीत गये दिन बहुत सारे अब तो कृपा कर दे,
भोग लगा रहा मैया आस तुझ पर लगाया है।

अंधकार मिटा दे, कुछ तो इतना दे… दे,
भूखा हूं मैं मैया प्यास मेरी मिटा दे।

बस आँचल का प्यार अपना दे… दे,
तेरी कृपा से जी उठुंगा अपना मान दे… दे।

घी के दिये में तुझे पुकारूं हे नाथ कृपा इतना कीजिये,
विघ्न मेरे सारे हर लीजिये चंगा मुझे कर दीजिए।

विनायक कहलाते आप हैं शिव सुत कहलाते,
माँ लक्ष्मी के साथ आप सदा विराजते।

मुझ दीन-हीन पर अपनी कृपा-दृष्टि रखिये,
आप के संग बसे धर्मराज चित्रगुप्त से मेरी ओर दृष्टि फिराइये।

इस दीपावली आप सब से मैं भी दीप-भोग लगाईये।
इस बालक की ओर अपनी कृपा थोड़ी रखिये।

मैं अगले बरस लगाऊंगा मोदक संग ले आऊंगा,
दीपक के संग-संग अपनी खुशी भी चरणों में चढ़ाऊंगा।

ध्यान दें: मृतिका की बनी = मिट्टी का दिया

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली , मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — दीपावली महापर्व पर माँ लक्ष्मी और गणपति का आह्वान किया है। दीपावली पर माता रानी को दीप भोग लगाऊ, मुझ दीन-हीन पर अपनी कृपा-दृष्टि रखिये माँ। हे मैया मेरी अरदास सुन ले, बस आँचल का प्यार अपना दे-दे, तेरी कृपा से जी उठुंगा अपना मान दे-दे। घी के दिये में तुझे पुकारूं हे नाथ कृपा इतना कीजिये, विघ्न मेरे सारे हर लीजिये चंगा मुझे कर दीजिए। शुभ दीपावली आत्मिक साधना के लिए सबसे सर्वोत्तम दिन होता है, इस दिन हम सभी को अपने आत्मिक उत्थान के लिए सच्चे मन से साधना करना चाहिए।

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यह कविता (दीपावली : पुकार।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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दीपावली : आत्मिक आनंद उत्सव।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दीपावली : आत्मिक आनंद उत्सव। ♦

दीप की दीप्ति है, स्मृति ज्ञान ज्योति की,
उत्सव की लहरें नेह, करूणा, अनुराग रूप ले,
बांधे बंधन में जन जन को, अभेद भाव से।
बुराई पर भलाई के संग, जय तन पर आत्मन भाव का।

प्रिय सबसे है, इस काल बिन्दु पर,
आत्मा हो दृढ़ शासक शरीर।
मन के व्यवहार का, हर भाव से उच्च हो,
त्याग सभी के सुभग उत्सव आनंद के हेतु।

प्रयाण – दिवस स्वामी रामतीर्थ का,
सिख मंदिर निर्माण, निर्वाण महावीर का।
इतिहास प्रतीक धर्म एकत्व का,
मंगल लग्न रामभक्ति, कृष्ण कृपा का।
अर्थ इस उत्सव का दे संदेश समभाव।

हर समाज वर्ग के अंतः में, सबके,
दीप उजास करें समान, हों आत्मिक,
ज्योति से मुदित सभी, संपन्न विवेक से,
जग हितैषी हों…यह प्रेम मिलन।
पर्व हर देश, काल, विचार संगीत हो,
सतत विजय – श्री आत्मज्ञान की सर्वत्र।

♦ प्रो• मीरा भारती जी – पुणे, महाराष्ट्र  ♦

—————

  • “प्रो• मीरा भारती जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है — दीपावली महापर्व आत्मिक साधना के लिए सबसे सर्वोत्तम दिन होता है, इस दिन हम सभी को अपने आत्मिक उत्थान के लिए सच्चे मन से साधना करना चाहिए। शुभ दीपावली प्रकाश पर्व के इतिहास का वर्णन किया है, जैसे – प्रयाण दिवस स्वामी रामतीर्थ का, सिख मंदिर निर्माण, निर्वाण महावीर का।

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यह कविता (दीपावली : आत्मिक आनंद उत्सव।) “प्रो• मीरा भारती जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं से नई पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम मीरा भारती (मीरा मिश्रा/भारती) है। मैंने BRABU Muzaffarpur, Bihar, R.S College में प्राध्यापिका के रूप में 1979 से 2020 तक सक्रिय चिंतन और मनन, अध्यापन कार्य किया, आनलाइन शिक्षण कार्यक्रम से वर्तमान में भी जुड़ी हूं, मेरे द्वारा प्रशिक्षित बच्चे लेखनी का सुंदर उपयोग किया करते हैं। मैंने लगभग 130 कविताएं लिखी है, जिसमें अधिक प्रकाशित हैं, कई आलेख भी, लिखे हैं। दृढ़ संकल्प है, कि लेखन और अध्यापन से, अध्ययन के सामूहिक विस्तारण से समाज कल्याण – कार्य के कर्तृत्व बोध में वृद्धि हो सकती है। अधिक सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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जगमग जगमग दीप जले।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जगमग जगमग दीप जले। ♦

जगमग जगमग दीप जले।
अब न कहीं अंधियार पले।

पुन: अयोध्या आए राम,
बनी अयोध्या तीरथ धाम।
मुदित मगन सब धावत आए,
जिव्हा पे सबकी एक ही नाम।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

आ गए राघव मिली खबरिया,
सज गई सारी अवध नगरिया।
राम दरस पावे की ख़ातिर,
चढ़ गए सारे महल अटरिया।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

गुरु, माता सब नगर के वासी,
केवल दर्शन के अभिलाषी।
सारे दुख सब संताप मिटे,
डालें कृपादृष्टि अविनाशी।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

दिन अमावस प्रकाश सवेरा,
सघन तिमिर दीपों का डेरा।
हर मुँडेर पे दीपमालिका,
हो न पाया तम का बसेरा।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

दिवस आज का बहुत पुनीत,
हुई थी सच की झूँठ पर जीत।
मिला राम को राज अवध का,
नगर सुसज्जित, मंगल गीत।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

दीपोत्सव का पर्व है प्यारा,
पाँच दिवस का उत्सव न्यारा।
हर द्वारे पर नेह प्रेम का,
प्रेषित मंगलदीप हमारा।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

हर घर में आए ख़ुशहाली,
गूँजे बच्चों की किलकारी।
माता लक्ष्मी की मिले कृपा,
सबकी सुन्दर हो दीवाली।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — श्री राम जी के अयोध्या लौटकर आने पर पुनः अयोध्या वासियों का खुशी का कोई ठिकाना नहीं। इस मधुर ख़ुशी के उपलक्ष में अयोध्या वासी दीप जलाकर दीपावली प्रकाश पर्व मनाया। पूरी अयोध्या जगमग जगमग दीप से जल उठे, चारो तरफ प्रकाश ही प्रकाश फैल गया। हर घर में आए ख़ुशहाली, गूँजे बच्चों की किलकारी। माता लक्ष्मी जी की मिले कृपा सभी को सबकी सुन्दर हो दीवाली। सभी ख़ुशी में मंगल गीत गाए।

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यह कविता (जगमग जगमग दीप जले।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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दीपक संग इतिहास।

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♦ दीपक संग इतिहास। ♦

दिवाली का पर्व आया है धूमधाम से मनाना है।
धनतेरस से भैया दूज, इन पांच दिनों का इतिहास पुराना है॥

दिवाली के दिन श्री राम जी अयोध्या लौटकर आए थे।
इस खुशी में सब लोगों ने अपने घरों में घी के दीप जलाए थे॥

इसी दिन मां दुर्गा ने काली का रुप भी धारा था।
कितने पापी असुरों को मौत के घाट उतारा था॥

इसी दिन भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
दिवाली के दिन ही पांडव भी अज्ञातवास काटकर आए थे॥

कार्तिक मास की अमावस्या को क्षीरसागर से हुई लक्ष्मी माँ प्रकट थी।
सुना है लक्ष्मी और विष्णु जी इसी दिन प्रणय सूत्र में बंधे थे॥

जब इन्द्र देव कुपित हुए बारिश करके तबाही मचाई थी।
श्री कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत उठा इन्द्र के गर्व को तोड़ा था॥

कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की रीत चलाई थी।
सभी गोकुलवासियों ने मिलकर संध्या समय गोवर्धन पर्वत की आरती उतारी थी॥

एकबार कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादशी को यमराज यमुना के घर पधारे थे।
भाई दूज नाम पड़ा इस दिन का यमुना ने यमराज से हर साल आने का प्रण लिया था॥

कठोपनिषद में कहा है नचिकेता के पिता ने यमराज को दान देने की बात कही थी।
पिता की बात मानी नचिकेता ने, कार्तिक अमावस्या को यमलोक पहुंचा गए थे॥

यह देख यमदेव खुश हुए फिर तीन वर मांगने को कहा था।
नचिकेता ने पिता का स्नेह, अग्नि विद्या और मृत्यु का ज्ञान मांगा था॥

दैत्यों के राजा बलि के राज्य में दया, दान, अहिंसा और सत्य व्याप्त था।
दैत्यों के राजा बलि के यहां विष्णु जी ने द्वारपाल का पद संभाला था॥

धर्मनिष्ठता स्मृति के साथ तीन दिन तक अहोरात्रि महोत्सव किया था।
यही महोत्सव दीपमालिका के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध हुआ था॥

विजयलक्ष्मी कलम रोककर है कहती, आओ भेदभाव को दूर कर स्नेह का दीप जलाए।
जो शहीद हुए हैं देश के लिए उनके स्वप्नों को हम साकार कर दिखाएं॥

॥ आप सभी को दीपावली प्रकाश पर्व पर — हार्दिक शुभकामनाएं ॥

♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦

—————

  • “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — धनतेरस से भैया दूज तक इन पांच दिनों का इतिहास बहुत ही पुराना है। दीपावली प्रकाश पर्व के इतिहास का विस्तार से वर्णन किया है, जैसे – श्री राम जी का अयोध्या लौटकर आना, मां दुर्गा ने काली का रुप धरकर कितने पापी असुरों को मौत के घाट उतारा। इसी दिन भगवान महावीर जी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। दिवाली के दिन ही पांडव भी अज्ञातवास काटकर वापस आए थे। कार्तिक मास की अमावस्या को क्षीरसागर से हुई लक्ष्मी माँ प्रकट, सुना है लक्ष्मी और विष्णु जी इसी दिन प्रणय सूत्र में बंधे थे, और भी बहुत कुछ हुआ था इस दिन।

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यह कविता (दीपक संग इतिहास।) “विजयलक्ष्मी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।

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मिट्टी का दिया।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मिट्टी का दिया। ♦

अरमानों की साज सजा लो,
हर घर को तुम सजा धजा लो।
अपने मन मंदिर में एक दीप जला लो,
सुकून का एक ज्योत जगा लो।
धैर्य का तुम आस जगा लो,
मिट्टी के तुम दिए जला लो।
मिट्टी के तुम दिए जला लो॥

त्याग का प्रतीक है दीप,
सत्य की मशाल है दीप।
खुद जलकर औरों को करता रौशन,
खुशहाली का राग है दीप।
दिलवालों का प्यार है दीप,
मन मंदिर में इसे बसा लो।
मिट्टी के तुम दिए जला लो॥

ईमानदारी का झंडा दो गाड़,
इसके लिए एक दीप जला लो।
भाईचारे की कर लो बात,
चुपके से एक दीप जला लो।
इंसानियत का जब हो भान,
इसके लिए भी दीप जला लो।
मिट्टी के तुम दिए जला लो॥

मन का तमस आज भगा लो,
भाग दौड़ भरी जिंदगी में,
सुकून के एक दीप जला लो,
संस्कारों को तुम अपना लो।
सुख शांति जीवन में आएं,
सबके लिए एक दीप जला लो।
मिट्टी के तुम दीए जला लो॥

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — संस्कारों का, धैर्य का, इंसानियत, ईमानदारी व भाईचारे के लिए भी एक ज्योत जगा लो। हम सब जानते है की सदैव से ही त्याग का प्रतीक है दीप और सत्य की मशाल है दीप। अपने मन मंदिर में एक दीप जला लो, सुकून का एक ज्योत जगा लो। मिट्टी के तुम दिए जला लो।

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यह कविता (मिट्टी का दिया।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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